करोड़ों रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला

पंजाब में केंद्र सरकार की योजना पोस्ट मेट्रिक स्कॉलरशिप यानी छात्रवृत्ति (अनुसूचित जाति) वितरण में व्यापक स्तर पर वित्तीय अनियमितताएँ उजागर हुई हैं। राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव कृपा शंकर सरोज ने व्यापक स्तर पर मामले की जाँच की। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने 55 करोड़ रुपये का स्पष्ट घोटाला बताया। 33 पेज की यह रिपोर्ट बताती है कि विभाग के अधिकारियों ने मनमाने तरीके से काम किया। जिन पात्र विद्यार्थियों को यह स्कॉलरशिप मिलनी थी और उससे उन्हें आगे बढऩा था, वे इससे वंचित रह गये।

पात्र लोगों के नाम करोड़ों की राशि आखिर किनके खातों में पहुँच गयी। पात्र, ज़रूरतमंद और आगे की पढ़ाई के लिए सहारा स्कॉलरशिप राशि का गोलमाल करने वाले कौन हैं? निश्चित तौर पर सरकार में बैठे लोग और सामाजिक न्याय, आधिकारिता विभाग के अधिकारी। करोड़ों का खेल छोटे-मोटे अधिकारी अपने बूते नहीं कर सकते। पंजाब में व्यापक स्तर पर करोड़ों का हेरफेर अधिकारियों ने किसकी शह पर किया गया। क्या कभी इसका खुलासा राज्य सरकार की जाँच में हो सकेगा?

 हज़ारों पात्र विद्यार्थियों की स्कॉलरशिप का कोई हिसाब-किताब नहीं है। जिन फाइलों में वितरण का पूरा ब्यौरा था, वे न जाने कहाँ गायब हो गयी है। अतिरिक्त मुख्य सचिव के बार-बार माँगने के बावजूद विभाग के सम्बन्धित अधिकारियों ने उन्हें कुछ नहीं बताया है। मतलब साफ है कि केंद्रीय योजना राशि का सामाजिक न्याय, आधिकारिता और अल्पसंख्यक विभाग सही से वितरण नहीं कर सका। यह गफलत या चूक नहीं, बल्कि सोची-समझी साज़िश के तहत करोड़ों रुपये का हेरफेर किया गया। इसके लिए सम्बन्धित मंत्री साधू सिंह धर्मसोत की ज़िम्मेदारी बनती है। योजना के तहत इस राशि का एक बड़ा हिस्सा शिक्षण संस्थाओं को दिया गया और राशि पात्र विद्यार्थियों तक नहीं पहुँची। अगर योजना का लाभ पात्र तक न पहुँचे, तो दोष योजना का नहीं, बल्कि इसे लागू करने वाले विभाग का है।

रिपोर्ट में विभाग के डिप्टी डायरेक्टर परमिंदर सिंह गिल के अलावा राकेश अरोड़ा, बलदेव सिंह, चरणजीत सिंह और मुकेश भाटिया को बाकायदा नोटिस जारी करके 39 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं पर स्पष्टीकरण माँगा गया था। मज़ेदार बात यह कि उक्त राशि की फाइलें ही नहीं मिल रही। नोटिस के बावजूद आरोपी अधिकारियों ने अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।

मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने मामले की जाँच का ज़िम्मा मुख्य सचिव विनी महाजन को सौंपा है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार अपने स्तर पर मामले की जाँच कराने में सक्षम है। विपक्ष राजनीतिक फायदे के लिए बेवजह सीबीआई या किसी केंद्रीय एजेंसी से जाँच की माँग कर रहा है। वह कहते हैं कि मंत्री हो या कोई अधिकारी, जाँच में जो भी दोषी होगा, चाहे वह कोई भी क्यों न हो कड़ी कार्रवाई होगी। पर विपक्षी नेताओं को उनकी बात पर भरोसा नहीं है। उनकी राय में जो मुख्यमंत्री अपने ही अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर भरोसा न तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगा। उन्हें अंदेशा है कि मुख्य सचिव की रिपोर्ट लीपापोती वाली होगी, जिसमें कुछ अधिकारी तो ज़रूर लपेटे में आ सकते हैं, पर विभाग से जुड़े मंत्री तक शायद आँच न पहुँचे।

