झारखण्ड में निगम, बोर्ड, आयोग, परिषद् समेत कई ऐसी सरकारी संस्थाएँ हैं, जिनमें वर्षों से कहीं अध्यक्ष, तो कहीं सदस्य के पद ख़ाली पड़े हुए हैं। इसकी वजह से ये सभी संवैधानिक और सरकारी संस्थाएँ निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। इनकी निष्क्रियता के कारण जनहित में कोई काम नहीं हो रहा है। झारखण्ड की वर्तमान महा गठबन्धन की सरकार आपसी खींचतान के कारण इन संस्थाओं में नियुक्ति नहीं कर पा रही है। प्रदेश की संस्थाओं में इन दिनों क्या स्थिति है बता रहे हैं प्रशांत झा :-
देश के हर राज्य में सरकार के विभिन्न विभागों के अधीन बोर्ड, निगम और संवैधानिक आयोग होते हैं। इनके गठन के पीछे का उद्देश्य होता है कि ये सरकारी विभागों से इतर स्वायत्त तरीक़े से अपने संस्थान से सम्बन्धित जनहित में काम करें। साथ ही सरकार के कामकाज और योजनाओं की निगरानी करते हैं। कई संस्थाएँ विभागों को सहयोग करती हैं और कई संस्थाएँ उन पर नज़र रखती हैं। यह जनहित के कार्यों में सरकार की मदद करते हैं। संस्थानों को आवंटित ज़िम्मेदारी और कार्य के अनुसार अधिकार प्राप्त होता है। झारखण्ड में भी दर्ज़नों ऐसे निगम, बोर्ड और आयोग हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सरकार के अन्दर सहयोगी दलों की आपसी खींचतान की वजह से ये निष्क्रिय पड़े हुए हैं। फ़िलहाल लम्बे समय से ये बोर्ड, निगम, आयोग केवल अपने नाम की शोभा बढ़ा रहे हैं। उधर दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल की स्थिति झारखण्ड की तरह नहीं है। वहाँ कम-से-कम महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ फ़िलहाल निष्क्रिय होने से बचे हुई हैं। कुछ बोर्ड, निगम में पद ख़ाली हैं; लेकिन वो इतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
35 संस्थाओं में नहीं अध्यक्ष
कहा जाता है कि निगम, बोर्ड, 20 सूत्री क्रियान्वयन समिति जैसी संस्थाएँ सरकार अपनी पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए रखती है। उन संस्थाओं के अध्यक्ष, सदस्य आदि पार्टी के विधायकों, नेताओं, कार्यकर्ताओं को दिया जाता है। इसका बहुत अधिक महत्त्व नहीं होता है। पर कुछ बोर्ड, निगम और आयोग ऐसे हैं, जो काफ़ी महत्त्व रखते हैं। यह सीधे जनहित से जुड़े होते हैं। अगर यह निष्क्रिय हो जाएँ, तो इसका असर रोज़ाना के काम और विकास पर होता है। झारखण्ड में ऐसा ही कुछ हाल है। लोकायुक्त तक का पद ख़ाली पड़ा है। इसके अलावा राज्य सूचना आयोग, राज्य विद्युत नियामक आयोग, बाल संरक्षण आयोग, राज्य महिला आयोग, राज्य निगरानी परिषद्, राज्य विकास परिषद्, औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, राज्य आवास बोर्ड, कृषि विपणन परिषद्, रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार, पर्यटन विकास निगम, राज्य वन विकास निगम, राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड, मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड समेत कई बोर्डों में शीर्ष पद ख़ाली पड़े हैं।
आयोग भी निष्क्रिय
सूचना आयोग, बाल संरक्षण आयोग, लोकायुक्त, विद्युत नियामक आयोग आदि जैसी कई संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह जनता से सीधे जुड़े होते हैं। हालत यह है कि राज्य में ये संस्थाएँ भी लम्बे से समय से निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। राज्य सूचना आयोग में पिछले डेढ़ साल से मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त नहीं हैं। यहाँ 2,600 से अधिक शिकायतें और 7,669 अपीलें धूल फाँक रही हैं। राज्य विद्युत नियामक आयोग की भी बिजली सम्बन्धित मामले में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बिजली उपभोक्ताओं को यहाँ से काफ़ी मदद मिलती है। यहाँ के तत्कालीन अध्यक्ष अरविंद प्रसाद ने 12 मई, 2020 को इस्तीफ़ा दे दिया था, तब से यह पद ख़ाली है। इसी तरह राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष, सचिव सहित चार सदस्यों के पद एक साल से ख़ाली है। यहाँ सुनवाई के लिए 3200 मामले लम्बित हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग का पद पिछले छ: महीने से ख़ाली है। लोकायुक्त की नियुक्ति पिछले पाँच महीने से लटकी हुई है। यहाँ 1,700 से अधिक मामलों की सुनवाई और फ़ैसला का काम लम्बित है। यही हाल अन्य महत्त्वपूर्ण आयोगों का है। इसके अलावा खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, माटी कला बोर्ड, समाज कल्याण बोर्ड, आवास बोर्ड समेत कई बोर्ड और निगम में पद रिक्त पड़े हुए हैं।
