सिडनी से इंदौर आयीं सुधा शर्मा ने एयरपोर्ट से बाहर जैसे ही कदम रखे, आसपास सब कुछ बदला-सा देखकर उसके मुँह से यही शब्द निकले- ‘ओ माई गॉड! यह इंदौर है क्या…?’ वह 10 साल बाद इंदौर आयी थीं। इंदौर तीन साल पहले गन्दगी वाला शहर था। लेकिन यही शहर पिछले तीन साल से बराबर देश के सबसे साफ शहरों में अव्वल रहा है। इसे ‘क्लिनेस्ट सिटी ऑफ इंडिया’ का खिताब मिला। सबसे खास बात यह है कि इंदौर शहर स्वच्छता की रैंकिंग में आने के बाद रहने लायक शहरों में भी शुमार हो चुका है। लेकिन यह जानना भी ज़रूरी है कि इस शहर को स्वच्छता में अव्वल लाने पर क्या-क्या कदम उठाये गये हैं?
इंदौर के लोगों का कहना है कि शहर में गन्दगी का जो आलम था, उस दृष्टि से इस शहर को स्वच्छ कर पाना सपने जैसा लगता था; लेकिन यहाँ के नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के दृढ़ संकल्प तथा मेहनत के चलते इंदौर शहर की काया बदल गयी। अब 5 जनवरी, 2020 को इस शहर की पहली आदर्श, स्वच्छ और स्मार्ट सड़क के लोकार्पण समारोह के अवसर पर लोगों ने इस सड़क पर बैठकर खाना खाया था। शायद यह स्वच्छता का जश्न मनाने का रोचक तरीका था। इंदौर की अव्वल नम्बर पर लाने के लिए निगम की महापौर रही मालिनी गौड़, तत्कालीन कमिश्नर मनीष सिंह और वर्तमान कमिश्नर आशीष सिंह की भूमिका सराहनीय है।
नगर निगम इंदौर के टीम लीडर प्रोजेक्ट डिजाइन एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंट असद वारसी का कहना है कि इंदौर शहर अगर क्लीनेस्ट सिटी ऑफ इंडिया बन पाया है, तो उसके पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अलावा जनता के सहयोग से यह सब हो पाया है। उन्होंने बताया कि इंदौर में ध्वनि प्रदूषण कम करने और ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं। प्रशांत राय पे बताया कि इंदौर ऐसा शहर है, जो सर्वधर्म समभाव का उदाहरण माना जा सकता है। गुजराती, मराठी, बंगाली या पंजाबी होने की लीक से परे इंदौर की पहचान किसी विशेष जाति, सम्प्रदाय या धर्म से नहीं है। यहाँ तक राजनीतिक लोग भी मुद्दों पर चाहे बहस करते हों, लेकिन सर्वहित के लिए आपस में मिलकर बैठते हैं। स्वच्छता अभियान भी इसी धारणा से साकार हो पाया है। यहाँ के एक मंत्री का ज़िक्र करते हुए वे कहते हैं कि शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी की सादगी बड़ी रोचक है। वह मंत्री होकर भी साइकिल से चलते हैं और जहाँ कहीं चाय की तलब हो, वहीं किसी के घर चाय पीने अपनी पहचान बताकर चले जाते हैं। ऐेसे नेता जनता में अपनी अमिट छाप बना लेते हैं।
गायिका लता मंगेशकर, अभिनेता सलमान खान और शायद राहत इंदौरी की जन्मभूमि है- इंदौर शहर। सांस्कृतिक गतिविधियों के चलते लोगों का आपस में काफी जुड़ाव रहता है। यहाँ के लोग खाने के भी काफी शौकीन हैं। छप्पन दुकान और सर्राफा बाज़ार खाने के शौकीनों का खास केंद्र है। यहाँ खाने की ओटें (दुकानें) रात दो-ढाई बजे तक चलती हैं। बाज़ार दिन जैसी रोशनी से नहाया रहता है। छप्पन दुकान में हर तरह का खाना उपलब्ध रहता है। इस बाज़ार को विश्वस्तरीय स्मार्ट मार्केट बनाने के लिए नगर निगम ने चार करोड़ रुपये की लागत से काम शुरू किया हुआ है, जो 56 दिन में ही पूरा किया जाएगा। हर दिन के काम का ब्यौरा लिया जाता है। नो व्हीकल जोन के अलावा इस बाज़ार का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा।
शहर में रंगपंचमी का त्योहार सबसे खास है और बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। ट्रकों में रंगों के ड्रम भरे रहते हैं, जहाँ से तीन-चार मंज़िल तक पिचकारी से रंग फेंका जाता है। इस शहर में पिछले कई साल से रह रहीं वरिष्ठ लेखिका संध्या बताती हैं कि स्वच्छता में नम्बर-वन आने के बाद सफाई से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता। त्योहार के बाद दो-तीन घंटे में ऐसी सफाई हो जाती है कि अगले दिन कहीं कोई रंग बिखरा नज़र नहीं आता। यहाँ रंग भी ऑर्गेनिक ही इस्तेमाल किये जाते हैं।
स्वच्छता सर्वेक्षण में फीडवैक के तरीके
सर्वेक्षण करने वाली टीम लोगों के घरों में जाकर सीधे बात करती है। इसके अलावा स्वच्छता एप, इंदौर 311 एप वोट फॉर माई सिटी पर अपनी बात कह सकते हैं और टोल फ्री नंबर 1969 पर कॉल कर सकते हैं।
क्या-क्या पूछे जाते हैं सवाल?
क्या आप अपने शहर का ओडीएफ स्टेट्स जानते हैं? क्या आप अपने शहर के कचरामुक्त सिटी की स्टार रेटिंग के बारे में जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि आपका शहर स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 में भाग ले रहा है? आप अपने शहर की सफाई के लिए कितने अंक देना चाहेंगे? अपने शहर के व्यावसायिक व सार्वजनिक स्थानों की सफाई को कितने अंक देना चाहेंगे? क्या आपसे सूखा व गीला कचरा अलग-अलग माँगा जाता है? क्या आपके शहर मेें रोड डिवाइडर पर पौधरोपण हुआ है? शहर के सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालयों की सफाई के आप कितने अंक देना चाहेंगे।
पान खाकर थूकने वालों की कमी नहीं
शहर को पहचान देता ग्रेटर कैलाश रोड अथवा आदर्श रोड है। इंदौर को आदर्श व स्मार्ट बनाया गया है। लेकिन बदिकस्मती है कि पान खाकर थूकने वालों को स्वच्छ शहर की रैंकिंग से कोई लेना-देना नहीं। सड़क किनारे कई जगह दीवार के नीचे और स्टील के खम्भों के नीचे पान की पीकें दिखाई देती हैं। इसको लेकर भी नगर निगम के लोगों को गम्भीरता से एक्शन लेने की ज़रूरत है।