1982 के एशियाई खेलों में जिस रामगढ़ बांध ने नौकायन प्रतियोगिता की मेजबानी की आज उसमें कागज की नाव तैराने लायक पानी भी नहीं है. गलत नीतियों, अतिक्रमण और भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंसा यह बांध मरने के कगार पर है. अवधेश आकोदिया की रिपोर्ट.
वर्षा की कमी के कारण सूखे से जूझते रहने वाले राजस्थान में इस बार मानसून कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहा. ताल-तलैया लबालब हो गए, नदी-नालों में उफान आ गया और बहुतेरे बांधों के गेट खोलकर पानी की निकासी करनी पड़ी. राजधानी जयपुर में तो बाढ़ के हालात बन गए, लेकिन यहां का रामगढ़ बांध पानी की बाट ही जोहता रह गया. यह वही रामगढ़ बांध है, जिसने सौ साल तक गुलाबी नगरी के बाशिंदों के गले तर किए और 1982 के एशियाई खेलों में नौकायन प्रतियोगिता की मेजबानी की. आज इस बांध में इतना पानी भी नहीं है कि कागज की नाव तैर सके.
रामगढ़ बांध का निर्माण जयपुर के तत्कालीन शासक सवाई माधो सिंह ने 1903 में शहर को पेयजल आपूर्ति के लिए करवाया था. संस्कृत विद्वान देवर्षि कलानाथ शास्त्री बताते हैं, ‘उस जमाने में करीब छह लाख रुपये की लागत से रामगढ़ बांध बनकर तैयार हुआ था. इसमें तीन नदियों- बाणगंगा, ताला व माधोबेणी का पानी आता था. चाहे वर्षा कम हो या ज्यादा, यह हमेशा जयपुर के लिए पेयजल का मुख्य स्रोत रहा. शहर की जनसंख्या बढ़ती गई, लेकिन पानी की कमी कभी नहीं आई.’ इस बांध से पहली बार पेयजल की आपूर्ति 2001 में बंद हुई थी. 2002 में भी बांध में पानी नहीं आया. 2003-04 में कुछ आपूर्ति हुई, लेकिन 2005 में रामगढ़ की पेयजल सप्लाई से शहर का नाता पूरी तरह टूट गया.
दरअसल साल 2000 के पहले कई सालों से चल रहे अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और गलत नीतियों के चक्रव्यूह ने इस बांध की ऐसी हालत कर दी थी कि उसके अगले साल ही बांध से पानी मिलना बंद हो गया. रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया में सिंचाई विभाग, वन विभाग व पंचायत राज विभाग ने 415 एनिकट बना रखे हैं. इनमें से ज्यादातर पक्के हैं, जिन पर पानी के बहाव का कोई असर नहीं पड़ता. विशेषज्ञों का मानना है कि पानी के बहाव क्षेत्र में सबसे बड़ा रोड़ा ये एनिकट ही हैं. सरकार भी यह स्वीकार करती है, लेकिन इन्हें हटाने या इनकी ऊंचाई कम करने की जहमत नहीं उठाती.
कैचमेंट एरिया में बने एनिकटों से बांध में पानी की आवक जब कम हुई तो अतिक्रमणों की बाढ़ आ गई. जमवारामगढ़ के प्रधान रघुवीर चौधरी बताते हैं, ‘जिला प्रशासन व जेडीए की लापरवाही के कारण बांध के कैचमेंट एरिया में हैरिटेज, फॉरेस्ट व विलेज होटल बन गए. कॉलेज, स्कूल और यूनिवर्सिटी खड़ी हो गईं. अधिकांश नाले फार्म हाउस बनाने के लिए पाट दिए गए. लोगों के पास खातेदारी अधिकार होने का बहाना बनाकर प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा. अब रेवन्यू बोर्ड में रेफरेंस का मामला सुलझने के बाद ही कार्यवाई की दलील दी जा रही है.’
राजस्थान हाई कोर्ट के सख्त रुख के बाद भी सरकारी अमला अपनी चाल चुस्त करने को तैयार नहीं है. गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने इस मामले में पिछले साल स्वप्रेरित संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह रामगढ़ बांध को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में लेकर आए. यही नहीं, कोर्ट ने इस पर अमल के लिए एक मॉनीटरिंग कमेटी भी बनाई थी.
राजस्थान हाई कोर्ट ने दो साल में मुख्य सचिव, संबंधित छह विभागों के प्रमुख सचिवों, कलेक्टर व जयपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को अलग-अलग समय पर तलब कर रामगढ़ बांध से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्रवाई न के बराबर हुई. हाईकोर्ट के दखल के बाद जिला प्रशासन ने चार तहसीलों के 70 गांवों में 680 बीघा जमीन पर अतिक्रमण मान लिया. अतिक्रमण हटाने के लिए प्रशासन ने कार्रवाई भी की, लेकिन दिखावटी. कैचमेंट एरिया में खड़ी फसल रौंद दी गई और प्रभावशाली लोगों के अतिक्रमण रेवन्यू बोर्ड के कानून की उलझन का बहाना बना कर जस के तस छोड़ दिए. हाई कोर्ट मॉनीटरिंग कमेटी के सदस्य अशोक भार्गव बताते हैं, ‘अतिक्रमण हटाने के नाम पर प्रशासन नाममात्र की कार्रवाई करता है. बड़े अतिक्रमणों को हटाने के बजाय प्रशासन इन्हें बचाने के लिए कोर्ट में पैंतरे बदलता रहता है. उन्हें पर्याप्त समय दिया जा रहा है ताकि वे याचिकाएं दायर कर सकें. यदि अधिकारियों का यही रवैया रहा तो रामगढ़ बांध का बच पाना मुश्किल है.’
बांध सूखने से पारिस्थितिकी को तो नुकसान हुआ ही है, आर्थिक हानि भी कम नहीं हुई है. वर्तमान में जयपुर की पेयजल आपूर्ति का मुख्य स्रोत टोंक जिले का बीसलपुर बांध है. शहर तक पानी पहुंचाने के लिए इस परियोजना पर अब तक लगभग 1500 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन अभी तक सभी जगह पानी नहीं पहुंचा है. पूरी तरह सूखने के बाद भी प्यास तो रामगढ़ बांध ही बुझा रहा है. अब इसके पैंदे और आसपास में बनाई गई ट्यूबवेलें काम आ रही हैं. जलप्रदाय विभाग की छह दर्जन से ज्यादा ट्यूबवेल चारदीवारी में बसे जयुपर की प्यास तो बुझा रही हैं, लेकिन क्षेत्र के किसान इसका खमियाजा भुगत रहे हैं. बांध से होने वाली सिंचाई से तो वे वंचित हो ही चुके हैं, ट्यूबवेलों से भूमिगत जल का स्तर भी दिनोंदिन गिरता ही जा रहा है.