जब सत्ता में आने या वापसी की बेचैनी हो, तो राजनीतिक दल क्या-क्या चुनावी घोषणाएँ नहीं करते, भले ही वो पूरी हों या न हों। उत्तर प्रदेश में भी इन दिनों यही हो रहा है। हर पाँच साल के विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा के चुनावों में भी जनता पर वादों की जिस तरह बारिश होती है, अगर उन वादों को कोई पार्टी अपनी सरकार बनने के बाद पूरा कर दे, तो अगले चुनावों में जनता को प्रलोभन देने की नौबत ही न आये, जनता उस पार्टी को पुन: आँखें बन्द करके चुन ले। मगर यह कभी नहीं होता, शायद आगे कभी हो।
इन दिनों सबसे बढ़-चढ़कर अगर कोई पार्टी दावे और वादे कर रही है, तो वह उत्तर प्रदेश की सत्ता में मौज़ूदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है। जबसे चुनावी मौसम शुरू हुआ है, प्रदेश की भाजपा सरकार या सीधे-सीधे ये कहें कि स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावों और वादों के पिटारों पर पिटारे खोले हुए हैं और विकास की हवा चलाने की हरसम्भव कोशिश करने में जुटे हैं।
अगर उनके सन् 2017 के चुनावी घोषणा-पत्र पर नज़र डालें, तो उन्हें सवालों के कठघरे में आराम से घेरा जा सकता है, जहाँ से उनका और उनकी सरकार का बच निकलना मुश्किल हो जाएगा। मगर इस मामले में न पड़कर केवल उनके पाँच साल के कामों में नौकरी के वादों और दावों पर नज़र डालें, तो सा$फ पता चलता है कि वह न तो 2017 में लोगों से किया अपना नौकरी देने का वादा पूरा कर सके हैं और न ही उनका साढ़े चार साल में 4.5 लाख नौकरियाँ देने का दावा ही कहीं से खरा उतरता दिखायी दे रहा है।
प्रदेश की योगी सरकार इन दिनों कई पोस्टरों को लेकर चर्चा में है, मगर इनमें से उनका वह पोस्टर ग़ौर करने को मजबूर करता है, जिसमें लिखा है- साढ़े चार साल, 4.5 लाख नौकरियाँ, साथ ही लिखा है- आओ मनाएँ विकास उत्सव। अब उनके इस 4.5 लाख नौकरियों के दावे पर विचार करने से पहले पिछले साल 3 अगस्त के लखनऊ के लोकभवन दिये गये उनके भाषण पर ग़ौर करते हैं। दरअसल पिछले साल 3 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकभवन लखनऊ में जाकर उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग में चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र बाँटने के दौरान दावा किया था कि उनकी सरकार ने साढ़े चार साल में 4.5 लाख नौकरियाँ दी हैं, जिनमें कहीं भ्रष्टाचार नहीं हुआ है।
मगर उनके दावे की सच्चाई जानने के लिए किसी ने तुरन्त आरटीआई डालकर कार्मिक विभाग से इसकी जानकारी माँगी, जिसका जबाव मिला कि ऐसा कोई आँकड़ा उसके पास नहीं है। बस फिर क्या था, विधानसभा के मानसून सत्र में विधानसभा में जमकर हंगागा हुआ और कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने ट्वीटर पर सरकार के 4.5 लाख नौकरियों के दावे को लेकर सवाल उठाये, जिस पर भाजपा ने ट्वीटर पर उन पर पलटवार करते हुए अलग-अलग विभागों में क़रीब 4.13 लाख नौकरियों का ब्यौरा दिया। यहाँ दो-तीन सवाल ये उठे कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने 4.5 लाख नौकरियों का दावा किया, तो ट्वीटर पर 4.13 लाख नौकरियाँ ही क्यों बतायी गयीं और अगर ट्वीटर पर और भाषणों में योगी सरकार और उसके लोग लाखों नौकरियाँ देने का दावा करते रहे हैं, तो इसके आँकड़े सरकार के पास मौज़ूदा क्यों नहीं हैं। इसके अतिरिक्त साढ़े चार साल में 4.5 लाख नौकरियों के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने क्या और लोगों को नौकरी नहीं दी, जो वो अभी भी 4.5 लाख नौकरियों का जश्न मना रही है।
अजगर की भूख, मुर्ग़ी का अण्डा
एक बार को मान भी लिया जाए कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश में साढ़े चार साल में 4.5 लाख लोगों को नौकरियाँ दी हैं, तो क्या इतनी कम नौकरियों से प्रदेश के युवाओं का भला हुआ होगा।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19,98,12,341 है। वहीं 2020 में उत्तर प्रदेश की अनुमानित जनसंख्या 23,15,02,578 मानी गयी है। ऐसे में अगर मान भी लें कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अपने इस कार्यकाल में 4.5 लाख लोगों को नौकरियाँ दे भी दीं, तो इनका फ़ीसद मात्र 5.14 के आसपास ही होता है। मतलब प्रदेश सरकार ने हर साल केवल एक फ़ीसदी नौकरियाँ ही दी हैं। इसका मतलब यह हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अजगर की भूख मिटाने के लिए मुर्ग़ी का अण्डा लिए बैठे दिखायी दे रहे हैं।
आँकड़ों की सच्चाई
दरअसल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोबारा सत्ता में आने के लिए इतने बेचैन हैं कि अब उनकी हालत ये कर दूँ, वो कर दूँ, क्या कर दूँ वाली बन चुकी है। वह दावों और वादों की प्रदेश की जनता के सामने ऐसी झड़ी लगाये हुए हैं, जो उन्होंने लगभग पाँच साल के शासनकाल में कभी नहीं लगायी। उनका दावा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रदेश का पिछली हर सरकार से ज़्यादा विकास किया है, मगर इस बात को भी वह झुठला नहीं सकते कि बेरोज़गारी के मामले में प्रदेश का रिकॉर्ड बहुत ख़राब है।
योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री भले ही दावा करते घूम रहे हैं कि भाजपा सरकार आने के बाद बेरोज़गारी में कमी आयी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के भी पिछले आँकड़े बताते रहे हों कि 2016 में प्रदेश में बेरोज़गारी दर 16.82 फ़ीसदी थी, जो मार्च 2017 में घटकर 3.75 फ़ीसदी हो गयी। मगर इस हिसाब से अगर देखें, तो योगी सरकार ने आते ही 13.07 फ़ीसदी लोगों को नौकरियाँ दे दी थीं। तो फिर सरकार साढ़े चार साल में केवल 4.5 लाख नौकरियाँ देने की बात क्यों कर रही है, क्योंकि इस हिसाब से तो उसने 2017 में प्रदेश की बा$गडोर सँभालते ही लाखों नौकरियाँ दे दी थीं। यहाँ कौन झूठा है? यह तो श्रीराम ही जानें।
बाद में इसी सीएमआईई ने कहा कि 2021 के मई-अगस्त में उत्तर प्रदेश की बेरोज़गारी दर 5.41 फ़ीसदी है। कुछ और बाद के सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आँकड़े देखें, तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारी दर बढ़कर 6.9 फ़ीसदी दर्ज की गयी है। इसका अर्थ यह हुआ कि 2017 में एक साथ बेरोज़गारी दर घटने के बाद 2021 में फिर दोगुने से ऊपर बढ़ गयी। तो फिर योगी आदित्यनाथ सरकार ने हर साल जो एक लाख नौकरियाँ दीं, उनका क्या हुआ, यह बात भी समझ से परे है।
वैसे पिछले साल जून-जुलाई के आसपास भारतीय रिजर्ब बैंक ने भी रोज़गार के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहद ख़राब बतायी थी। इसके अलावा जैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह दावा किया था कि उनकी सरकार ने साढ़े चार साल में साढे चार लाख नौकरियाँ दी हैं, कई ख़बरें ऐसी भी सामने आयीं, जिनमें दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारी उच्च स्तर पर है।
जो भर्तियाँ हुईं रद्द
उत्तर प्रदेश में अब तक लाखों भर्तियाँ होने से पहले ही रद्द हो चुकी हैं। इसका पूरा-पूरा लेखा-जोखा तो उपलब्ध नहीं है, मगर मोटा-मोटा हिसाब जो ख़बरों के मुताबिक है, वो इस प्रकार है- ग्राम विकास अधिकारी की मई, 2018 में भर्तियाँ निकलीं। दिसंबर, 2018 में परीक्षा हुई और अगस्त, 2019 में परीक्षा परिणाम आया। जो युवा इसमें पास हुए वे ख़ुश थे कि उन्हें सरकारी नौकरी मिल गयी। मगर मार्च, 2021 में ये भर्तियाँ रद्द हो गयीं। इसके अतिरिक्त जूनियर असिस्टेंट की भर्तियाँ जून, 2019 में निकलीं, जनवरी, 2020 में परीक्षा हुई, जून, 2021 में टाइपिंग टेस्ट (टंकण परीक्षण) हुआ। लेकिन इसका भी परिणाम नहीं आया। इसके अतिरिक्त वन रक्षक (फॉरेस्ट गार्ड) की रिक्तियाँ निकाली गयीं। प्रदेश के युवाओं ने बड़ी लगन से इसमें आवेदन किया। मगर कई बार परीक्षा की तारीख़ मिलने पर भी परीक्षा ही नहीं हुई है।
फिर निकलीं रिक्तियाँ
अब पिछले साल जैसे ही चुनाव सामने दिखे एक बार फिर योगी सरकार ने एक-एक करके कई विभागों में भर्तियाँ निकाल दी हैं। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सहकारिता विभाग, नगर विकास, वित्त विभाग, लेखा विभाग आदि हैं। मगर इसमें लोचा यह है कि प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ये भर्तियाँ सम्भव नहीं हैं और चुनाव के बाद का भरोसा नहीं है। तो फिर सरकार ने क्या ये भर्तियाँ युवाओं को लुभाने के लिए निकाली हैं, यह कहना उचित नहीं है।
नियमित नहीं हुए संविदाकर्मी
यह भी याद रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में संविदा पर हर विभाग में लोगों की भरमार है। उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में बस ड्राइवरों से लेकर कंडक्टर तक बड़ी संख्या में संविदा पर हैं। इसी तरह शिक्षा विभाग का भी यही हाल है। हाल ही में 69,000 शिक्षक भर्तियों पर इंसाफ़ की माँग के लिए निकले अभ्यर्थियों पर लखनऊ में पुलिस ने लाठियाँ बरसायी थीं।
इससे पहले आँगनबाड़ी कार्यकर्ता भी सरकार से अपना पारिश्रमिक बढ़ाने और उन्हें पक्का करने की कई बार माँग कर चुकी हैं। इसके लिए उन्होंने जगह-जगह धरना भी दिया, मगर उन्हें भी अभी कुछ हासिल नहीं हो सका है। इसके अतिरिक्त दो साल पहले उत्तर प्रदेश की सुरक्षा सेवा में लगे 25,000 होमगाड्र्स को हटा दिया गया था। उससे ठीक पहले 17,000 होमगाड्र्स को ड्यूटी से हटाया गया था। कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने होमगाड्र्स का मानदेय बढ़ाने का आदेश दिया था, जिसके बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने यह छँटनी कर डाली।
हालाँकि बाद में सरकार ने इन होमगार्ड को वापस लिया गया या नहीं इस पर $खास चर्चा नहीं हुई। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय ने होमगाड्र्स को 500 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलने वाले मानदेय को बढ़ाकर 600 रुपये और किराया भत्ता 72 रुपये देने का आदेश प्रदेश सरकार को दिया था। मगर प्रदेश सरकार ने उनका मानदेय और भत्ता बढ़ाने की जगह उन्हें बेरोज़गारी दे दी और सरकार दावा कर रही है कि उसने साढ़े चार साल में 4.5 लाख नौकरियाँ दी हैं और यह प्रदर्शन कर रही है कि मानो उसके राज्य में बेरोज़गारी है ही नहीं।