खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे। मुहावरा आप सबने सुना होगा। पर यहां तो खंबे की जगह बुत ही गिरा दिए गए। नोचना-कचोटना तो आदमी का काम है। हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं होता। हमारे बुत कहीं-कहीं लगते हैं। पर वह मसखरी के लिए, उन्हें कोई नहीं तोड़ता।
इंसान भी बड़े अजीब प्राणी हैं, जिस पर ज़ोर नहीं चलता उस पर चोरी-चोरी पत्थर फेंकते हैं। यदि व्यक्ति अपने ज़माने में ताकतवर हुआ तो उसका बुत बनता है फिर उसे तोड़ दिया जाता है। यह तब होता है जब पता हो कि उसे तोडऩे पर कुछ होने वाला भी नहीं। सरकार तो साथ है ही और प्रशासन भी। इन लोगों पर हमने पुलिस के डंंडे बरसते नहीं देखे। लेकिन पुलिसिया वर्दी देखते ही अंगे्रज़ों के ज़माने से इनकी बहादुरी पता नहीं कहां चपत हो जाती। कहते हैं कमज़ोर आदमी का गुस्सा ऐसे ही निकलता है।
लेकिन यह भी देखा गया है कि मानव की सारी प्रजातियां ऐसा नहीं करती। जानवरों में जैसे सारे नरभक्षी नहीं होते और सांपों में भी सभी विषधारी नहीं होते, वैसे ही इंसानों में सभी ऐसे नहीं होते। इनमें भी खास प्रजाति है जो तोडफ़ोड़, आगजनी,मारपीट और हिंसा के काम करती है।
मज़ेदार बात यह है कि बुत तोडऩे वालों को यह भी पता नहीं होता कि वह मूर्ति किसकी है जो उन्होंने तोड़ी? वे यह भी नहीं जानते कि वह भारतीय है या विदेशी? कई तो उस व्यक्ति का नाम तक उच्चारित नहीं कर पाते। इनमें कुछ तो बिचारे दिहाड़ीदार होते हैं जो फावड़ा-कुदालें लेकर आते हैं।
इस तरह की हरकतें करके भी मानव खुद को सभ्य, सहनशील और पढ़ा लिखा जागरूक इंसान बताता है, और हमें जानवर। बात उनकी सही भी है क्योंकि कौन इंसान है और कौन जानवर इसका सर्टीफिकेट भी तो वही बांटता है। वह जिसे चाहे जो मर्जी कहे। सवाल यह है कि इस तरह का सर्टीफिकेट बांटने का अधिकार उसे किसने दिया? मानव की ऐसी ही कुछ प्रजातियों को देखकर हमें अपने जानवर होनें पर गर्व होता है।
इन प्रजातियों का अपना-अपना दर्शन है। यह किसी का बुत को तोड़ें वह न्यायसंगत पर जब दूसरा इनकी आस्था के बुतों पर हमला करे तो असहिष्णु। कुछ लोग अपनी हार से व्यथित होते हैं तो कुछ अपनी जीत भी नहीं पचा पाते। हर कार्य मेें किसी रूढि़वादी का नाम जोड़ देते हैं। बुत गिराने पर उन्हें धन-दारू, कपड़े मिलते हैं। कहते हैं बुत तोड़ कर या किताबें फूंक देने से किसी विचारधारा को नहीं मारा जा सकता आप देख लीजिए नालंदा, तक्षशिला और काशी का हाल क्या रहा। विचारकों की हत्या कर दी जाती है पर विचार कभी नहीं मरते। महात्मा गांधी इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। उनकी विचारधारा आज भी पूरी दुनिया में पढ़ी जाती है। लोग उस पर अमल भी करते हैं।
खैर इस मामले में हम ‘गधेÓ बस यही दुआ करते हैं कि इंसान को सद्बुद्धि दे ताकि वह धरोहरों को मिटाने की बजाए उनकी रक्षा करे। जिससे लोग यह न कहें कि जीत भले हुई लेकिन उनकी हरकत से लगता है कि यह जीत से खुश नहीं हुए इसलिए खिसियाकर अपना गुस्सा बुतों पर उतार रहे हैं।