आज आप जहाँ हैं, बड़ी बात है। आपने डांसर बनने का सपना कब देखा?
(हँसने के बाद अचानक गम्भीर होते हुए…) आज मैं जिस स्तर पर पहुँचा हूँ, यहाँ तक पहुँचने का मैंने सपना तो कभी नहीं देखा था; लेकिन मेरी रुचि डांस में बहुत अधिक थी और एक ही सोच थी कि बस डांस करते जाना है। मेरे तन से मन तक डांस ही डांस भरा हुआ था। अगर दूसरे तरीके से कहूँ तो डांस ही मेरा रास्ता था और वही मंज़िल। कोई पोजीशन मेरे लिए कभी मायने नहीं रखती थी। मैं महाराष्ट्र के ही एक परिवार से ताल्लुक रखता हूँ; लेकिन गुजरात में पला-बढ़ा हूँ। क्योंकि कई साल पहले मेरे दादा देव जी भाई वडोदरा चले गये थे। वहाँ वे एक फैक्ट्री में काम करते थे। पिता दीपक जेतलपुर में एक शर्ट पीस की दुकान चलाते थे। समय की मार पड़ी और फैक्ट्री बन्द हो गयी। पिता की दुकान भी जहाँ थी, वह जगह वैध नहीं थी; जिसके चलते दुकान भी टूट गयी। जेतलपुर स्थित एक चॉल में अब भी हमारा घर है। यह सब होने के बाद हालात ऐसे बदले कि हम देखते-ही-देखते सब तहस-नहस सा हो गया। उसके बाद दादा जी घर पर ही रहने लगे और मेरे पिता चाय की दुकान लगाने लगे। चाचा और बाकी परिजन भी खस्ताहाल थे। घर में तमाम खर्चों के अलावा मेरी स्कूल की पढ़ाई का बोझ भी था। इधर मुझे डांस का शौक तो था ही, जो दबने लगा था। लेकिन आगे जाने की इच्छा भी प्रबल थी। जब मैं छठी कक्षा में था, तब एक बार स्कूल के प्रिंसिपल ने एसेंबली में सब बच्चों से पूछा कि एक स्टेट लेवल डांस चैंपियनशिप है; तुम बच्चों में से किसी को रुचि हो तो हिस्सा ले सकते हो। मैंने उन्हें अपना नाम दे दिया। बस यहीं से मेरे अंदर की कला को फिर से नया जोश और बल मिला।
उन दिनों आपने डांस कहीं सीखा भी?
नहीं, मैंने डांस की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी। ऐसे ही शौक था और मैं कहीं भी ठुमके लगाने लगता था। हाँ, गणपति यात्रा और अन्य खास अवसरों पर मैं ज़रूर डांस करता था। मैं इस मामले में संकोची नहीं था। घर में या रिश्तेदारी में कोई फरमाइश कर देता तो वहीं शौक से डांस के कुछेक स्टेप्स करके दिखा देता था। जब गुजरात में मैंने एक कंप्टीशन में हिस्सा लिया और पूरे राज्य में प्रथम स्थान पर रहा। पिता को इस बात का एहसास हो गया कि मैं कुछ कर सकता हूँ। तब उन्होंने आर्थिक स्थिति खराब होते हुए भी मुझे डांस क्लास में दािखला दिलाने का फैसला लिया। मुझे खुशी है कि मेरे पिता ने मुझ पर भरोसा किया। मेरे डांस गुरु कृष्णा को भी मुझ पर बहुत भरोसा था। वे मेरी इच्छा, लगन, कड़ी मेहनत और ईमानदारी से प्रभावित भी थे। मेरे डांस गुरु ने मुझ पर इतना अधिक विश्वास किया कि उन्होंने पहले कुछ दिन डांस की तालीम दी, फिर पूरी क्लास मेरे भरोसे छोड़ दी। यहाँ तक उन्होंने अपना बैंक अकाउंट सँभालने तक की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी। जब कोई किसी छोटे बच्चे पर इतना भरोसा करता है, तो बच्चा भी उस भरोसे को जीतने के लिए बेहतर करने का प्रयास करता है। फिर एक दिन मेरे डांस गुरु ने कहा कि अब मैं तुमसे कोचिंग की फीस नहीं लूँगा। उन्होंने कॉस्ट्यूम के पैसे लेने बन्द कर दिये। फिर मुझे खुद की डांस क्लास शुरू करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
आप कितने भाई-बहन हैं? आपको कामयाब होने में कितने पापड़ बेलने पड़े?
हम तीन भाई हैं। मैं धर्मेश और दो भाई- कल्पेश तथा विक्रम। शर्ट पीस की दुकान बंद होने के बाद पिता ने चाय की दुकान तो खोल ली, मगर वह ठीक से घर चलाने लायक कमाई का ज़रिया नहीं बन सकी। ऐसे में माँ निर्मला जी ने एक दिन मुझसे कहा कि बेटा तेरी पढ़ाई बहुत अच्छी तरह चल नहीं पा रही है। तू मेरा कहना मान कोई नौकरी कर ले। पढ़ाई और डांस न भी ठीक है; लेकिन कम-से-कम तेरी नौकरी से घर चलाने में कुछ मदद तो मिलेगी। माँ की पीड़ा मैं समझता था और मैंने एक प्राइवेट कम्पनी में चपरासी की नौकरी कर ली। यह तब की बात है, जब मैं 10वीं का छात्र था। बोर्ड की परीक्षा निकट थी। ऐसे में चपरासी की नौकरी, डांस प्रैक्टिस और पढ़ाई, तीनों में सामंजस्य बैठाने में मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी। ऑफिस में चाय पिलाने, टेबल साफ करने, पानी देने की नौकरी से जल्दी छुट्टी नहीं मिलती थी। ऐसे में अक्सर डांस प्रैक्टिस छूट जाती। जब अपनी तकलीफ माँ को बतायी, तो उन्होंने कहा कि ऐसा काम करो, जिसमें से कुछ समय डांस के लिए निकाल सको। मैंने मीसल पाव की लारी लगा ली। दिन-भर मीसल और पाव बेचता, फिर शाम को डांस क्लास में चला जाता। लारी लगाने से ये फायदा तो हुआ कि मैं अपना बॉस हो गया; लेकिन कमाई और कम हो गयी। चपरासी की नौकरी में मुझे 800 रुपये महीने मिलते थे, जबकि मीसल-पाव की बिक्री से खास फायदा नहीं हुआ, क्योंकि मैं जहाँ लारी लगाता था, वहाँ कम ही खरीदार आते थे और बाकी जगह दुकान लगाने की जगह नहीं थी।
फिर िफल्मी सफर कैसे शुरू हुआ?
बस काम करते-करते डांस का जुनून आगे बढ़ाता रहा। कुछेक डांस कंप्टीशन से मुझे थोड़ी-बहुत प्रसिद्धि मिली और धीरे-धीरे मुझे गुजराती और भोजपुरी िफल्मों में बैक डांसर के रूप में काम करने का मौका मिलने लगा। एक बार मेरे डांस टीचर ने बताया कि साईं बाबा पर आधारित एक सीरियल के लिए कोरियोग्राफर की ज़रूरत है। मैं वहाँ गया और मेरा चयन भी हो गया। मेहनताना भी पाँच हज़ार रुपये महीने मिलने लगा, जो मेरे लिए काफी अच्छा था। इसके बाद मैंने ‘बूगी वूगी’ में हिस्सा लिया और विजेता बना। यह पहली बार था कि मुझे पाँच लाख रुपये का इनाम मिला। इन दिनों मेरे परिवार वालों को पैसे की सख्त ज़रूरत थी; क्योंकि पिता के सिर पर बहुत सारा कर्ज़ा हो गया था। उन्होंने मेरे सपनों को अपनेसपनों से ऊपर रखा और मुझे हमेशा प्रोत्साहन के साथ-साथ हर सम्भव मदद दी। पिता जी ‘सपने सिर्फ सपने नहीं होते’ की सोच पर खरे उतरते हैं। मजबूरी में उन्होंने जिन साहूकारों से कर्ज़ लिया था, वह समय पर न लौटा पाने के चलते उन्हें साहूकारों के पैर पकडऩे पड़ते, हाथ जोडऩे पड़ते; लेकिन न तो मुझे और अन्य बच्चों को उन्होंने कभी कोई िफक्र करने दी। दरअसल, डांस जैसी कला में केवल गुणवान होने से बात नहीं बनती, बल्कि अच्छे मेकअप, चमकदार पोशाकों और बाकी एक्सेसरीज की बहुत ज़रूरत पड़ती है और इन सबमें काफी पैसे खर्च होते हैं। यही कारण है कि पिता को काफी पैसा ब्याज पर लेना पड़ा। ‘बूगी वूगी’ जीतकर मैं खुश तो था, मगर पिता जी के कन्धों पर जिस कर्ज़ का बोझ था, उसे चुकाना अब मेरी ज़िम्मेदारी थी।
उस समय आपके अन्दर जीतने का जुनून रहता था?
मैंने जीत या हार के बारे में कभी भी नहीं सोचा। एक जुनून था कि बेहतर से बेहतर करते जाना है। बस डांस करते जाना ही मेरा शुरू से ही सपना रहा और मैं डांस करता गया। मेरे लिए रास्ता भी डांस था, मंज़िल भी डांस थी। मुझे लोगों ने नकारात्मक टिप्पणियों से भी घेरा। कई बार कुछ रिश्तेदारों ने भी कहा कि तुम्हारा लुक और रंग डांस के लायक नहीं है। तुम साँवले हो। तुम मुम्बई नहीं जा पाओगे। तुम्हारे लिए कंप्टीशन जीतना बिलकुल ही नामुमकिन है। पर मैंने उनकी इन टिप्पणियों पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। जब भी नकारात्मक सोच या टिप्पणियों ने मुझे घेरा, मैंने खुद को डांस में झोंक दिया। हालाँकि एक समय ऐसा भी हुआ कि अच्छे कपड़े और नॉमिनेशन फीस न होने के कारण मैं कंप्टीशन में भाग नहीं ले सका; लेकिन इन रुकावटों से मैं कभी निराश नहीं हुआ। डिमोलाइज करने वालों की भी मैंने कभी गलती नहीं मानी। सभी लोग अपनी सोच के हिसाब से ही टिप्पणियाँ कर रहे थे। मुझे अपने जुनून और मेहनत पर यकीन था। डिमोलाइड करने वालों को क्या पता था कि मैं अपने काम के प्रति कितना ज़िम्मेदार हूँ और मेरे अन्दर कितनी ज़िद है। आज मुझे जितनी उपलब्धियाँ मिली हैं, जितना सम्मान मिला है, यह सब डांस के रास्ते पर चलते रहने के चलते ही सम्भव हो सका है। एक ऐसा भी समय था, जब केवल डांस सीखने का सपना था। उसके बाद बैक डांसर बनने के सपने ने जन्म लिया; इच्छा फकत यह रहती थी कि हीरो के पीछे डांस करने का मौका मिले। आज सब कुछ है, खुद एबीसीडी और बैंजो िफल्मों में अभिनय भी कर चुका हूँ; कोरियोग्राफर के रूप में भी दुनिया-भर में पहचान बनी है। िफलहाल का सपना यह है कि दूसरे कलाकारों के सपनों को पूरा करने में भी अपना सपना मानकर कुछ मदद करूँ। डांस प्लस-4 के कलाकारों को भी यही सीख देता हूँ कि जो कुछ भी करना चाहते हो, उसमें डूब जाओ, एक जुनून पाल लो और ज़िद तथा ज़िन्दादिली के साथ उसे कायम रखते हुए उसमें जुट जाओ।