देश में किडनी (गुर्दा) ख़रीदने व बेचने का अवैध धंधा इन दिनों फिर से चर्चा में है। हाल ही में पुणे व दिल्ली में पुलिस ने किडनी के इस अवैध धंधे से जुड़े कई लोगों को गिरफ़्तार किया है। दरअसल मई में पुणे पुलिस ने वहाँ के एक क्लीनिक से कुछ संदिग्धों को गिरफ़्तार किया, जिन्होंने किडनी कथित तौर पर अवैध प्रत्यारोपण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इस धंधे में शामिल कुछ दलालों ने सारिका सुतार नामक एक महिला को 15 लाख में एक किडनी बेचने के लिए तैयार किया। फिर उसे क्लीनिक में जमा कराये गये दस्तावेज़ों में रोगी अमित सांलुके की पत्नी के रूप में दर्शाया गया, अर्थात् फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाये गये और अस्पताल प्रशासन को भी ऐसे दस्तावेज़ पर कोई शक नहीं हुआ। यह हक़ीक़त तब सामने आयी, जब दलालों ने सारिका सुतार को किडनी प्रत्यारोपण के बाद वादे के मुताबिक 15 लाख रुपये की रक़म न देकर उससे कम रक़म देकर वहाँ से जाने को कहा। सारिका ने ख़ुद अस्पताल प्रशासन के सामने सच्चाई बतायी और उसके बाद पुलिस ने संदिग्धों की गिरफ़्तारी की।
जून में दिल्ली में जिस किडनी रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है, वह भी चौंकाने वाला है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक, 10वीं पास कुलदीप 777 किडनी प्रत्यारोपण करता था। 46 वर्षीय आरोपी कुलदीप ने पुलिस को बताया कि 10वीं के बाद उसने ओटी टेक्नीशियन का डिप्लोमा हासिल करके कई अस्पतालों में काम किया था। इस दौरान डॉक्टरों को सर्जरी करते देख उसने यह सब सीख लिया। उसने हरियाणा के गोहाना में एक क्लीनिक खोला और वहाँ अवैध तरीक़े से किडनी प्रत्यारोपण का धंधा चला रहा था। इस काम में उसके साथ कई डॉक्टर, दलाल व अन्य लोग भी शामिल थे। पुलिस ने इस मामले में जिन 11 लोगों को गिरफ़्तार किया है, उनमें तीन डॉक्टर भी शामिल हैं। मुख्य आरोपी कुलदीप इस काम में कितना पारंगत है, इसका अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि वह प्राइवेट अस्पतालों से डॉक्टरों को लुभाने के लिए दिल्ली के लुटियन जोन में स्थित होटलों में कई सेमिनार व कार्यक्रम भी आयोजित करवाता था। पुलिस के अनुसार, इस गैंग के लोग डॉक्टरों को ख़ुद को हेल्थकेयर ग्रुप का सदस्य बताते थे। बहरहाल इस किडनी रैकेट के बारे में भी पुलिस को असम से आये एक ग़रीब व्यक्ति ने बताया जो तीन लाख के बदले अपनी एक किडनी देने यहाँ आया था। वह इस गैंग के फेसबुक पेज के ज़रिये जुड़ा था। उसकी किडनी प्रत्यारोपण की सारी प्रक्रियाएँ लगभग पूरी हो चुकी थीं। लेकिन दिवाकर नामक इस व्यक्ति ने अपनी किडनी देने से पहले पुलिस को यह जानकारी दे दी और पुलिस फिर सक्रिय हो गयी।
विडंबना यह है कि कई बार किडनी ख़रीदने व बेचने के मामले सामने आने के बाद भी यह अवैध धंधा देश में चल रहा है। कभी-कभार किसी रैकेट का पर्दाफ़ाश हो जाता है और इस पर पुलिस, सम्बन्धित सरकारी एजेंसियाँ सक्रिय भूमिका में नज़र आती हैं; लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद सब कुछ ओझल हो जाता है। आख़िर ऐसा क्यों? मानव अंगों की तस्करी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसे रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती तो है; लेकिन नामुमकिन नहीं। दरअसल देश में हर साल लाखों बीमार लोगों को अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। लेकिन माँग और आपूर्ति में बहुत बड़ा फ़ासला है। इसलिए देश में बड़े पैमाने पर अंगदान के लिए जागरूकता फैलाने व एक जन-आन्दोलन चलाने की ज़रूरत है, ताकि लोग स्वेच्छा से अंगदान का संकल्प ले सकें। अंगदान दिवस का प्राथमिक उद्देश्य देश में अंगदान और प्रत्यारोपण को बढ़ावा देना है, ताकि अंग विफलता से पीडि़त लोगों को सही वक़्त पर एक नयी ज़िन्दगी मिल सके।
ग़ौरतलब है कि अंग प्रत्यारोपण से अभिप्राय सर्जरी के माध्यम से एक व्यक्ति के स्वस्थ अंग को निकालने और उसे ऐसे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित करने से है, जिसका अंग किन्हीं कारणों से काम नहीं कर रहा हो। एक कड़ी सच्चाई यह है कि देश में अंगदान को लेकर उतनी गम्भीरता से अभियान नहीं चलाया गया, जितनी गम्भीरता से चलाये जाने की ज़रूरत है। इसी कारण देश में हर साल अंग विफलता के कारण क़रीब पाँच लाख लोग मर जाते हैं। अंगदान ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी व्यक्ति (जीवित या मृत) दोनों स्वस्थ अंगों और ऊतकों को लेकर किसी अन्य ज़रूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्रत्यारोपित होने वाले अंगों में दोनों किडनी, लीवर, फेफड़े, हृदय, आँत और अग्नाशय शामिल होते हैं। ऊतकों के रूप में कोर्निया, त्वचा, हृदय वाल्व, कार्टिलेज हड्डियों का प्रत्यारोपण होता है। इन अंगों में सबसे अधिक माँग किडनी की है। इसलिए अवैध किडनी प्रत्यारोपण का धंधा का$फी फल-फूल रहा है। देश में तक़रीबन 1.5 से 2 लाख गुर्दों (किडनियों) की हर साल ज़रूरत होती है। जबकि 50,000 यकृत (लीवर) प्रत्यारोपण की ज़रूरत होती है। लेकिन हर साल तक़रीबन 5000 से लेकर 9000 किडनियाँ ही प्रत्यारोपित हो पाती हैं। 20,000 लोग किडनी डायलिसिस से काम चलाते हैं। शेष अपनी जान गँवा देते हैं। किडनी शरीर से निकालने के बाद 24 से 36 घंटे तक सही रहती है। वहीं लीवर 8 से 12 घंटे तक व फेफड़े चार से पाँच घंटे तक ही प्रत्यारोपण के योग्य रहते हैं।
ग़ौरतलब है कि 80 व 90 के दशक में भारत विश्व में किडनी बाज़ार के रूप में मशहूर था। किडनी रैकेट इस स्तर पर फैल चुका था कि अकेले मुम्बई तत्कालीन बम्बई में ही हर महीने 100 किडनी प्रत्यारोपित होती थीं। दरअसल किडनी की जितनी माँग है, उसके अनुपात में आपूत्ति बहुत ही कम है। इस हालात के मद्देनज़र बहुत-से लोग किडनी ख़रीदने व बेचने के अवैध धंघे से जुड़ गये हैं। इसमें कम पढ़े-लिखे व शिक्षित दोनों ही तरह के लोग हैं। विडंबना यह है कि इस रैकेट से जुड़े लोग अक्सर ग़रीबों और कम आय वाले लोगों को अपने जाल में फँसाते हैं। ऐसा अनुमान है कि अवैध रूप से हर साल क़रीब 2,000 किडनियों की बिक्री देश में होती है। किडनी रैकेट्स के बढ़ते जाल के मद्देनज़र भारत सरकार ने मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम-1994 बनाया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए मानव अंगों के निष्कासन, भण्डारण और प्रत्यारोपण को विनियमित करना है। साथ ही यह मानव अंगों के वाणिज्यिक प्रयोग को भी प्रतिबन्धित करता है।
इस अधिनियम में किसी ग़ैर-सम्बन्धी के अंग प्रत्यारोपण को ग़ैर-कानूनी घोषित किया गया था। बाद में इस अधिनियम में संशोधन किया गया। मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम-2011 पारित किया गया। इस अधिनियम में मानव अंगदान की प्रक्रिया को और आसान बनाया गया। साथ ही इसके दायरे को और अधिक व्यापक कर उसमें ऊतकों को भी शामिल किया गया। इसके बाद मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम-2014 भी आया। सन् 2011 व सन् 2014 के संशोधित अधिनियम के बाद अंगदान करने सम्बन्धी व अन्य नियमों में बदलाव किये गये, संशोधन के बाद मृत व्यक्ति को भी दानकर्ता की सूची में डाल लिया गया। इसी तरह नज़दीकी रिश्तेदार के अलावा दोस्तों व ससुराल पक्ष से भी अंग लेने की इजाज़त मिल गयी; लेकिन दान करने वाले व अंग लेने वाले के बीच में किसी भी प्रकार का पैसा का लेन-देन नहीं होना चाहिए। संशोधन के बाद स्वैप ट्रांसप्लांटेशन की भी इजाज़त मिल गयी, यानी इसमें एक जोड़ी के डोनर किडनी को दूसरे के साथ बदल दिया जाता है। इसके अलावा हृदय गति के अचानक रुकने से मरने वाले लोगों के अंग निकालकर भी प्रत्यारोपण की इजाज़त दी गयी। इससे पहले सिर्फ़ ब्रैन डेड की श्रेणी में आने वाले लोगों से ही अंग लेने की इजाज़त थी। इसके साथ ही क़ानून का उल्लघंन करने वालों के लिए सज़ा बढ़ाकर 10 साल व आर्थिक दण्ड एक करोड़ रुपये कर दिया।
भारत सरकार की मंशा हर इंसान को स्वस्थ व प्रसन्न देखना है। सरकार ने अंग विफलता वाले मामले में अवैध धंधे पर शिंकजा कसने के लिए क़ानून तो बना दिया; लेकिन उस पर अमल उतनी सख़्ती से नहीं हो सका। अवैध काम करने वालों के मन में क़ानून का डर नहीं होना भी एक तरह से सरकार की विफलता ही मानी जाएगी। अगर सरकार इस दिशा में सख़्ती से काम करे, तो देश में मानव अंगों का अवैध धंधा रुक सकता है, जो अभी तक गुपचुप तरीक़े से न जाने कितनी जगह जारी होगा।