डेढ़ महीने में छल पूर्वक दो बार बढ़ाये गये डीएपी के दाम
खेती दिन-दिन होती जा रही महँगी, खाद्यान्न ख़रीद बेहद सस्ती
डीएपी के दाम दोगुने, अब आधी सब्सिडी देगी केंद्र सरकार
हाल ही में 1200 रुपये महँगी हुई डीएपी खाद की 50 किलोग्राम की बोरी अब किसानों को 2400 रुपये की मिलेगी। लेकिन इस पर केंद्र सरकार 1200 रुपये की सब्सिडी देगी। यानी अब डीएपी की 50 किलोग्राम की बोरी किसानों को 1200 रुपये की ही मिलेगी। लेकिन इस सब्सिडी के चक्कर से किसानों का दिमाग़ चकराने लगा है। किसान भानू प्रताप कहते हैं कि अगर सरकार को ईमानदारी से डीएपी का भाव 1200 रुपये ही रखना है, तो सब्सिडी के चक्कर में किसानों को फँसाने की क्या ज़रूरत है? उन्हें पहले की तरह सीधे-सीधे 1200 की बोरी देनी चाहिए। सब्सिडी के चक्कर में कितने ही सीधे-सादे अनपढ़ किसान चक्कर खाते रह जाएँगे। कहीं ऐसा न हो कि गैस सिलेंडर की तरह डाई महँगी करने के बाद सरकार यह सब्सिडी किसानों को देना बन्द कर दे। सम्भवत: भानू प्रताप की शंका कुछ हद तक सही है; लेकिन उनकी जानकारी ठीक नहीं है।
दरअसल किसानों को सही जानकारी न होने और सरकारी कामकाज की जानकारी न होने के चलते वे ऐसा बोल रहे हैं। सही मायने में सब्सिडी किसानों से ली नहीं जाएगी, बल्कि सरकार सीधे इफको को इसे देगी और किसानों को सब्सिडी काटकर ही डीएपी के दाम देने होंगे। लेकिन यह सम्भव है कि आने वाले समय में सरकार धीरे-धीरे सब्सिडी कम कर दे और इसी वसूली किसानों से की जाए। इसी तरह प्राइवेट पशु चिकित्सक और कृषि मामलों के जानकार डॉक्टर रूम सिंह कहते हैं कि किसानों को दोगुनी आय का सपना दिखाकर लूटने का खेल सरकार जिस तरह कर रही है, वह ठीक नहीं है। देश का किसान जितनी मेहनत करता है, उस हिसाब से उसे कुछ नहीं मिलता। एक किसान से तो मज़दूर की आनुपातिक (एवरेज) आय ज़्यादा होती है। इसी तरह होता रहा, तो किसान खेती करना छोड़ देगा और अपनी ज़मीनें बेचकर कोई और धन्धा करने लगेगा और इसका ख़ामियाज़ा पूरे देश को किसी दिन भुगतना पड़ेगा।
बता दें कि इफको ने 20 अप्रैल से 12 मई तक दो बार डीएपी के दाम बढ़ाकर 1200 रुपये से 1900 रुपये किये थे। बाद में देश के प्रधानमंत्री ने इस पर 140 फ़ीसदी सब्सिडी देने की बात कही, मगर बोरी का भाव 2400 तय हुआ माना गया है। यह पहले तय सब्सिडी के मुक़ाबले 140 फ़ीसदी हुई है।
कम जानकारी और अविश्वास
इधर किसान डीएपी के अप्रैल से दो बार बढ़े दामों को लेकर परेशान हैं। उन्हें डीएपी के बढ़े दाम और मिलने वाली सब्सिडी की सही जानकारी भी नहीं है और सरकार पर विश्वास भी नहीं हो रहा है कि वह उन्हें सब्सिडी देगी भी या नहीं। इसलिए समझ नहीं आ रहा है कि वे जाल में फँस रहे हैं या उन्हें राहत मिल रही है। एक किसान राजपाल मौर्य कहते हैं कि सरकार ने हम किसानों को सब्सिडी के झाँसे में ऐसे डाला है कि हम सरकार के क़दम को अच्छा तो मान लें, मगर डर रहे हैं कि यह भी कृषि क़ानूनों की तरह धोखा न हो। जबकि कुछ किसान कृषि क़ानूनों के चलते अभी भी सरकार पर भरोसा ही नहीं कर पा रहे हैं और इसे चालाकी भरा क़दम बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार किसानों को मूर्ख बना रही है। जब डीएपी की बोरी की क़ीमत पहले ही 1200 थी, तो अब उसे 2400 का करके फिर उसमें 1200 करके कौन-सा अहसान कर दिया? यह तो सरकार की चालाकी है। जालिम नगला के किसान हरि का कहना है कि सरकार ने किसानों को परेशान करने की ठान ली है। वह किसानों से ही वोट लेकर जीतती है और किसानों को ही बली का बकरा बनाती है।
