आज के आधुनिक युग में भी बहुत-से लोग बेटियों को अभिशाप अथवा बोझ मानते हैं। यही वजह है कि कहीं संकीर्ण मानसिकता के चलते, तो कहीं अन्धविश्वास के चलते भ्रूण हत्या का चलन देश भर में अब भी व्याप्त है। झारखण्ड के लोहरदगा ज़िले के खुखरा गाँव में पत्थरों के एक पहाड़ में आस्था रखने वाले लोग बेटा या बेटी के जन्म की जानकारी लेते हैं। इसे क़ानूनी तौर पर किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता। तहलका का मानना है कि लोगों की मानसिकता तब तक नहीं बदल सकती, जब तक उन्हें आडम्बरों से बाहर निकालकर पूर्णतया शिक्षित नहीं किया जाएगा। इसमें सबसे पहले धार्मिकता के नाम पर गोरखधन्धा करने वाले लोगों पर शिकंजा कसने की ज़रूरत है; चाहे वे किसी भी धर्म के हों। एक पहाड़ी के ज़रिये भ्रूण की पहचान के अन्धविश्वास और देश में हो रही कन्या भ्रूण हत्या पर प्रशांत झा की रिपोर्ट :-
‘आज भी माँ की आवाज़ कानों में गूँजती है। मुझे पेट में बच्चे को नहीं मारना है।’ यह वाक्य एक 21 वर्षीय युवती का है। पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर उसने अपने जीवन के 15 साल पहले की सच्चाई को बताया। उसकी माँ की मौत इसलिए हुई; क्योंकि उसकी कोख में दूसरी भी बेटी ही थी। वह कहती है- ‘नीम-हकीम के ज़रिये भ्रूण हत्या के चक्कर में माँ की मौत हो गयी। अगर पेट में बच्चे को मारने का प्रयास नहीं होता, तो शायद माँ भी बच जाती।’
लड़की की बात भले ही 15 साल पुरानी हो, लेकिन 21वीं सदी में भी भ्रूण हत्या एक चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि देश में प्रसव पूर्व ‘लिंग जाँच’ पर रोक लगा दी गयी है। प्रसव पूर्व लिंग जाँच क़ानूनन जुर्म है; लेकिन झारखण्ड में इस क़ानून पर आस्था भारी है। यह राज्य के लोहरदगा ज़िले में देखने को मिलता है, जहाँ आज भी वैज्ञानिक विधि से न सही, मगर आस्था के ज़रिये हर दिन प्रसव पूर्व लिंग जाँच हो रही है और शायद भ्रूण हत्याएँ भी।
हालाँकि इस तरह की जाँच के बाद भ्रूण हत्या को साबित किया जाना कठिन है; लेकिन जानकारों का कहना है कि प्रसव पूर्व लिंग जाँच ही भ्रूण हत्या की अगली सीढ़ी है। भले ही यह क़ानूनन अपराध क्यों न हो।
पहाड़ी में भ्रूण पहचान का विश्वास
झारखण्ड के लोहरदगा ज़िला स्थित खुखरा गाँव में एक पहाड़ी है, जो गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की यह बताती है। इस क्षेत्र में बड़े-बड़े पत्थरों वाली यह पहाड़ी ‘चाँद पहाड़’ के नाम से काफ़ी प्रचलित है। यहाँ आसपास के लोगों के साथ-साथ अन्य जगहों से भी लोग लिंग जाँच के लिए पहुँच जाते हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि चमत्कारी पहाड़ी सच्चाई बताती है; इसलिए लोगों का इसमें विश्वास है। हालाँकि लिंग जाँच के बाद भ्रूण हत्या के बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ लोग आस्था रखते हुए अपनी केवल उत्सुकता के कारण जाँच करते हैं। गाँव में भ्रूण हत्या का मामला तो सामने नहीं आया है, बाहर से आने वालों का पता नहीं।
पत्थर फेंककर की जाती है जाँच
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परम्परा यहाँ नागवंशी राजाओं के शासन-काल से चली आ रही है। यहाँ पहाड़ी लगभग 400 साल से लोगों को उनके भविष्य के सम्बन्ध में जानकारी दे रही है। इस चमत्कारी पहाड़ी पर स्थानीय निवासियों की अटूट श्रद्धा और विश्वास है। गर्भ में लिंग का पता करने के तरीक़े के बारे में लोगों का कहना है कि इस चमत्कारी पहाड़ी पर एक चाँद की तरह आकृति बनी हुई है, जो गर्भ में ‘लिंग’ के बारे में जानकारी देती है। गर्भवती महिला लिंग की जाँच करने के लिए एक निश्चित दूरी से पत्थर को इस पहाड़ी पर बने चाँद की ओर फेंका जाता है। यदि पत्थर चंद्रमा (आकृति) पर जाकर लगता है, तो गर्भ में लड़का है। अगर फेंका हुआ पत्थर चंद्रमा के बाहर लगे, तो मानते हैं कि गर्भ में लड़की है।
