गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा है कि क्या लोगों को अपने घर से ऑनलाइन प्राथमिकी या ई-एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति दी जा सकती है।
पीटीआई भाषा की एक रिपोर्ट के अनुसार उच्चतम न्यायालय के नवंबर 2013 के आदेश के अनुसार सीआरपीसी की धारा 154 के तहत अगर किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है और ऐसी स्थिति में प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है तो प्राथमिकी दर्ज किया जाना अनिवार्य है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ विधि आयोग को मुद्दे पर विचार करने के दौरान कई सुझाव मिले हैं। इन सुझावों में कहा गया है कि अगर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन करके लोगों को ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति दी जाती है तो इसका यह परिणाम हो सकता है कि कुछ लोग दूसरों की छवि धूमिल करने के लिये इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
विधि आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अनुसार , ‘‘हां, लोग प्राथमिकी दर्ज कराने के लिये थाने जाना मुश्किल पाते हैं। लोगों के लिये घर से प्राथमिकी दर्ज कराना काफी आसान हो जाएगा। हालांकि, ज्यादातर लोगों को पुलिस के समक्ष झूठ बोलने में कठिनाई होती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता के आचरण को समझते हैं। हालांकि, कोई भी ऑनलाइन सुविधा का इस्तेमाल दूसरे की छवि को नुकसान पहुंचाने में कर सकता है। यही अब तक हमें समझ में आया है। हालांकि, हमने अवधारणा को अभी समझना शुरू किया है। इसलिये यह कोई अंतिम बात नहीं है।’’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में कुल 48,31,515 संज्ञेय अपराध हुए।
इसमें से 29,75,711 अपराध भारतीय दंड संहिता के तहत तथा 18 लाख 55 हजार 804 विशेष एवं स्थानीय कानूनों के तहत अपराध हुए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 2015 की तुलना में इसमें 2.6 फीसदी की वृद्धि हुई। उस वर्ष कुल 47,10,676 संज्ञेय अपराध के मामले हुए।