सब्सिडी की बात दिये जाने की बात सुनकर हरि कहते हैं कि अरे, सब बाबू मिलकर बाँटबखरा करेंगे किसान के पैसे का। किसान जब सब्सिडी माँगेगा, तो उससे रिश्वत माँगी जाएगी। भला किसान का कोई काम बिना रिश्वत के होता है कभी। किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के बात पर हरि कहते हैं कि यह तो दिन में सपने देखने जैसा है। हरि कहते हैं कि सरकार कोरोना के बहाने लोगों को मरने पर मजबूर कर रही है।
कुछ को बीमारी में इलाज न देकर मारा जा रहा है, तो कुछ को महँगाई बढ़ाकर मारने की सरकार ने मानो ठान ली है। अगर ऐसा नहीं होता, तो इस महामारी में डाई की बोरी इतनी महँगी क्यों करती सरकार। यह सब्सिडी-फब्सिडी तो किसानों का विरोध रोकने के लिए है, कुछ दिन बाद में किसानों को बढ़े हुए भाव में ही खाद दी जाएगी। पहले उसने डीजल के दाम बढ़ाये और अब खाद के। बीज और कीड़ों की दवाइयाँ तो पहले से ही आसमान पर हैं।
परेशान हो रहे किसान
बता दें कि अप्रैल में डीएपी के दाम 1200 रुपये प्रति बोरी से बढक़र सीधे 1900 रुपये करने का इफको कम्पनी ने ऐलान किया था। लेकिन जब इस बात को लेकर हंगामा हुआ, तो इफको ने कहा कि वह पुराना स्टाक पुराने दाम पर
ही बेचेगी।
इतना ही नहीं इफको ने डाई के दाम 700 रुपये बढ़ाने की जगह 500 रुपये बढ़ाने की बात कही। लेकिन अब इफको अपनी बात से पलट गयी है और उसने 1200 रुपये के 50 किलोग्राम के बोरे को सीधे 1900 रुपये में बेचने का फ़ैसला ही मानो कर लिया। फिर इसमें केंद्र की सरकार ने दख़ल दी और 1900 रुपये पर 700 की सब्सिडी की जगह 2400 दाम करके 1200 रुपये सब्सिडी देने की बात कही। इधर कई किसानों की शिकायत है कि उनको डीएपी नहीं मिल रही है।
खाद गोदाम वाले पहले कह रहे थे कि समितियों और गोदामों पर नये दाम वाली डीएपी पहुँच चुकी है। लेकिन अब चुप्पी साधे बैठे हैं। इससे किसानों को पुराने दाम वाली डीएपी भी कोई पुराने दाम पर देना नहीं चाह रहा है और नयी डीएपी ख़रीदने की किसानों की हिम्मत नहीं पड़ रही। लेकिन अब सरकार की सब्सिडी देने की बात सुनकर उनका डर धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है।
लॉकडाउन में उथल-पुथल
अब तो मामला शान्त हो गया है, मगर जब डीएपी के दाम बढऩे की ख़बरें किसानों ने सुनीं, तो वे परेशान हो उठे थे और इस ज़रूरी खाद के इंतज़ाम में इधर-उधर दौडऩे लगे थे। कई किसान डाई महँगी होने की अफ़वाह में डाई ख़रीदने के लिए जुगाड़ करने लगे और महँगे दाम में उसे ख़रीदकर जमा कर बैठे।
कुछ दिन पहले तक डीएपी पाने के लिए किसानों का हाल यह था कि वे लॉकडाउन होते हुए भी डीएपी के जुगाड़ में इधर-उधर दौड़ रहे थे। किसान राकेश कुमार ने बताया कि उन्हें जैसे ही पता चला कि डाई की बोरी के भाव 700 रुपये ज़्यादा हो गये हैं, वे तीन दिन तक डाई की बोरी ख़रीदने के लिए सहकारी और प्राइवेट गोदामों पर दौड़ते रहे और जैसे ही मौक़ा मिला 1900 के नये दाम की बोरी ख़रीदने से बचने के चक्कर में 1700 रुपये के हिसाब से पाँच बोरी ख़रीद लाये। मगर अब पछता रहे हैं। कुछ किसानों ने बताया कि डीएपी तो भाव बढऩे की ख़बर आते ही हवा हो गयी। उसका फ़ायदा उठाते हुए कुछ प्राइवेट व्यापारी और सहकारी खाद विक्रेता किसानों को स्टॉक की कमी और भाव ग़लत बताकर महँगी डीएपी पहले ही बेच चुके हैं।
धान की फ़सल में बढ़ेगी डीएपी की खपत
