प्रमोद पुरोहित ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अपने गाँव की खस्ताहाल सड़क की शिकायत करने पर उन्हें जेल जाना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में पिछले दिनों ठीक ऐसा ही हुआ। सड़क मरम्मत करवाने की मांग लेकर जिला कलेक्टर की जन सुनवाई में पहुंचे रेलवे के 61 वर्षीय इस रिटायर्ड जूनियर इंजीनियर को चार दिन जेल में गुजारने पड़े। कलेक्टर के कहने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था, सो उसके अधीन काम करने वाले एसडीएम ने भी जमानत नहीं दी।
नौकरी से रिटायर होने के बाद पुरोहित अपने गाँव खुरपा में बस गए थे। वे खेती-किसानी कर गुजारा करते हैं। आस-पास के गांवों में उनके परिवार की बड़ी इज्जत है। उनके गाँव से बगल के कस्बे को जोडऩे वाली सड़क काफी खराब हालत में है। सड़क इतनी खराब हालत में है कि बारिश के दिनों में उस पर पैदल चलना भी मुश्किल है। वे दो साल से उस सड़क को ठीक करवाने की
जद्दो-जहद कर रहे थे। पर तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार उस सड़क की सुध नहीं ले रही थी।
पढ़े-लिखे लोगों के साथ एक दिक्कत यह होती है कि उन्हें लिखना-पढऩा आता है और सरकार द्वारा की जा रही घोषणाओं को भी वे अक्सर ध्यान से पढ़ते हैं। वैसे भी इस मामले में रिटायर आदमी बड़ा खतरनाक हो जाता है। प्रमोद पुरोहित ने सीएम हेल्पलाइन पर एक शिकायत डाल दी। बादशाह जहाँगीर ने जनता की शिकायत सुनने के लिए घंटा लगाया था। मुख्यमंत्री चौहान ने फोन और इन्टरनेट पर उसी का डिजिटल संस्करण चालू किया है.
सीएम हेल्पलाइन ने 21 जुलाई को वह शिकायत सम्बंधित डिपार्टमेंट को भेज दी। जबाब में कुछ दिनों के बाद पुरोहित को नरसिंहपुर के पीडब्लूडी दफ्तर से बुलावा आया। जब वे अपनी जेब से पैसा खर्च कर नरसिंहपुर पहुंचे तो पता चला कि पीडब्लूडी वह सड़क इसलिए नहीं बना सकती क्योंकि वह प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत आती है। सड़क जिस डिपार्टमेंट ने बनाई है, जाहिर है वही उसकी मरम्मत कर सकता है। सीएम हेल्पलाइन के हेल्पलेस साबित होने के बाद पुरोहित ने जिला कलेक्टर की जन सुनवाई में अपनी व्यथा कथा सुनाने की सोची।
प्रशासनिक सुधारों से मध्य प्रदेश में कई महत्वपूर्ण काम हुए हैं, ऐसा सरकार का कहना है। सरकार के सभी आला अफसर सप्ताह में एक दिन अपने दफ्तरों में मौजूद रहकर जनता की शिकायतें सुनते हैं। हर मंगलवार को वे एक खुला दरबार लगाते हैं जिसमें पुरोहित जैसे लोगों की समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की जाती है।
21 अगस्त को नरसिंहपुर के कलेक्टर अभय वर्मा की जन सुनवाई में पुरोहित हाजिर हुए। कलेक्टर साहब ने उन्हें पीडब्लूडी दफ्तर भेज दिया। पर उस ऑफिस में कोई अफसर मौजूद नहीं था। पीडब्लूडी के दफ्तर में शाम तक बैठ कर इंतजार करने की बजाए पुरोहित वापस कलेक्टर की जन सुनवाई में आ गए, यह बताने के लिए कि उन्हें वहां कोई अफसर नहीं मिला। फिर वे अपनी और अपने गाँव वालों की व्यथा-कथा सुनाने लगे।
लगता है उस दिन बड़े हाकिम का मूड कुछ खराब था। पुरोहित के दुबारा जन सुनवाई में आने पर वर्मा का पारा चढ़ गया। उन्होंने पुलिस को हुक्म दिया कि इस गुस्ताखी के लिए पुरोहित को थाने ले जाया जाए। सन्नाटे में आये पुरोहित बड़े घबराए और उन्होंने कलेक्टर से निवेदन किया कि अगर उनसे कोई गलती हो गई है तो उन्हें माफ कर दिया जाए, पर कलेक्टर ने एक न सुनी। पुरोहित को शाम तक थाने में बैठाकर रखा गया। बाद में उन्हें ‘शांतिभंग होने की आशंका’ में फौजदारी कानून की धारा 151 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
धारा 151 एक प्रतिबंधात्मक कार्रवाई है। अगर पुलिस को ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति जुर्म करने वाला है तो उस जुर्म को होने से रोकने के लिए पुलिस इस कानून के तहत उसे बिना वारंट गिरफ्तार कर जेल भेज सकती है। इस केस का पेंच समझने के लिए यह समझना भी ज़रूरी है कि कलेक्टरों को जिला मजिस्ट्रेट के अधिकार भी मिले हुए हैं। कलेक्टर या एसडीएम जैसे उनके मातहत एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अपने पॉवर का इस्तेमाल कर इस तरह की धाराओं में कार्रवाई करने के लिए सक्षम हैं। इस मामले में भी कार्रवाई वर्मा के मातहत एक एसडीएम ने की।
पूरी घटना चार दिन बाद प्रकाश में आई जब जमानत पर जेल से छूटने के बाद पुरोहित मीडिया के सामने आये। वर्मा ने अपनी सफाई में कहा है कि पुरोहित जन सुनवाई में उपद्रव मचा रहे थे। ‘वह नशे की हालत में था। वहां गाली-गलौज कर रहा था, हुडदंग कर रहा था, लोगों को आतंकित कर रहा था.’ वर्मा का कहना है जब उनके समझाने के बाद भी पुरोहित नहीं माने तो उनको पुलिस को सौंप दिया। आम तौर पर नशे की हालत में किसी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उसकी मेडिकल जांच कराती है, पर पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया।
पुरोहित का कहना है कि उनकी सात पुश्तों में भी कभी किसी ने शराब को हाथ नहीं लगाया: ‘चाहें तो मेरा डीएनए टेस्ट करा लें’ वे हुडदंग मचाने, या गाली-गलौज करने से भी इंकार करते हैं और चुनौती देते हैं कि कलेक्टर दफ्तर में लगी सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देख ली जाये: ‘फुटेज 21 तारीख की निकलवाई जाये और अगर मैंने कोई गुनाह किया है तो मुझे सूली पर चढ़ाया जाये.’
जेल से निकलने के बाद पुरोहित ने अपनी गलत गिरफ्तारी के खिलाफ जिले के एसपी को शिकायत की। एसपी ने उसकी जांच अपने मातहत एक एसडीओपी को सौंप दी। जिले के सबसे बड़े आईएएस अफसर की जाँच एक जूनियर पुलिस अफसर कर रहा है! मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग ने खुद घटना का संज्ञान लिया है। उसने जबलपुर के कमिश्नर और पुलिस के आईजी से रिपोर्ट तलब की है। आयोग ने सीसीटीवी रिकॉर्डिंग को भी सुरक्षित रखने कहा है। उसके बाद मुख्यमंत्री ने भी घटना की रिपोर्ट मांगी है।
इसी बीच पत्रिका के स्थानीय रिपोर्टर ने एक खोजी काम किया। पुलिस ने इस केस के सिलसिले में दो गवाह खड़े किये थे जिनका कहना था की उन्होंने कलेक्टर ऑफिस में पुरोहित को उपद्रव मचाते हुए देखा था। पर उनमें से एक गवाह, नरसिंहपुर निवासी राजू सोनी ने कैमरा पर पत्रिका को बताया कि वे जन सुनवाई में ही मौजूद नहीं था। उसका कहना था, ’21 तारीख छोड़ो वह, जनसुनवाई में आज तक कभी नहीं गया’।
इस चौंकाने वाली घटना के बाद से ही नरसिंहपुर उबाल पर है। एक तरफ पुरोहित के साथ हुए जुल्म के खिलाफ जिले के कई नागरिक संगठन उठ खड़े हुए हैं। नरसिंहपुर और करेली शहरों में – पुरोहित का गाँव करेली के पास है – मशाल जुलूस और धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं। दूसरी तरफ, कलेक्टर के बचाव में सरकारी कर्मचारियों का एक तबका सामने आया है। उन्होंने फौजदारी कानून की धारा 151 के तहत उन स्थानीय पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की जिन्होंने घटना को ‘तोड़-मरोड़ कर कलेक्टर को बदनाम करने की साजिश की थी।’ उन्होंने भी कलेक्टर के समर्थन में एक बड़ा जुलूस निकाला।
ठीक इसी तरह की घटना मध्य प्रदेश में कुछ ही समय पहले भी हो चुकी है। पिछले साल खरगोन के तत्कालीन कलेक्टर अशोक वर्मा जनता का दु:ख-दर्द दूर करने एक गाँव के दौरे पर गए थे। वहां एक युवक ने उनसे शिकायत की कि स्थानीय पंचायत का ऑफिस बंद रहता है और उनके आने की खबर पाकर ही कुछ दिनों से खुलना चालू हुआ है। इस पर कलेक्टर को गुस्सा आ गया और चिल्लाए: ‘दो झापड़ अभी देंगे, ठीक हो जाओगे।’ साथ चल रहे पुलिस वालों के लिए इतना काफी था. वे उस युवक को और उसके एक साथी को उठाकर ले गए और सीधे जेल में डाल दिया वही ‘शांति भंग होने की आशंका में’ धारा 151 के तहत। घरवाले मुश्किल से उनकी जमानत करा पाए क्योंकि जिले के कलेक्टर जो नाराज़ थे।
प्रमोद पुरोहित की कहानी केवल खुरपा जैसे गांवों की कहानी नहीं है, मध्य प्रदेश की सड़कें अमेरिका से बेहतर होने के मुख्यमंत्री दावों के बावजूद प्रदेश में राज्य मार्गों समेत तमाम सड़कों के बुरे हाल हैं। हालत यह है कि शिवराज सिंह चौहान जिस हाई-टेक रथ से इन दिनों प्रदेश की ‘आशीर्वाद यात्रा’ कर रहे हैं, वह गाड़ी भी कई दफा खराब सड़कों में फंस चुकी है। जिस सड़क से वे गुजरने वाले होते हैं, वहां ताबडतोड़ गढ्ढे भर कर काम चलाया जा रहा है। अभी सीधी जिले में उनकी यात्रा के दौरान सड़क के गढ्ढे भरने पर विवाद के बाद उन पर पथराव हो गया था जिसके बाद भाजपा ने तय किया कि आशीर्वाद यात्रा अब सड़क मार्ग की बजाय हेलीकाप्टर से होगी.
प्रमोद पुरोहित की कहानी केवल इसलिए दिलचस्प नहीं है कि वह आपको काफ्का के संसार की याद दिलाता है – नौकरशाही से त्रस्त ‘के’ की या बिना जुर्म मुकदमा झेल रहे ‘जोसफ के’ की। पुरोहित की कहानी इसलिए भी दिलचस्प है कि वह सरकार के कई दावों की कलई खोलता है। मध्य प्रदेश की सड़कें अमेरिका से सचमुच में बेहतर होतीं तो यह किस्सा कभी नहीं लिखा जाता, और अगर हाकिम लोग जन सुनवाई में जनता की सुनते तो भी यह किस्सा नहीं लिखा जाता।