कोरोना काल में लोगों को मधुमेह रोगियों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की आड़ में लोगों को काला चावल खाने के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है। तहलका संवाददाता को कृषि वैज्ञानिक डाँ आर के सिंह ने बताया कि देश में काला चावल खाने के लिये प्रेरित किया जा रहा है कि काला चावल में शुगर की मात्रा कम पायी जाती है।
जबकि सच्चाई ये है कि काले चावल में भी सफेद चावल की तरह शुगर पायी जाती है। डाँ सिंह ने कहा कि काला चावल की आड़ में काला कारोबार भी खूब पनप रहा है। ऐसे में लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिये। क्योंकि तामाम शोधों और लैबों में जांच के बाद ये स्पष्ट हुई है। कि काले चावल में ग्लूटेन इंडेक्स 55 प्रतिशत से कम होनी चाहिये जबकि 60 प्रतिशत से भी अधिक पायी गयी है।
ऐसे में काला चावल का सेवन करने वालों का काफी नुकसान हो सकता है। डाँ सिंह ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में अभी भी तामाम तरह से जागरूकता की कमी है। ऐसे में लोगों के साथ खिलवाड़ ना हो उसके लिये सरकार को कार्रवाई करनी होगी।
बतातें चलें कि अगर कोरोना महामारी के दौरान खासकर मधुमेह रोगियों ने काला चावल का सेवन करना ना छोड़ा तो किड़नी,लीवर जैसी बीमारी घातक हो सकती है।