बहुत हुआ। इन साधु-साध्वियों से देश को बचाओ। कभी हिंदू धर्म में कभी एकोउ हूं द्वितीयोनास्ति नहीं था। हमेशा विचारों को मान्यतों में इतनी बहुलता थी जितनी दूसरे धर्मों में भी नहीं है। सनातन धर्म की कुरीतियों को दूर करने की कोशिश में महर्षि दयानंद ने आर्य समाज बना।
आज यह भी पदाधिकारियों की कुरीतियों,धन का लालच और ईष्र्या का शिकार हो गया है। समय के साथ इतना ही बदलाव है कि भाजपा के सत्ता में आ जाने के बाद सभी दोनों हाथ उलीच रहे है। हिंदू धर्म और इसकी शाखाएं-उपशाखाएं खूब बढ़ीं लेकिन जनता तक नहीं पहुंची।
ऐसा कभी नहीं था कि सनातन धर्म यह दावा करे कि सभी समस्याओं का निदान उसके पास है और सीधे ईश्वर से इसे संदेश मिलते है। लेकिन बदलते हुए समाज में सही शिक्षा के अभाव में तमाम तरह के नए-नए अंधविश्वास, अनपढ़ ज्योतिषाचार्य, साधु और साध्वियां धर्म के नाम पर फैला रही हैं। ढेरों संस्थाएं कुकरमूत्तों की तरह पूरे देश में उभर आई हैं। इनके प्रतिनिधियों का किसी को श्राप देना, धर्म के नाम पर आतंक फैलाना और खुद को महत्वपूर्ण जताना हिंदू धर्म के विकास के लक्षण कतई नहीं हैं।
अब भाजपा नेताओं की धर्म भीरू राजनीति के चलते प्रज्ञा ठाकुर जो हिंदू आतंक के लिए जेल मेें थीं अब जमानत पर हैं। वे भोपाल से चुनाव लड़ रही हैं वह भी सांसद का। उनका मुकाबला है मध्यप्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह से। दिग्विजय सिंह ने जब नर्मदा परिक्रमा (1100 किमी) पैदल करने की ठानी तो प्रदेश तत्कालिन मुख्यमंत्री ने भी नर्मदा पूजन शूरू किया। अपने मंत्रिमंडल में उन्होंने चार साधुओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया। सारी सुविधाएं दीं। इसका लाभ राज्य को हुआ या नहीं यह तो पता नहीं लेकिन वे और पार्टी अलबत्ता विधानसभा चुनाव हार गई। अब उन्होंने लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को परास्त करने के लिए प्रज्ञा ठाकुर को भाजपा का उम्मीदवार बनवाया है। जिसे पार्टी ने भी मंजूरी दी है। हिंदू धर्म में साधुओं और साध्वियों को हमेशा मृदुभाषी, वेदपाठी और संतोषी होने की बात नहीं गई है। लेकिन आज की साध्वियां श्राप देती हैं, ढांचा तोडऩे में सक्रिय होती हैं और गर्व से ये बातें बताती भी हैं।
प्रज्ञा ठाकुर जीतें या हारें। मुद्दा यह नहीं है। मु्द्दा यह है कि आतंकवाद से मुकाबले की बात करने का दावा करने वाली पार्टी आतंकवाद की कथित अभियुक्त को आज संसद का चुनाव लड़वा रही है। अभी भी उस पर आतंकवादी होने का कथित आरोप है। अदालत से अभी वह बरी नहंी हुई है। आने वाले दिनों में लोग इसकी वजह क्यों नहीं पूछेंगे। क्या भाजपा अध्यक्ष की इस पर सहमति सवाल नहीं खड़े करती। क्या आतंक के एक आरोपी को चुनाव में टिकट दे कर एक नजीर नहीं बनी। देश के विकास के लिए क्या यह जिद आवश्यक है? क्या दूसरी पार्टियों ने प्रतिवाद किया? चुनाव आयोग ने किस आधार पर अनुमति दी?
