कब खुलेंगी पेगासस जासूसी मामले की परतें?

पेगासस का मसला अभी भी देश की राजनीति में तूफ़ान मचाये हुए है; भले मोदी सरकार मामले से मुँह मोडऩे की लाख कोशिश कर रही हो। इजरायल और फ्रांस में इस मामले में जाँच शुरू हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस और विपक्ष द्वारा इस मसले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जाँच की माँग से केंद्र सरकार इन्कार कर रही है। राफेल को लेकर पहले ही देश की जनता अनेक सवाल कर रही है और अब मोदी सरकार के पेगासस मामले पर चुप्पी साधने से यह सवाल और गहरा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस मसले पर सरकार को नोटिस जारी कर जबाव माँगने से उम्मीद बँधी है कि इस सवाल का शायद जवाब मिल जाए कि क्या केंद्र सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये अपने विरोधियों और अन्य प्रमुख लोगों की जासूसी करवायी? तमाम मसले पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये जासूसी के मामले में भारत और इजरायल-फ्रांस में क्या अन्तर है? इन दोनों देशों में इस मामले की जाँच हो रही है, जबकि भारत की सरकार ने इसे कोई मुद्दा मानने से ही इन्कार कर दिया है। संसद में विपक्ष ने लाख सवाल उठाये; लेकिन मोदी सरकार टस-से-मस नहीं हुई और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि संसद के मानसून सत्र से एक दिन पहले मीडिया में पेगासस से जुड़ी ख़बरों का आना संयोग नहीं हो सकता है। यह भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।

आख़िर क्यों मोदी सरकार पेगासस जैसे गम्भीर आरोपों वाले मसले पर चुप्पी साधे रखना चाहती है? सरकार से कांग्रेस सहित विपक्ष पूछ रहा है कि उसने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी या नहीं। सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं? लेकिन सरकार के जबाव गोलमोल हैं। अब 16 अगस्त को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब दाख़िल करने को कहा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर रिपोर्ट सही है, तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गम्भीर हैं। सन् 2019 में जासूसी की ख़बरें आयी थीं। मुझे नहीं पता कि अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कोई प्रयास किया गया या नहीं। मैं हरेक मामले के तथ्यों की बात नहीं कर रहा, कुछ लोगों ने दावा किया है कि फोन इंटरसेप्ट (अवरोधन) किया गया है। ऐसी शिकायतों के लिए टेलीग्राफ अधिनियम है। सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला अभी विचाराधीन है।

निश्चित रूप से रफाल लड़ाकू विमान ख़रीद विवाद के बाद पेगासस का मामला मोदी सरकार की बड़ी मुसीबत बनता दिख रहा है। इन दोनों मामलों की विदेश में जाँच होने से भारत में सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल बन रहा है, जिसका अंतत: मोदी सरकार को ही राजनीतिक नुक़सान होगा। लेकिन सरकार दोनों मसलों से पल्ला झाडऩे की कोशिश में दिख रही है, जिससे जनता में अविश्वास और गहरा रहा है और सवाल उभर रहे हैं कि सरकार आख़िर क्यों इन गम्भीर सवालों के जबाव सामने नहीं आने देना चाहती? क्या उसे सच सामने आने से किसी तरह की राजनीतिक चिन्ता है?

बड़ा सवाल यह है कि इजरायल और फ्रांस पेगासस जासूसी काण्ड की जाँच करवा सकते हैं, तो भारत सरकार क्यों नहीं? कौन है, जो सच या सही तथ्य सामने आने देना नहीं चाहता? और क्यों? ख़ुद के पारदर्शी सरकार होने का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार संसद से लेकर बाहर तक क्यों पेगासस जासूसी मामले पर पर्दे डाल देना चाहती है; क्योंकि उसके क़दमों से संदेश तो यही जा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस

पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाख़िल करने को कहा। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा कि उसने जो हलफ़नामा दायर किया है, वह पर्याप्त है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और मामले में हलफ़नामे में तथ्यों का ख़ुलासा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश की बेंच ने कहा कि हम सोच रहे थे कि केंद्र सरकार का जवाब इस मामले में विस्तार से आएगा; लेकिन जवाब लिमिटेड था। हम इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। 10 दिन के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी। हम इस दौरान देखेंगे और सोचेंगे कि क्या किया जा सकता है? क्या कोर्स ऑफ एक्शन हो या तय करेंगें? क्या एक्सपर्ट समिति की ज़रूरत है? या किसी और समिति की? इस बारे में भी हम देखेंगे कि क्या करना है? हम केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करके कहा कि सरकार को उन आरोपों का जवाब देना चाहिए, जिनमें कहा गया है कि इजरायली स्पाईवेयर का इस्तेमाल अलग-अलग फोन पर किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही जाँच के लिए समिति बनाने पर फ़ैसला करेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली पीठ के सामने हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े तथ्यों का ख़ुलासा करने को नहीं कह रहे हैं, बल्कि हम यह जानना चाहते हैं कि पेगासस का इस्तेमाल सरकार ने सर्विलांस (जासूसी) के लिए किया है या नहीं? केंद्र सरकार ने जो हलफ़नामा दायर किया है, उसमें वह जवाब देने से बच रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह मामले में विस्तृत हलफ़नामा दायर करना चाहती है? केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च अदालत में कहा कि केंद्र सरकार की ओर से जो हलफ़नामा पेश किया गया है, वह पर्याप्त है। इस मामले में किसी अतिरिक्त हलफ़नामे की ज़रूरत नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर सरकार हलफ़नामे में इस बात का ख़ुलासा कर देगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और कौन-से का नहीं? तो आतंकी गतिविधियों में शामिल लोग उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार बताए कि किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं होता है और किसका होता है? मान लिया जाए कि अगर यह बात झूठे तौर पर फैला दी जाए कि सैन्य उपकरण का इस्तेमाल अवैध तरीक़े से हो रहा है और इस बारे में याचिका दाख़िल कर दी जाए; तो क्या सैन्य उपकरण के इस्तेमाल की जानकारी के बारे में जवाब माँगा जा सकता है?

मेहता ने कहा कि अगर कोई आतंकी संगठन का स्लीपर सेल किसी डिवाइस का इस्तेमाल करता है और सरकार कहे कि वह किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए करती है, तो वह आतंकी संगठन अपने उपकरण को बदल देगा या उसके मॉड्यूल को बदल देगा। अगर सरकार ये बता दे कि पेगासस का इस्तेमाल होता है या नहीं, तो इससे आतंकियों की मदद हो जाएगी; क्योंकि वह इसका तोड़ निकाल लेंगें। इस पर सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी को उजागर नहीं करने को कह रहे हैं। हम केवल ये जानना चाहते हैं कि क्या सरकार ने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी थी? क्या सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम न्यायालय से कुछ छिपाना नहीं चाह रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जिस प्रस्तावित एक्सपर्ट समिति के गठन की बात कही गयी है, उस समिति के सामने सरकार पूरा ब्यौरा पेश कर देगी; लेकिन जनचर्चा के लिए नहीं दे सकती। हमारे पास छिपाने को कुछ भी नहीं है; लेकिन ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम बतौर न्यायालय ये कभी नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता हो। लेकिन यहाँ आरोप है कि कुछ लोगों के मोबाइल को हैक किया गया और सर्विलांस किया गया। ये भी कंपिटेंट अथॉरिटी की इजाज़त से हो सकता है। इसमें क्या परेशानी है कि कंपिटेंट अथॉरिटी हमारे सामने इस बारे में हलफ़नामा पेश करे। कंपिटेंट अथॉरिटी नियम के तहत फ़ैसलाले कि किस हद तक जानकारी जनता में जा सकती है? सर्वोच्च न्यायालय ने साफ़ किया कि हम ऐसा नहीं चाहते कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी उजागर करे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस पेगासस के कथित इस्तेमाल की न्यायालय की निगरानी में जाँच की माँग करने वाली जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद जारी किया है। न्यायालय ने केंद्र से 10 दिन के अन्दर जवाब देने का आदेश देते हुए कहा कि मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इस मामले में न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि हम यह नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया जाए; लेकिन लोगों का दावा है कि उनके फोन पर हमला किया गया है। उनके दावों के अनुसार, एक सक्षम प्राधिकारी ही इस पर प्रतिक्रिया दे सकता है। याद रहे द वायर सहित एक मीडिया संस्थान ने बड़ा ख़ुलासा करते हुए बताया था कि भारत के क़रीब 300 से ज़्यादा फोन इजरायली स्पाईवेयर फर्म एनएसओ के लीक डाटाबेस के सम्भावित लक्ष्यों की सूची में शुमार थे।

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि अगर मीडिया में आयी ख़बर सही है, तो आरोप सच में गम्भीर है। सर्वोच्च न्यायालय में पेगासस जासूसी मामले को लेकर विभिन्न याचिकाएँ दायर की गयी हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की न्यायालय कि निगरानी में एसआईटी जाँच की माँग की गयी है। इनमें राजनेता, एक्टिविस्ट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन. राम और शशि कुमार की दी गयी अर्जियाँ भी शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ इसकी सुनवाई कर रही है।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने कहा कि सम्पूर्ण और व्यक्तिगत गोपनीयता के रूप में नागरिकों की गोपनीयता पर विचार किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता शिक्षाविद् जगदीप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि वर्तमान मामले की भयावहता बहुत बड़ी है और कृपया मामले की स्वतंत्र जाँच पर विचार करें। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि मैं और हम सभी चाहते हैं कि आप केंद्र सरकार को नोटिस जारी करें। सर्वोच्च न्यायालय में कपिल सिब्बल ने दलील दी कि पत्रकार, सार्वजनिक हस्तियाँ, संवैधानिक प्राधिकरण, अदालत के अधिकारी, शिक्षाविद् सभी स्पाईवेयर के ज़रिये निशाने पर हैं और सरकार को जवाब देना होगा कि इसे किसने ख़रीदा? हार्डवेयर कहाँ रखा गया था? सरकार ने एफआईआर क्यों नहीं दर्ज करायी? याचिकाकर्ता एन. राम और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह स्पाईवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है; निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। उन्होंने कहा कि पेगासस एक दुष्ट अथवा कपटी तकनीक है, जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। यह हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला है।

इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 10 अगस्त की सुनावी के दौरान पेगासस जासूसी मामले में तीखी टिप्पणी की थी। न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि इस मामले पर बहस सिर्फ़ न्यायालय में होनी चाहिए; सोशल मीडिया पर नहीं। पेगासस जासूसी मामले में आरोपों की एसआईटी से जाँच कराने की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि हम आपका सम्मान करते हैं। लेकिन इस मामले पर जो भी बहस हो, वो न्यायालय में हो, सोशल मीडिया पर समानांतर बहस न हो। अगर याचिकाकर्ता सोशल मीडिया पर बहस करना चाहते हैं, तो ये उन पर निर्भर करता है कि वे क्या चाहते हैं? लेकिन अगर वे न्यायालय में आये हैं, तो उन्हें न्यायालय में बहस करनी चाहिए और न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए।

याद रहे केंद्र ने हलफ़नामा दायर कर सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों को लेकर स्वतंत्र जाँच की माँग करने वाली याचिकाएँ अटकलों, अनुमानों और मीडिया में आयी अपुष्ट ख़बरोंपर आधारित हैं। हलफ़नामे में सरकार ने कहा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही कथित पेगासस जासूसी मुद्दे पर संसद में उसका रूख़ स्पष्ट कर चुके हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि उपर्युक्त याचिका और सम्बन्धित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों और अन्य अपुष्ट मीडिया ख़बरोंऔर अपूर्ण या अप्रामाणिक सामग्री पर आधारित हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि कुछ निहित स्वार्थों के दिये गये किसी भी ग़लत विमर्श को दूर करने और उठाये गये मुद्दों की जाँच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा।

इजरायल और फ्रांस में जाँच

यह मामला तब सामने आया था, जब 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों के लिए काम कर रहे 80 पत्रकारों के एक समूह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जाँच के बाद अपनी ख़बर में इस जासूसी मामले का ख़ुलासा किया था। इस मसले पर फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जो जाँच की उसके आधार पर दावा किया गया कि इजरायली फर्म एनएसओ रुप ने दुनिया की कई सरकारों को अपना पेगासस स्पाईवेयर बेचा। यह स्पाईवेयर अपराधियों और आतंकवादियों से लेकर राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक तमाम हस्तियों की जासूसी के लिए इस्तेमाल करता था। चूँकि जासूसी होने वाले लोगों की सूची में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का भी नाम था। कहा जाता है कि उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट को फोन किया और इस मामले पर स्पष्टीकरण चाहा। इसके बाद फ्रांस का दौरा कर रहे इजरायली रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज ने फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली को बताया कि इजरायल अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार सख़्त लाइसेंस नियमों के तहत ही काम कर रहा है और इसे केवल आतंक और अपराध से लडऩे के लिए सरकारों को बिक्री के लिए दिया जाता है।

बेनी गैंट्ज के मुताबिक, चूँकि फ्रांस कई आतंकवादी हमलों का गवाह रहा है, वह आतंक के ख़िलाफ़ जंग में ऐसे निगरानी उपकरणों को लेकर पूरी तरह वाक़िफ़ था। कई अन्य सरकारों और दुनिया भर के मीडिया ने नेफ्टाली बेनेट की इजरायली सरकार से इजरायल राय और एनएसओ रूप के बीच सम्बन्धों की जानकारी ज़ाहिर करने का आह्वान किया। अमेरिकी प्रशासन ने भले ख़ुद इस मसले पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा; लेकिन देश के चार प्रभावशाली सीनेटर ने एनएसओ समूह को निर्यात ब्लैकलिस्ट पर रखने पर विचार करने का बाइडन प्रशासन का आह्वान किया। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद 28 जुलाई को इजरायल के रक्षा मंत्रालय के लोगों ने हर्जलिया में एनएसओ समूह के कार्यालय पर छापा मारा और उसका निरीक्षण किया। एनएसओ ने इसे छापा मानने से इन्कार किया और कहा कि अधिकारियों की तरफ़ से यह एक दौरा मात्र था। हालाँकि इसी दौरान एक ख़बर यह भी सामने आयी कि एनएसओ रूप ने स्पाईवेयर के सम्भावित दुरुपयोग की जाँच के लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय सरकारी ग्राहकों के खातों को निलंबित कर दिया। एनएसओ जाँच रिपोर्ट में दिखायी देने वाले प्रत्येक लक्ष्य और खाते की जाँच कर रहा है और यह भी जाँच कर रहा है कि निगरानी सॉफ्टवेयर का उनका उपयोग उनके अनुबन्ध की शर्तों के विपरीत है या नहीं। अभी यह साफ़ नहीं है कि इजरायल के इस मामले में जाँच के क्या नतीजे सामने आये हैं? यहाँ एक बड़ा पेंच यह भी है कि पेगासस को इजरायली कम्पनी एनएसओ रूप बनाती है और कम्पनी का दावा है कि वह इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ़ सरकारों को ही बेचती है। उधर फ्रांस सरकार पहले ही पेगासस से कथित जासूसी की जाँच के आदेश दे चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के ख़ुलासे के मुताबिक, पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया गया और उनके फोन टैप किये गये। जानकारी के मुताबिक, मोरक्को की एजेंसी ने पेगासस के ज़रिये क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया था, जिनमें पत्रकार शामिल हैं। फ्रांस में इस मसले पर हो रही जाँच को लेकर भी अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आयी है।

 

कांग्रेस समेत विपक्ष का 20 से प्रदर्शन

कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दल पेगासस जासूसी मामले पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ 20 से 30 सितंबर के बीच राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ विपक्षी दलों की बैठक में यह फ़ैसलाहुआ। बैठक के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने एक साझे बयान में कहा कि सरकार पेगासस मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जाँच कराये। विपक्षी दलों ने कहा कि हम केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के उस रवैये की निंदा करते हैं कि जिस तरह उसने मानसून सत्र में व्यवधान डाला, पेगासस सैन्य स्पाईवेयर के ग़ैर-क़ानूनी उपयोग पर चर्चा कराने या जवाब देने से इन्कार किया। सरकार की ओर से इन मुद्दों और देश और जनता को प्रभावित करने वाले कई अन्य मुद्दों की जानबूझकर उपेक्षा की गयी। पेगासस जासूसी मामले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने इसे बहुत ख़तरनाक और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बताया।

सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले पर नज़र

पेगासस का मामला भारतीय लोकतंत्र में एक ऐसे पैबंद की तरह है, जो हमें शर्मशार करता है। पेगासस के ज़रिये जासूसी न केवल लोगों के निजता के अधिकार, बल्कि उनके जीवन के अधिकार से भी जुड़ा हुआ मामला है। सबकी नज़र अब सर्वोच्च न्यायालय पर रहेगी। न्यायालय में पेगासस पर सरकार की दलीलें कमोवेश वैसी ही हैं, जैसी संसद में राहुल गाँधी के राफेल लड़ाकू विमानों की क़ीमत पूछने पर रही थीं। सरकार राष्ट्र की सुरक्षा के ख़तरों का बहाना करती है। राफेल पर मोदी सरकार ने कहा था कि जैसे ही हम इन विमानों की क़ीमत बता देंगे, चीन-पाकिस्तान जैसे दुश्मन राष्ट्र को इनका सारा कॉफिगरेशन (विन्यास) पता चल जाएगा और वे इनसे मुक़ाबले के लिए तैयारी करना शुरू कर देंगे। अब न्यायालय में सरकार ने कहा कि जैसे ही सरकार यह बताएगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और किसका नहीं? आतंकी उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। यहाँ यह समझने की बात है कि यह मामला टेलीफोन टैपिंग का नहीं है। पेगासस सिस्टम फोन टैप नहीं करता, हैक ही कर लेता है। अर्थात् फोन के ज़रिये हैकर हमारे ईमेल, व्हाट्स ऐप, एसएमएस, मैसेंजर और बाक़ी ऐप्स स्टोरेज में घुस जाता है। वह वहाँ के तमाम चैट और किसी भी तरह की अहम सामग्री मेल बॉक्स और ऐप्स के स्टोरेज में प्लांट कर सकता है। लाईव फोटो तक देख सकता है। यहाँ यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि पेगासस सॉफ्टवेयर बेचने वाली कम्पनी एनएसओ रूप साफ़ करता रहा है कि वह सरकारों के अलावा किसी और को (मतलब निजी संस्था या संगठन को नहीं) बेचता। ऐसे में केंद्र सरकार यदि यह कहती है कि उसने मीडिया की रिपोट्र्स में सामने आयी सूची वाले भारतीयों के ख़िलाफ़ पेगासस का इस्तेमाल नहीं किया, फिर तो यह और गम्भीर बात हो जाती है कि ऐसा और किसने किया? क्या किसी विदेशी सरकार ने या किसी आतंकी या अन्य संगठन ने?