किसानों का स्थगित आन्दोलन एक बार फिर सुनामी की तरह लौटने के संकेत मिल रहे हैं। इस बार केंद्र सरकार की वादाख़िलाफ़ी के विरोध में देश भर के किसानों ने हुंकार भरी है और माँगें पूरी न होने पर दोबारा आन्दोलन करने की चेतावनी दी है। अगर किसानों का यह आन्दोलन दोबारा खड़ा होता है, तो शर्तिया केंद्र सरकार की मुसीबतें बढ़ेंगी। क्योंकि एक तरफ़ केंद्र सरकार में ताक़तवर जोड़ी कांग्रेस समेत विरोधी छोटे दलों को ख़त्म करके 2024 में बड़ी जीत के साथ चुनावी समर फ़तह करना चाहती है। वहीं दूसरी तरफ़ जनता में उसके प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है। जनता में विरोध भरने का काम पहले भी किसानों आन्दोलन ने किया था और अगर अब किसान के विरोध-प्रदर्शन पर उतरे, तो जनता का उन्हें भरपूर समर्थन मिल सकता है।
11 दिसंबर, 2021 को कुछ शर्तों और केंद्र सरकार के वादों के साथ स्थगित हुआ किसान आन्दोलन दोबारा उसी जन-सैलाब के साथ उठ खड़ा होगा, इसकी उम्मीद केंद्र सरकार को अभी भी नहीं है। लेकिन एक डर तो उसे है, कि कहीं किसान उसकी चुनावी रणनीति पर पानी फेरते हुए सत्ता से बाहर न कर दें। केंद्र की सत्ता में क़ाबिज़ भाजपा की मुश्किल यह है कि वह एक तरफ़ जनता का विरोध सह रही है, तो दूसरी तरफ़ कई दल उसके ख़िलाफ़ खड़े हैं। स्थिति यह है कि सरकार पर विरोध करने वालों पर कड़ी नज़र रखने के साथ-साथ ईडी और सीबीआई का सहारा लेने के आरोप लगने लगे हैं। अगर यह आरोप सही हैं, तो यह तरीक़ा असंवैधानिक और अनैतिक ही माना जाएगा।
फ़िलहाल किसानों की चेतावनी के 15 दिन 6 सितंबर को पूरे हो जाएँगे। अगर अब भी केंद्र सरकार ने किसानों की माँगें स्वीकार नहीं कीं तो किसान कितनी ताक़त से दोबारा केंद्र सरकार के विरुद्ध खड़े हो पाते हैं, यह देखना होगा। जानकार ऐसा मान रहे हैं कि सरकार के झुकने की कम ही उम्मीद है। क्योंकि सरकार का मानना यह है कि अब किसान आन्दोलन की कमर टूट चुकी है और वह पहले की तरह कभी खड़ा नहीं हो सकेगा। अर्थशास्त्रियों की चिन्ता यह है कि अगर किसान आन्दोलन दोबारा शुरू हुआ, तो इस बार अर्थ-व्यवस्था की हालत बहुत ही पतली हो जाएगी और लोगों को जीवन जीने में दिक़्क़तें पैदा होंगी। सरकार का क्या है, वह तो अपनी ग़लतियों का ठीकरा किसान आन्दोलन पर फोड़ देगी। कुछ लोगों का मानना है कि संयुक्त किसान मोर्चा में मतभेद और दो-फाड़ से साफ़ है कि अब आन्दोलन पहले की तरह नहीं चल सकेगा।
ज्ञात हो कि किसान आन्दोलन को स्थगित हुए एक साल होने वाला है। लेकिन केंद्र सरकार ने अपने वादों को अभी तक नहीं निभाया है। अब न्यूनतम समर्थन मूल्य, क्रॉप डायवर्सिफिकेशन और जीरो बजट फार्मिंग को लेकर केंद्र द्वारा बनायी गयी समिति की पहली बैठक के दिन ही संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) ने सरकार के विरोध में एक बार फिर मोर्चा खोल दिया है। किसानों के सिर उठाते ही केंद्रीय गृह मंत्री अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी की बौखलाहट एक बार फिर सामने आ गयी है। भाजपा नेता टेनी की बौखलाहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने किसानों की तुलना कुत्तों से तक कर डाली। इससे किसानों में आक्रोश है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि किसानों द्वारा जब दिल्ली में किसान आन्दोलन स्थगित किया गया था, तब सरकार ने जो वादे किये थे, उन वादों को सरकार ने जल्द-से-जल्द पूरा करने के बजाय विश्वासघात किया है। इसी के चलते 22 अगस्त, 2022 को क़रीब 19-20 राज्यों के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर सरकार को अपनी ताक़त का नमूना पेश किया और वादे पूरे करने का 15 दिन का समय दिया।
किसानों ने साफ़ कर दिया है कि अगर सरकार उनकी माँगों को लेकर गम्भीर नहीं हुई, तो इस बार पूरे देश के किसान दिल्ली पहुँचकर आन्दोलन करेंगे। हालाँकि सरकार का कहना है कि उसने एमएसपी पर समिति का गठन कर दिया है; लेकिन इस समिति के गठन से किसान ख़ुश नहीं हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने ऐसा एक भी सदस्य समिति में नहीं रखा है, जो किसानों के हित में निष्पक्ष काम कर सके।
हालाँकि संयुक्त किसान मोर्चा में भी अन्दरख़ाने राजनीति होने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन फ़िलहाल ऐसा कोई मतभेद उभरकर सामने आएगा, ऐसी सम्भावना कम ही दिखती है। क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा में फ़िलहाल 40 संगठन एकजुट रहे हैं। हालाँकि समिति में जाने को लेकर उनमें तनातनी रही है। रही अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी के विरुद्ध सरकार के कार्रवाई करने की बात, तो इन दिनों उत्तर प्रदेश में अपने बदज़ुबान नेताओं पर शिकंजा कसने के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या केंद्र सरकार अपने इस बदज़ुबान नेता के विरुद्ध भी कार्रवाई करेगी? सरकार यह भी कह सकती है कि उसने तो एमएसपी निर्धारण के लिए समिति बना दी है। इस पर सरकार से पूछा जा सकता है कि उसने समिति कब बनायी? क़रीब साढ़े सात महीने बाद। क्या यह सब कुछ दिलासा नहीं है, जिसका उपयोग आन्दोलन को ठण्डा करने के लिए ही किया गया है। ऐसे में सरकार किसानों की माँगें मानती है या नहीं, इसका जवाब भले ही मिल जाए, पर अगर इस बार किसान आन्दोलन खड़ा हुआ, तो उसके समाप्त होने का जवाब किसी के पास नहीं होगा।
किसानों की प्रमुख माँगें
1. फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को स्वामीनाथन आयोग के अनुरूप सी2+50 फ़ीसदी फार्मूले के हिसाब से लागू किया जाए।
2. लखीमपुर खीरी मामले के पीडि़त किसान परिवारों को इंसाफ़ मिले। मुख्य आरोपी को जेल भेजा जाए और उसके पिता व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय शर्मा उर्फ़ टेनी को बॉर्खास्त करके गिरफ़्तार किया जाए।
3. जेलों में बन्द किसानों को छोड़ा जाए। उन पर दर्ज मुक़दमे वापस लिये जाएँ।
4. देश के सभी किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया जाए।
5. बिजली संशोधन विधेयक 2022 रद्द किया जाए।
6. गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और गन्ने की बक़ाया राशि का भुगतान तत्काल
किया जाए।
7. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत किसानों के बक़ाया मुआवज़े का भुगतान तुरन्त किया जाए।
8. भारत विश्व व्यापर संगठन (डब्ल्यूटीओ) से बाहर आये और सभी मुक्त व्यापार समझौतों को रद्द किया जाए।
9. अग्निपथ योजना वापस ली जाए।