साधारण भाषा में इसे भूलने की बीमारी कहा गया है। विश्व में यह बीमारी अपने पांव तेजी से पसार रही है। इस पर लगाम लगाने के लिए सितंबर के महीने को विश्व अल्ज़ाईमर महीने के रूप में मनाया जा रहा है। वैसे हर साल 21 सितंबर को यह दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरूआत 2012 से हुई है। यह माना जाता है कि दुनिया के हर तीन में से दो व्यक्ति इस बीमारी के शिकार हैं। इस तरह इसे वैश्विक समस्या के तौर पर देखा जाने लगा है।
अल्ज़ाईमर’ की बीमारी ‘डिमेंशिया’ का ही एक प्रकार है। साधारण भाषा में इसे भूलने की बीमारी कहा गया है। विश्व में यह बीमारी अपने पांव तेजी से पसार रही है। इस पर लगाम लगाने के लिए सितंबर के महीने को विश्व अल्ज़ाईमर महीने के रूप में मनाया जा रहा है। वैसे हर साल 21 सितंबर को यह दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरूआत 2012 से हुई है। यह माना जाता है कि दुनिया के हर तीन में से दो व्यक्ति इस बीमारी के शिकार हैं। इस तरह इसे वैश्विक समस्या के तौर पर देखा जाने लगा है। इस कारण इसकी रोकथाम के लिए पूरी दुनिया में एक मुहिम शुरू की गई है।
डिमेंशिया क्या है?
‘डिमेंशिया’ एक शब्द है जो दिमागी विकारों को प्रकट करता है। जैसे यादाशत कमज़ोर होना, सोच में विकार आना, व्यवहार और भावनाओं में विकार उत्पन्न होना। इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों में यादाश्त कमज़ोर होना, अपने रोज़ाना के काम करने में कठिनाई होना, भाषा के साथ समस्या पैदा होना और व्यक्तित्व में बदलाव आना शामिल हैं। ध्यान रहे की दुनिया का हर मानव अलग है इसलिए उस पर डिमेंशिया का प्रभाव भी अलग-अलग पड़ता है। कोई दो व्यक्ति ऐसे नहीं होते जिन में डिमेंशिया में लक्षण एक से पाए जाते हों। किसी भी मानव पर इस बीमारी से पडऩे वाला प्रभाव उसके स्वास्थ्य, उसकी सामाजिक परिस्थिति और उसके व्यक्तित्व के आधार पर ही पड़ता है।
अल्ज़ाईमर और डिमेंशिया की दूसरी बीमारियों के लक्षणों में अंतर होता है लेकिन ऊपरी तौर पर उनमें कई सामानताएं होती है। इनमें आम है यादाश्त में कमी और काम न कर पाने की समस्या। इस वजह से मरीज़ अपने काम-काज और सामाजिक कार्यों से दूर हो जाता है। जब इस तरह के लक्षण अधिक उभरने लगें तो डाक्टरी सहायता ले लेनी चाहिए। हालांकि अभी तक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है? लेकिन फिर भी डाक्टरी सहायता से हालात सुधर सकते हैं। यह बीमारी समाज के किसी भी वर्ग के प्राणी को हो सकती है। एक अनुमान के अनुसार इस समय विश्व के 460 लाख लोग डिमेंशिया से ग्रसित हैं। डाक्टरों का कहना है कि मरीज़ों की यह गिनती 2050 तक 1210 लाख का आंकड़ा पार कर लेगी। हर तीन सेकेंड में दुनिया में इस बीमारी का एक नया मरीज़ पैदा हो जाता है।
वैज्ञानिकों को मत है कि ऐसे बहुत से तत्व है तो इस बीमारी को बढ़ाने में सहायक होते है। इसमें सबसे बड़ा है उम्र का बढऩा। हर पांच साल में 65 साल से ऊपर के मरीज दुगने हो जाते हैं। 85 साल से ऊपर के तो लगभग एक तिहाई लोग इससे पीडि़त हैं।
