कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्विटर अकाउंट पर स्टेटस बदलने से मध्य प्रदेश कांग्रेस में हलचल मच गयी है। सिंधिया ने ट्विटर अकाउंट पर खुद को जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी बताया है। सिंधिया ने ट्विटर पर बेशक सफाई दे दी है कि वे एक माह पहले ट्विटर अकाउंट का स्टेटस लोगों की सलाह पर चेंज कर दिये थे; इसे लेकर जो बातें हो रही हैं, वे सभी आधारहीन अफवाहें हैं। लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि भीतर-ही-भीतर मध्य प्रदेश की राजनीति में घमासान जारी है। जहाँ भाजपा काफी समय से मध्य प्रदेश की सत्ता पाने के लिए मोल-तोल में लगी है, वहीं सिंधिया के ट्विटर के स्टेटस बदलने से मुख्यमंत्री कमलनाथ की नींद उड़ गयी है।
सिंधिया समर्थक एवं मध्य प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने भी 25 नवंबर की सुबह अपने ट्विटर अकाउंट पर अपना बायो बदल लिया; लेकिन जब यह खबर फैली कि सिंधिया समर्थक भी अपने-अपने बायो बदल रहे हैं, तो इमरती देवी ने अपने परिचय में विधायक के साथ मंत्री महिला एवं बाल विकास भी जोड़ दिया। हालाँकि, सिर्फ इमरती देवी ने ही अपना परिचय बदला; किसी अन्य विधायक या मंत्री ने नहीं।
सोशल मीडिया में भी हलचल
सोशल मीडिया में सिंधिया समर्थकों ने इसे ज्योतिरादित्य की छवि बदलने की कोशिश बता रहे हैं, जबकि कई भाजपा समर्थक इसे कांग्रेस से नाराज़गी और भाजपा से नज़दीकी के रूप में पेश कर रहे हैं। सोशल मीडिया में सिंधिया की प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ पिछली मुलाकातों के फोटो को भी काफी ट्रेंड किया गया और बताया गया कि सिंधिया समर्थक 20 से •यादा विधायक लापता हैं।
पूर्व मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक केपी सिंह ने फेसबुक पर शायराना अंदाज़ में लिखा- ‘जहाँ कदर न हो अपनी, वहाँ रहना िफज़ूल है। चाहे किसी का घर हो या चाहे किसी का दिल। केपी सिंह के इस फेसबुक पोस्ट के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
सिंधिया खेमा जता चुका है नाराज़गी
बता दें कि मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव 2018 सिंधिया और कमलनाथ के चेहरे पर लड़ा गया था। लेकिन सभी लोग यहीं कयास लगा रहे थे कि सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनेंगे। सिंधिया समर्थकों एवं खुद सिंधिया को भी यही अनुमान था कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री वे ही बनेंगे; लेकिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही सिंधिया खेमा पूरी तरह नाराज़ हो गया।
सिंधिया खेमे की मध्य प्रदेश कांग्रेस एवं राज्य सरकार से नाराज़गी और मतभेद अक्सर देखने को मिल जाती है। सिंधिया ने पिछले महीने ही किसानों की कर्ज़माफी को लेकर कमलनाथ सरकार को घेरा था और इस योजना के क्रियान्वयन पर सवाल भी खड़े किये थे।
दो माह पहले मध्य प्रदेश सरकार में सिंधिया समर्थक मंत्री- वन मंत्री उमंग सिंघार, परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और श्रममंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया ने मध्य प्रदेश के पूर्व-मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर सीधा हमला बोला और कहा कि उन्हें सरकार में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं।
दूसरी ओर अन्य कांग्रेसी नेताओं और सिंधिया के बीच मतभेद तब सामने आया, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटायी। अन्य कांग्रेसी नेताओं ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने का विरोध किया, जबकि सिंधिया ने समर्थन किया।
क्या कहते हैं मध्य प्रदेश के मंत्री?
सिंधिया समर्थक और मध्य प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया ने मीडिया को बताया कि सिंधिया पहले से खुद को जनसेवक कहते रहे हैं, स्टेटस पर भी वहीं लिखा है। नाराज़गी की बात अफवाह है। हम उनके कार्यकर्ता हैं और हम जनसेवक भी हैं। सिंधिया समर्थक और मध्य प्रदेश परिवहन मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत ने कहा कि कोई बड़ा नेता अपने आपको समाजसेवक या कार्यकर्ता बताता है, तो यह उसका बड़प्पन है और कार्यकर्ता भी उत्साहित होते हैं। वैसे भी हर पार्टी का कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो वह पहले जनसेवक ही होता है। सिंधिया समर्थक और मध्य प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि सिंधिया स्वयं सारी बात स्पष्ट कर चुके हैं, तो किसी और की प्रतिक्रिया की कोई ज़रूरत ही नहीं। दिग्विजय सिंह के बेटे और मध्य प्रदेश नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह ने कहा कि स्टेटस बदलना कोई बड़ी बात नहीं है। सिंधिया कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। कमलनाथ समर्थक और मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि यह सिंधिया जी का निजी मामला है।
भाजपा में शामिल होने का न्यौता
मध्य प्रदेश से भाजपा के सांसद और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि भाजपा के दरवा•ो हमेशा सिंधिया जी के लिए खुले हैं। पार्टी में आना चाहें, तो स्वागत है। जबकि भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि कांग्रेस में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे सिंधिया। वहीं मध्य प्रदेश भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि जनता की माँग पर सिंधिया जी ने अभी स्टेटस बदला है। यानी जनता चाहती है कि वे पुराने व लम्बे परिचय के साथ न रहे। बात सीधी और सपाट है।
नाराज़गी की वजह क्या है?
ज्ञात हो कि लोकसभा चुनाव में गुना लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद से सिंधिया पार्टी में उपेक्षाओं का सामना कर रहे हैं, जिससे पूरा सिंधिया खेमा काफी नाराज़ है। बीते जुलाई माह में राहुल गाँधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सिंधिया ने भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। अगस्त में सिंधिया की नाराज़गी और उनके समर्थक कार्यकर्ताओं की इस्तीफे की धमकी के बीच सीएम कमलनाथ खुद सोनिया गाँधी से मिलने दिल्ली भी गये थे। वहाँ से लौटने के बाद कमलनाथ ने कहा कि सब ठीक है। लेकिन ऐसा लगता है कि सब ठीक नहीं है; क्योंकि सिंधिया को कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रभारी बनाया था। लेकिन सिंधिया वहाँ भी सक्रिय नहीं दिखे। दूसरी वजह यह है कि अगले साल अप्रैल माह में मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह, प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया का कार्यकाल पूरा हो रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि राज्यसभा की दो सीटें कांग्रेस के पक्ष में आ सकती हैं और सिंधिया राज्यसभा जाना चाहते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि सिंधिया ने शिवपुरी और दतिया में कार्यक्रम के दौरान कह चुके हैं कि सरकार में उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। कई मामलों को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ को चिट्ठियाँ भी लिखीं; लेकिन किसी भी चिट्ठी का जवाब मुख्यमंत्री ने नहीं दिया। सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में भी शामिल हैं; लेकिन उनके नाम पर अभी तक आम सहमति नहीं बन सकी है।
बगावत से बढ़ेगी कमलनाथ की मुश्किल
यह तो स्पष्ट है कि पूरा सिंधिया खेमा कमलनाथ से नाराज़ चल रहा है; लेकिन सरकार के साथ होने का दावा भी कर रहा है। स्थिति अभी तक स्पष्ट कहना जल्दबाज़ी होगी। इन्हीं कारणों से मध्य प्रदेश में सरकार बनाने-गिराने को लेकर अटकलबाज़ी भी चल रही है। विधायकों के खरीद-फरोख्त की अफवाहें भी अक्सर राजनीतिक सरगर्मी को बढ़ा देती हैं। मध्य प्रदेश में सरकार को लेकर राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश में करीब 35 से 40 विधायक सिंधिया के समर्थक माने जाते हैं। विधानसभा में 230 सीटों के हिसाब से बहुमत का जादुई आँकड़ा 116 है। कांग्रेस के पास अभी 121 विधायकों का समर्थन है; लेकिन सिंधिया की कांग्रेस से यह नाराज़गी जारी रहती है, तो निश्चित ही आगे चलकर कमलनाथ सरकार के लिए काफी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
(लेखक मध्य प्रदेश समेत देश के तमाम आदिवासी इलाकों में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं)