अपना सौवां अंतरराष्ट्रीय शतक पूरा करने के बाद सचिन तेंदुलकर ने अपने संभावित रिटायरमेंट के बारे में जो बात कही वह किसी सूक्ति जैसी लगती है, ‘यह बेहद स्वार्थी विचार होगा कि जब आप अच्छा खेल रहे हों तब रिटायर हो जाएं, जब आप अच्छा खेल रहे हों वह समय देश के लिए योगदान करने का होता है न कि अपने रिटायरमेंट को सजाने का.’ निश्चित तौर पर सचिन को बोलते हुए सुनना भी उनकी बल्लेबाजी देखने जितना ही सुखद होता है. शायद इसलिए कि सचिन भोगे हुए यथार्थ को स्वर देने में यकीन रखते हैं. उनकी शख्सियत की सच्चाई और खुलूस का रहस्य इसी में छिपा है, और इसी की कमी उनके सारे आलोचकों को झूठा साबित कर देती है. फिर चाहे उनमें पहली विश्व-विजेता टीम के कप्तान कपिल देव ही क्यों न हों. हालांकि कपिल जैसे खिलाड़ी के बारे में कोई बात कहना थोड़ा छोटापन होगा लेकिन इतने बड़े खिलाड़ी से उतने ही बड़े व्यवहार की अपेक्षा भी रहती ही है. बात ये थी कि वे सचिन को सौवें शतक का मोह छोड़कर संन्यास के बारे में सोचने की सलाह दे रहे थे लेकिन अपने करियर के आखिरी दौर में सिर्फ हेडली का रिकॉर्ड तोड़ने की गरज से वे खुद टीम पर बोझ बने रहे थे.
2011 विश्वकप विजय के बाद (जब सचिन 99 शतकों के साथ महाशतक के मुहाने पर थे,) एकाएक मीडिया में सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने की मुहिम शुरू हो गई. खेल मंत्रालय ने जब भारत रत्न के लिए सचिन का नाम नहीं भेजा तो इसे ‘भगवान के साथ धोखा’ तक कहा गया. लम्बे वक्त तक मीडिया में इस अभियान को लेकर लामबंदी रही और फिर आस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम का प्रदर्शन बिगड़ते ही यही लामबंदी अपने ही भारत-रत्न को टीम से बाहर करवाने या संन्यास दिलवाने के लिए दिखने लगी. तमाम छोटे बड़े विशेषज्ञ टीवी चैनलों पर आकर सचिन को सौवे शतक का मोह छोड़ने और सम्मानजनक विदाई की सलाह देने लगे. चयनकर्ताओं पर भी उंगलियां उठाई गई कि आखिर क्यों खराब प्रदर्शन के बावजूद सीनियर खिलाड़ी (मुख्यत: सचिन) टीम में बने हुए हैं.
लेकिन सचिन यूं ही कीर्तिमानों के पहाड़ पर नहीं बैठे हैं. एशिया कप में बांग्लादेश के खिलाफ उन्होंने अपना महाशतक पूरा किया और इसके तुरंत बाद यह साफ कर दिया कि वे फिलहाल संन्यास लेने नहीं जा रहे. सचिन के मुताबिक अब भी मैदान में उतरने पर जब राष्ट्रगान बजता है तो वे रोमांचित हो जाते हैं. जिस दिन देश के लिए खेलने के इस जुनून में लेशमात्र भी कमी आई वे बल्ला टांग देंगे. हकीकत भी यही है. पिछले 23 साल से हम देखते आए हैं कि आउट होने के बाद सचिन बड़ी सहजता से पैवेलियन की ओर लौट जाते हैं. ऐसे में जब उन्हें लगेगा कि वे आउट हो चुके हैं, उन्हे मैदान छोड़ने में देर नहीं लगेगी.
