कोई सरकार इतनी ब्रेिफक्र तो नहीं हो सकती कि जब चाहे मुसीबतों की आवभगत करने वाले जखीरे पर बैठ जाए? लेकिन जब सरकार के अपने ही सूरमा बदशगुनी की कहानियाँ गढऩे लगें, तो कोई क्या करे? सबसे रोमांचक कहानी निकाय चुनावों को लेकर है। उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपनी पूरी समझ झोंकने के साथ-साथ निकाय चुनावों में ‘हाइब्रिड प्रणाली’ लागू करने की मुखालिफत पर तुल गये। पालिका नियमों की किताब बाँचने की बजाय पायलट इसे अलोकतांत्रिक फैसला बताने पर अड़ गये। आिखर उनके कुतर्क पर नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल ने पालिका नियमों का आईना दिखाते हुए दोनों ही बातों को सौ टंच दुरुस्त बताया। जैसे कि बढ़ती आबादी और हैरिटेज महत्त्व के मद्देनज़र जयपुर, कोटा और जोधपुर में दो मेयरों के प्रावधान से किसे इन्कार होगा? जयपुर शहर का परकोटा क्षेत्र के यूनेस्को विश्व विरासत में शामिल होने के बाद तो यह तात्कालिक ज़रूरत हो गयी थी। बढ़ती जनसंख्या के मद्देनज़र कोटा, जोधपुर भी इसी पाँत में शामिल हो रहे थे। निकाय प्रमुखों के चुनाव को बैक डोर एंट्री’ के पैमाने से नापने के तुक्के को खारिज करते हुए धारीवाल ने कहा कि पहली प्राथमिकता तो निर्वाचित पार्षदों के ही निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे की होगी। लेकिन बाहर से निकाय प्रमुख बनाने का विकल्प भी खुला रखा गया है।
धारीवाल ने अनावश्यक भ्रम को बेदखल करते हुए स्पष्ट किया कि विशेष परिस्थितियों में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा तथा आरक्षित महिला वर्ग में अगर विशेष पार्टी के सदस्य नहीं जीत पाते हैं, तभी ऐसे व्यक्ति को निकाय प्रमुख का चुनाव लड़ाया जाएगा, जो पार्षद नहीं होगा। इस बयान के मद्देनज़र स्वायत्त शासन विभाग के फैसले पर नज़र दौड़ाएँ, तो इस बाबत कोई नयी अधिसूचना जारी नहीं की गयी। ज़ाहिर है नया बदलाव जब सैद्धांतिक कसौटी पर सौ टंच कसा हुआ है, तो 16 अक्टूबर की अधिसूचना ही प्रभावी हुई। विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ने अपना चोला कहाँ बदला? िकस्सा कोताह यह है कि बावजूद इस खुलासे के पायलट पूर्वाग्रहों की तहों से बाहर नहीं निकल पाये हैं और जुनून की पूँछ दबोचे हुए हैं। निकाय चुनाव के तौर-तरीकों पर सवाल उठाते पायलट और प्रतिपक्षी नेताओं के तपते दर्द पर छींटे डालते हुए धारीवाल का कहना था कि 31 जनवरी, 2019 को सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार के फैसले को बदलते हुए किसी भी व्यक्ति के निकाय प्रमुख का चुनाव लड़ सकने का नियम लागू कर दिया था, तो अब कौन-सी तब्दीली कर दी? केवल उसी अधिसूचना को 16 अक्टूबर, 2019 को चुनावी वक्त में दोबारा जारी करने पर हंगामा क्यों? इस वाकये का पूरा लब्बोलुआब समझें, तो आिखर उप मुख्यमंत्री पायलट इस बात से बेखबर क्यों रहे कि ‘राजस्थान नगर पालिका के अधिनियम-2009 के तहत सरकार किसी भी बदलाव के लिए शक्ति सम्पन्न है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान को क्योंकर पायलट असंवैधानिक बता रहे थे; जिसका कोई ताॢकक आधार ही नहीं था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैरानी जताते हैं कि गुड गवर्नेंस की भावना से लिये गये फैसले को फज़ीहत के दलदल में घसीटने के पीछे आिखर मंशा क्या थी? विश्लेषकों का कहना है कि बहरहाल पायलट के उलटे मीज़ान की छलाँग ने न सिर्फ चतुर सुजान बनने की उनकी कोशिशों को ढहा दिया, बल्कि आलाकमान की निगाहों में ‘नूर-ए-नज़र’ बनने की कोशिशों की भी भद्द पिटवा दी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ‘जब आप आदर्शवाद की दुहाई दे रहे हों, तो सियासी असहमतियों को सँभालने का तरीका भी ईज़ाद कर लेना चाहिए।
