कंगना रानौट पिछले साल करण जौहर के काफी कार्यक्रम में बुलाई गई थी। उसने करण जौहर को भाई भतीजावाद का झंडाबरदार कहा। इसे सुनकर वहां मौजूद सैफ अली खान देखते ही रह गए।
यह पहली बार नहीं था जब कंगना ने जोर से ऐसा कहा। बॉलीवुड में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं जो दशकों से ऐसा कहने की महज सोचते रहे हैं। लेकिन कंगना ने खुद को आज ‘फायर ब्रांडÓ बना लिया है। वे बालीवुड में बाहरी कलाकार के तौर पर खुद अपनी तस्वीर बना रही हैं। सवाल यह नहीं है कि उसने क्या कहा बल्कि यह है कि उसने ऐसा कहा कैसे। कितनी सहजता से उसने कहा था। कहीं कोई तनाव नहीं। उसे जो कहना था उसने साफ तौर पर कह दिया। स्टूडियों के कमरे में बैठे दोनों सिने कलाकार उसे क्षण भर अवाक देखते रहे।
उनकी प्रतिक्रिया से लग रहा था कि कंगना की टिप्पणी एक बड़ी वजह को लेकर है। वे सकपका से गए थे। एक के पास तो शब्द ही नहीं थे और दूसरे ने अपनी हथेलियां मुंह पर रख ली थी। दोनों खिसियाई हंसी हंसते दिखे क्योंकि वे जानते थे कि जो उसने कहा वह सच है। एक जमाने में दोनों ही उस भाई भतीजावाद के चलते ही कमाते भी रहे जिसके बारे में उसने कहा था। एक वाक्य जो उसने कहा वह पत्थर की लकीर बन कर सामने आ गया। सभी के सामने यह जग-जाहिर हो गया कि फिल्म उद्योग में कितने तरह के अन्याय होते रहे हैं। वह भी उन बड़े कलाकारों द्वारा। उसे बालीवुड के सबसे खराब महोत्सव में बुलाया गया था। जिसकी गूंज पूरे साल रही।
जब भी कंगना को मौका मिला उसने फिल्मी उद्योग के उन तमाम लोगों के नाम लिए उसी बिदांस तरीके से। इनमें अध्ययन सुमन, आदित्य पंचोली और ऋतिक रोशन थे। उसकी तुलना में इनका काफी अच्छा जुड़ाव फिल्म उद्योग में है। उसने खुल कर साक्षात्कारों में उनसे अपने संबंधों के बारे में बताया। कंगना ने खासे जोर-शोर से, गुस्से में और नाटकीय लहजे में अपनी दास्तां सुनाई। वह अपनी बातों से उन लोगों को प्रभावित नहीं कर रही थी जो उसके आसपास थे। लेकिन इस देश में जैसा हो रहा है लोगों ने उसे एक ऐसा कैनवस मान लिया जिस पर जहां फंतासियां ही फंतासियां है।
कंगना एक ऐसी युवती है जो अच्छा बुरा जानती समझती है और उसमें खुलकर बोलने की भी हिम्मत है। उसकी पहली प्रतिक्रिया तब सामने आई जब अंग्रेजी शब्दों कें उसके देसी उच्चारण और उसके बोलने के अंदाज और वरिष्ठों के प्रति आदर न दिखाने पर हुआ। उसकी आलोचना करने में वे महिला और पुरूष थे जिन्होंने चुप्पी और दमन की नशीली ऊँचाइयों से लाभ उठाया।
मज़ेदार बात तो यह है कि अपनें लहजे पर ध्यान देने की बात उसे उनसे सुननी पड़ी जिन्होंने अपने प्रतीकों के ज़रिए अपनी जिंदगी को और आरामदेह बना लिया। इन हालातों में वे उस जीवन से दूर नहीं होना चाहती। कंगना की पीड़ा पारिवारिक फिल्मी पृष्ठभूमि की वे युवतियां नहीं समझ सकतीं जिन्हें खुद-व-खुद इस क्षेत्र में कामयाब होने का विशेषाधिकार मिल जाता हे। वे सहजता से कंगना को खारिज कर सकती हैं।
अमूमन यह माना जाता है कि वे महिलाएं जो अपने गुस्से और नाराज़गी को दबाती हैं। ऐसे में यह फैसला करना कि उनकी यह नाराज़गी वैध है या नहीं। यह अलग मुद्दा है। लेकिन यह एक काबिलियत है जिसमें नाराज़गी सामने आती है। ऊब और थकी हुई और बात-बात में नाराज़ होने वाली महिलाओं को पहले तो हाथों-हाथ लिया जाता है। फिर उन्हें एक किनारे फेंक दिया जाता है।
अब कंगना ने अपनी एक राह ज़रूर बना ली है साथ ही एक ऐसा फोरम भी बना लिया है जहां बालीवुड की युवतियां अपना गुस्सा जता सकती हैं। एक साल से भी ज़्यादा समय उसे यह जताने में निकल गया कि वह टूटने को नहीं है। उसे यह अहसास भी हुआ।
फिल्म उद्योग में उसकी एक ऐसी तस्वीर बन गई है जो उससे भी कहीं बड़ी है। बालीवुड भले ही उसकी हिम्मत और चुनौती को देखते हुए उसे खतरा मान कर अपने दरवाजे भले ही बंद कर ले। लेकिन कंगना ने यह भ्रम ज़रूर तोड़ा कि बालीवुड में यह प्रचार गलत है कि औरतों को दिखने, बोलने, चलने की आज़ादी उतनी ही मिलती है जितनी वे देना चाहते हें। आज अभिनय में भी कंगना एक बड़ा ब्रांड है जो खासा नामी है। और संघर्ष करते हुए अपनी अभिनय क्षमता नित निखार रही है।
भयमुक्त है कंगना
कंगना रानौट के पास अब खोने के लिए कुछ भी ज़्यादा नहीं है। वह अपनी कहानी के संवाद भी खुद ही लिख रही थी। उसने उन चिंदियों को स्वीकार कर लिया था जो लोग उसे महिला कार्ड के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। बालीवुड में आज वह महिलाओं की झंडाबरदार ज़रूर है।
कंगना का महिला शक्ति के रूप में दिखना एक महागाथा है। इस कहानी के दो सिरे हैं- एक उसका अपना और दूसरा झूठे प्रचार का गलत का। वह अपने दुख भी खुद के पल्लू में रखती है। जब शबाना आजमी ने ऑनलाइल पेटीशन दीपिका पादुकोण के पक्ष में जारी की तो कंगना ने उस पर अपने दस्तखत तो नहीं किए लेकिन कहा कि निजी तौर पर वह पादुकोण के साथ है। उसने इस आरोप को भी कबूल लिया कि वह बाहरी है। उसने फड़कती हुई उस नस को दबा दिया था जिसके चलते उन लोगों में वह धीरज भी कम हो गया जो मशहूर लोगों के बच्चों और उनकी पहली प्रस्तुति होती है। वह भी बालीवुड में बदलाव के लिए ढेर सारी मार्केटिग के ज़रिए जिससे वे दुनिया में चमक सकें।
कंगना अपने आप में बदलाव खुद नहीं ला सकती। लेकिन उसकी आवाज़ की गूंज ज़रूर रहेगी। आज हॉलीवुड हार्वे वेन्स्टेन की कारगुजारियों की कहानियां बालीवुड में भी खूब गूंज रही हैं लेकिन उस गूंज से अब उम्मीद बनी है कि यह सिलसिला आगे बढेगा। आज कंगना खुद को ताकतवर भी मानती है।