फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्ट्राग्राम का अचानक बन्द होना तकनीकी चूक या कुछ और है मक़सद?
कभी चिट्ठियों के सहारे बातचीत हुआ करती थी, फिर टेलीफोन ने क्रान्ति की और अब एंड्रायड फोन और सोशल मीडिया सब कुछ निर्भर है। आज के मोबाइल युग में बातचीत और सूचना से लेकर व्यापार तक, बहुत कुछ में व्हाट्सऐप, फेसबुक और दूसरे पर निर्भर हो चुका है। ऐसे में ज़रा-सी तकनीकी चूक लोगों के विचलित कर देती है। पूरी-की-पूरी व्यवस्था को हिलाकर रख देती है। 4 अक्टूबर की रात लगभग 9:00 बजे से फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम सहित मैसेंजर सब कुछ अचानक बन्द होने से लोगों को लगा कि इंटरनेट काम नहीं कर रहा है। लेकिन जब पता चला कि सारा तंत्र (सिस्टम) ही बन्द हुआ है, तो लोग भौंचक और परेशान हुए।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब हम किसी पर पूरी तरह से आश्रित होते हैं, तो हमें हर हाल में सावधान रहना होता है। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, जिसके चलते सैकड़ों करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ। इस बन्द के चलते फेसबुक ने 4,00 करोड़ रुपये से ज़्यादा हर घंटे गँवाये। इस मामले में कम्प्यूटर इंजीनियर ऐश्वर्य शर्मा ने बताया कि फेसबुक और उसके सभी मौज़ूदा तंत्र लगभग छ: घंटे तक बन्द रहने की वजह कंफिग्रेशन में अचानक तकनीकी ख़राबी आयी, जिसके चलते ऑनलाइन विज्ञापनों में रुकावट से फेसबुक, व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया ऐप्स को हर घंटे कई करोड़ों का नुक़सान हुआ है। ऐश्वर्य शर्मा ने कहा कि जबसे कोरोना का कहर दुनिया में बरपा है, तबसे छोटे स्कूलों से लेकर उच्च शिक्षा तक मोबाइल और इंटरनेट पर निर्भर हो चुकी है। ऐसे में अचानक सभी सेवाएँ ठप होने से एक-एक सेकेंड में नुक़सान होता है, फिर छ: घंटे मे तो बड़ा फ़र्क़ पडऩा ही था। जूम और व्हाट्सऐप जैसे ऐप्स के ज़रिये पढ़ाई और कोंचिंग कक्षाएँ लगने के चलते भारत में शहरों से लेकर गाँव तक अब ज़्यादातर विद्यार्थियों के हाथों में मोबाइल है। बच्चों की अधिकतर ऑनलाइन कक्षाएँ भी शाम से 10 बजे तक के आसपास तक चलती हैं। आज करोड़ों का व्यापार भी ऑनलाइन होता है। ऐसे में फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम और मैसेंजर के बन्द होने से लोगों के साथ-साथ विद्यार्थियों को दिक़्क़त तो होनी ही थी। इंजीनियर पारस कुमार कहते हैं कि इंस्ट्राग्राम का अक्सर बन्द होना आम बात है। वह एक साल में 70-80 बार बन्द हुआ है। लेकिन फेसबुक की सभी प्रमुख कम्पनियों का बन्द होना चौंकाने वाली बात है। इसके बन्द होने के पीछे के क्या मक़सद है? यह तो आने वाले दिनों में सामने आएगा। फेसबुक के उपाध्यक्ष सन्तोष जनार्दन ने मीडिया में इस असुविधा के लिए लोगों से माफ़ी माँगी और कहा कि भविष्य में ऐसी स्थिति न आये, इसके लिए व्यापक पैमाने पर काम किया जा रहा है और बुनियादी तंत्र को मज़बूत किया जा रहा है।
दिल्ली के कुछ अभियंता (इंजीनियर) के छात्रों ने बताया कि सोशल मीडिया एक बड़े कारोबार के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसकी बाग़डोर भले ही विदेशी हाथों में हो, पर इसके कारोबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारत भी बहुत पीछे नहीं है। विज्ञापन मिलने में गूगल के बाद फेसबुक का कारोबार दूसरे स्थान पर है। ऐसे में फेसबुक से जुड़े सारे तंत्र में अपनी-अपनी भागीदारी को लेकर कार्पोरेट घराने इस जुगत में हैं कि वे भी इस कारोबार का हिस्सा बनें। डीटीयू से अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) करने वाले कुमार हर्ष कहते हैं कि एक साथ कई सोशल साइट्स के बन्द होने के साथ ही फेसबुक.कॉम और व्हाट्सऐप.कॉम को बेचने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं।
साइबर विशेषज्ञों का मामना है कि कई बार तकनीकी तंत्र इस क़दर मज़बूत होता है कि चाहकर भी आसानी ने कुछ बदला नहीं जा सकता। क्योंकि इसके पीछे डाटाबेस (आँकड़ों और विवरण पर आधारित) है। सारा काम इन्हीं का है और इन्हें एकजुट करके हासिल करना बड़ी बात होती है। ऐसे में फेसबुक और व्हाट्सऐप को बेचने की तामाम सम्भावनाएँ अटकलबाज़ी हो सकती हैं; क्योंकि मामला 2,00 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं से जुड़ा हुआ है।
शेयर बाज़ार में काम करने वाले करने वाले राजकुमार कहते हैं कि फेसबुक ने ख़राबी को लेकर असली वजह नहीं बतायी है। लेकिन जानकारों का अनुमान है कि यह सब डोमेन नेम सिस्टम की समस्या हो सकती है। शेयर बाज़ार का अपना मिजाज़ है और उसमें ज़रा-सी गड़बड़ी से उथल-पुथल मच जाती है। सोशल मीडिया का तकनीकी तंत्र ख़राब होने से अमेरिका में फेसबुक के शेयर काफ़ी नीचे तक गिर गये थे, जिसका आंशिक असर भारत के शेयर बाज़ार भी पड़ा। राजकुमार कहते हैं कि जब भी कोई बड़ा कारोबार पल भर के लिए ही बाधित होता है, तो उससे लाखों-करोड़ों का नुक़सान होता है। फिर यह तो सोशल मीडिया वह नेटवर्क तंत्र है, जो पूरी दुनिया और उसके एक बड़े कारोबार क्षेत्र को आपस में जोड़कर रखे हुए है।