दुनिया भर में कोरोना के मामले हर रोज़ बढ़ रहे हैं। संक्रमितों की संख्या जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बेहद चिन्तित है। इस रफ्तार के आगे दुनिया बेहाल है। कारण- चीन में जनवरी की शुरुआत के तीन माह बाद विश्व में 10 लाख मामले सामने आये थे; लेकिन 13 जुलाई को एक करोड़ 30 लाख से एक करोड़ 40 लाख तक पहुँचने में महज़ चार दिन ही लगे। दुनिया में औसतन दो लाख 30 हज़ार से दो लाख 40 हज़ार के बीच मामले रोज़ सामने आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अब तीन-चार दिन में 10 लाख केस सामने आ रहे हैं।
तेज़ी से बढ़ रहे मामले
कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित मुल्कों में पहले नम्बर पर अमेरिका, तो दूसरे नम्बर पर ब्राजील है। तीसरे नम्बर पर भारत, तो चौथे नम्बर पर रूस है। अमेरिका व ब्राजील में तो रोज़ाना एक हज़ार से अधिक लोग कोरोना के कारण मर भी रहे हैं। अमेरिका में तो हालात दिन प्रतिदिन बदतर ही हो रहे हैं। हालात बिगडऩे के कारण स्वास्थ्य विभाग ने कैलीफोर्निया, फ्लोरिडा, टेक्सॉस समेत 18 राज्यों को रेड जोन घोषित कर दिया है। टेक्सॉस और कैलीफाोर्निया में रोज़ 10-10 हज़ार मरीज़ सामने आने से अस्पतालों में जगह नहीं बची है, जो चिन्ता का विषय है।
व्हाइट हाउस की रिपोर्ट
कहा जा रहा है कि व्हाइट हाउस ने बीते दिनों एक रिपोर्ट तैयार की थी, मगर यह रिपोर्ट जारी नहीं की गयी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों में लॉकडाउन का कड़ाई से पालन नहीं किया गया। लोगों को घरों में रहना अच्छा नहीं लग रहा। मास्क पहनना भी उन्हें पसन्द नहीं; लिहाज़ा वे मास्क लगाकर घर से बाहर नहीं निकलते। इसलिए कोरोना वायरस तेज़ी से फैलता जा रहा है और मरने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की तादाद एक लाख 48 हज़ार 490 है। ब्राजील के हालात भी बेहद गम्भीर है। यहाँ 85 हज़ार 385 से अधिक लोगों ने इस महामारी की वजह से अपनी जान गँवायी। ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो दोबारा लॉकडाउन जैसे कड़े कदमों के लिए अभी भी तैयार नहीं है। ध्यान देने वाली अति महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन दोनों मुल्कों में कोविड-19 संक्रमण के रोकथाम के प्रभावी उपायों की सूची में शामिल मास्क का प्रयोग नहीं करने के लिए यानी एंटी-मास्क मुहिम चलायी जा रही है।
ट्रंप की दो-टूक
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस महामारी से बचने के लिए हाईजीन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिग का पालन बहुत ज़रूरी है। मगर दुनिया में सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में स्पष्ट किया कि वह कोरोना से बचाव के लिए लोगों को मास्क पहनने का आदेश नहीं देंगे। लोगों को आज़ादी मिलनी चाहिए। उन्होंने मास्क अनिवार्य करने वाले किसी भी आदेश को जारी करने वाली अटकलों को खारिज कर दिया। क्योंकि उनकी नज़र में यह निजी स्वतंत्रता हनन से जुड़ा है। गौरतलब है कि एक तरफ मास्क जो इस महामारी के संकट में संक्रमण की रोकथाम में एक प्रभावशाली उपकरण बताया जा रहा है और विश्व स्वास्थ्य संगठन व दुनिया भर के डॉक्टर्स भी लोगों को मास्क पहनने के फायदों व उसके सही तरीके से इस्तेमाल पर ज़ोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी और मास्क पर राजनीति शुरू हो गयी है। मास्क पर राजनीति गरमायी हुई है। अमेरिका में तो मास्क समर्थक बनाम मास्क विरोधी लॉबी इस साल के अन्त में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने वाले अहम कारकों में अब तक सक्रिय नज़र आ रही है।