सचिन के विरोधी सवाल कर सकते हैं कि तकरीबन 39 साल के सचिन अब टीम में क्यों बने रहना चाहते हैं. जबकि वे 23 साल क्रिकेट खेल चुके हैं, रिकॉर्डों के शीर्ष पर बैठे हैं और विश्वविजेता टीम का हिस्सा भी बन चुके हैं. यह सवाल करने वालों को पहले इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि सचिन आखिर टीम में क्यों न हों? न तो रिकार्ड किसी खिलाड़ी का ध्येय होते हैं और न ही इस ध्येय के साथ इतने साल क्रिकेट खेली जा सकती है. तकनीक के स्तर पर आज भी सचिन के खेल में कोई कमी नज़र नहीं आती. इस उम्र में भी वे बच्चों जैसे उत्साह के साथ विकेटों के बीच दौड़ते हैं. उनका फ्रंटफुट कवर ड्राइव, बैकफुट पंच या स्ट्रेट डाइव आज भी उतना ही शानदार होता है जितना नौजवानी के दिनों में हुआ करता था. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज में इसे सचिन की बदकिस्मती ही कहा जाएगा कि बार-बार अच्छी शुरूआत के बाद भी वे लम्बा स्कोर नहीं बना पाए. लेकिन टेस्ट सीरीज़ में विराट कोहली को छोड़ दें तो अकेले सचिन ही थे जिनके बल्ले से रन निकल रहे थे. खेल पत्रकार हेमंत सिंह मानते हैं कि टेस्ट मैचों में आगामी कुछ समय तक टीम इंडिया के लिए सचिन अनिवार्य हैं. वे कहते हैं, ‘द्रविड़ जा चुके हैं, लक्ष्मण जाने वाले हैं, सहवाग अनिश्चितताओं में घिरे हैं और धोनी यहां उतने कामयाब नहीं हैं. इसके साथ ही ज्यादातर युवा खिलाड़ियों को अभी टेस्ट क्रिकेट में खुद को साबित करना बाकी है, इसलिए सचिन का टेस्ट टीम में होना बेहद जरूरी है.’
वक्त उनसे तकाजा भी करेगा कि जो कुछ उन्हें अपने गुरु से मिला, मैदान से विदा होने पर वे उसे अगली पीढ़ी को सौंप दंे. फिलहाल अच्छी बात यह है कि वे खेल रहे हैं और अच्छा खेल रहे हैं
विश्वकप के बाद से सचिन की योजना भी टेस्ट मैचों को तरजीह देने की है. अब वे सिर्फ चुनिंदा एक-दिवसीय मैच ही खेल रहे हैं. अच्छी बात यह है कि अपने संन्यास के सन्दर्भ में उन्होने किसी समय-सीमा का खुलासा नहीं किया है. इसका मतलब यह है कि वे अगली सीरीज के बाद भी संन्यास ले सकते हैं और 2015 के विश्वकप तक भी खेल सकते हैं. जैसा कि उनके सारे फैन्स चाहते हैं. यह भी मुमकिन है कि वे किसी सीरीज से पहले ही उस सीरीज के आखिरी होने की घोषणा कर दें, जैसा कि मुरलीधरन ने किया था. सचिन के लिए तो यह स्थिति ज्यादा सहज होगी ही उनके फैन्स के लिए भी इसमें एक अलग तरह का रोमांच होगा.
लेकिन इस सबके बीच हमें वह बात ध्यान रखनी होगी जो मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत ने कही, ‘संन्यास के फैसले का अधिकार खिलाड़ी में ही निहित होना जरूरी है, इसलिए सचिन को इस बारे में स्वतंत्र रखना चाहिए.’ पिछले दिनों जो लोग पोंटिंग की तर्ज पर सचिन को टीम से बाहर किए जाने के हिमायती थे उन्हंे ध्यान रखना चाहिए कि भारतीय क्रिकेट-समाज में सचिन का जो मुकाम है, ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट-समाज में उसके समकक्ष सिर्फ और सिर्फ डॉन ब्रैडमैन हैं, पोंटिंग बिल्कुल नहीं. ब्रैडमैन खुद 40 साल की उम्र तक खेलते रहे थे. रही बात पोंटिंग की तो उनके हाशिए पर जाने का सिलसिला विश्वकप के बाद ही शुरू हो गया था जबकि सचिन बेहद उम्दा फार्म में थे.
