कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले आए दिन समाचार माध्यमों में दिखते रहते हैं. इसके खिलाफ अलग से एक कानून बनाने का काम पिछले कुछ साल से चल रहा है. 2010 में प्रोटेक्शन ऑफ वूमन अगेंस्ट सेक्सुअल हरासमेंट एट वर्कप्लेस बिल का मसौदा तैयार किया गया था. संसद के चालू सत्र में इसके संशोधित मसौदे को संसद में पेश करके पारित करवाने की योजना है, लेकिन यह योजना कोयला ब्लॉक आवंटन पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच उभरे गतिरोध की वजह से टल रही है.
इस विधेयक के पहले मसौदे को संसद में 7 दिसंबर, 2010 को पेश किया गया था. इसके बाद इसे 30 दिसंबर, 2010 को स्थायी संसदीय समिति के पास भेजा गया. समिति ने संसद को इस विधेयक का मसौदा अपने सुझावों के साथ 8 दिसंबर, 2011 को लौटाया. इस प्रस्तावित कानून का जब शुरुआती मसौदा जारी हुआ था तो कई लोगों ने इसकी कमियों की वजह से इस पर आपत्ति जताई थी. सबसे बड़ी आपत्ति यह थी कि सरकार इस कानून के तहत उन महिलाओं या लड़कियों को शामिल नहीं कर रही थी जो घरेलू नौकरानी की तरह काम करती हैं. लेकिन जब हर तरफ से दबाव बढ़ा तो सरकार इन्हें भी प्रस्तावित कानून के दायरे में लाने के लिए तैयार हो गई.
- कानून का मसौदा 2010 में संसद में पेश हुआ था
- कानून से महिलाओं की कामकाजी परिस्थितियों में सुधार होगा
- संसद में गतिरोध के चलते बिल लटका हुआ है
विशाखा के मामले में 15 साल पहले उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया फैसला इस कानून की जड़ में है. उस फैसले में न सिर्फ विशाखा के आरोपों को सही माना गया था बल्कि उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न से कामकाजी महिलाओं के बचाव के लिए कई निर्देश भी जारी किए थे. अभी इन्हीं दिशानिर्देशों के आधार पर महिलाओं की कामकाजी परिस्थितियों संबंधी शिकायतों की सुनवाई होती है. पिछले पंद्रह साल में कामकाजी महिलाओं की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. इसलिए नए कानून को बहुत जरूरी माना जा रहा है. कई बार कामकाजी महिलाओं पर ऐसी शर्तें थोपी जाती हैं कि उनके लिए काम करना मुश्किल हो जाता है. जैसे कि हरियाणा के पूर्व गृह राज्य मंत्री रहे गोपाल कांडा की कंपनी में काम करने वाली गीतिका के अनुबंध में यह शर्त डाली गई थी कि हर शाम उसे कांडा को दिन भर के काम की रिपोर्ट देनी है.
प्रस्तावित कानून में यह प्रावधान है कि नियोक्ता को अनिवार्य तौर पर महिलाओं के लिए ऐसी कामकाजी परिस्थितियां सुनिश्चित करनी होंगी जिसमें उनके यौन उत्पीड़न का जोखिम नहीं हो. अगर कोई नियोक्ता ऐसा नहीं करता तो उसे सजा देने का प्रावधान किया गया है. हालांकि, जानकार प्रस्तावित कानून की एक बड़ी खामी की ओर भी इशारा करते हैं. प्रस्तावित कानून के मसौदे में कृषि क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की चर्चा नहीं की गई है. उम्मीद है कि जब संशोधित मसौदा संसद में पेश होगा तो इस खामी को दूर करने की कोशिश होगी.
–हिमांशु शेखर