चुनाव से पहले राजनीतिक बहस
अमेरिका में चुनावी माहौल में यह आभास आसानी से हो जाता है कि मास्क पहनने वाला और मास्क नहीं पहनने वाला यानी एंटी मास्क व्यक्ति किस राजनीतिक धारा की ओर अपना झुकाव रखता है? अमेरिका में लिब्रल व कंजरवेटिव वर्ग के बीच मास्क राजनीतिक बहस के प्रतीक के रूप में उभरकर सामने आया है। लिब्रल का मानना है कि जन सुरक्षा के लिए मास्क ज़रूरी है; जबकि कंजर्वेटिव इससे सहमत नहीं है। उनकी सोच में यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए एक खतरा है। ध्यान रहे कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मास्क पहनना अनिवार्य करने को स्वतंत्रता हनन से जुड़ा मसला बता चुके हैं। अमेरिका में लोगों का एक ऐसा समूह भी है, जो मास्क को राजनीतिक षड्यंत्र बनाकर बर्न द मास्क जैसे आयोजन कर रहा है। अमेरिका में सर्वे के इस्तेमाल को लेकर सर्वे होते रहते हैं। इन सर्वों से यह जानकारी सामने आ रही है कि मास्क का प्रयोग करने वाले लोगों में रिपब्लिकिन की तुलना में डेमोक्रेट्स दल की सोच वाले लोग अधिक हैं। यह भी कहा जा रहा है कि ट्रंप चुनाव के मद्देनज़र अपनी छवि को लेकर खासतौर पर सचेत हैं और उन्होंने मास्क का प्रयोग नहीं करने के पीछे दलील दी कि यह जनता के बीच उनकी सार्वजनिक छवि को प्रभावित करेगा और इसका परिणाम उनके चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है।
ब्राजील के राष्ट्रपति भी लापरवाह
मास्क को लेकर ब्राजील में भी राजनीति हो रही है। वहाँ के राष्ट्रपति जैर बोलसोनरो ने भी शुरू में कोरोना की गम्भीरता नहीं समझी। मास्क के इस्तेमाल को हल्के से लिया। वह स्वयं कई सार्वजनिक आयोजनों में बिना मास्क के दिखायी दिये। कोरोना वायरस जैसी महामारी के प्रति बरती गयी लापरवाही की परिणाम आज वहाँ की आम जनता ही नहीं भुगत रही है, बल्कि खुद राष्ट्रपति जैर बोलसोनरो कोरोना संक्रमित पाये गये हैं। अब वह कह रहे हैं कि उनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी है और वह फिर बिना मास्क के घूम रहे हैं।
दक्षिण कोरिया में भी मास्क नहीं पहनने को लेकर केवल जून के महीने में ही लोगों के बीच 846 झगड़े दर्ज किये गये हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में बीते साढ़े तीन महीने में मास्क नहीं पहनने का नियम उल्लंघन करने वालों से दिल्ली पुलिस ने करीब 2.4 करोड़ रुपये बतौर ज़ुर्माना वसूले हैं। आँकड़े दर्शाते हैं कि यूरोप की तुलना में एशिया में मास्क को शुरुआत में ही अपनाना शुरू कर दिया था। यही वजह है कि वहाँहालात कुछ काबू में रहे। इसकी मिसाल जापान, चीन, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपीन्स और इंडोनेशिया हैं। जल्दी मास्क पहनने अपनाने वाले 42 देशों ने संक्रमण पर काबू पाने में सफलता पायी। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के अध्ययन के मुताबिक, महज़ 38 फीसदी ब्रिटिश नागरिक ही बाहर जाते वक्त मास्क पहनते हैं। दूसरे यूरोपीय मुल्कों में भी लोग मास्क पहनने को गम्भीर नहीं हैं। दरअसल कोरोना महामारी कितनी गम्भीर है; रोज़ आँकड़ों की तस्वीर भयावह होती जा रही है। संसाधन सिकुड़ते जा रहे हैं। कोरोना के कारण अन्य रोगों से प्रभावित होने वाले रोगियों की संख्या बढऩे की आशंका जतायी जा रही है। ऐसे हालात में राष्ट्रों के प्रमुखों, सरकारों को अपने निजी और दलगत राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर आम जनता, खासकर महिलाओं, बच्चों के स्वास्थ्य के हित में ठोस कदम उठाने की हिम्मत दिखानी चाहिए। बर्न द मास्क और एंटी मास्क जैसी मुहिम मानव विरोधी हैं और ऐसी राजनीति करने वालों व उन्हें आर्थिक तथा अन्य तरीकों से प्रोत्साहित करने वालों का दुनिया कभी सम्मान नहीं करेगी।
ट्रंप ने कोरोना को लिया हल्के में
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने देश में कोरोना संक्रमण को शुरू में बहुत-ही हल्के ढंग से लिया, और जब हालात बेकाबू हो गये, तो सारा दोष चीन पर मढक़र खुद पीछे हो गये। कोरोना वायरस अमेरिका में एक अहम चुनावी मुद्दा बन गया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के एक चुनावी विज्ञापन में दर्शाया गया है कि ट्रंप कोरोना वायरस के मामलों पर गम्भीर नहीं है। खबर यह भी है कि ट्रंप की सरकार देश में कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए अधिक धनराशि देने के प्रस्ताव का विरोध कर रही है। बहरहाल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र राजनीति ने मास्क को भी हथियार बनाया और इसके सहारे भी मतदाताओं को अपने-अपने पाले में लाने की कोशिश जारी है। मास्क विरोधी माहौल का असर भी दिखायी दे रहा है।
जून में मिश्गिन के एक स्टोर में दाखिल हो रही युवती को मास्क न लगाने पर रोकने वाले गार्ड की उस युवती के पिता ने गोली मारकर हत्या कर दी। अटलांटा में मास्क को अनिवार्य कर दिया गया। मेयर के इस कदम के खिलाफ जॉर्जिया के गवर्नर ने केस दर्ज करा दिया है। एक शोध के अनुसार, अगर अधिकांश अमेरिकी मास्क पहनने लगें, तो अक्टूबर तक 33 हज़ार लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति अब तक सिर्फ एक बार ही मास्क पहने नज़र आये हैं। यह बात दीगर है कि उन्होंने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह हमेशा मास्क लेकर चलते हैं और जहाँ सोशल डिस्टेंसिंग सम्भव नहीं होती, वहाँ मास्क इस्तेमाल भी करते हैं। अमेरिका में मास्क न पहनने की ज़िद इतनी हावी हो गयी है कि बीते महीनों से सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं, जिसमें यह बताया जा रहा है कि मास्क पहनने से लोगों को ऑक्सीजन लेने में दिक्कत हो रही है और यह उनकी हृदय गति को भी प्रभावित करता है। जबकि ऐसा कहने वालों के पास इसे सही साबित करने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। मास्क को लेकर लोगों को गुमराह करने वाली एंटी मास्क लॉबी को जवाब देने के लिए अमेरिका में कई टी.वी. चैनलों ने विशेषज्ञों को अपने स्टूडियों में बुलाकर लोगों को मास्क पहनने से होने वाले फायदों की जानकारी दी और गुमराह होने सें बचने की सलाह दी। विशेषज्ञों ने लोगों को यह भी समझाया कि सर्जन मास्क पहनकर ही ऑपरेशन करते हैं। अगर मास्क पहनकर साँस लेने में दिक्कत होती है, तो सर्जन तो बेहोश हो जाते। सोशल मीडिया पर कई डॉक्टरों ने मास्क पहने हुए अपने वीडियो संदेश जारी किये, जिसमें बताया गया है कि मास्क पहनने से उन्हें साँस लेने में कोई परेशानी नहीं हो रही है और उनकी दिल की धडक़न भी सामान्य है।