हर कहानी का कोई न कोई अंत होता है, इस लिहाज से सचिन का रिटायरमेंट भी एक सच्चाई है. लेकिन उससे बड़ी सच्चाई यह भी है कि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग सचिन के बिना क्रिकेट की कल्पना भी नहीं करता. उनकी गैर मौजूदगी में क्रिकेट का मैदान सूना लगता है. सचिन को खुद क्रिकेट से मोहब्बत है और उनके कद्दावर प्रदर्शन का रहस्य भी इसी दीवानगी में छिपा है. ऐसे में सवाल यह भी है कि जब सचिन रिटायर हो जाएंगे तब उनकी नई भूमिका क्या रहेगी. रिटायरमेंट के बाद अमूमन क्रिकेटर अभिनय, राजनीति, व्यापार या दूसरी जगह हाथ आजमाते हैं.
सचिन के संदर्भ में यह थोड़ा मुश्किल लगता है क्योंकि बकौल मजरूह सुल्तानपुरी, ‘शायर शायरी से किनारा करने पर फिल्मी नगमे तो लिख सकता है लेकिन बिरयानी का ठेला नहीं लगा सकता.’ उसी तरह सचिन रिटायर होने के बाद भी मैदान से शायद ही दूर हो पाएं. ऐसे में दूसरे महान खिलाड़ियों माराडोना, ध्यानचंद, गोपीचंद और केडी सिंह बाबू की तरह वे कोच के रूप में अपनी दूसरी पारी शुरू कर सकते हैं. कोचिंग के बारे में महान हॉकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू कहा करते थे, ‘खिलाड़ी वह होता है जो खिलाड़ी पैदा करे.’ उनकी कोचिंग ने देश को कई उम्दा अंतरर्राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिए. उसी तरह का कुछ सचिन क्रिकेट को दे सकते हैं. वक्त उनसे तकाज़ा भी करेगा कि जो कुछ उन्हें अपने गुरु रमाकांत आचरेकर से मिला, मैदान से विदा होने पर वे उसे अगली पीढ़ी को सौंप दंे. कोचिंग के अलावा सचिन कमेंट्री के क्षेत्र में भी जा सकते हैं. अपने दोस्तों शूमाकर और सैंप्रास की तरह सामाजिक उद्देश्य के प्रदर्शनी मैचों में खेल सकते हैं और आईसीसी की किसी कमेटी के मुखिया भी बन सकते हैं.
फिलहाल अच्छी बात यह है कि सचिन खेल रहे हैं और अच्छा खेल रहे हैं. जब तक वे खेलेंगे उनका शीर्षारोहण जारी रहेगा. जल्दी ही फैन्स उन्हेंवनडे में पचासवां शतक और सौवां अर्धशतक लगाते देख सकते हैं. इसके अलावा सचिन एक टेस्ट की दोनों पारियों में शतक बनाने का कारनामा भी अभी तक नहीं कर पाए हैं, जिस पर क्रिकेट प्रेमियों की नज़र रहेगी. उनसे टेस्ट में तिहरे शतक की उम्मीद भी कायम रहेगी. अगर वे 2015 तक खेलें तो वन डे में 20 हज़ार रन भी बना सकते हैं. इसके अलावा सचिन अगर लगातार अच्छा खेलें तो टेस्ट मैचों में 60 के औसत के आस पास भी जा सकते हैं, जिसे ब्रैडमैन के अलावा सिर्फ तीन बल्लेबाज़ों ने छुआ है. गोया कहा यह भी जा सकता है कि इतनी अपेक्षाएं ठीक नहीं, लेकिन सच यही है कि सचिन से अपेक्षाएं रखना और उनके आउट होने पर टीवी बंद कर देना इस देश की राष्ट्रीय परंपरा रही है.
उस दिन जब सचिन मैदान से अंतिम विदाई ले रहे होंगे देश के करोड़ों टीवी सेट न जाने कब तक के लिए बंद हो जाएंगे.