धारा-356 की आड़ में क्या मोदी सरकार बंगाल में जनता के बहुमत से चुनी गयी सरकार को साम्प्रदायिक हिंसा के आरोपों की आड़ में गिरा देने की कोशिश कर रही है? केंद्र सरकार के इरादे बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के ममता बनर्जी सरकार पर लगातार आरोप लगाने से भी ज़हिर होते हैं। ज़्यादातर राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केंद्र के लिए ऐसा करना बिल्कुल आसान नहीं है और यदि उसने ऐसा कुछ किया, तो उलटा भाजपा को ही इसका बड़ा राजनीतिक नुक़सान होगा, जो कि होने भी लगा है।
इसमें कोई दो-राय नहीं हाल के वर्षों में केंद्र की सत्ता के बूते भाजपा ने राज्यपालों का जमकर वहाँ की चुनी सरकारों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया है। इसके कई उदहारण हैं। या तो सरकारें गिरा दी गयीं, या उनके मंत्री-विधायक तोड़ लिये गये, या फिर सत्ता दलों के ग़ैर-भाजपा नेताओं के यहाँ अपनी एजेंसियों से छापे डलवाकर उन्हें डराने की नीति अपनायी गयी। बंगाल में भी कुछ दिन पहले टीएमसी नेताओं के ख़िलाफ़ इसी नीयत से सीबीआई कार्रवाई को देखा जा रहा है। दरअसल भाजपा किसी भी क़ीमत पर बंगाल में सत्ता चाहती थी और उसकी यह इच्छा आज भी मरी नहीं है। कुछ भाजपा नेता बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की लगातार माँग कर रहे हैं। जबकि वहाँ बड़े बहुमत से टीएमसी की सरकार चुनी जा चुकी है।
कोविड-19 के मामले बढऩे और हर रोज़ बढ़ती मौतों के बावजूद भाजपा के प्रमुख स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह लगभग अन्तिम समय तक प्रचार करते रहे। नैतिकता और आदर्शवाद का ढोल पीटने वाली भाजपा के लिए चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ मोदी से लेकर शाह, प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और कई अन्य दिग्गजों ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, उसका इनमें किसी को ज़रा भी मलाल नहीं है। बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। कमोवेश हर दिन उनका कोई-न-कोई बयान ममता सरकार के ख़िलाफ़ आ जाता है। बहुत-से राजनीतिक जानकार इसे ग़ैर-संवैधानिक मानते हैं। उनका विचार है कि केंद्र और राज्यपाल को इससे बचना चाहिए।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ के एक ट्वीट के ज़रिये दिये बयान पर नज़र डालते हैं- ‘चुनाव के बाद जिस तरह से हिंसा हो रही है, वह मानवता को शर्मसार कर रही है। पुलिस कुछ नहीं कर रही है। फलस्वरूप लोगों का साहस बढ़ रहा है। यह पूरी तरह से विपक्ष को दण्डित करने के लिए किया जा रहा है। राज्यपाल की भाषा साफ़तौर पर ऐसी है, मानो वह ममता सरकार के ख़िलाफ़ एक ज़मीन तैयार कर रहे हैं। पुलिस, प्रशासन और ममता सरकार के ख़िलाफ़ बोलते हुए राज्यपाल धनखड़ सिर्फ़ बयान ही नहीं देते, बल्कि उनके साथ अक्सर वीडियो भी अपलोड करते हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी टैग करते हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मोदी सरकार यदि ममता बनर्जी सरकार को गिराने की कोशिश करती है, तो देश भर में इसका बहुत ग़लत सन्देश जाएगा, जिससे पहले ही ख़राब हो रही भाजपा की छवि को और नुक़सान होगा। इससे विपक्ष भी एकजुट हो जाएगा। देश में धारा-356 की आड़ में राज्य सरकारों को गिराने का सिलसिला कोई नया नहीं है। सन् 1977 में जनता पार्टी जब आपातकाल के बाद सत्ता में आयी, तो उसने राज्यों में कांग्रेस की