15 अगस्त यानी आजादी दिवस करीब है और मुल्क की 72वीं आजादी दिवस के मौके पर वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी लाल किले से मुल्क की उपलब्धियों बावत अवाम व दुनिया को बताएंगे मगर क्या वह इसका जिक्र करेंगे कि इस मुल्क में लगभग 19 करोड़ लोग हर रोज भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। कुपोषण से हर रोज तीन हजार बच्चे दम तोड़ जाते हैं। इन आंकड़ों का जिक्र इस लिए किया जा रहा है क्योंकि मुल्क की राजधानी दिल्ली में हाल ही में एक गरीब विस्थापित परिवार की तीन बच्चियों (उम्र 8,4,2 साल) की मौत का मामला सुर्खियां बना।
मौत की वजह को लेकर सत्तारूढ़ दल आप और विपक्षी दल कांग्रेस व भाजपा एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं यानी मासूमों की मौत पर सियासत जारी है। बेशक यह सवाल अपनी जगह बरकरार है कि तीन बच्चियों की मौत एक साथ कैसे हो सकती है,और पोस्टमार्टम रिपोर्ट व एसडीएम की जांच रिपोर्ट में तीन बहनों की मौत बावत जो कहा गया है, उसे समझना जरूरी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती हैं कि कुपोषण और खाना नहीं मिलने के चलते ही उनकी जान चली गई। एसडीएम की रिपोर्ट में भूख को सीधे तौर पर मौत का कारण नहीं बताया गया। इसमें बताया गया कि तीनों बच्चियां पहले से बीमार थीं, उन्हें डायरिया हो गया था। पोषक तत्वों की कमी की वजह से उनकी मौत हुई।
गरीबी के कारण उन्हें पोषक आहार नहीं मिल रहा था। इन तीन बच्चियों की मौत को लेकर अधिकांश नेतागण सदमे में हैं कि मुल्क की राजधानी दिल्ली में भुखमरी, कुपोषण की समस्या कैसे हो सकती है। पर इस महानगरी का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। नंदी फाउंडेशन की जनवरी में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राजधानी में 6 साल तक की उम्र वाले 31 फीसदी बच्चे यानी लगभग हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। नंदी फाउंडेशन के सदस्यों में सचिन पायलट, पूनम महाजन, डिंपल यादव और जय पांडा जैसे देश के युवा सांसद सदस्य हैं। दिल्ली में कुपोषण वाली इस तस्वीर को राष्ट्रीय स्तर पर देखने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2014-15) का जिक्र करना प्रासगिंक होगा।
इस सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पांच साल से कम आयु वर्ग के 38 प्रतिशत बच्चे नाटे हैं और इसी आयुवर्ग के 21 प्रतिशत बच्चों का वजन कद के अनुपात में कम हैं। भारत में दुनिया के एक तिहाई नाटे बच्चे हैं। नाटेपन, जन्म के वक्त कम वजन होने की अहम वजह कुपोषण है। दुनिया में पांच साल से कम आयु के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं। हर साल भारत में तीन हजार बच्चों की भूखमरी और कुपोषण से मौत हो जाती है। यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम आयु के बच्चों की होने वाली मौतों में से पचास फीसदी मौतों में कुपोषण का प्रत्यक्ष योगदान है।
बच्चों में कुपोषण व भूख से मरना एक गंभीर समस्या है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि इसका प्रभाव न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी, मौजूदा
अर्थव्यवस्था पर पड़ता है बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी रहता है और कुपोषित आबादी अर्थव्यवस्था को पुश करने में भी सक्रिय भूमिका नहीं निभा पाती। कुपोषण के कारण मुल्क की जीडीपी को सालाना 2.95 फीसदी का नुकसान होता है। दरअसल कुपोषण के संदर्भ में यह बात ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि अगर कोई बच्चा जिंदगी के शुरूआती दो-तीन साल में ही कुपोषित हो गया तो उससे होने वाले प्रभाव अपरिवर्तनीय हैं।
