अटल सरकार में रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालय संभाल चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का रविवार सुबह निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे।
तीन जनवरी, 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसौल गांव में जन्मे जसवंत सिंह ने अजमेर के मायो कॉलेज से बीए और बीएससी की डिग्री हासिल की। जसवंत सिंह ने सेना के अफसर के तौर पर देश की सेवा की और सेवानिवृत्त हुए। सिंह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। जसवंत सिंह भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सांसदों में से एक थे। 1980 या 2014 के बीच वह कभी उच्च सदन के सदस्य रहे या फिर वह निचले सदन के सदस्य रहे।
जसवंत सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुख जताया है। पीएम मोदी ने कहा, जसवंत सिंह जी ने पूरी लगन के साथ हमारे देश की सेवा की। पहले एक सैनिक के रूप में और बाद में राजनीति के साथ अपने लंबे जुड़ाव के दौरान। वहीं, रक्षा मंत्री ने कहा, पूर्व मंत्री श्री जसवंत सिंह जी के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्होंने रक्षा मंत्रालय के प्रभारी सहित कई क्षमताओं से देश की सेवा की।
भैरों सिंह शेखावत ने जसवंत की जनसंघ में एंट्री कराई थी। इसके बाद जी दफा कभीब्लोकसभ तो कभी राज्यसभा सांसद रहे। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर जसवंत सिंह 5 दिसंबर, 1998 से 1 जुलाई, 2002 तक भारत के विदेश मंत्री रहे। इस पद पर रहते हुए जसवंत ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति का निपटान किया। जुलाई 2002 में, जसवंत सिंह फिर से वित्त मंत्री बने। उन्होंने मई 2004 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
आतंकियों को लेकर कंधार गए थे जसवंत
जसवंत सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश, रक्षा और वित्त जैसे तीन अहम विभागों को संभाला। जब 24 दिसंबर, 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर आईसी-814 को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। इस दौरान यात्रियों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए भारत सरकार को तीन खूंखार आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। जिन आतंकियों को छोड़ा गया था, उनमें मुश्ताक अहमद जरगर, अहमद उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर शामिल थे। इन्हें कंधार तक खुद जसवंत सिंह ही लेकर गए थे।
विवाद के बाद पार्टी ने निकाला
जसवंत सिंह विवादों में घिर गए, जब उनकी पुस्तक ‘जिन्नाह: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेंडेंस’ में दावा किया गया कि विभाजन के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू की केंद्रीकृत राजनीति जिम्मेदार थी। अपनी किताब में जसवंत ने मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की। इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। हालांकि, 2010 में उन्हें फिर से भाजपा में शामिल किया गया। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।