भ्रूण हत्या से कोई राज्य अछूता नहीं
भ्रूण हत्या से देश का कोई भी राज्य अछूता नहीं है। आज से ठीक दो साल पहले जुलाई, 2019 में उत्तरकाशी की एक सूचना ने पूरे देश में हड़कम्प मच गया था। वहाँ के 133 गाँवों में तीन महीने के दौरान 216 बच्चों को जन्म हुआ, जिनमें एक भी बेटी नहीं थी। इसी तरह रायपुर (छत्तीसगढ़) में पिछले महीने सड़क किनारे कन्या भ्रूण मिला था। जोधपुर (राजस्थान) के प्रतापनगर थाना क्षेत्र में कचरे में एक बच्ची का भ्रूण मिला था। यह दिखाता है कि देश के हर हिस्से में चोरी-छिपे कन्या भ्रूण हत्या जारी है। कुछ महीने पहले जर्नल प्लोस का एक शोध सामने आया था, जिसमें कहा गया है कि ‘सन् 2017 से 2030 के बीच भारत में 68 लाख बच्चियाँ जन्म नहीं ले सकेंगी; क्योंकि बेटे की लालसा में उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाएगा।’ इसी तरह जनवरी में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की स्टेट ऑफ वल्र्ड पॉपुलेशन-2020 की रिपोर्ट में भारत में घटते लिंगानुपात की चर्चा की गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रति 1,000 लड़कों के पीछे 943 लड़कियाँ हैं; जबकि कई प्रान्तों में यह आँकड़ा औसत से काफ़ी कम है।
जाँच केंद्रों की जाँच
झारखण्ड में भ्रूण हत्या से इन्कार नहीं किया जा सकता। पिछले ही दिनों बोकारो ज़िला के चास में एक निजी अस्पताल में भ्रूण हत्या का मामला सामने आया। पुलिस ने मामला भी दर्ज किया है। इसके अलावा कई अन्य मामले सामने आने के बाद सरकार ने ठोस क़दम उठाते हुए राज्य के सभी अल्ट्रा साउंड क्लीनिकों की जाँच करने का निर्देश दिया है। इसके लिए हर ज़िले में नोडल पदाधिकारी बनाये गये हैं। टीम यह जाँच करेगी कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट का अनुपालन हो रहा है या नहीं। अल्ट्रासाउंड क्लीनिक एक्ट के प्रावधानों के अनुसार काम कर रहा है या नहीं। टीम सभी बिन्दुओं पर जाँच कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। इसके अलावा सरकार ने कुछ दिन पहले ही ‘गरिमा झारखण्ड’ के नाम से एक पोर्टल भी लॉन्च किया है। जहाँ लिंग परीक्षण से सम्बन्धित जानकारी, अस्पतालों का पंजीकरण और शिकायत की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।
आस्था पर अंकुश लगाना चुनौती
झारखण्ड में जन्म के समय लड़के और लड़कियों का लिंगानुपात लगातार गड़बड़ा रहा। राज्य में 1991 में प्रति हज़ार 979 लड़कियाँ थीं; जो 2001 में घटकर 966 और 2011 में 948 रह गयीं। इसके बाद आधिकारिक गणना रिपोर्ट तो नहीं आयी है, लेकिन 2016 में प्रति हज़ार 919 के आँकड़े का आकलन किया गया है। राज्य में
856 अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी क्लीनिक पंजीकृत हैं, जिनमें से 825 संचालित हैं। लिंग जाँच के वैज्ञानिक परीक्षण पर सरकार की नज़र में है; लेकिन आस्था के ज़रिये परीक्षण पर रोक लगाना एक चुनौती है। जिसका नमूना राज्य के लोहरदगा में प्रसव पूर्व जानकारी लेने के लिए पहाड़ी का सहारा है। यहाँ राज्य के विभिन्न हिस्सों से हर दिन अभी भी लोग गर्भ में पल रहे बच्चे की लिंग जाँच करने पहुँचते हैं।
मानसिकता बदलने की ज़रूरत
जानकारों का कहना है कि भ्रूण हत्या तो बाद की बात है, प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण क़ानूनन अपराध है। भ्रूण हत्या या लिंग जाँच कराने वाले और करने वालों के लिए सज़ा और ज़र्माने का प्रावधान है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि क़ानून के ज़रिये प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण को पूरी तरह रोक पाना सम्भव नहीं है। आज भी लोग बेटियों की जगह बेटों को तरजीह देते हैं, जिसके पीछे की मानसिकता यह है कि बेटों से वंश चलता है; जबकि बेटियाँ पराया धन होती हैं। यही कारण है कि लिंग जाँच के लिए पहाड़ी पर पत्थर फेंकने जैसा अन्धविश्वास लोगों की आस्था का विषय बना हुआ है। इसे बदलने के लिए लोगों की मानसिकता बदलनी ज़रूरी है।
“राज्य में लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या को रोकने के लिए मैं कटिबद्ध हूँ। पिछले सप्ताह ही बैठककर अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिया। अधिकारियों को अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी क्लीनिकों की जाँच करने और क़ानून के तहत सख़्त क़दम उठाने के निर्देश दिया गया है। राज्य में लिंगानुपात सुधर रहा है। अभी जो अनुमानित अनुपात सामने आ रहा है, उसके अनुसार 1000 लड़कों पर 991 लड़कियाँ हो गयी हैं। लोहरदगा मे लिंग जाँच सम्बन्धित मान्यता वाली पहाड़ी (चाँद पहाड़) के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। इसकी मैं जानकारी ज़रूर लूँगा। हालाँकि इस तरह की बातों के लिए क़ानून से अधिक जागरूकता की ज़रूरत है। राज्य में लिंग जाँच और भ्रूण हत्या को लेकर जागरूकता अभियान भी तेज़ करने की योजना बनायी गयी है। हर तरह से इस पर रोक लगाने के लिए कटिबद्ध हूँ।”
बन्ना गुप्ता
स्वास्थ्य मंत्री, झारखण्ड
“लोहरदगा का यह क्षेत्र काफ़ी पुराना है। यहाँ स्थित मंदिर, पहाड़ी आदि पर लोगों का अटूट विश्वास है। इस जगह के राजा को अकबर के समकालीन माना जाता है। एएसआई ने खुदाई भी करायी थी। यहाँ मंदिर, हवन कुण्ड आदि कई चीज़ें हैं। मंदिर खण्डित है। मंदिर में पूजा-अर्चना करने दूर-दराज़ से भी लोग आते हैं। यहाँ कई पहाडिय़ाँ हैं। इनमें से एक में चाँद और एक डुगडुगी पहाड़ी भी है। डुगडुगी पहाड़ी में एक छोटी-सी गुफा है। यहाँ घुसने पर शादियों में बजने वाले ढोल नगाड़े की आवाज़ सुनायी पड़ती है। चाँद पहाड़ी पेट में पल रहे बच्चे के की जानकारी देने के लिए प्रचारित है। कुछ लोग उत्सुकतावश चाँद पहाड़ी पर पत्थर फेंककर पेट में पल रहे बेटे या बेटी की जानकारी लेते हैं। यह आस्था से जुड़ा है। गाँव में कभी भ्रूण हत्या का मामला तो सुना नहीं है।”
कृष्ण बल्लभ मिश्र
मंदिर पुरोहित (स्थानीय निवासी), लोहरदगा
“लोहरदगा क्षेत्र पहाडिय़ों और मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है। चाँद पहाड़ी के बारे में जो जानते हैं, वह यहाँ आने पर एक बार ज़रूर इसकी ओर आकर्षित होते हैं। बाहर से आने वाले लोग पहाड़ी पर पत्थर फेंककर लड़के या लड़की होने के बारे में जानते हुए देखे जाते हैं। जाँच करने के बाद क्या करते हैं? यह कहना मुश्किल है। यह सही है कि प्रसव पूर्व लिंग जाँच क़ानूनन अपराध है। इस बात को दावे के साथ इन्कार नहीं किया जा सकता है कि यहाँ आने वाले पत्थर फेंककर जाँच करने के बाद भ्रूण हत्या नहीं करवाते हों। यह उनके आस्था, विश्वास और मानसिकता पर निर्भर करता है। हालाँकि गाँव में ऐसी घटना सामने नहीं आयी है।”
संजय शाहदेव
स्थानीय निवासी, लोहरदगा
“यह सही है कि खुखरा गाँव में मंदिर और पहाड़ी है। पर्यटक यहाँ जाते हैं। किसी ऐसे पहाड़ (चाँद पहाड़) की जानकारी मुझे नहीं है। इसलिए लड़की या लड़का जाँच के लिए पहाड़ी पर पत्थर फेंके जाने सम्बन्धित जानकारी नहीं है। मैंने एसडीओ व अन्य अधिकारियों को इस बारे में जानकारी लेने का निर्देश दिया है। उनसे दो-तीन दिन में जानकारी मिलने के बाद ही कुछ बताने की स्थिति में रहूँगा। आप तीन-चार दिन बाद बात करें।”
दिलीप कुमार टोप्पो
उपायुक्त, लोहरदगा