अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में 25 मार्च को एक गुरुद्वारे पर फिदायीन हमले में 27 श्रद्धालुओं की जान चली गयी और कई घायल हो गये। कुछ की हालत गम्भीर है। आज जब दुनिया कोरोना के कहर से जूझ रही है, यह कायराना हमला मानवता को शर्मशार करने वाला है। गुरुद्वारे में आतंकियों ने यह हमला 25 मार्च को सुबह 7:30 बजे तब किया, जब सिख संगत प्रार्थना के लिए वहाँ थी। घटना के तुरन्त बाद सुरक्षाबलों ने गुरुद्वारे की घेराबंदी कर जवाबी कार्रवाई की। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, खासकर संयुक्त राष्ट्र ने इस पर ठोस कार्यवाही करने की माँग की है।
यह कोई पहला मौका नहीं है, जब अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमला हुआ है। पिछले साल ऐसा ही एक हमला आईएसआईएस ने किया था। इस बार भी इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है। दरअसल, कुछ समय पहले ही अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति समझौता हुआ है। आईएस पहले से तालिबान के काफी खिलाफ रहा है और अमेरिका के भी।
समझौते के बाद आईएस ने अफगानिस्तान ने हमलों की धमकी दी थी। समझौते के बाद आईएस ने अफगानिस्तान में हमले भी किये हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों पर उसका यह पहला हमला है। वैसे भी अल्पसंख्यक सिख और हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर अफगानिस्तान में हमले होते रहे हैं।
इससे पहले 2018 में राष्ट्रपति अशरफ गनी से भेंट करने जा रहे हिन्दुओं और सिखों के काफिले पर एक आत्मघाती हमला हुआ था। जलालाबाद प्रान्त के गवर्नर के परिसर से करीब 100 मीटर दूर एक बाज़ार में हुए इस हमले में 12 सिख और 7 हिन्दू मारे गये थे और कई घायल हो गये थे। वहाँ राष्ट्रपति अशरफ गनी बैठक कर रहे थे। इस हमले की ज़िम्मेदारी भी आईएस ने ही ली थी। इस अशांत प्रान्त में हाल के वर्षों में कई घातक हमले हुए हैं। अब 25 मार्च को एक और हमला हो गया, जिसमें एक दर्ज़न से अधिक सिख श्रद्धालु शहीद हो गये। हमले के बाद गुरुद्वारे में सुरक्षाबलों ने मोर्चा सँभाल लिया। तालिबान ने कहा है कि इस हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। जबकि आईएस ने एक बयान जारी कर हमले की ज़िम्मेदारी ली है। अफगानिस्तान सरकार ने इस हमले की पुष्टि की है और इसे कायराना हमला बताया।
अफगानिस्तान में करीब 325 सिख परिवार रहते हैं। इनकी संख्या काबुल और जलालाबाद में अधिक है। इन्हीं दो शहरों में गुरुद्वारे भी हैं। जब 25 मार्च को हमला हुआ, उस समय गुरुद्वारे में 150 से ज़्यादा श्रद्धालु उपस्थित थे। हमले के बाद आतंकी गुट तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुज़ाहिद ने ट्वीट करके कहा कि हमने कोई हमला नहीं किया है। इसके तुरन्त बाद आईएस ने हमले की ज़िम्मेदारी ले ली।
भारत ने इस हमले की कड़ी निन्दा की है। विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के समय में अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थानों पर इस तरह के कायरतापूर्ण हमले अपराधियों और उनके आकाओं की शैतानी मानसिकता दिखाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और अन्य नेताओं ने घटना को बेहद कायरतापूर्ण बताते हुए इसकी कड़ी निन्दा करते हुए अफगान सरकार से अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने को कहा है।
घटना के बाद भारत के जाने-माने कानूनविद नङ्क्षरद्र सिंह खालसा ने बताया कि उनके पास काबुल के गुरुद्वारे से फोन आया, जिससे उन्हें घटना की जानकारी मिली। उनके मुताबिक, कॉल करने वाले ने कहा कि गुरुद्वारे में घटना के समय 150 से ज़्यादा श्रद्धालु मौज़ूद थे। हमले के बाद गुरुद्वारा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है।
प्रताडऩा का लम्बा दौर
वैसे देखा जाए, तो अफगानिस्तान में पहले अल्पसंख्यक कभी डर महसूस नहीं करते थे। दशकों से कई संस्कृतियों के संगम तौर पर जाना जाने वाला अफगानिस्तान रणनीतिक रूप से व्यापार के मुख्य रूट के तौर पर लम्बे समय से इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन कुछ दशक पहले जब तालिबान और कट्टर इस्लामिक संगठनों की मौज़ूदगी वहाँ बढ़ी है, वहाँ का माहौल खराब होता चला गया। इन लोगों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों का जीना दूभर कर दिया। पहले तालिबान और उसके बाद अलकायदा ने अफगानिस्तान को अपने गढ़ के रूप में चुना और इसके बाद इतिहास की बेशकीमती धरोहरों का खात्मा होना शुरू हो गया। एक रिपोर्ट मुताबिक, पिछले करीब साढ़े तीन दशक में अफगानिस्तान से करीब 99 फीसदी हिन्दू और सिख नागरिक भाग चुके हैं। अस्सी के दशक की शुरुआत में जब मुजाहिदीन संगठनों ने देश में पकड़ नहीं बनायी थी, तब अफगानिस्तान में हिन्दू और सिखों की संख्या मिलकर करीब सवा दो लाख थी। बाद में इसमें कमी ही आती चली गयी। नब्बे के दशक में तालिबान ने इस देश पर कब्ज़ा किया, तब तक कुछ ही हज़ार हिन्दू और सिख रह गये थे। यह पलायन अब भी जारी है। हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों के व्यापार और संपत्तियां छीन ली गयी हैं और बड़े स्तर पर धर्मांतरण भी हुआ है। बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र रहे अफगानिस्तान में अब बौद्ध धर्म का बस नाम-ओ-निशान ही है। बौद्ध धर्म से जुड़ी इमारतें और मूर्तियों पर वहाँ हमले होते रहे हैं। बामयान को कौन भूल सकता है जहाँ 2001 में तालिबान ने गौतम बुद्ध की दो विशालकाय मूर्तियों को डायनामाइट से उड़ा दिया था।