जब देश में मार्च, 2020 में कोरोना वायरस नामक नयी महामारी ने दस्तक दी थी, तब देश में इसे लेकर विकट भय का माहौल था। इस महामारी से बचने-बचाने के लिए तालाबंदी की गयी थी। लोगों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से कहा था कि अपने-अपने घरों में रहें और ताली-थाली बजाकर लोगों को जागरूक करें और स्वयं में जागरूक हों। फिर उन्होंने बाद में कहा कि बिजली के बल्ब बुझाकर दीये जलाएँ, मोमबत्ती जलाएँ या मोबाइल की लाईट जलाकर कोरोना को भगाएँ।
प्रधानमंत्री की इन दोनों बातों को देश की एक बड़ी आबादी ने सम्मानपूर्वक माना, जिसमें डॉक्टरों ने अहम् भूमिका निभायी थी। उसी दौरान जब देश में कोरोना वायरस के भय के कारण लोग घरों से नहीं निकल रहे थे, तब डॉक्टरों अपनी जान पर खेलकर कोरोना रोगियों का इलाज कर रहे थे। तब इन्हीं डॉक्टरों को सम्मान देने के लिए उन्हें कोरोना योद्धा नाम देकर कहा गया था कि डॉक्टरों ही देश के असली हीरों हैं। क्योंकि वे दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान पर खेल रहे हैं। यह सच भी है। कई डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी इस दौरान कोरोना संक्रमित भी हुए, तो कइयों ने जान भी गँवा दी।
हैरत की बात है कि इन्हीं कोरोना योद्धा डॉक्टरों पर लाठियाँ भाँजी गयीं और उनके साथ अमानवीय व्यवहार भी हुआ। पुलिस और डॉक्टरों के बीच झड़प भी हुई है। ‘तहलका’ संवाददाता ने डॉक्टरों से बात की, तो उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि कोरोना-काल जबसे आया है, तबसे डॉक्टरों ने अपनी जान पर खेलकर लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए 16 से लेकर 18-18 घंटे तक काम किया है। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में वे अपने घर तक नहीं जा पा रहे थे। इसका भी डॉक्टरों को कोई मलाल नहीं है। मौज़ूदा समय में डॉक्टरों की कोई स्वार्थी और सियासी माँग भी नहीं है, जिसको लेकर रेजीडेन्ट्स डॉक्टर (आरडीए) को विरोध-प्रदर्शन करना पड़ा है। सवाल यह है कि सन् 2021 में नीट परीक्षा पास कर चुके डॉक्टरों की काउंसलिंग क्यों नहीं की जा रही है? काउंसलिंग न होने से देश में 35 से 36 हज़ार डॉक्टरों का भविष्य अधर में लटका है। डॉक्टरों का कहना है कि इसमें पूरा दोष सरकारी तंत्र का है। जब एक पीजी डॉक्टरों के बैच (2021) की काउंसलिंग अभी तक पूरी नहीं हो सकी है और दूसरा बैच तैयार है, तो दोनों बैचों की एक साथ पढ़ाई क्या सम्भव हो सकती है? इन्हीं तमाम माँगों को लेकर डॉक्टरों नाराज़ हैं और देश भर में विरोध-प्रदर्शन करने को मजबूर हुए हैं।
फेडरेशन ऑफ डॉक्टरों एसोसिएशन (फोर्डा) के अध्यक्ष डॉक्टर मनीष कुमार का कहना है कि गत दिसंबर महीने में आरडीए के साथ जूनियर डॉक्टरों एसोसिएशन (जेडीए) के डॉक्टरों के अलावा सफदरजंग, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, एम्स और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। तब पुलिस ने आरडीए-जेडीए के छात्र-छात्राओं (भावी डॉक्टरों) के साथ धक्का-मुक्की की; मारपीट की। इससे डॉक्टरों में रोष है। डॉक्टर मनीष का कहना है कि एक ओर तो डॉक्टरों को सम्मान देने की बात होती है; वहीं दूसरी ओर पुलिस, मरीज़ और तीमारदार आये दिन उनसे मारपीट करते हैं। इससे डॉक्टरों बड़े आहत हैं।
बताते चलें कि जब नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की परीक्षा पास कर चुके पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) के डॉक्टरों की कांउसलिंग ही नहीं हो रही थी, तब डॉक्टरों को स्वास्थ्य मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करना पड़ा, जिसमें आरडीए और तमाम विभागों (फैकल्टीज) के साथ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के पदाधिकारियों ने भाग लिया। ऐसे में बढ़ते डॉक्टरों के आक्रोश को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय में जनवरी के दूसरे सप्ताह में काउंसलिंग शुरू करवायी है। सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर पंकज का कहना है कि जब दिसंबर, 2021 में ओमिक्रॉन के मामले बढ़ रहे थे, तब डॉक्टरों अस्पताल में ही अपने तरीक़े से कोरोना दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे। तब पुलिस ने आकर उनके साथ अभद्रता की, जिससे डॉक्टरों में नाराज़गी है। इसकी शिकायत सफदरजंग प्रशासन से भी की गयी है।
आरडीए का कहना है कि डॉक्टरों की ओर से माँगों को लेकर प्रदर्शन ही जारी था। इस बीच एक सियासी तस्वीर सामने आयी है, जिससे डॉक्टरों को कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन जानकारी के तौर पर आने वाले दिनों में एक नये तरीक़े का विरोध देखने को मिल सकता है; वह भी आरक्षण को लेकर। आरडीए के एक डॉक्टर का कहना है कि सन् 2020 तक देश में अखिल भारतीय सीटों पर तीन तरह का आरक्षण होता था। एससी, एसटी और पीडब्ल्यूडी। लेकिन सन् 2021 में प्रधानमंत्री ने दो तरह का आरक्षण इसमें और बढ़ा दिया है। इसमें 27 फ़ीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए और 10 फ़ीसदी आर्थिक कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) यानी आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए जो आरक्षण के अन्दर ही है। इसको सर्वोच्च न्यायालय के तहत स्वीकृति मिल गयी है।
इस बारे में डॉक्टर कुलदीप का कहना है कि नीट पीजी की परीक्षा दो बार स्थगित की गयी, जिससे पीजी करने वाले डॉक्टरों का भविष्य दो साल तक अधर में लटका रहा। उनका कहना है कि देश में वैसे ही डॉक्टरों की बहुत कमी है। डॉक्टरों की कमी से देश में स्वास्थ्य सेवाएँ कमज़ोर हो रही हैं, जिससे मरीज़ों को समय पर और बेहतर इलाज नहीं मिल पाता है। उस पर कोरोना-काल और सियासत के चलते मामला और भी गम्भीर हो गया है।
लेडी हार्डिंग की डॉक्टर नूपुर का कहना है कि काउंसलिंग को लेकर जो भी देरी की गयी है, उससे पीजी करने वालों के पहले बैच को मौक़ा ही नहीं मिला, जबकि दूसरा बैच तैयार हो गया है। इससे दोनों बैचों के जो डॉक्टरों तैयार हुए हैं, उनको कई बड़ी दिक़्क़तों से जूझना पड़ रहा है। एम्स के डॉक्टर आलोक कुमार कहते हैं कि कोरोना महामारी से शिक्षा और स्वास्थ्य पर ख़राब असर पड़ा है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि जो व्यवस्था से काम चल रहा है, उसे भी बाधित करके बेवजह काम में रुकावट डाली जाए। वैसे ही देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है। उस पर जो डॉक्टर पढ़-लिखकर डिग्री ले चुके हैं, उनकी काउंसलिंग न होने से वे भटक रहे हैं और आन्दोलन करने को मजबूर हैं।
लोकनायक अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर एम. कुमार ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करना लोकतंत्र का हिस्सा माना जाता है। लेकिन जबसे कृषि क़ानूनों के विरोध में किसानों ने आन्दोलन किया है, तबसे एक नयी बात सामने आयी है कि जो किसान आन्दोलन कर रह थे, तब उनके ऊपर ये आरोप लगाये गये कि वे असली किसान नहीं, बल्कि नक़ली किसान हैं; जो सरकार के ख़िलाफ़ आन्दोलन कर रहे हैं। यह भी कहा गया कि असली किसान तो खेत-खलिहान में काम कर रहे हैं। लेकिन आन्दोलनकारी डॉक्टरों पर यह आरोप लगाना सम्भव नहीं है कि ये डॉक्टर असली डॉक्टरों नहीं हैं। डॉक्टर एम. कुमार ने कहा है कि बड़ा ही दु:ख तब होता है, जब कोई अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा होता और उसकी बात सुनी जाने की जगह उस पर लाठियाँ भाँजी जाती हैं। ऐसा ही देश के होनहार डॉक्टरों के साथ हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे सरकार की मंशा का पता चलता है कि वह डॉक्टरों के प्रति कितनी सहज, सजग और कृतज्ञ है? डॉक्टरों की कमी से देश जूझ रहा है और उन्हें बढ़ावा देने के बजाय उनके साथ यह सब हो रहा है।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के डॉक्टर नरेश चावला का कहना है कि अंडर ग्रेजुएट (यूजी) और पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) के डॉक्टरों की काउंसलिंग होती है। यह नये डॉक्टरों को सेवा का मौक़ा देने की एक व्यवस्था का हिस्सा है। कोरोना महामारी के चलते यह प्रक्रिया कुछ समय के लिए वाधित रही है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि सरकार अपनी मनमर्ज़ी करे। सालों-साल काउंसलिंग को रोके। डॉक्टर चावला का कहना है कि इस रुकावट के पीछे जो भी सरकार की मंशा हो, या जो भी सियासत रही हो; इससे पीजी करने वालों को कोई लेना-देना नहीं है। पीजी करने वाले डॉक्टर तो बस इतना ही चाहते हैं कि उनकी पढ़ाई किसी बजह से बाधित न हो। अन्यथा डॉक्टरी का पढ़ाई करने वाले और डॉक्टर बनने वालों में ग़लत सन्देश जाएगा।
मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का कहना है कि देश में डॉक्टरी की पढ़ाई महँगी है और कठिन भी। मेडिकल की पढ़ाई करने वालों को सरकार को ज़्यादा-से-ज़्यादा सुविधाएँ बिना आनाकानी और बिना रुकावट के देनीं चाहिए। क्योंकि देश में डॉक्टरों की विकट कमी है। लेकिन सरकार तरह-तरह के दावे तो करती है। मेडिकल कॉलेजों को खोलने की बात भी करती है; परन्तु धरातल में आये दिन नयी-नयी तस्वीरें सामने आ ही जाती हैं। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि पीजी करने वालों की जब काउंसलिंग नहीं हो पा रही थी, तब कई डॉक्टरों तो मानसिक तनाव के शिकार होने लगे थे। आख़िर कब तक कोरोना महामारी की आड़ में सियासत जारी रहेगी?
जबसे कोरोना महामारी फैली है, तबसे कोरोना रोगियों के इलाज के दौरान 2,000 से ज़्यादा जूनियर और सीनियर डॉक्टरों की मौत हुई है। मौलाना आज़ाद के आरडीए का कहना है कि डॉक्टरों को जब प्रोत्साहन मिलना चाहिए, तब उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है। सफदरजंग के डॉक्टर राकेश कुमार का कहना है कि पहले एमबीबीएस की डिग्री ली। फिर एमएस और एमडी का कोर्स तीन साल का करना होता है, जिसके लिए नीट की परीक्षा पास करनी होती है। उन्होंने नीट को भी पास कर लिया। लेकिन काउंसलिंग को लेकर जो भी अड़चन पैदा की गयी है, उससे सन् 2021 का एक बैच पूरी तरह ख़ाली गया। आरडीए के डॉक्टरों को बड़ी परेशानी से जूझना पड़ा है। डॉक्टर राकेश कुमार ने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि अगर काउंसलिंग में आगे भी इसी तरह अड़चन पैदा की गयी, तो वह दिन दूर नहीं, जब पीजी करने के लिए एमबीबीएस पासआउट डॉक्टर कई बार सोचेंगे। ऐसे में देशवासियों को एक दिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की और बड़ी कमी से जूझना पड़ेगा।