अब सियासतदानों द्वारा राजधर्म की बातें करना आम चलन है, लेकिन उस पर अमल कोई नहीं करता। सत्ता में पहुँचते ही सब अपने भरोसेमंद अधिकारियों को महत्त्व देने और हित साधने के लिए अनेक विधेयक विपक्ष की अनदेखी कर संसद में पास करने लगते हैं। इस सरकार में भी यही किया जा रहा है; और कुछ ज़्यादा ही सिद्दत से किया जा रहा है। यह सरकार लम्बे समय से केंद्रीय जाँच एजेंसियों- सीबीआई और ईडी को तोता बनाने और इन स्वायत्त जाँच संस्थाओं के प्रमुखों का कार्यकाल पाँच साल करने के लिए उतावली रही है। आख़िरकार 9 दिसंबर को संसद में इस विधेयक पर मुहर लगा दी गयी। संसद में विपक्ष ने बिल के दौरान सरकार पर जमकर हमला बोला और आरोप लगाया कि सरकार इन संस्थाओं का दुरुपयोग करके अपने हित साधेगी। संसद में चर्चा के दौरान तीखी नोकझोंक हुई। आरोपों-प्रत्योरोपों के बीच प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों को देखते हुए संस्थाओं को मज़बूत और चुस्त-दुरस्त बनाना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार ने इनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया है, बल्कि इनके कार्यकाल की समय-सीमा तय की है। विधेयकों के प्रावधानों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन जाँच संस्थाओं का कार्यकाल तो दो ही साल का होगा; लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी, तो इन्हें एक साल से तीन साल तक का विस्तार दिया जा सकता है।
पत्रकारों और जानकारों का कहना है कि विधेयक तो अपनों को बढ़ाने का बहाना है। क्योंकि जो मनमर्जी के काम सियासी दाँवपेंच से नहीं हो आसानी से नहीं हो सकते, वो सरकारी संस्थाओं के मार्फत हो जाते हैं। सरकार इन संस्थाओं का उपयोग अस्त्र-शस्त्र के तौर पर काम करती है। ऐसा नहीं है कि यही सरकार ऐसे विधेयक पास करा रही है। पूर्व की सरकारें भी ऐसा करती आयी हैं। वर्तमान सरकार भी एक क़दम बढक़र वही कर रही है। बसपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पाँच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव में सीबीआई और ईडी का असर उन नेताओं पर देखने को मिलेगा, जो किसी-न-किसी रूप में किसी घोटाले में फँसे हैं। उन पर इस सीबीआई और ईडी का हंटर चल सकता है। उत्तर प्रदेश की सियासत में कई पार्टियों के वरिष्ठ नेता और अध्यक्षों पर कई-कई घोटालों के आरोप हैं। ऐसे में सीबीआई और ईडी के अस्त्र-शस्त्र चल सकते हैं। कृषि क़ानूनों की वापसी के दौरान ये विधेयक लाया गया है, ताकि सरकार मज़बूती के साथ इन अधिकारियों से वो काम ले सके, जो वह चाहती है। सियासत में शक्ति और सूचनाएँ हासिल करना अहम होता है। तभी तो सरकार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के मद्देनज़र ये विधेयक लाया गया है।
जानकारों का कहना है कि इस विधयेक पर मुहर का मतलब विपक्ष को चेतावनी देना है। समाजवादी पार्टी के सांसद और बसपा के सांसद ने ‘तहलका’ को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि विपक्ष की भूमिका से सरकार परिचित है; इसलिए मनमानी कर रही है।
कांग्रेस के सांसद बालू भाऊ नारायणराव ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार अपनी मनमानी कर रही है। जो भी नेता, व्यापारी और कलाकार सरकार की बात नहीं मानता है, उसके ख़िलाफ़ सरकार ईडी और सीबीआई का दुरुप्रयोग करती है। जबसे देश आज़ाद हुआ है, तबसे सीबीआई-ईडी की इतनी छापे मारी इस सरकार से पहले कभी नहीं हुई। लेकिन भाजपा की सरकार ने तो हद कर दी है। अब आये दिन छापेमारी होती है। लोगों को परेशान किया जा रहा है। पहले किसी भी राज्य में साल-दो साल में छापेमारी होती थी। लोगों में सीबीआई-ईडी का डर होता था। अब इस सरकार ने इन दोनों संस्थाओं का महत्त्व कम कर दिया है। सांसद नारायणराव ने कहा कि कई मामलों में सीबीआई-ईडी के छापेमारी में भी कुछ हासिल नहीं होता है। लोगों में डर न के बराबर हो गया है। लोग ईडी के कई-कई बार समन (नोटिस) मिलने पर जाते तक नहीं हैं।
बता दें कि सरकार ने गत चार महीने पहले ही इस बात का संकेत दिया था कि वह सीबीआई और ईडी प्रमुखों के कार्यकाल का विस्तार करेगी; लेकिन विपक्ष ने तब भी कुछ नहीं कहा। इससे साफ़ हो गया था कि विधेयक पर मुहर लगने के दौरान विपक्ष विरोध करेगा। अगर सही मायने में विपक्ष ठान लेता, तो विधेयक पर आसानी से मुहर नहीं लग सकती थी।
संसद में टीएमसी के सांसद सौगत रॉय ने सीबीआई-ईडी के कार्यकाल बढ़ाने वाले विधेयक का मुखर विरोध करते हुए कहा कि यह पूरी क़वायद सीबीसी प्रमुख संजय मिश्रा को एक और कार्यकाल देने के लिए की गयी है।