सरकारों को धारा-356 का इस्तेमाल करके ही गिरा दिया था। इसके दो साल बाद ही सन् 1980 में जनता ने जब इंदिरा गाँधी को दोबारा सत्ता सौंप दी, तो उन्होंने भी जनता सरकार की लाइन पकड़ी और कई राज्य सरकारों को समय से पहले बर्ख़ास्त कर बदला लिया। यह सिलसिला उसके बाद भी दोहराया गया। अब कुछ उसी तर्ज पर मोदी सरकार के राडार पर बंगाल सरकार है। ममता ऐसे किसी भी क़दम के ख़िलाफ़ मोदी सरकार को चेता चुकी हैं। भाजपा की लिए एक दिक़्क़त ज़रूर है कि बंगाल में उसके अपने ही कई नेता ममता सरकार को गिराने की किसी भी कोशिश के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। उनका मानना है कि बंगाल की जनता का मिज़ाज बाक़ी प्रदेशों से अलग है और वह इस तरह के क़दम को कभी भी स्वीकार नहीं करेगी। इसका भाजपा उलटा नुक़सान हो सकता है।
इधर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने भाजपा के नेताओं के उन बयानों पर नज़र रखने के लिए तीन सदस्यीय एक समिति बनायी है, जो ममता सरकार के प्रति नरम रुख़ जता रहे हैं। इस समिति के गठन के कुछ घंटे बाद ही वरिष्ठ भाजपा नेता राजीव बनर्जी ने ममता बनर्जी सरकार गिराने को लेकर अपनी ही केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ सख़्त टिप्पणी कर दी। उन्होंने साफ़ कहा कि जनता के बहुमत से चुनी सरकार को धारा-356 की आड़ में गिराना बहुत ग़लत होगा।
राजीव बनर्जी ने ट्विटर पर यह तक कहा- ‘चुनाव बाद भड़की हिंसा की वजह से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाना जनादेश का अपमान होगा। जनता ने बड़े बहुमत से सरकार चुनी है। अगर धारा-365 के ख़तरे से मुख्यमंत्री का लगातार विरोध किया गया, तो वह इसे अच्छी तरह से नहीं लेंगे।’
भाजपा में ही बाग़ी भी ऐसा कोई असंवैधानिक क़दम उठाने के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि धारा-356 का इस्तेमाल करके ममता सरकार को गिराने का सुझाव सुवेंदु अधिकारी जैसे कुछ नेताओं का है।
मोदी-ममता का बैठक-टकराव
चुनाव नतीजों के बाद ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच पहला बड़ा टकराव तब हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल चक्रवात यास से हुए नुक़सान की समीक्षा बैठक करने पहुँचे और उसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर देरी से पहुँचने का आरोपलगा। हालाँकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ़ से कहा गया कि प्रधानमंत्री के आने के कारण उनके हेलीकॉप्टर को 25 मिनट देरी से उतरने की इजाज़त मिली। बैठक को लेकर जो विवाद राष्ट्रीय सुर्ख़िया बना वह मुख्य सचिव अलापन बंदोपाध्याय से जुड़ा है। केंद्र ने अलापन को लेकर सख़्त रुख़ दिखाया और उनसे जवाबतलबी कर दी। यही नहीं, केंद्र ने सेवानिवृत्ति वाले दिन (31 मई) उनका दिल्ली तबादला आदेश जारी कर दिया। मुख्यमंत्री ममता ने इसका विरोध किया और अलापन को कार्यमुक्त करने से साफ़ मना कर दिया। दरअसल अलापन को ममता के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने तीन माह की अतिरिक्त सेवा (एक्सटेंशन) की स्वीकृति दी थी। लेकिन केंद्र के आदेश के बीच अलापन ने 31 मई को ही सेवानिवृत्ति ले ली और ममता ने उन्हें अपना सलाहकार बनाने का ऐलान करके सबको चौंका दिया। निश्चित ही इस मामले को ममता-केंद्र टकराव से जोड़कर देखा गया। लेकिन इस तरह आदेश पारित करके किसी अधिकारी को बुलाना भी केंद्र के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।