खींचतान में फँसा पेच
मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए लगभग डेढ़ साल पहले कार्मिक विभाग ने आवेदन आमंत्रित किया था। एक मुख्य सूचना आयुक्त और छ: सूचना आयुक्त के पद ख़ाली हैं। इनके लिए लगभग 350 से आवेदन आये। इनकी नियुक्ति में मुख्यमंत्री के अलावा विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता होना ज़रूरी है। विधानसभा में अभी तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता नहीं माना गया है, नतीजतन यह नियुक्ति अटकी हुई है। इसी तरह बोर्ड, निगम, 20 सूत्री का बँटवारा सरकार के गठबन्धन दलों झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच होना है। आपसी खींचतान के कारण अभी तक बँटवारा नहीं हो सका है। जबकि मौज़ूदा सरकार का दो साल पूरा होने वाला है। इन बोर्ड, निगम आदि पर सत्ताधारी दल के विधायकों, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की नज़र टिकी हुई है। हर कुछ दिन पर इसके लिए प्रयास होता है; लेकिन सफलता अब तक नहीं मिली है।
कुछ माह पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंत्रिमंडल समन्वय विभाग से राज्य के सभी बोर्ड, निगम, आयोग आदि की सूची और रिक्त पदों की जानकारी माँगी थी। पिछले दिनों कांग्रेस प्रदेश प्रभारी आर.पी.एन. सिंह रांची आये थे और मुख्यमंत्री से मिले भी थे। आर.पी.एन. ने कहा था कि गठबन्धन दलों के बीच निगम, बोर्ड, आयोग, 20 सूत्री आदि के बँटवारे को लेकर एक ख़ाका तैयार कर लिया गया है, जल्द ही इसका बँटवारा होगा। इस बात को भी अब दो महीने बीत गये। सत्ता पक्ष के पार्टी पदाधिकारी रटे-रटाये बयान कि जल्द बँटवारा होगा, गठबन्धन दलों ने एक रूपरेखा तैयार कर ली; आदि देकर टाल जाते हैं। विपक्षी दल भाजपा के नेता कहते हैं कि इन संस्थानों का अपना एक महत्त्व है। इसका पुनर्गठन सरकार को करना चाहिए। सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती है। लेकिन विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर उठाती नहीं है। राजनीति और आपसी खींचतान के बीच जनता की समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है।
अन्य राज्यों की स्थिति कुछ बेहतर
देश के अन्य राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल आदि की स्थिति कुछ बेहतर है। उत्तर प्रदेश में आयोग, निगम, बोर्ड आदि में ज़्यादा महत्त्वपूर्ण पदों को सन् 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भरा गया था। बिहार में भी महत्त्वपूर्ण आयोग क्रियाशील हैं। हालाँकि वहाँ भी कई बोर्डों और निगमों में पद रिक्त हैं। बंगाल में अभी चुनाव सम्पन्न हुआ है। ममता बनर्जी की सरकार बनी है। पूर्व से जिन बोर्ड, निगम, पार्षद आदि के पद भरे हुए थे, वह क्रियाशील हैं। अब एक बार फिर सरकार इस पर ध्यान देने की तैयारी में है।
अदालत पहुँचा झारखण्ड का मामला
आयोग, बोर्ड, निगम आदि में पद रिक्त होने का मामला झारखण्ड उच्च न्यायालय में भी पहुँच गया है। इस मामले में सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए पिछले दिनों एक जनहित याचिका भी दाख़िल की गयी है। हालाँकि इस पर अभी सुनवाई नहीं हुई है। उम्मीद है कि अगले महीने इस पर कोर्ट में सुनवाई होगी। अब अदालत के निर्देश पर सरकार कोई फ़ैसला लेती है या फिर इससे पहले ही सरकार महत्त्वपूर्ण आयोग, बोर्ड और निगम में पदों पर नियुक्ति करती है? यह तो आने वाले वक़्त में पता चलेगा। फ़िलहाल लोगों की जो परेशानी है और विकास को गति नहीं मिल रही है, उसे नकारा नहीं जा सकता है।
“सरकार में जो कामकाज होता है, वह एक अलग तरीक़े से होता है। निगम, बोर्ड, आयोग को एक ऑटोनोमस बॉडी के रूप में बनाया जाता है, जिससे वह स्वतंत्र रूप से काम करे। इसके गठन से सरकारी तंत्र के काम करने की जो प्रक्रिया है, उसका और सरलीकरण हो जाता है। इसके गठन नहीं होने से जिस कारण से बोर्ड, निगम या आयोग बनाया गया है, वह हल नहीं हो पाएगा। अगर गठन नहीं हो रहा है, तो निश्चित कोई बात होगी। सम्भव है कि सरकार ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था की हो।”
आदित्य स्वरूप
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त और पूर्व प्रधान सचिव,
कार्मिक विभाग