छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और जोगी का साथ कुछ ऐसा है कि वे ज्यादा समय एक दूसरे के साथ कदमताल नहीं कर पाते लेकिन एकदूसरे से अलग होने में भी उन्हें जोखिम लगता है. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मुंह की खा चुकी कांग्रेस अब यहां लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई है और इसके साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी एक बार फिर इस तैयारी का केंद्र बनने लगे हैं.
कांग्रेस के भीतर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए योग्य उम्मीदवारों के चयन का काम जब से शुरू हुआ है तब से एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया है. यहां अफवाहों के लिए कुख्यात इस पार्टी में पहले यह बात फैलाई गई कि जोगी कोरबा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. दिल्ली दरबार से उड़ी यह अफवाह जब रायपुर पहुंची तो पार्टी के कई खेमों में घमासान शुरू हो गया. सबसे पहले महंत गुट में बेचैनी फैली. कोरबा से ही चरणदास महंत का बयान भी आ गया कि यह केवल अफवाह है, जोगी जी कोरबा से चुनाव लड़ना नहीं चाहते बल्कि वे तो महासमुंद सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. दरअसल महंत कोरबा लोकसभा सीट से ही कांग्रेस के सांसद हैं और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री हैं. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने सिर्फ इसी सीट पर जीत दर्ज की थी. बाकी 10 सीट भाजपा के खाते में चली गई थीं. महंत इस बार भी अपनी इसी परपरांगत सीट से लड़ने के इच्छुक हैं. लेकिन कोरबा सीट से अजीत जोगी के चुनाव लड़ने की बात फैलने के बाद आई महंत की प्रतिक्रिया से शुक्ल खेमे की नाराजगी बढ़ गई है. इसका कारण यह है कि चाहे श्यामाचरण शुक्ल का परिवार हो या वीसी शुक्ल का, दोनों के ही सदस्य महासमुंद को अपनी पारिवारिक सीट मानते हैं. इस सीट से फिलहाल शुक्ल परिवार के तीन सदस्य टिकट के लिए दावा भी कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के बेटे अमितेश शुक्ल, अमितेश के बेटे भवानी शुक्ल और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल की बेटी प्रतिभा पांडे महासमुंद से टिकट मांग रहे हैं. ऐसे में जोगी यदि महासमुंद जाते हैं तो सबसे ज्यादा नुकसान शुक्ल परिवार को ही होगा. इसके बाद एक खबर यह आई कि कांग्रेस अजीत जोगी को बिलासपुर सीट से भी चुनाव लड़वाना चाहती है. भाजपा सांसद दिलीप सिंह जूदेव ने 2009 में इसी सीट पर अजीत जोगी की धर्मपत्नी रेणु जोगी को पराजित किया था. हालांकि जब ये खबरें अच्छे से राजनीतिक गलियारों में चल गईं. उन पर महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं आने लगीं तब अजीत जोगी बार-बार ये ऐलान करने लगे कि उन्हें कहीं से चुनाव नहीं लड़ना. पूर्व मुख्यमंत्री जोगी का कहना है, ‘मैं तो हमेशा पार्टी के हित में काम करना चाहता हूं. पार्टी यदि जोर देगी तो चुनाव भी लड़ूंगा. लेकिन फिलहाल तो मेरी इच्छा संगठन को मजबूत करने की है. सीट विशेष को लेकर मंैने कभी कोई मांग नहीं की.’
हालांकि जोगी के ऐलान के बाद भी पार्टी उन्हें छत्तीसगढ़ की किसी एक सीट से चुनाव लड़वाना चाहती है. पार्टी के भीतरखानों से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि अजीत जोगी को चुनाव लड़वाने का मतलब हर हाल में अपने लिए एक सीट में इजाफा करना होगा. जहां तक जोगी के चुनाव लड़ने और सीट चयन पर वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी खींचतान की बात है तो पार्टी इससे इनकार करती है. प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ‘ पार्टी के लिए हरेक नेता महत्वपूर्ण है.चाहे वह जोगी जी हों या चरणदास महंत. शुक्ल परिवार की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है. किसी में किसी सीट को लेकर कोई नाराजगी नहीं है. पार्टी भी हर सीट पर नेताओं के प्रभाव को ध्यान में रखकर टिकट देगी.’
कांग्रेस के लिए इस वक्त जोगी इसलिए जरूरी हैं क्योंकि वे सीधे 51 प्रतिशत मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. जोगी का गणित सतनामी (16%), आदिवासी (32%) और ईसाई (3%) मतदाताओं के इर्द गिर्द घूम रहा है. यानि वे कुल 51 फीसदी वोट साधने की कुंजी हैं. फिर वे साम दाम दंड भेद की नीति के सही खिलाड़ी भी माने जाते हैं. जोगी बार-बार साबित भी करते रहे हैं कि छत्तीसगढ़ की राजनीति के नक्षत्र उनके मुताबिक चलते रहे हैं. (2009 लोकसभा चुनाव में रेणु जोगी की हार को वे अपवाद बताते हैं). हर विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा लीड लेने नेता साबित होते रहे हैं. वहीं उनके बेटे अमित जोगी ने भी अपने पहले चुनाव में यह मिसाल कायम रखी है. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अमित जोगी को 82 हजार 865 मत मिले थे और उन्होंने प्रदेश के किसी भी उम्मीदवार की तुलना में कहीं ज्यादा अंतर से अपने प्रतिद्वंदी को हराया था. अमित ने भाजपा की उम्मीदवार समीरा पैकरा (36,605 मत) को 46 हजार 260 वोट से हराया था. इसके श्रेय भी अजीत जोगी की रणनीति को ही दिया गया. कांग्रेस के लिए इस लोकसभा चुनाव में जोगी का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि बस्तर की 12 सीटों में 8 जीतकर भाजपा से पिछला हिसाब चुकाने वाली कांग्रेस यह जानती है कि 8 में चार विधायक जोगी के करीबी माने जाते हैं. जबकि अमूमन हर लोकसभा सीट पर भी उनके समर्थक विधायकों की संख्या दूसरे नेताओं से ज्यादा है. ऐसे में पिछले कुछ समय से हाशिए पर पड़े अजीत जोगी में एक बार अपनी ही पार्टी कांग्रेस से मोलभाव करने की स्थिति में आ गए हैं और कांग्रेस भी उन्हें भाव देने की मजबूरी में.