कोटा, जयपुर और जोधपुर में दो नगर निगम तथा दो मेयर की घोषणा के बाद रेगिस्तानी सूबे की राजनीति गरमा गयी है। निकायों के इस नये परिदृश्य पर तीखे कटाक्ष करने की कोशिश में सबसे आगे तो उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट रहे। मौका ताडक़र इसे नकारने की कोशिश में पायलट धड़े के समर्थक भी िकस्म-िकस्म की बयानबाज़ी करने से नहीं चूके। इस घोषणा को लेकर उनकी बेचैनी अभूतपूर्व रही। उनका कहना था- ‘यह फैसला सही नहीं है। इसे बदला जाना चाहिए। यह प्रणाली राजनीतिक दृष्टिकोण से अच्छी नहीं है। उन्होंने यह कहकर घोषणा का सियासी मुद्दा बनाने की कोशिश की कि स्वायत्त शासन विभाग ने यह निर्णय करने से पहले न तो मंत्रियों की राय ली, न ही विधायकों और संगठन से मशविरा किया। स्वायत्त शासन मंत्री ने ऐसा फैसला क्यों किया? यह समझ से परे है। इसका गलत मैसेज जाएगा। मंत्री प्रतापसिंह खाचारियावास, रमेश मीणा और विधायक भरत सिंह ने भी पायलट के सुर में सुर मिलाते हुए कहा- ‘यह फैसला लोकतंत्र की मूल भावना के िखलाफ होगा। हालाँकि भरत सिंह का कहना था कि मैंने सिर्फ सुझाव दिया है। अलबत्ता मैं सरकार के फैसले के साथ हूँ।
विरोध की इस गणितायी पर तपसरा करते हुए धारीवाल ने कहा कि ‘नगर पालिका अधिनियम-2009 की धारा-3 की उप धारा (1) के खण्ड (सी) के तहत नगर पालिका का सृजन करने, सीमाएँ घटाने-बढ़ाने और नगर पालिका/परिषद्/निगम को दो या दो से अधिक भागों में विभाजित करने और उनकी सीमाएँ निर्धारित करने का उनके मंत्रालय को पूरा अधिकार है। बाहरी व्यक्ति को निकाय प्रमुख के लिए सीधा प्रत्याशी बनाने, वार्डों की संख्या बढ़ाने तथा एक की जगह दो नगर निगम बनाने की राजस्थान म्युनिसिपल अधिनियम-2009 के नियम-3, 5, 6 और 10 के तहत भी स्वायत्त शासन मंत्रालय के पास शक्तियाँ हैं। फिर मलाल क्यों? शुक्रवार 10 अक्टूबर को निकाय चुनावों की प्रक्रिया में फेरबदल को लेकर विरोध पर उतर आये उप मुख्यमंत्री पायलट का कहना था- ‘यदि नगर पालिका एक्ट के तहत धारीवाल यह निर्णय लेना चाहते हैं, तो यह व्यावहारिक रूप से सही नहीं है।’ विश्लेषकों का कहना है कि प्रशासनिक नियम-कायदों खासकर पालिका नियमों की नब्ज़ पर शान्ति धारीवाल की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है। फिर पायलट के प्रपंच का क्या मतलब? धारीवाल ने तमाम आक्षेपों को खारिज करते हुए कहा कि 31 जनवरी, 2019 को सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस सरकार ने आते ही पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के नियमों को बदलते हुए किसी भी व्यक्ति के निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे का कायदा लागू कर दिया था। फिर इसका बुनियादी चरित्र कहाँ बदला? उनका दो टूक सवाल था कि केवल 16 अक्टूबर, 2019 की उसी अधिसूचना को चुनाव के समय दोबारा जारी किया गया, तो बवाल क्यों? उन्होंने विभागीय शक्तियों का भी यह कहते हुए खुलासा कर दिया कि राजस्थान म्युनिसिपल अधिनियम 2009 के नियम 3, 5, 6 और 10 में स्वायत्तशासन विभाग के पास पर्याप्त शक्तियाँ है। लिहाज़ा इन मामलों को कैबिनेट में ले जाने का सवाल ही नहीं उठता। कोटा, जोधपुर और जयपुर को बाँटने के सवाल पर उनका कहना था कि यूनेस्को द्वारा जयपुर की शहरपनाह को वैश्विक धरोहर घोषित करने के बाद जयपुर में हैरिटेज की दृष्टि से अलग नगर निगम का गठन करना ही था। अब जब हैरिटेज और ग्रेटर की दृष्टि से जयपुर का बँटवारा किया गया, तो कोटा और जोधपुर का भी बँटवारा करना आवश्यक था। दोनों शहर आबादी की दृष्टि से 10 लाख से ज़्यादा होने के कारण इन्हीं नियमों के दायरे में आ रहे थे। लिहाज़ा कोटा, जोधपुर में भी दो निगमों का प्रावधान लागू किया गया। सियासी जानकारों का कहना है कि विकास की कसौटी पर यह सौ टका सुधार है। अब जयपुर के साथ कोटा को भी विकास की नयी डगर मिल जाएगी।
नगर पालिका एक्ट की दुहाई देते हुए इस निर्णय को व्यावहारिक नहीं बताना पायलट पर उस समय भारी पड़ा, जब स्वायत्त शासन मंत्री शान्ति धारीवाल ने उनके ज्ञान को दृष्टिदोष में पिरोते हुए अधिनियम का खुलासा किया। धारीवाल ने स्पष्ट कहा कि जब 31 जनवरी, 2019 से यही नियम है, तो नौ महीने तक सवाल क्यों नहीं उठाये गये? वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी ने इसे दूरगामी फैसला बताते हुए नीतिगत बताया। धारीवाल कहते हैं कि इस मामले में विरोध और सुझाव देने वाले सभी पक्षों का स्वागत है। लेकिन हम अपने फैसले पर अडिग हैं। अलबत्ता इस मौके पर भाजपा ने हमलावर होने का मौका नहीं गँवाया। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना था कि कांग्रेस दो गुटों में बँटी हुई है। कांग्रेस घर में ही एक नहीं है। विश्लेषकों का कहना है कि कार्यों का वर्गीकरण होने से लोगों के काम जल्दी हो सकेंगे। दो मेयर होंगे, तो बेहतर करने की प्रतिद्वंद्विता बढ़ेगी। ज़ाहिर है लोग फायदे में रहेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि सबसे बड़ा लाभ तो यह होगा कि जनता और पार्षदों के बीच सहज सम्पर्क हो सकेगा। हालाँकि बड़ा सवाल यह भी है कि आय के संसाधनों में इज़ाफा कैसे होगा? बहरहाल अब नये परिसीमन के मद्देनज़र चुनाव अगले छ: महीने के लिए टल गये हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हर मुद्दे को लेकर सरकार से खटास पालने वाले पायलट और उनके समर्थक नीतियों को उत्साह का विटामिन देने से क्यों परहेज़ कर रहे हैं?
नए सिरे से होगा परिसीमन
जयपुर, जोधपुर और कोटा में दो नगर निगम बनाए जाने तथा दो मेयर बैठाए जाने के राज्य सरकार के फैसले के बाद अब इन महानगरों में वार्डों का परिसीमन भी नए सिरे से होगा। परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले मौजूदा नगर निगमों के प्रशासनिक ढांचे में भी बदलाव किया जाएगा। नए सिरे से वार्डों के परिसीमन के कार्य में करीब पांच से छह माह का समय लगेगा । इसके बाद वार्डों की आरक्षण लॉटरी नए सिरे से निकाली जाएगी। इस स्थिति में तीनों शहरों के नवगठित नगर निगमों के चुनाव अगले साल अप्रैल के आसपास हो सकते हैं।