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल कहते हैं कि बिना सीबीआई जाँच मामले की गहराई तक नहीं, पहुँचा जा सकता। जब अतिरिक्त मुख्य सचिव की विस्तृत जाँच रिपोर्ट पर कैप्टन कुछ नहीं कर रहे तो स्पष्ट है कि वह मामले को रफा-दफा करना चाहते हैं और आरोपी मंत्री साधू सिंह धर्मसोत को किसी तरह बचाना चाहते हैं। उनकी कथनी और करनी में अन्तर है। कैप्टन तो राज्य में सरकार बनने पर नशा एक माह में खत्म करने का दावा करते थे आज क्या हाल है, नशे का कारोबार बदस्तूर जारी है। राज्य में शराब त्रासदी में 120 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी। पूरा विपक्ष घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने की माँग कर रहा है तो इसे कराने में क्या दिक्कत है। सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। राज्य सरकार की जाँच पर उन्हें भरोसा नहीं है। राज्य में स्कॉलरशिप में गड़बडिय़ों के आरोप नये नहीं है। वर्ष 2019 के फरवरी और मार्च के दौरान केंद्र ने पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप (अनुसूचित जाति) के लिए 303 करोड़ रुपये जारी किये। इनमें से 248 करोड़ रुपये वितरण के लिए ट्रेजरी से निकलवाये गये। वैसे तीन साल के दौरान केंद्र ने योजना के तहत 811 करोड़ रुपये जारी किये हैं। विपक्ष तीन साल के दौरान स्कॉलरशिप वितरण की जाँच माँग रहा है, पर फिलहाल मुद्दा 55 करोड़ की जाँच पर ही अटका है।

राज्य में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा के मुताबिक, जब अतिरिक्त मुख्य सचिव की संगीन रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री कार्रवाई नहीं कर रहे तो मतलब साफ है, वह भ्रष्टाचार विरोधी नहीं, बल्कि ऐसा करने वालों को संरक्षण दे रहे हैं। आरोपी मंत्री धर्मसोत को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था। वह ऐसा नहीं करते, तो मुख्यमंत्री को हटा देना चाहिए था। जब अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर सरकार गम्भीर नहीं तो मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर क्या करेगी। मतलब स्पष्ट है कि जाँच के नाम पर मामले को ठण्डे बस्ते में डालने की तैयारी है। आम आदमी पार्टी करोड़ों रुपये के घोटाले में चुप नहीं रहेगी, बल्कि आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुँचाने के सडक़ों पर उतरेगी।

विपक्ष के अलावा कांग्रेस के सांसद और पूर्व कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे प्रताप सिंह बाजवा के विपक्ष की माँग के समर्थन पर कैप्टन उन्हें पहले अपने गिरेबान में झाँकने को कहते हैं। कैप्टन उन्हें याद दिलाते हैं कि वर्ष 2002-2007 के दौरान जब वह (बाजवा) सार्वजनिक निर्माण मंत्री थे, तब उन पर महँगे दाम पर कोलतार खरीदने के आरोप लगे थे। तो क्या विपक्ष की माँग पर उन्हें हटाया गया था? अब वह क्यों अपनी ही पार्टी की सरकार के मंत्री को बर्खास्त करने की माँग कर रहे हैं। बाजवा को तो सरकार के खिलाफ बोलने का मौका चाहिए, वह विपक्ष की भूमिका में आ जाते हैं। भाजपा ने घोटाले की सीबीआई जाँच की माँग पर राज्य में कई स्थानों पर प्रदर्शन किया और मंत्री धर्मसोत के पुतले जलाकर रोष जताया।

स्कॉलरशिप के मामले में घोटाला तो हुआ है, वरना 39 करोड़ रुपये के वितरण की फाइलें गायब नहीं होतीं। क्यों नहीं अधिकारी उनका स्पष्टीकरण देते? दिसंबर, 2019 में स्कॉलरशिप वितरण में गड़बड़ी के आरोपों के चलते तब के मुख्य सचिव करण अवतार सिंह ने 19 दिसंबर, 2019 को डिप्टी डायरेक्टर परमिंदर सिंह गिल समेत कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया था। गिल आरोपी मंत्री साधू सिंह धर्मसोत के करीबी माने जाते हैं, लिहाज़ा तीन दिन उनका निलंबन रद्द हो गया था। इसी से स्पष्ट है कि विभाग में गिल का कितना प्रभाव है। सामाजिक, न्याय आधिकारिता और अल्पसंख्यक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर रहते गिल का रुतबा बड़ा था। वह बजाय डायरेक्टर बलविंदर सिंह धालीवाल के सीधे मंत्री को रिपोर्ट किया करते थे। अतिरिक्त मुख्य सचिव कृपाशंकर सरोज की 33 पेज की रिपोर्ट में इन्हीं परमिंदर सिंह गिल पर भी आरोप हैं। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल की मामले की सीबीआई जाँच की माँग पर कैप्टन कहते हैं कि वह (हरसिमरत) तो हर मामले की सीबीआई जाँच की ही माँग करती हैं। वह अपनी पार्टी शिअद की माँग का समर्थन कर रही हैं; लेकिन उन्हें इस जाँच एजेंसी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। पंजाब में कई मामले सीबीआई को दिये गये; लेकिन एजेंसी नाकाम रही।

संघ नेता सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जगदीश कुमार गगनेजा की हत्या हुई। मामले की जाँच सीबीआई के पास गयी; लेकिन एजेंसी सफल नहीं हो सकी। राज्य में बेअदबी के मामलों की जाँच में भी केंद्रीय एजेंसी तह तक नहीं पहुँच सकी। राज्य सरकार ने अपने तौर पर इसकी जाँच करायी और सफलता मिली। सरकार स्कॉलरशिप में वित्तीय अनियमितताओं पर गम्भीर है। मामले की जाँच का ज़िम्मा मुख्य सचिव विनी महाजन को सौंपा गया है। इनकी रिपोर्ट के आधार पर सरकार कड़ी कार्रवाई करने में कोई गुरेज़ नहीं करेगी। सरकार आरोपी मंत्री या अधिकारियों को क्यों बचायेगी? जब यह मामला उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा है। अतिरिक्त मुख्य सचिव सरोज की रिपोर्ट पर कैप्टन कुछ भी नहीं कहते, जबकि उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर उनकी रिपोर्ट में क्या खामियाँ हैं। किसी अधिकारी का सरकार के खिलाफ इस तरह रिपोर्ट देना कोई आसान काम नहीं है। कितने दवाब होते हैं; लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखायी और विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किये। रिपोर्ट में मंत्री पर सीधे आरोप नहीं है; लेकिन निष्कर्ष के तौर पर बात उन पर ही आकर रुकती है। विभाग में व्याप्क स्तर पर गड़बड़ी हो रही थी, तो क्या वह इससे अनजान थे? या फिर उन्हें सब पता था कि कहाँ क्या हो रहा है? केंद्र चाहे, तो रिपोर्ट के आधार पर मामले की जाँच करने को स्वतंत्र है; लेकिन अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं आया है।

शिरोमणि अकाली दल के एक प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय समाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत से मुलाकात करके मामले की जाँच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से कराने की माँग की। सदस्यों में विधायक पवन कुमार टीनू, सुखविंदर कुमार सुक्खी, बलदेव सिंह खैरा और पूर्व मंत्री गुलज़ार सिंह राणिके थे। सदस्यों के मुताबिक, केंद्र इस मामले के प्रति गम्भीर है। योजना के तहत पैसा पात्र विद्यार्थियों तक पहुँचना चाहिए था; लेकिन बहुत विद्यार्थी इससे वंचित हो गये और बीच के लोगों ने सब गोलमाल कर दिया। विपक्ष का दावा है कि यह घोटाला 55 करोड़ का नहीं, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा है। तीन साल के दौरान पंजाब को 811 करोड़ रुपये योजना के तहत मिले हैं। पूरे प्रकरण की केंद्रीय एजेंसी या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जाँच करायी जाए, तो निश्चित तौर पर बड़ा घोटाला सामने आयेगा। 55 करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट तो केवल 248 करोड़ रुपये के वितरण की ही है।

तीन साल के दौरान राज्य में स्कॉलरशिप का मुद्दा जब तब उठता रहा है। केंद्र राशि के जारी होने की बात कहता, तो राज्य सरकार इससे इन्कार की बात कहती। यह गम्भीर बात है कि जिन पात्र लोगों को इस स्कॉलरशिप के लिए चुना गया है, वह ही इससे वंचित हो जाएँ और उनके नाम पर यह राशि खुर्द-बुर्द कर दी जाए। अतिरिक्त मुख्य सचिव कृपाशंकर सरोज की 33 पेज की रिपोर्ट और विपक्ष की ओर से मंत्री को हटाने और उन पर आपराधिक मामला दर्ज करने की माँग के बावजूद संगीन आरोपों में घिरे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री साधू सिंह धर्मसोत निश्ंिचत से लगते हैं। वह हर जाँच के लिए तैयार और पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाते हैं। देखना होगा कि मुख्य सचिव कब तक मामले की जाँच रिपोर्ट पेश करती है।

