चुनाव-दर-चुनाव कांग्रेस का लगातार पतन होता जा रहा है। सन् 2014 में जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र में सत्ता हासिल की, तो कांग्रेस का देश के नौ राज्यों में शासन था। अब पंजाब की हार के साथ जिन राज्यों में वह सत्ता में है, उनकी संख्या घटकर सिर्फ़ दो रह गयी है। सन् 2014 के बाद से पिछले आठ साल में कांग्रेस ने देश में हुए 45 चुनावों में से सिर्फ़ पाँच में जीत हासिल की है। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि पंजाब में उसकी हार हुई है, जबकि एक साल से भी कम समय पहले वह वहाँ जीत की स्थिति में दिखती थी। इसे पार्टी आलाकमान की अंदरूनी लड़ाई कहें या लापरवाही, वह बुरी तरह हार गयी और पंजाब में उसके मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी उन दोनों सीटों पर हार गये, जहाँ से वह लड़े थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी हार गये। इसी तरह उत्तराखण्ड में भी जीत की उसकी उम्मीद पर बर्फ़ पड़ गयी और उसके पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तक लालकुआँ सीट से चुनाव हार गये। उत्तर प्रदेश से जहाँ पार्टी नेता, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने ‘लडक़ी हूँ, लड़ सकती हूँ’ के आकर्षक नारे पर चुनाव लड़ा और पूरे राज्य में धुआँधार प्रचार किया, वहाँ उसे दो ही सीटें मिलीं, जबकि गोवा और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों में भी पार्टी को कोई राहत नहीं मिली। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नेहरू और गाँधी के करिश्मे के नाम पर वोट हासिल करने के दिन लद गये हैं और यह भी कि गाँधी परिवार वंशवाद के अन्तिम दरवाज़े पर खड़ा है।
कांग्रेस की हार पार्टी और एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। देश को एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है। हाल के चुनाव 2024 के संसदीय चुनाव के ‘सेमी-फाइनल’ के रूप में लड़े गये थे। विधानसभा चुनावों के नवीनतम परिणाम बताते हैं कि भाजपा 2024 में फिर से जीतने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। अब इसमें कोई सन्देह नहीं है कि 2024 में भाजपा को मुख्यत: कांग्रेस नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के ख़िलाफ़ लडऩा होगा। आम चुनाव से पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अन्त में, जबकि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम में 2023 के नवंबर और राजस्थान में दिसंबर में विधानभा चुनाव विभिन्न दलों के भविष्य को पूरी तरह तय कर देंगे। छ: बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह, जिनका पिछले साल निधन हो गया था; की अनुपस्थिति में इस साल के अन्त में हिमाचल प्रदेश को भाजपा से वापस छीनने की कांग्रेस की उम्मीद बहुत कमज़ोर है। दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अभी भी शासन में है। वहाँ भी अगले साल चुनाव होने हैं। यह सबसे पुरानी पार्टी के लिए सुधार करने का सुनहरा अवसर होगा या फिर यह होगा कि 2024 के आम चुनाव तक, वह किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं रहेगी।
निश्चित ही लोकतंत्र में सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है। वास्तव में क्षेत्रीय दल कमर कस रहे हैं और आम आदमी पार्टी भी; लेकिन उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ज़्यादा है, जिसे स्वस्थ लोकतंत्र के सर्वोत्तम हितों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। एक दशक से भी कम पुरानी आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के अलावा एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है, जो दो राज्यों में सत्ता में है और इसे उस राजनीतिक समूह का एक महत्त्वपूर्ण घटक होना चाहिए, जो 2024 में भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। कांग्रेस के लिए समय आ गया है कि वह अस्तित्व के संकट को रोकने के लिए तेज़ी से कार्य करे और तदर्थवाद को समाप्त करके अपना घर सुधारे। उदाहरण के लिए, सन् 2019 में राहुल गाँधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद सोनिया गाँधी अंतरिम अध्यक्ष रही हैं और वह अभी भी हैं। पाँच राज्यों में पूरी तरह से हार के बावजूद कांग्रेस के पास अभी भी देश में क़रीब 692 विधायक हैं, जबकि भाजपा के 1,373 विधायक इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसने सब कुछ अभी नहीं खोया है। लेकिन लोकतंत्र के सर्वोत्तम हित में कांग्रेस को पुनर्जीवित करना होगा।