काबुल में गुरुद्वारे पर हमला अमानवीय और निंदनीय है। इससे भारत के ही नहीं, दुनिया भर के सिखों में रोष है। सिखों का कहना है कि वे सभी धर्म का सम्मान करते हैं। लेकिन कई देशों में अक्सर सिखों के साथ अमानवीय रवैया अपनाया जाता है। ऐसे में भारत सरकार को सिखों की सुरक्षा को लेकर कड़े व साहसिक क़दम उठाने चाहिए। ताकि किसी भी देश में सिख धर्म ही नहीं, अन्य धर्म के लोगों के साथ भी कोई अप्रिय घटना न घट सके। दिल्ली के सिखों ने ‘तहलका’ संवाददाता से कहा कि काबुल में जो हुआ, वह बर्दाश्त करने लायक नहीं है।
दिल्ली सिख नेता सरदार जत्थेदार दर्शन सिंह का कहना है कि काबुल के कार्ते परवान गुरुद्वारे पर हुए हमले से अफ़ग़ान सहित दुनिया भर के सिखों को हिलाकर रख दिया है। उन्होंने कहा कि कितना दु:खद है, जिस अफ़ग़ान में लाखों सिख रहा करते थे, वहाँ अब बमुश्किल से 200 से कम ही परिवार बचे हैं। उन्होंने कहा कि इस हमले की गम्भीरता को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हीं में से 111 सिखों को ई-वीजा दे दिया है। जत्थेदार दर्शन सिंह का कहना है कि इस हमले की मुख्य वजह यह है कि भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा व नवीन जिंदल ने पैगम्बर सम्बन्धी बयान दिया था। इससे वहाँ के अराजक तत्त्वों ने यह मान लिया कि कुछ लोग भाजपा के समर्थक हैं। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारे पर हमला कर दिया। लेकिन हमला निन्दनीय है। वहाँ की सरकार को इस मामले में कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत है। इस हमले में मृतकों के परिजनों को तालिबान सरकार ने एक-एक लाख रुपये और गुरुद्वारे के पुनरुद्धार के लिए डेढ़ लाख रुपये दिये हैं।
शिरोमणि अकाली दल दिल्ली स्टेट के सदस्य गुरुदीप सिंह जस्सा का कहना है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। गुरुद्वारे पर जिस आतंकवादी, जिस संगठन ने हमला किया, उसके ख़िलाफ़ वहाँ की सरकार कड़ी कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में कोई इस तरह की हरकत न कर सके। उन्होंने भारत सरकार से अपील की है कि इस मामले को गम्भीरता से ले और वहाँ पर सिखों की सुरक्षा के लिए क़दम उठाये। उनका कहना है कि भारत सरकार ने भी तालिबान शासन के दौरान अफ़ग़ानिस्तान की जनता की मदद के लिए हज़ारों टन गेहूँ और दवाइयाँ काबुल भिजवायी थीं।
सरदार इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि अजीब विडम्बना है कि भारत सरकार सबकी मदद करने के लिए सबसे आगे आती है। लेकिन जब किसी देश में सिखों पर हमला होता है, तो कार्रवाई की जगह वहाँ की सरकार से सुरक्षा की अपील करती है। जबकि भारत सरकार को वहाँ की सरकार को तुरन्त कार्रवाई करने के साथ वहाँ पर रह रहे सिखों की सुरक्षा के लिए साहसी क़दम उठाने चाहिए।
बताते चलें कि भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगम्बर सम्बन्धी बयान के बाद देश के साथ-साथ पूरी दुनिया के मुस्लिम संगठनों द्वारा जो विरोध किया गया है, उसका नतीजा काबुल में गुरुद्वारे पर हमले के रूप में निकला है। दिल्ली के सिखों का कहना है कि दुनिया में किसी भी धर्म से जुड़े लोगों पर जब भी मानवीय संकट आता है, तो सबसे पहले सिख धर्म के लोग ही मदद के लिए आगे आते हैं। लेकिन कुछ अराजक तत्त्व ऐसे होते हैं, जिनका काम ही आतंक फैलाना है।
सिख नेता परमजीत सिंह सोढी का कहना है कि तालिबान सरकार ने जो मदद की है, उससे यह स्पष्ट है कि भारत के प्रति तालिबान शासन के मन में कितनी सद्भावना है। हमलावर भारत और तालिबान के बीच सम्बन्धों के सौहार्दपूर्ण रिश्तों से घबरा गये हैं, इसलिए उन्होंने अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया है।
ग़ौरतलब है कि जिस तालिबान को अत्यंत कट्टरपंथी माना जाता है, वहीं की पुलिस गुरुद्वारे की सुरक्षा में लगी है। इस हमले में एक सिख के अलावा एक तालिबान सिपाही मारा गया और सात घायल हुए थे।
सरदार कुलजीत सिंह ने कहा कि इसके पहले जलालाबाद और हरराय साहिब गुरुदारे पर हुए हमलों में दर्ज़नों लोग मारे गये थे। लेकिन इस पर से परदा उठना चाहिए कि इस तरह के हमले के पीछे कौन है? उनकी मंशा क्या है? अन्यथा इस तरह की घटनाएँ देर-सबेर होती रहेंगी, जो ठीक नहीं है।