नवनियुक्त मुख्य सचिव विनी महाजन के लिए यह एक चुनौती जैसा काम होगा। पद पर तैनाती के बाद यह उनके सामने सबसे बड़ा काम आया है। क्या वह कृपाशंकर सरोज की तरह दबावों से मुक्त होकर किसी निष्कर्ष तक पहुँच सकेगी? अगर वह ऐसा करने में सक्षम होती है, तो उन्हेंं इसके लिए भी याद किया जाएगा। अगर रिपोर्ट कुछ कमतर या सरोज के विपरीत हुई, तो विपक्ष के पास फिर से यह मुद्दा होगा। कहा जा सकता है कि फिलहाल मुख्यमंत्री ने विपक्ष के विरोध को कुछ कमज़ोर तो कर ही दिया है। जब तक राज्य न चाहे सीबीआई जाँच मुमकिन नहीं है। इस संदर्भ में कैप्टन पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि राज्य सरकार अपने स्तर पर जाँच करने में सक्षम है। सीबीआई को मामला सौंपने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह इतना भरोसा दिलाते हैं कि जाँच में आरोप साबित होने वाले को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह व्यक्ति सरकार के अन्दर का हो या बाहर का कोई नहीं बच सकेगा।

विपक्षी दल स्कॉलरशिप में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों पर पर राजनीति कर रहे हैं। राज्य में भ्रष्टाचार के किसी मामले के उजागर से सरकार की छवि को भी बट्टा लगता है। मामला प्रकाश में आया है, अतिरिक्त मुख्य सचिव ने जाँच कर रिपोर्ट पेश की है। सरकार ने उसे गम्भीरता से लिया है और विस्तृत जाँच का काम मुख्य सचिव को सौंपा है। दोनों अधिकारियों की मामले में मंत्रणा हो चुकी है। वह राज्य की जनता से वादा करते हैं कि जाँच निष्पक्ष होगी और रिपोर्ट में दोषी साबित होने पर शर्तिया कड़ी कार्रवाई होगी। उन्होंने एक तरह से वंचित विद्यार्थियों, उनके परिजनों, विपक्षी दलों समेत पूरे राज्य को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि डरने की कोई बात नहीं है मैं हूँ न! विपक्ष को उन पर भरोसा करना चाहिए और जब तक जाँच रिपोर्ट नहीं आती, तब तक राज्य हित में राजनीतिक बयानबाज़ी न करे तो ही अच्छा होगा, क्योंकि कोई फायदा नहीं जाँच राज्य सरकार अपने ही स्तर पर कराकर दोषियों को दण्डित करेगी।

अमरिंदर सिंह, मुख्यमंत्री (पंजाब)

 

सीबीआई जाँच से डर क्यों?

स्कॉलरशिप में गड़बड़ी तो व्यापक स्तर पर हुई है। आरोपों के सीधे घेरे में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के अलावा ट्रेजरी विभाग भी है। रिपोर्ट खुलासा करती है कि केंद्रीय योजना की राशि को अमुक-अमुक तरीके से खपाया जा सकता है। सरकार की ओर से एक बार भी बेबुनियाद आरोपों जैसा बयान नहीं आया है। मतलब साफ है कि घोटाला तो हुआ है; पर इसकी जाँच राज्य सरकार आखिर अपने स्तर पर ही क्यों कराना चाहती है? क्यों नहीं अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर ही कार्रवाई कर दी गयी? उसने जाँच कोई हवा में तो नहीं की है; सुबूत जुटाये गये हैं। अनेक शिक्षण संस्थाओं को योजना के तहत पैसा दिया गया; लेकिन वह पात्र विद्यार्थियों तक तो नहीं पहुँचा। राशि के समय पर मिलने पर अक्सर सरकार की ओर से केंद्र की लेटलतीफी बताया जाता था। केंद्र से पैसा जारी होने में देरी होती रही है। पर जब राशि आ गयी, तो उसे किन खातों में पहुँचा दिया गया? विपक्ष की सीबीआई जाँच की माँग गलत नहीं ठहरायी जा सकती।

राज्य सरकार मानती है कि सब कुछ ठीक है, तो जाँच कराने में कुतर्क क्यों किये जा रहे हैं? सीबीआई जाँच पर कांग्रेस के अलावा सारे विपक्षी दलों को भरोसा है, पर किया क्या जाए? मुख्यमंत्री इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं ।