सन् 2014 से पहले महँगाई का रोना रोने वाली राजनीतिक पार्टी भाजपा के किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को अब जुमला ही माना जाना चाहिए; क्योंकि अब किसानों की तकलीफें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस बारे में हमने कई छोटे-बड़े किसानों और कृषि विशेषज्ञों से बातचीत की। बड़ी जोत के मालिक 68 वर्षीय रामसेवक चौधरी कहते हैं कि किसानों की दशा सुधारने पर अगर किसी ने काम किया, तो वे लाल बहादुर शास्त्री और चौधरी चरण सिंह थे। इतने पर भी किसानों की दशा में जिस सुधार की ज़रूरत रही है, वह आज तक नहीं हुआ। इसके बावजूद अबकी सरकारें सिर्फ और सिर्फ अपनी जेबें भरने में लगी हैं। हाल ही में आये तीन नये कृषि कानूनों के बाद किसानों को उनकी मेहनत का फल उतना भी नहीं मिलेगा, जितना अब तक मिलता रहा है। रामसेवक का कहना है कि किसानों से उसकी महीनों की कमायी गयी फसल मण्डियों में सस्ते में लूट ली जाती है, वही फसल किसान के हाथों से निकलते ही बाज़ार में रातोंरात दोगुने-तीन गुने भाव में बिकती है। व्यापारी उसे बेचकर रातोंरात किसान से कई गुना ज़्यादा पैसा कमा लेते हैं। देश के अन्दर आज हर चीज़ के दाम तय हैं, मसलन दवा से लेकर दारू तक, लेकिन किसानों की किसी भी फसल का न तो दाम तय है और न ही उसे सही भाव मिलता है। क्या दिन-रात जी तोड़ मेहनत करने वाले किसानों को अपनी फसल का पूरा और सही मूल्य लेने का भी हक नहीं है?
सब्ज़ी उगाने वाले तेजराम मौर्य ने बताया कि उनके यहाँ उनके दादा-परदादा के समय से ही बरिहाना (सब्ज़ियों की खेती) होता रहा है। बरिहाने में दिन-रात की कड़ी मेहनत होती है। रात-दिन की रखवाली होती है, तब कहीं जाकर मण्डी में सब्ज़ी पहुँचती है; लेकिन उन्हें तीन-चार महीने की मेहनत का उतना पैसा भी नहीं मिलता, जितना एक घंटे में व्यापारी कमा लेते हैं। तेजराम ने बताया कि इस बार जब गोभी 60 से 80 रुपये बिक रही थी, तब भी उनकी गोभी 15-16 रुपये किलो ही बिक रही थी। अब तो उसके दाम भी 4-5 रुपये किलो से ज़्यादा नहीं मिलते, जबकि गोभी उगाने में जो मेहनत और लागत है, वह इससे कहीं ज़्यादा है। प्याज और आलू के बारे में पूछने पर तेजराम कहते हैं कि प्याज तो हमने तभी बेच दिया था, जब वह एक-दो रुपये किलो बिक रहा था। क्या करें घर में नहीं रख सकते, सड़ जाता है। फिर यह भी कहाँ पता था कि प्याज इतना महँगा बिकेगा। फिर कहते हैं- क्या फायदा? महँगा बिक भी रहा है, तो उसका सही फायदा किसानों को मिलता ही कहाँ है? किसान से तो मुफ्त में सब्ज़ियाँ छीन ली जाती हैं। असली मुनाफा तो व्यापारी ही कमाता है।
ठीकठाक पढ़े-लिखे और आधुनिक खेती करने वाले रामेश दिवाकर कहते हैं कि किसानों के प्रति सरकार की उदासीनता और उनके प्रति भेदभाव की मानसिकता के चलते आज तक किसानों का उद्धार नहीं हो सका है। किसानों की मेहनत का फल बिचौलिये और दलाल मिलकर खाते हैं। मैं इस बात का गवाह हूँ कि मण्डियों में दलाली करने वालों की कोठियाँ बनी हुई हैं, जबकि 50-50 बीघा ज़मीन के मालिक किसानों के पास इतनी भी पूँजी नहीं कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सके। रामेश कहते हैं कि इसके पीछे सरकार में बैठे मंत्रियों, खासकर कृषि मंत्री की अनदेखी है। रामेश तो यहाँ तक कहते हैं कि सभी मण्डियों से मोटा पैसा रिश्वत के रूप में ऊपर तक जाता है, जिसके चलते किसानों को जितना भी लूटा जाए, कोई कार्रवाई नहीं होती। वह कहते हैं कि मण्डियों में हो रही धाँधली पर अगर शिकायत की जाए, तो भी कुछ नहीं होता। वह कहते हैं कि एक किसान से करदा, कर, सुखान (खाद्यान्न में हवा लगने पर वज़न कम होना) तुलायी (तौल का पैसा) और कई तरह के चार्ज वसूल लिये जाते हैं और किसान बेचारा सीधी गाय की तरह मण्डी से लुट-पिटकर आ जाता है। उस पर उसे अधिकतर नकद पैसा नहीं मिलता। रामेश दिवाकर कहते हैं कि व्यापारी बहुत चालाक होते हैं, किसान की फसल बेचकर उससे मोटा मुनाफा कमाकर, उसकी रकम लौटाते हैं और कई बार तो उसे भी थोड़ा-थोड़ा करके देते हैं, जो किसान के किसी काम नहीं आती। रामेश का कहना है कि जब तक मण्डियों में दलालों पर नकेल नहीं कसी जाएगी, तब तक किसानों की दशा में सुधार नहीं होने वाला।
46 वर्षीय गन्ना किसान सत्य प्रकाश ने बताया कि वह इसलिए गन्ने की खेती करते हैं, क्योंकि गन्ने की फसल से एक मुश्त पैसा मिलने की आस रहती है। लेकिन कोई फायदा नहीं; क्योंकि गन्ना फैक्ट्रियाँ (चीनी मिलें) समय पर कभी भुगतान नहीं करतीं। अभी तक पिछले साल का भुगतान नहीं हुआ है, जबकि इस साल गन्ना फैक्ट्रियाँ फिर उधारी में गन्ना ले रही हैं। गन्ना फैक्ट्रियाँ किसानों के गन्ने से पैसा कमाकर भी भुगतान नहीं करतीं। जिस किसान को एक किलो चीनी भी उधार नहीं मिल सकती, उस किसान से उसका सैकड़ों कुंतल गन्ना बिना वादे के वर्षों के उधार पर ले लिया जाता है, आखिर क्यों? क्या किसान इतना अमीर है कि उसे जब, जैसे चाहो लूटते रहो और वह सहता रहे! सत्य प्रकाश कहते हैं कि अब कोई महेंद्र सिंह टिकैट जैसा नेता भी नहीं, जिसकी एक धमकी से फैक्ट्री मालिक सीधे हो जाते थे। सरकार गन्ना फैक्ट्रियों के मालिकों से मिली हुई है। उत्तर प्रदेश की मौज़ूदा सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है।
किसानों से लूट कैसे हो कम
किसानों से मण्डियों में होती लूट को कम करने के सवाल पर कृषि विशेषज्ञ ज्ञान प्रकाश सिंह कहते हैं कि मण्डियों में हो रही धाँधली तब तक नहीं रुक सकती, जब तक मण्डियों में होने वाले अध्यक्ष पद के चुनाव में धाँधली नहीं रुकेगी। ज्ञान प्रकाश ने बताया कि आजकल मण्डी का अध्यक्ष बनने के लिए लोग लाखों रुपये की रिश्वत देते हैं। अमूमन मण्डी अध्यक्ष उसी पार्टी का होता, जिस पार्टी की सरकार प्रदेश में होती है या जिसका दबदबा ज़िले या क्षेत्र में होता है। यह मण्डी अध्यक्ष मण्डी मे जमकर धाँधली कराता है। इसके पीछे भी कई कारण होते हैं। पहला यह कि जो भी अध्यक्ष बनता है, वह बड़ी पहुँच के अलावा मोटा पैसा खर्च करके चुना जाता है, और जब वह अध्यक्ष बन जाता है, तो काली कमायी करना शुरू कर देता है, जिसके चलते व्यापारी या कहें कि बिचौलिये किसानों को मोटी चपत लगाते हैं। दूसरा कारण यह है कि अधिकतर मण्डियों के अध्यक्षों से उनके क्षेत्रीय मंत्री या कहें कि कृषि मंत्री की अपेक्षा रहती है कि वे उन्हें कुछ धन अन्दरखाने भेजते रहें; जिसके चलते वे किसानों का खून चूसने की दलालों को खुली छूट देते हैं। ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि जब तक मण्डियों में भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा, किसान लुटता रहेगा। उन्होंने कहा कि इसके दो ही रास्ते हैं, पहला यह कि किसान एकजुट होकर इसका विरोध करें और दूसरा यह कि मण्डी अध्यक्ष किसी ईमानदार व्यक्ति को बनाया जाए, जिसके लिए राज्य की सरकार और खासतौर पर कृषि मंत्री को पूरी तरह ईमानदार होना चाहिए।
क्या कहते हैं किसानी छोड़ चुके लोग
तीन बीघा ज़मीन के मालिक हरिप्रताप मौर्य बाज़ार में सब्ज़ियाँ बेचने का काम करते हैं। उनसे बात करने पर पता चला कि वह किसानी छोड़ चुके हैं। हरिप्रताप मौर्य ने बताया कि उनके पास बहुत थोड़ी खेती है, जिसमें कितनी भी मेहनत करने पर उन्हें हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता था। करीब तीन साल पहले उन्होंने अपना खेत एक साल के लिए छ: हज़ार रुपये में गलाऊ (जिसमें एक साल पूरा होने पर पैसा नहीं देना पड़ेगा और खेत वापस मिल जाएगा) पर रेहन (गिरवी) रख दिया था। उस पैसे से उन्होंने स्थानीय बाज़ार में सब्ज़ियाँ बेचने का काम शुरू किया था। अब वह खेती करना नहीं चाहते। हर छमाही तीन कुंतल अनाज पर खेत उठा देते हैं, जिससे खाने के लिए अनाज मिल जाता है और बाज़ार में हर रोज़ तीन-चार सौ रुपये कमा लेते हैं। हरिप्रताप कहते हैं कि अब वह और उनका परिवार पहले से सुखी हैं। पहले तीन बीघा खेत में साल भर में बड़ी मुश्किल और दिन-रात की मेहनत के बाद साल भर की कमाई 20 से 25 हज़ार भी नहीं होती थी, लेकिन अब वह हर महीने 12 से 15 हज़ार रुपये आराम से कमा लेते हैं। यह पूछने पर कि अगर दूसरे किसान भी ऐसी ही सोच रखेंगे, तो खेती कौन करेगा? हरिप्रताप मौर्य गुस्से में कहते हैं कि खेती उन लोगों से करानी चाहिए, जो बाबूजी बनकर किसानों को लूटते हैं। हरिप्रताप का गुस्सा कहीं-न-कहीं जायज़ लगता है और किसानों की पीड़ा को दर्शाता है। किसानी छोडऩे वाले रामभरोसे यादव भी यही कहते हैं। वह कहते हैं कि छोटी खेती में कुछ नहीं बचता, बच्चे दाने-दाने को मोहताज रहते हैं। इससे अच्छा हर रोज़ सब्ज़ियाँ बेचकर दो-चार सौ रुपये कमाकर खाना है।
किसानों और आम आदमी की दुर्दशा का कारण भ्रष्टाचार
रामसेवक चौधरी कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री कहा करते थे कि जब तक देश का हर किसान सुखी नहीं हो जाता, देश सही मायने में तरक्की नहीं कर सकता। आज इस बात पर न कोई प्रधानमंत्री ध्यान देता है और न कोई मुख्यमंत्री। जिसे कुर्सी मिल जाती है, वह यह समझ लेता है कि अब वह जो कहेगा, जैसे कहेगा होगा; अब उसे काम करने की ज़रूरत नहीं है। वह अधिकारियों को हुक्म दे देता है कि उसे इतने लाख करोड़ रुपये चाहिए, उनके मातहत अधिकारी उस पैसे की वसूली अपने नीचे काम करने वाले अधिकारियों से कहते हैं और वे अधिकारी अपने नीचे वाले अधिकारियों से। इस तरह जो वसूली होती है, वह गरीबों, किसानों, मज़दूरों, आम उपभोक्ताओं और देश के मध्यमवर्गीय नागरिकों से होती है। यही वजह है कि नीचे का आदमी हमेशा दु:खी रहता है। उसे उसकी मेहनत का पैसा भी पूरा नहीं मिलता। रामसेवक कहते हैं कि पहले नेता कुछ ईमानदार होते थे, अब ईमानदार नेता घरों में बैठे हैं। भ्रष्ट लोग सत्ताओं पर कब्ज़ा कर चुके हैं, तो आम आदमी कैसे सुखी रह सकता है? जब तक भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा, तब तक देश का आखरी आदमी सुखी नहीं हो सकेगा; जो कि लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे।