कोरोना वायरस के खौफ से देश भर में एक दिन का जनता कफ्र्यू रहा और उसके बाद से 21 दिन का लॉकडाउन, जिसे हम एक तरह से कफ्र्यू भी कह सकते हैं; चल रहा है। इस लॉकडाउन से भले ही हमने महामारी की तरह फैल रहे कोरोना वायरस को तेज़ी से फैलने से रोका हो, पर किसानों और मज़दूरों के लिए मुसीबत बन चुका है। हालाँँकि, इस वायरस से संक्रमित मरीज़ लगातार बढ़ रहे हैं। इधर, इस लॉकडाउन के चलते पैदल चलने वाले करीब दो दर्ज़न लोगों के साथ-साथ भूख से कई लोगों की जान जा चुकी है। वहीं पुलिस की पिटाई और पुलिस द्वारा मदद के वीडियो भी सामने आ रहे हैं। पुलिस के ये दो चेहरे हमेशा से रहे हैं; संकट के समय में भी और सामान्य दिनों में भी। जो भी हो, हालात तो ठीक नहीं हैं। देश भर में कहीं लोग कोरोना वायरस से मर रहे हैं, कहीं भूख से, तो कहीं अत्याचार से। ये तीनों ही स्थितियाँ ठीक नहीं हैं; न वर्तमान के लिए और न ही भविष्य के लिए।
निर्दोष लोगों पर अत्याचार की कहानी
वैसे तो पुलिस अत्याचार की वीडियो और फोटो पूरे देश से आ रही हैं, लेकिन अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो कहीं पुलिस फरिश्तों की तरह बाहर से आने वाले लोगों की मदद कर रही है, तो कहीं-कहीं कुछ पुलिसकर्मियों का वही अत्याचारी चेहरा भी दिख रहा है। हालाँकि, कई तथ्य सरकार छिपाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सोशल मीडिया का ज़माना है, इसमें काफी कुछ स्वत: ही उजागर हो जाता है। हाल ही में पुलिस प्रशासन और अधिकारियों का एक क्रूर चेहरा और सामने आया है, जिसमें बाहर से आये मज़दूरों पर वैक्सीन का छिडक़ाव किया जा रहा है। यह वैक्सीन कीटों को मारने वाली बतायी जाती है। जब यह बात फैलने लगी तो कुछ अधिकारियों ने खेद जताते हुए अपनी गलती पर पर्दा डाल दिया। वहीं सरकार ने इन अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इन दिनों हमारे सामने ऐसे कई वीडियो आ रहे हैं, जिनमें पुलिस के दो रूप दिख रहे हैं। एक तरफ फरिश्ता पुलिस है, जो लोगों की मदद करती दिख रही है; तो दूसरी तरफ ऐसे क्रूर पुलिसकर्मी हैं, जो मजबूर लोगों पर इस संकट के समय में भी अत्याचार करने से नहीं चूक रहे।
पहुँच से दूर राशन
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घरों में बन्द मजबूर और गरीब लोगों को कई तरह की मदद का आश्वासन दे चुके हैं। लेकिन लोगों तक सरकारी मदद ठीक से नहीं पहुँच पा रही है। राशन दुकान वाले उसी ठसक और नखरे से बिना किसी की परेशानी समझे राशन बाँटने में औने-पौने कर रहे हैं। गौटियाँ गाँव के शिवपाल ने बताया कि उनके परिवार में पाँच सदस्य हैं। पहले उन्हें साढ़े तीन किलो राशन और आधा किलो चीनी दी जाती थी। अब भी उतना ही मिला है। पहले वे मज़दूरी करके घर चला लेते थे, अब तो मज़दूरी भी नहीं मिल रही है। इतने से राशन में उनके परिवार का गुज़ारा कैसे हो सकता है? शिवपाल ने बताया कि हमारे गाँव के कुछ लोग अच्छे हैं, जो ज़रूरत पर मदद कर देते हैं, उधार भी दे देते हैं। लेकिन इस समय तो सभी मुसीबत में हैं। नगला गाँव के सेवाराम ने बताया कि वे दूध का काम करते हैं। अब पुलिस दूध बाँटने नहीं जाने देती है। खेतों में होकर चोरी छिपे थोड़ा-बहुत दूध बेच आते हैं, लेकिन उसके भी पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में गुज़ारा करना मुश्किल हो गया है। सुना है योगी जी मनरेगा मज़दूरों के खातों में पैसे भेज रहे हैं। मगर हम क्या करें, हमारी तो सरकार न किसानों में गिनती करती है और न मज़दूरों में, जबकि परेशानी हमें भी बहुत हो रही है। गाँवों में दूध बेचने शहर जैसा फायदा नहीं मिलता।
बीमार लोगों की बढ़ गयी परेशानी
लॉकडाउन के चलते जो लोग बुजुर्ग हैं, बीमार हैं और जिनकी तबीयत अचानक खराब हो जा रही है, वो लोग इलाज के लिए तरस रहे हैं। ऐसे लोगों को अस्पतालों तक ले जाने में ही बहुत परेशानी हो रही है। अगर कोई कैसे भी अस्पताल तक पहुँच जा रहा है, तो कोरोना वायरस के डर से डॉक्टर उससे कन्नी काट रहे हैं। वे मरीज़ को देखने से भी कतरा रहे हैं, खासतौर से उन मरीज़ों को छूने से बच रहे हैं, जिन्हें सर्दी-खाँसी हो रही है। इस बारे में एक डॉक्टर संतोष (बदला हुआ नाम) ने कहा कि आप मीडिया वाले यह तो देखते हो कि हम मरीज़ को नहीं देख रहे, पर यह नहीं देखते कि हमारे पास कोरोना वायरस से बचाव वाली किट और मास्क तक नहीं हैं। ऐसे में अगर हम किसी कोरोना वायरस से पीडि़त के सम्पर्क में आ गये, तो हम ही नहीं हमारा बाकी का स्टाफ और हमारे परिजन भी कोरोना की चपेट में आ जाएंगे। कौन ज़िम्मेदारी लेगा इसकी? हालाँँकि डॉक्टर की बातों में सच्चाई है; लेकिन ऐसे में वे मरीज़ जो दूसरी सामान्य बीमारी की चपेट में हैं, इलाज से वंचित हो रहे हैं। ऐसे अधिकतर मरीज़ झोलाछाप डॉक्टरों के सहारे हैं। एक यह भी सच्चाई है कि दूसरे तरह के मरीज़ों के अस्पताल न पहुँचने में उत्तर प्रदेश पुलिस भी अपनी भूमिका निभा रही है। कुछ पुलिस वाले तो पहले लोगों से परेशानी पूछ भी लेते हैं, मगर कुछ तो सीधे डंडे से बात करते हैं। जब भी कोई व्यक्ति घर से निकल रहा है, कुछ पुलिस वाले बिना कारण और परेशानी जाने ही डंडा दिखा रहे हैं। यही वजह है कि कुछ लोग पुलिस के खौफ से घर से नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में कई मरीज़, जो पहले से किसी और बीमारी से पीडि़त हैं, या तो डॉक्टर की लिखी पुरानी दवा किसी तरह मेडिकल स्टोरों से मँगाकर उसी के सहारे जी रहे हैं या फिर झोलाछाप और छोटे डॉक्टरों के सहारे हैं। इस दौरान जिन लोगों की अचानक तबीयत खराब हुई, उनमें भी अधिकतर को समय पर सही इलाज नहीं मिल सका है। कुछ मरीज़ जो अस्पतालों में भर्ती थे, उनके परिजनों को अस्पतालों से भगा दिया गया और जो तीमारदार अस्पतालों में फँसे रह गये, उन्हें दवा के पैसे जुटाने के साथ-साथ खाने तक लाले पड़े रहे हैं।
गाँवों के बाहर कैम्प
उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिकतर गाँवों की सीमाएँ सील कर दी हैं। कहीं-कहीं कैम्प लगा दिये गये हैं, जहाँ बाहर से आने वाले गाँव के लोगों को ठहरा दिया गया है। इन कैम्पों में ठहराये गये लोगों से मिलने उनके परिजनों को भी नहीं जाने दिया जा रहा है। शुरू में तो बाहर से आने वाले लोगों को गाँवों में घुसने ही नहीं दिया जा रहा था। बाद में कैम्प का इंतज़ाम किया गया। अगर कोई जानकार या रसूखदार बाहर से आया, तो उसे पुलिस वालों ने गाँवों में जाने दिया। गाँवों में आने वाले अनेक लोगों की जाँच भी नहीं की गयी।
चोरी-छिपे काटने पड़ रहे गेहूँ
गाँवों की आजीविका अधिकतर खेतों पर निर्भर है। पहले से बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से फसलें खराब हो गयीं, अब बची हुई गेहूँ की फसल पककर तैयार है, लेकिन कटे कैसे? एक तरफ मज़दूर नहीं मिल रहे, दूसरी तरफ पुलिस गाँव से बाहर पहरा दिये हुए है। अगर पुलिस से कहो कि फसल कैसे काटेंगे, तो जवाब मिलता है कि जान प्यारी है या फसल देख रहे हो? ऐसे में किसानों की हर तरह से आफत है। अगर गेहूँ की फसल समय पर नहीं उठी, तो किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाएँगे।
फसल खेतों में ही खराब हो जाएगी और किसानों के हाथ में एक दाना भी नहीं आयेगा। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कुछ किसान चोरी-छिपे और कुछ किसान परेशानी समझ रहे सहयोगी पुलिसकर्मियों द्वारा दी गयी छूट के चलते गेहूँ की फसल काट पा रहे हैं।
महँगी हो गयी मज़दूरी
वैसे तो अधिकतर किसानों को मज़दूर मिल ही नहीं रहे हैं। लेकिन अगर कहीं कोई मज़दूर मिल भी रहा है, तो वह मज़दूरी अधिक माँग रहा है। गौटिया गाँव के एक किसान हरिराम ने बताया कि वे घर में अकेले कमाने वाले किसान हैं। उन्होंने अपने पूरे 8 बीघा खेत में गेहूँ बोया था। पहले तो बारिश और ओले पडऩे से फसल खराब हो गयी और अब मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। एक-दो लोग रात में काम करने को तैयार भी हुए, तो 7-7 सौ रुपये माँग रहे हैं। गेहूँ की फसल इतने की निकलेगी भी नहीं, जितनी मज़दूरी चली जाएगी। बहुत परेशान हूँ। क्या करूँ? समझ नहीं आ रहा है।
अफवाहों ने फैला रखा है खौफ
ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना से भय का माहौल बन चुका है। अफवाहों ने इस खौफ को और भी बढ़ा दिया है। यहाँ तरह-तरह की अफवाहें फैली हुई हैं। मसलन, अगर एक जगह कई लोग इकट्ठे हो जाएँगे, तो कोरोना पकड़ लेगा और सबको तड़पा-तड़पाकर मार देगा। दूसरी अफवाह- बाहर से जो लोग आ रहे हैं, वे शहरों से कोरोना ला रहे हैं। तीसरी अफवाह- मुँह पर कपड़ा बाँधकर नहीं रखा या मास्क नहीं लगाया, तो कोरोना हो जाएगा। चौथी अफवाह- खासी-जुकाम कोरोना के लक्षण हैं। पाँचवीं अफवाह- कोरोना चीन ने छोड़ दिया है और अब हमारे घरों में घुस रहा है, दरवाज़े बन्द रखो। छठी अफवाह- एक-दूसरे को छूने से कोरोना फैल जाता है। सातवीं अफवाह गोमूत्र पीने और चेहरे पर गोबर लगाने से कोरोना नहीं होता। आठवीं अफवाह है कि कोरोना से मौतें हो रही हैं, अगर कोई मर जाए, तो उसे हाथ मत लगाओ।
इसके साथ ही सरकार द्वारा सकारात्मक प्रचार का नतीजा यह है कि काफी लोग यह भी कह रहे हैं कि साफ-सफाई से रहने और घरों में रहने से कोरोना से बचा जा सकता है। मगर फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में अफवाहें उड़ रही हैं। लोग वहम का जीवन जी रहे हैं। यह सूचनाओं और समझदारी की कमी का भी नतीजा है।