पूरे उत्तर भारत में बेमौसम बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। होली से तकरीबन दो सप्ताह पहले शुरू हुई बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा ने होली आते-आते किसानों की, खासतौर से मझोले और छोटे किसानों की कमर तोड़कर रख दी। इस बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा ने इस बार होली का रंग इस कदर फीका कर दिया कि अधिकतर किसानों ने होली ही नहीं मनायी। बेमौसम की बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से रबी फसलों- गेहूँ, सरसों, जौ, चना, मक्का, तिलहन, दलहन, केला, पोस्त और मौसमी सब्ज़ियों को भारी नुकसान पहुँचा है। इस बारिश और ओलावृष्टि से खासतौर से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सहित उत्तर भारत के अन्य हिस्सों के किसानों पर मार पड़ी है। अपनी उजड़ी फसलों को देख तकरीबन सभी किसान रुआँसे हैं और मदद के लिए सरकार की तरफ देख रहे हैं। ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी कुछ स्थानों पर बारिश और ओलावृष्टि हुई है। छत्तीसगढ़ और बिहार के कुछ इलाकों में बारिश हुई है।
उत्तर प्रदेश का हाल-बेहाल
उत्तर प्रदेश में भारी बारिश, ओलावृष्टि के साथ-साथ तेज़ हवा ने रबी की सभी फसलों को ज़मीन पर लिटा दिया। यहाँ फसलों को बुरी तरह क्षति पहुँची है, जबकि सरकार ने किसानों से कोई खास हमदर्दी नहीं जतायी है। इस बारिश से कई कच्चे मकान गिरने के अलावा ओलावृष्टि से किसानों की मौतें भी हुई हैं। होली से पहले ओलावृष्टि से सुलतानपुर के आदमपुर गाँव के एक किसान की मौत हो गयी। वह फसल देखने गया था। इतना ही नहीं, फिरोजाबाद में आकाशीय बिजली गिरने से दो घर गिर गये और एक घर में आग लग गयी, जिससे उसमें रखा सामान खाक हो गया। ये सभी घर किसानों के थे। इस बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से बरेली, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, बदायूँ, चंदोसी, रामपुर, मुरादाबाद, फैज़ाबाद, बलरामपुर, हाथरस, इटावा, सोरों, एटा, मथुरा, हाथरस, गढ़, हापुड़, गाज़ियाबाद, नोएडा के अलावा उत्तराखंड के कई इलाकों में फसलें गिर गयी हैं। इस तबाही से अधिकतर किसान, खासतौर मझोले और छोटे किसान बर्बाद हुए हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थानान्तरण केंद्र के अनुसार, देश के अनेक राज्यों में बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से रबी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। वातावरण में नमी बढऩे से कीटों के प्रकोप का खतरा बढ़ गया है। तेज़ हवा और बारिश से गेहूँ, सरसों, चना, जौ, पन्ना, पोस्त और दलहनों की फसल गिर गयी है। इस बार उपज घटने के साथ-साथ कटाई में परेशानी होगी, जिसमें अधिक मेहनत की ज़रूरत पड़ेगी। गेहूँ की बालियाँ निकली हुई हैं, लेकिन उनमें दाना ठीस से नहीं पड़ा है। ऐसे में गेहूँ का दाना पूरी तरह विकसित नहीं हो सकेगा। इसी तरह नमी के कारण दलहन की फसलों, खासकर मटर, चना में फली छेदक कीड़े लग जाएँगे, जिससे भारी नुकसान होगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार किसानों को भारी नुकसान हुआ है। भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने हाल ही में रिपोर्ट जारी कर कहा है कि बेमौसम की भारी बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं ने गेहूँ के अलावा रबी की खड़ी फसलों को गिरा दिया है। इस बार पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। हरियाणा सरकार का कहना है कि गेहूँ से ज़्यादा नुकसान सरसों की फसल का हुआ है। वहीं कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों और चना की फसलों का ज़्यादा नुकसान हुआ है। स्काइमेट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बारिश और बर्फबारी हुई है।
किसान संगठनों ने माँगा मुआवज़ा
उधर, किसान संगठनों ने अपने-अपने राज्यों की सरकारों से फसल नुकसान के मुआवज़े की माँग की है। उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने राज्य सरकार से किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है। हरियाणा के किसान संगठनों ने राज्य सरकार से प्रदेश में ओलावृष्टि और बरसात से हुए नुकसान की गिरदावरी करवाकर किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है। पंजाब के किसान संगठनों ने भी वहाँ के किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है।
नुकसान की जाँच के आदेश
कृषि विभाग ने राज्यवार फसलों के नुकसान की जाँच का आदेश दिया है। एक अनुमान के अनुसार, तो 65 से 70 फीसदी खेती खराब हुई है। इसमें पहली फरवरी के आिखरी सप्ताह में बारिश में ही तकरीबन 37935.23 हेक्टेयर खेती प्रभावित हो चुकी थी। जो फसलें बची हुई थीं, होली तक हुई बारिश ने बर्बाद कर दीं। कृषि विभाग की मानें, तो गेहूँ, मक्का, तिलहन-दलहन व केला की 60 से 70 फीसदी फसल उजड़ गयी है।