इन सवालों का जवाब राजनीतिक पार्टियों को आने वाले दिनों में देना ही चाहिए। देश के संविधान की अनदेखी क्या हमेशा होनी चाहिए। देश क्या वाकई बदल रहा है हर तरह से?
इन मुद्दों पर भोपाल मेें और लोगों से भी बातचीत की गई। आइए, सुनते हैं उनकी बात। ‘बहुत हुआ। देश को धर्म के आडम्बर से बचाओ।’ कहते हैं ऋषिकेश के मशहूर पदयात्री योगी बंधु। हिंदू धर्म हमेशा एक आंदोलन रहा है। यह ऐसा शांत आंदोलन है जो सबको साथ लेकर चलता है। यदि इसका यह आदर्श नहीं होता तो सदियों से आज तक हिंदू कैसे एक अलग धर्म के तौर पर बचा रहा और पुष्पित-पल्लवित होता रहे। नश्वर देह की ही तरह हर मान्यता, दया, अंहकार और विचार एक दिन मिट्टी हो जाते हैं। इसीलिए हिंदू धर्म में धीरज, संतोष और ह्दय की अद्भुत विशालता पर ज़ोर है। एक विविधता है। कहीं कोई बंदिश नहीं है। अपने- अपने तरीके से धर्म के पालन करने की सबको आज़ादी है। कहीं कोई बंधन या अनुशासन नहीं है।
‘लेकिन सूर्योपासना योग वगैरह को पांच साल में आंदोलन क्यों बनाया गया? स्कूलों में अनिवार्य किया गया।’ पूछते है सुरेंद्र शर्मा जो आदेश कालोनी में सनबीन स्कूल में सातवीं में हैं। उनका कहना है कि ‘यदि यह ऐच्छिक होता तो शायद मैं मन लगा कर करता। लेकिन इससे बचने के लिए स्कूल समय पर नहीं पहुंच पाता तो सज़ा दी जाती है।’ ‘धर्म के प्रति अतिरिक्त उत्साह के चलते मां-बाप भी किशोरों के मन पर दबाव डाल कर उसका पालन कराते ठीक हैं। यह ठीक नहीं है। दुनिया के विकसित देशों में किशोर बच्चों पर कभी दबाव नहीं दिया जाता। दुनिया में विज्ञान, गणित, ग्रह भूगोल, जीव विज्ञान ऐसे विषय है जहां धर्म की कहीं ज़रूरत नहीं। समाज और देश के विकास में इन विषयों की ज़रूरत कहीं ज्य़ादा है। धर्म की गहराई या संस्कृत की नहीं।’ बताते हैं भारत की यात्राा कर रहे ब्रिटिश फोटोग्राफर वाल्टर एलैन। वे भोपाल से खजुराहो भी जाने को हैं।
भारतीय समाज को अलग-अलग जाति और धर्म में बांटने का जो सिलसिला पिछले पांच साल में दिखा। उससे वह देश का विकास तो कतई नहीं हुआ। यदि देश में आदमी और आदमी में परस्पर प्रेम नहीं होगा तो न्यूजीलैंड में और श्रीलंका में जो नरसंहार हुआ वह यहां भी हो सकता है। क्या हमारी सुरक्षा सेनाओं में भी अलग-अलग जाति और धर्म के लोग नहीं हैं। उनसे कैसे उम्मीद करेंगे कि वे दुविधा में नहीं होंगे यदि कभी उपद्रव की स्थिति हुई।
देश चलाने वालों को कुर्सी बचाने की चिंता छोड़ कर देश की महानता, एकता और धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखना चाहिए। जिससे देश वाकई प्रगति के पथ पर चले। देश की बहुसंख्यक गरीब जनता भी रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन पर ज्य़ादा ध्यान दे सके। देश बचेगा तो प्रगति और विकास होगा और खुशहाली भी आएगी।