ज़्यादातर यह बीमारी बढ़ी उम्र में शुरू होती है। इसका कारण वंशानुगत, जीवन शैली और वातावरण हो सकता है। इनमें से हर ‘फैक्टर’ हर इंसान पर अलग असर डालता है। किसी पर जीवनशैली का असर होता है तो किसी पर उसके इर्द-गिर्द के वातापरण का। वैज्ञानिक इस खोज में लगे हैं कि आयु के साथ दिमाग में आने वाले बदलाव किस तरह तंत्रिका कोशिका को नुकसान पहुंचा कर इस बीमारी को तेजी से बढऩे देते हैं। इनमें दिमाग के किसी भाग का सिकुड़ जाना, किसी भाग में सूजन होना, या ऊर्जा देने वाली कोशिकाओं को खत्म होना शामिल है।
अल्ज़ाईमर के लक्षण
इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति किसी भी बात को एक दम भूल जाता है वह बातचीत में एक ही बात को बार-बार दोहराता रहता है। अपना सामान रख कर भूल जाता है। समारोहों की तिथियां वगैरा भी उसे याद नहीं रहती। कई बार वह उस रास्ते को भी भूल जाता है जिस पर उसका रोज़ का आना-जाना होता है।
2016 में किए गए एक शोध के अनुसार अल्ज़ाईमर में शुरूआती लक्षणों में हंसोड़ेपन की भावना में बदलाव आना भी शामिल है। इसके साथ ही वस्तुओं की पहचान न कर पाना, किसी दृश्य के सभी भागों को एक साथ देख पाने में कठिनाई होना और किसी लिखी इबारत को पढऩे में मुश्किल पेश आना इस बीमारी के आम लक्षण हंै। कई बार कुछ युवाओं को भी यह बीमारी अपना शिकार बना लेती है। इसमें कई बार दिमाग पहले से ही क्षतिग्रस्त हो जाता है पर उसके लक्षण बाद में सामने आते हैं।
इस बीमारी को मुख्यतम तीन चरणों में बांटा जा सकता है- पहला, चरण है प्री क्लीनिकल जब इसके लक्षण भी सामने नहीं आए होते। दूसरा जब दिमाग पर हल्का सा असर पड़ता है और उसके लक्षण भी बहुत हल्के होते हैं। तीसरा है- डिमेंशिया। इस चरण में यह बीमारी पूर्ण रूप से उभर कर सामने आ जाती है।
अल्ज़ाईमर होता कैसे है?
इस बीमारी पर काम कर रहे डाक्टरों का कहना है कि ‘ब्रेन सेल्स’ के मरने के कारण अल्ज़ाईमर की बीमारी होती है। यह व्यक्ति के स्नायुमंडल से जुड़ी बीमारी है। इसका अर्थ यह है कि जैसे-जैसे दिमाग में ‘सेल’ मरते रहते हैं उसी के साथ यह बीमारी बढ़ती रहती है।
इसके साथ कुछ ऐसी बातें जो इस बीमारी को विकसित करने में सहयोग देती है, पर उन्हें जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। इनमें सबसे बड़ी समस्या है उम्र की। उम्र बढऩे के साथ इस बीमारी के बढऩे की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त जिन परिवारों में यह बीमारी आ चुकी है उनके सदस्यों को इसके होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। यह बीमारी वंशानुगित भी चलती है। कई बार इंसान के शरीर में इस तरह के ‘जीन्स’ आ जाते हैं जो इस बीमारी को बढ़ाते हैं। इन तीनों ही चीजों पर इंसान का कोई बस नहीं है।
बीमारी से बचाव
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। विज्ञान ने अभी तक कोई ऐसी दवा नहीं बनाई है जो इस बीमारी में सहायक हो, लेकिन कुछ चीजें़ ऐसी हैं जो बीमारी को नियंत्रित करने में इंसान की मदद करती हैं। इनमें है –
1. लगातार व्यायाम करना।
2. अपने स्वास्थ्य और हृदय को ठीक रखना।
3. दिल की बीमारी, शूगर, मोटापा, धुम्रपान और उच्च रक्तचाप से बच कर रहना।
4. अपने लिए स्वास्थ्यवर्धक खुराक लेना।
5. पूरी उम्र कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते रहना।
कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि यदि इंसान खुद को दिमागी और सामाजिक कार्यों में लगाा कर रखें तो ‘अल्ज़ाईमर’ की बीमारी से बचा जा सकता है।