कर्ज़ लेकर फसल उगाने वाले परेशान
बरेली में किसानों से बात करने पर पता चला कि अधिकतर किसानों ने खाद, दवाएँ और यहाँ तक कि बीज भी कर्ज़ पर लिये थे। यह किसान फसल होने पर अपना कर्ज़ चुकाते हैं। लेकिन इस बार फसलों का नुकसान होने पर तकरीबन सभी किसान परेशान हैं। रामपाल गंगवार नाम के एक किसान ने बताया कि उन्होंने तीन बीघा अपने और चार बीघा बटाई के खेत में गेहूँ बोया था। कर्ज़ के खाद-पानी से लेकर उसके पूरे घर ने जी-तोड़ मेहनत की थी। बारिश ने उसकी सारी फसल खराब कर दी। उसे चिन्ता है कि वह कर्ज़ कैसे उतारेंगे और क्या बच्चों को खिलाएँगे? रामपाल ने बताया कि उन पर करीब 20 हज़ार रुपये का कर्ज़ है, इतने रुपये का तो गेहूँ निकलने की भी उम्मीद नहीं है। अब तो सरकार ही मदद कर सकती है और कोई रास्ता नहीं है।
दूसरे एक किसान मोहन लाल तो बात करते-करते रो पड़े। उन्होंने बताया कि वे हर बार बड़ी मेहनत से खेती करते हैं, दिन-रात उसकी रखवाली करते हैं, इस बार बर्बाद हो गये। वे कहते हैं कि थोड़ा-बहुत नुकसान तो हर किसान हर बार सहन करता है, लेकिन इस बार तो सभी बर्बाद हो गये। मोहन लाल यह कहते-कहते रो पड़े कि उनका तो पूरा परिवार इसी खेती से पलता है।
देवकी नंदन नाम के एक किसान की भी कुछ ऐसी ही दशा है। देवकी नंदन का एक पैर कमज़ोर है और वह बिना मज़दूरों के सहयोग के खेती नहीं कर पाते।
भारतीय कृषि बीमा कम्पनी करती है फसल बीमा
प्राकृतिक आपदा से फसल नष्ट होने पर फसल बीमा के तहत नुकसान का मुआवज़ा मिलता है। भारत सरकार द्वारा शुरू की गयी फसल बीमा योजना के अंतर्गत भारतीय कृषि बीमा कम्पनी (एआईसी) को इस योजना की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इसके अंगर्गत प्राकृतिक आपदा, जैसे- बारिश, ओलावृष्टि, आँधी-तूफान, आग, कीड़े और अचानक लगे किसी रोग से फसल बर्बाद होने पर सरकार द्वारा अधिसूचित फसल के नुकसान की भरपाई करने का प्रावधान है। फसल बीमा योजना के लिए नजदीकी बैंक में जाकर या ऑनलाइन द्धह्लह्लश्च://श्चद्वद्घड्ढ4.द्दश1.द्बठ्ठ/ लिंक पर जाकर फार्म भरकर बीमा कवर लिया जा सकता है। पीएमएफबीवाई में किसान की एक फोटो, आईडी और एडरेस प्रूफ, जिसमें पैन कार्ड (आईडी प्रूफ), वोटर आईडी, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड की कॉपी के अलावा अगर अपना खेत है, तो खसरा नम्बर या खाता नम्बर के कागज़ जमा करने होंगे। इसके अलावा फसल बुआई का सुबूत पटवारी, प्रधान, सरपंच द्वारा लिखित रूप में देना होगा।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मुआवज़े की आस
दो हेक्टेयर ज़मीन के मालिक रामसेवक गंगवार बताते हैं कि उन्होंने फसल बीमा करा रखा है, लेकिन फसल के नुकसान का पैसा ले पाना कम टेढ़ी खीर नहीं है। अफसर पहले तो काफी मिन्नतों के बाद भी फसल देखने आना नहीं चाहते, अगर आ भी जाएँ, तो अपनी मर्ज़ी से नुकसान का अनुमान लगाते हैं। उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं कि किसान का वास्तव में कितना नुकसान हुआ है? मझोले किसान देवेंद्र बताते हैं कि छोटी खेती में किसान के पास फसल बोने के लिए भी पैसे नहीं होते साहब, वह जुताई-बुवाई में ही चित हो जाता है। ऐसे में बीमा कौन करा पाएगा? हम जैसे किसानों को तो सरकार से मुआवज़े के अलावा कोई और उम्मीद नहीं है। मुआवज़ा मिलने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि अभी तक तो ठीक से मुआवज़ा कभी नहीं मिला, जो मिलता है, उसमें दलाली भी खूब होती है। इस बार योगी सरकार है, उम्मीद तो है कि योगी जी नुकसान के हिसाब से कुछ अच्छा करेंगे।
कैसे मिलता है फसल बीमा का मुआवज़ा?
भारत सरकार द्वारा 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएमबीवाई) की शुरुआत की जा चुकी है। इस योजना के शुरू होने से लेकर आज तक लोगों में कई भ्रांतियां हैं। कुछ लोगों को यह भी भ्रम है कि उन्हें फसल का नुकसान होने पर इसका लाभ मिल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका लाभ लेने के लिए किसानों को एक प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। इसके लिए खरीफ की फसल का 2 फीसदी, रबी का फसल के लिए 1.5 फीसदी, वाणिज्यिक और बागवानी की फसलों के लिए 5 फीसदी प्रीमियम अदा करना होता है। जबकि छोटे और मझोले किसान तो फसल उगाने तक के लिए कर्ज़ के सहारे होते हैं, ऐसे में बीमा कराने के बारे में तो वे सोचते तक नहीं। इस बीमे के ज़रिये मुआवज़ा तब मिलता है, जब कोई फसल किसी प्राकृतिक आपदा के कारण खराब हो जाए।