डीएपी फ़सलों को ताक़त देने वाली एक उत्तम खाद मानी जाती है। इसका पूरा नाम डाई अमोनियम फास्फोरस है, जिसे डाई भी कहा जाता है। धान की फ़सल में किसान डाई का बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इससे धान की फ़सल मज़बूत, पानी में खड़ी रह सकने वाली और हरी-भरी होती है। लगता है इसीलिए ऐसे समय में इफको ने डीएपी के भाव बढ़ाये, जब किसानों को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है।
अगर देखा जाए, तो डीएपी का भाव धान के प्रति कुंतल भाव से तीन गुना महँगा पड़ता है। अगर सब्सिडी हटाकर देखें, तो एक कुंतल डीएपी का भाव 2400 रुपये और बिना सब्सिडी के 4800 रुपये पड़ेगा। वहीं धान की सामान्य प्रजाति का भाव 800 से 1000 रुपये प्रति कुंतल और बासमती 1200 से 1800 रुपये प्रति कुंतल तक बिकती है। इस हिसाब से धान में किसान की प्रति कुंतल की लागत क़रीब 600 से 900 रुपये बैठती है। अगर सिंचाई इंजन से ज़्यादा करनी पड़े तो लागत 1000-1200 रुपये प्रति बीघा तक पहुँच जाती है। अगर कोई आपदा, अति वृष्टि या अल्प वृष्टि न हो अथवा हवा तेज़ न चले, तो धान की पैदावार 3 से 5 कुंतल प्रति बीघा होती है। ऐसे में किसान का भाग्य ठीक रहा तो उसे 50 या 100 रुपये प्रति कुंतल से लेकर 500-700 रुपये प्रति कुंतल तक ही हो पाती है। इस मुनाफ़े में किसान की कड़ी मेहनत अगर घटा दी जाए, तो घाटा ही होगा।
सरकार का बहाना
हैरत की बात यह है कि डीएपी के भाव में कम्पनियों को बढ़त की छूट देकर केंद्र की सरकार ने किसानों को सब्सिडी देकर कहा है कि इससे उसको सब्सिडी के मद में 14,775 करोड़ रुपये अतिरिक्त ख़र्च करने होंगे।
सरकार ने डीएपी की बढ़ती क़ीमतों को लेकर यह भी कहा है कि फास्फेट एवं पोटाश उर्वरकों के कच्चे माल की बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय भाव के चलते डीएपी के भाव बढ़े हैं और बढ़ते भाव के प्रभावों को कम करने के लिए उसने सब्सिडी देने का विचार किया है। इस क़दम के पीछे उसका उद्देश्य देश के किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है।
उर्वरक मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के संकट के समय में सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए सभी ज़रूरी क़दम उठा रही है। बता दें डीएपी की 1200 रुपये में मिलने वाली 50 किलोग्राम की बोरी अब 1900 रुपये की नहीं, बल्कि 2400 की हो गयी है।
इसी तरह एनपीके (12.32.16) और एनपीके (10.26.26) की बोरियाँ, जो क़रीब 1075 रुपये के आसपास थीं, अब क्रमश: 1800 रुपये और 1775 रुपये की बिकेंगी। यूरिया के विपरीत फास्फेट एवं पोटाश उर्वरकों उत्पादों के भाव विनयिमित हैं। विनिर्माता इनके भाव तय करते हैं और सरकार प्रति वर्ष उन्हें निर्धारित सब्सिडी देती है। मंत्रालय ने कहा कि सरकार सस्ते भाव पर फास्फेट एवं पोटाश (पी एंड के) उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
सवाल यह है कि जब इफको कम्पनी प्रति बोरी के भाव 700 बढ़ाना चाहती है, तो सरकार उसे 2400 रुपये बोरी करके ज़्यादा सब्सिडी क्यों दे रही है? वही सीधे 700 रुपये सब्सिडी क्यों नहीं देती, इससे सरकारी ख़जाने की बचत भी होगी और कम्पनी को उसका उतना ही लाभ मिलेगा, जितना वह कमाना चाहती है।
अगर पहले से ही सरकार इफको को 500 रुपये सब्सिडी दे रही है, तो इसमें 200 रुपये और बढ़ाती, इससे डीएपी का भाव 1900 रुपये होता। आँकड़े देखें तो केंद्र सरकार रासायनिक खादों पर हर साल क़रीब 80,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। अब ख़रीफ़ सीजन से इसका भार क़रीब 94,775 करोड़ रुपये हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ सरकार से सीख ले केंद्र