भूख, कुपोषण केवल नाटा ही नहीं बनाता बल्कि दिमाग को भी पूरी तरह से विकसित नहीं होने देता। बाल्यावस्था में ही कुपोषित होने पर बच्चे की सीखने की क्षमता प्रभावित होती है, स्वस्थ बच्चे की अपेक्षा वह कक्षा में गैर हाजिर अधिक रहता है। बड़ा होने पर उसकी उत्पादक क्षमता कम हो जाती है और वह दूसरों की तुलना में कमाता भी कम है। ऐसे अधिकांश बच्चे बड़े होने पर भी अपने अभिभावकों की तरह गरीबी के ही कुचक्र में फंसे रहते हैं और गरीबी के ये हालात अंतत: उन्हें मार देंगे, उन बच्चों से पहले जो बचपन में भूखे नहीं सोए होंगे।
हाल ही में जिस मुल्क ने फ्रांस को पछाड़ दुनिया की सबसे बड़ी छठी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल किया है, उसका एक स्याह पहलू यह भी है कि ग्लोबल हंगर इंडक्ेस की रिपोर्ट 2017 के मुताबिक भारत 119 देशों की फेहिरस्त में 100वें पायदान पर खड़ा है। भारत भूखमरी से निपटने में उतरी कोरिया, बांग्लादेश और इराक से भी पीछे है। बेरोजगारी को दूर करने को लेकर सरकार के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। दिल्ली में जिन बच्चियों की मौत हुई, उनके पिता मंगल सिंह के पास कोई स्थाई रोजगार नहीं था। यही नहीं बीते कई सालों से दिल्ली की अति अविकसित बसाहट में रहने वाले इस परिवार के पास राशन कार्ड तक नहीं था।
यही ऐसा अकेला परिवार नहीं था बल्कि आस-पास के कई परिवारों का राशन कार्ड नहीं बना हुआ था। हैरत है कि गरीबी उन्मूलन और भोजन के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकारों की कई योजनाएं चलने के बावजूद जमीनी हकीकत क्या है,उसे ऐसी घटनाएं बयां करती हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर रिपोर्ट देने को कहा है। इसके साथ ही आयोग ने दोनों सरकारों से अंत्योदय योजना की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा है। आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि मीडिया रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, इससे जाहिर होता हैं कि यह तीनों बच्चियों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। राष्ट्रीय मानवाधिकारों आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 21 और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा है कि खाद्य का अधिकार जीने के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
बीती 8 मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर वजीर ए आजम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पोषण मिशन लांच किया और इसका तीन साल का बजट 9046.17 करोड़ रूपये है। मिशन का लक्ष्य 2022 तक नाटे बच्चों की संख्या को 25 प्रतिशत तक लाना है जो मौजूदा वक्त में 38.4 प्रतिशत है। वर्तमान में पांच साल से कम आयुवर्ग के बच्चों में नाटापन घटने की दर 1 फीसदी है। जन्म के समय पैदा होने वाले कम वजन वाले बच्चों की संख्या में सालाना दो फीसदी की कमी लाना है। मिशन बनाने के पीछे की मंशा तो समझ में आती है पर अहम सवाल यह है कि भूख, कुपोषण को एड्रस करने वाली मौजूदा योजनाओं में बरती जाने वाली लापरवाही, असंवेदनशीलता की कीमत नादान बच्चों को चुकानी पड़ती है।
सार्वजानिक वितरण प्रणाली, मिड डे मील व आंगनबाड़ी जैसे कार्यक्रमों का लाभ हर जरूरतमंद तक पहुंचे, यह एक बहुत बड़ी चुनौती अभी भी मुल्क के सामने है। भुखमरी/कुपोषण के कारण मुल्क के किसी भी कोने में होने वाली मौत दुनिया की छठी अर्थव्यवस्था पर खून के छींटे से कम नहीं।