अनुच्छेद-370 हटाये जाने के करीब छ: महीने बाद सरकार ने 25 जनवरी को कश्मीर में पूरी तरह से बन्द मोबाइल इंटरनेट सेवा की 2जी सुविधा को बहाल कर दिया। भले ही इसेचुनिंदा संस्थानों के ज़रिये ब्रॉडबैंड एक्सेस की अनुमति दी गयी थी। इसमें कहा गया था कि वे सरकारी आदेशों का उल्लंघन नहीं करेंगे, लेकिन इसकी सुविधा में में भी कई तरह की पाबंदियाँ लगायी गयी हैं।
कहने को तो घाटी में इंटरनेट सेवा को बहाल कर दिया गया है, लेकिन इस सेवा की सुविधा बेहद सीमित रूप में मिल रही है। लोग अपने ईमेल के अलावा ज़्यादा कुछ एक्सेस नहीं कर सकते हैं। घाटी के एक छात्र लकीक अहमद बताते हैं कि किसी भी वेबसाइट को खोलना संघर्ष करने जैसा है। बड़ी मुश्किल से काई एकाध वेबसाइट खुलती हैं। इससे अच्छा तो यही था कि इंटरनेट सेवा उपलब्ध ही नहीं थी।
अधिकतर वेबसाइटों को खोल भी नहीं सकते हैं या कहें कि सीमित वेबसाइट ही खुल पा रही हैं। 24 जनवरी को जारी एक आदेश के अनुसार, सरकार ने केवल 301 व्हाइट लिस्टेड साइट्स को ही एक्सेस करने के लिए कश्मीर में ब्रॉडबैंड और 2जी इंटरनेट सेवा बहाल की है। बाद में इस सूची में समाचारों की वेबसाइट को भी शामिल किया गया। संशोधित सूची में करीब 60 न्यूज वेबसाइट जिनमें केंद्र शासित प्रदेश के प्रमुख अखबारों की वेबसाइट शामिल हैं। इनमें कश्मीर टाइम्स, डेली एक्सेलसियर, स्टेट टाइम्स, अर्ली टाइम्स, कश्मीर ऑब्जर्वर, ग्रेटर कश्मीर, कश्मीर उज़मा, कश्मीरी इमेज, कश्मीर एज और राइजिंग कश्मीर के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुख्यधारा की समाचार वेबसाइट्स भी हैं। घाटी में सिर्फ इन्हीं सूचीबद्ध वेबसाइट के अलावा कोई अन्य साइट नहीं खुलती है। इससे इंटरनेट एक्सेस न कर पाने के अधिकार से लोगों को वंचित करना चिन्ता का विषय बना हुआ है। साइटों को ब्लैकलिस्ट करके और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के बाद सरकार को लगता है कि बाकी इंटरनेट को एक्सेस करना उसके लिए आसान तरीका है। कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार समान लतीफ कहते हैं कि महज़ कुछ सौ साइटों को व्हाइट लिस्ट में डाल दिया गया है, जबकि बाकी इंटरनेट पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। इससे इंटरनेट का इस्तेमाल करने का मकसद पूरा ही नहीं होता है। कम-से-कम पत्रकारों के लिए तो सोशल मीडिया समेत सभी ज़रूरी साइट्स एक्सेस करने की अनुमति मिलनी चाहिए।
हालाँकि, लोग पहले से ही वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) का उपयोग करके प्रतिबंधित क्षेत्र में एक-दूसरे तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे एप का कश्मीर में प्रयोग खूब बढ़ा है और लोगों के बीच आम हो गये हैं और लोग उनको इंस्टाल भी कर रहे हैं। लोग अपने सेलफोन के हिसाब से कौन-सा एप उपयुक्त है, उसे सर्च करके अपनी बात एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं। इन एप के माध्यम से यूजर किसी भी वेबसाइट जैसे फेसबुक, गूगल, यूट्यूब और कई अन्य प्रतिबंधित वेबसाइट्स को भी आसयानी से एक्सेस कर पा रहे हैं। इससे पहले ही सरकार सतर्क हो गयी और आम लोगों तक ब्रॉडबैंड सेवा की सुविधा शुरू करने की अनुमति प्रदान कर दी। इंटरनेट शुरू किये जाने का सरकारी आदेश जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग में प्रधान सचिव शालीन काबरा की ओर से जारी किया गया, इसमें कहा गया कि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ज़रूरीफायरवॉल के ज़रिये व्हाइट लिस्टेड वेबसाइट को खोलें, जिससे लोग सरकार तक भी आसानी से पहुँच सकें। इसके अलावा सभी सोशल मीडिया साइट्स के अलावा आवश्यक सेवाओं जैसे ई-बैंकिंग आदि की सुविधा शुरू कर दी जाएँ।’
सरकार का सोशल साइट्स पर पाबंदी लगाये जाने के पीछे तर्क है कि इससे लोगों को भड़काया जा सकता है। साथ ही सड़कों पर आवाजाही बाधित होने जैसी दिक्कतों का सामना करने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आम धारणा है कि सोशल साइट पोस्ट के आह्वान से लोग सड़क पर विरोध-प्रदर्शन के लिए जुट जाते हैं। इसलिए इंटरनेट के ज़रिये ऐसी स्थिति को काबू करने में अहम भूमिका माना जाता है। वसंत और गर्मी के दौरान घाटी में असंतोष की स्थिति रही है। इसलिए आगे जल्द इंटरनेट तक लोगों की पहुँच होना मुश्किल ही लग रहा है। इससे राज्य में एक तरह की विचित्र स्थिति पैदा हो गयी है। शिक्षा के लिए ज़रूरी इंटरनेट के साथ ही अर्थ-व्यवस्था की भी इंटरनेट पर निर्भरता होने से इसका चौतरफा नुकसान हो रहा है।
लोग बिना सोशल मीडिया के भी इंटरनेट एक्सेस करने को तैयार हैं, बशर्ते सरकार उन्हें सभी भरोसेमंद वेबसाइट को खोलने की अनुमति प्रदान करे। इंटरनेट आधुनिक जीवन का अभिन्न अंग है और इस सेवा के बिना जीवन के बारे में सोचना किसी भी शख्स के लिए समझ से परे हो सकता है। यहाँ के एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय में लिखा कि इंटरनेट पर पाबंदी ‘पुराने समय में वापस जाने जैसा है।’ इस प्रकार इंटरनेट तक पहुँच को अस्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसा तो तब और अधिक ज़रूरी हो जाता है, जब इसकी वजहों के पीछे भी तमाम तरह के विवाद हों।