रूम सिंह कहते हैं कि फास्फेट और पोटाश वाली खादों के भाव मन मर्ज़ी से बढ़ाने वाली कम्पनियों पर सरकार को रोक लगानी चाहिए और सब्सिडी किसानों को सीधे अलग से देनी चाहिए। इस मामले में हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ अलग हटकर किसानों के हित में काम किये हैं। जैसे छत्तीसगढ़ की सरकार ने आने वाले ख़रीफ़ के मौसम यानी इसी साल से धान की जगह पर ख़रीफ़ की दूसरी फ़सलों की खेती करने पर किसानों को 10,000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी देने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ की सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ख़रीफ़ सीजन 2021-22 से राजीव गाँधी किसान न्याय योजना के दायरे का विस्तार करते हुए राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि अब धान पर 9000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी, जो पहले 10,000 रुपये प्रति एकड़ थी। लेकिन दूसरी ख़रीफ़ की फ़सलों पर इसे 10,000 रुपये किया जाएगा।
इससे धान उत्पादक किसान भले ही प्रभावित होंगे, मगर राज्य में मुख्यमंत्री पौधारोपण प्रोत्साहन योजना को बल मिलेगा। क्योंकि इस योजना के तहत धान के बदले पौधारोपण करने वाले किसानों को पूरे तीन साल तक 10,000 रुपये प्रति एकड़ का भुगतान सरकार करेगी।
इफको में भ्रष्टाचार
इफको में इन दिनों भ्रष्टाचार की एक परत सीबीआई की जाँच और कार्रवाई में उठी है। इस मामले में सीबीआई ने इफको के प्रबन्ध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी यूएस अवस्थी, इंडियन पोटाश लिमिटेड के पूर्व एमडी परविंदर सिंह गहलोत और इनके पुत्रों समेत अन्य के $िखलाफ़ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। इन लोगों के $िखलाफ़ उर्वरक आयात और सब्सिडी का दावा करने में गड़बड़ी का आरोप है। बताया जा रहा है कि यह मामला वित्तीय वर्ष 2012-13 का है।
सीबीआई ने यह इन लोगों पर यह कार्रवाई एफआईआर दर्ज करने के बाद दिल्ली, मुंबई और गुरुग्राम समेत देश भर में अवस्थी और गहलोत से जुड़े 12 परिसरों पर छापे मारकर की। बता दें कि यूएस अवस्थी 1993 से ही इफको के एमडी और सीईओ के पद पर हैं।
इफको पर महँगे भाव पर उर्वरकों का आयात कर सरकार से अधिक सब्सिडी का दावा करने और आपूर्तिकर्ताओं से फ़र्ज़ी लेन-देन के ज़रिये कमीशन लेने का आरोप है। सीबीआई के अनुसार आरोपियों ने अधिक सब्सिडी का दावा कर सरकार को धोखा देने के लिए इफको की दुबई स्थित सब्सिडी किसान इंटरनेशनल ट्रेडिंग एफजेडई और अन्य बिचौलियों के ज़रिये ज़्यादा क़ीमत पर उर्वरकों और कच्चे माल का
आयात किया।
सीबीआई ने इस मामले में यूएस अवस्थी के पुत्रों अमोल और अनुपम के $िखलाफ़ भी मामला दर्ज किया है। अमोल कैटालिस्ट बिजनेस एसोसिएट और अनुपम कैटालिस्ट बिजनेस साल्यूशन का प्रमोटर है। इसके अलावा गहलौत के पुत्र विवेक, दुबई स्थित ज्योति ग्रुप ऑफ कम्पनी और रेयर अर्थ ग्रुप के पंकज जैन, उसके भाई और ज्योति ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के प्रेसिडेंट संजय जैन, ज्योति ग्रुप के अन्य अधिकारियों के $िखलाफ़ भी मामला दर्ज किया है।
सवाल यह है कि अब जब सरकार ख़ुद ही इफको को अधिक सब्सिडी देने के लिए तैयार है, तो फिर भ्रष्टाचार नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? दूसरा सवाल यह है कि सरकार जब जानती है कि इफको में अधिक सब्सिडी का दावा पहले भी किया जा चुका है, तो उसे इस कम्पनी को अधिक सब्सिडी क्यों देनी चाहिए? कहीं इसमें भी तो मोटी कमीशन का खेल नहीं हो रहा है, जिससे देश का सीधा-सादा किसान अनभिज्ञ है।