आखिरकार लम्बे इंताज़र के बाद अयोध्या पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला 9 नवंबर को आ ही गया। सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से किये फैसले में राम मंदिर को विवादित ज़मीन देने का फैसला सुनाया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ ज़मीन अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए देने का आदेश दिया है। केंद्र सरकार को इसके लिए ट्रस्ट बनाने का ज़िम्मा दिया गया है।
यह महत्त्वपूर्ण है सर्वोच्च अदालत ने मंदिर निर्माण और मस्जिद को ज़मीन की पूरी प्रक्रिया का िज़म्मा केंद्र सरकार को दिया है। इससे केंद्र सरकार की यह िज़म्मेदारी बन गयी है कि वह बिना कोई विवाद पैदा किये सर्वोच्च अदालत के फैसले पर काम करे। मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का िज़म्मा केंद्र सरकार को दिया गया है, न कि किसी धार्मिक संगठन को।
सर्वोच्च अदालत के फैसले से तीसरे हिन्दू पक्ष का दावा खारिज होने से सिर्फ एक हिन्दू और एक ही मुस्लिम पक्ष रह गया, जिससे भविष्य में विवाद की गुंजाइश भी खत्म हो गयी है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि फैसले को चुनौती (पुनर्विचार याचिका) दी जाए या नहीं इसका फैसला बाद में किया जाएगा। अदालत का फैसला तमाम आशंकाओं के बीच एक तरह से नज़ीर बनकर आया है। कमोवेश हर तबके ने फैसले का स्वागत किया है। देश में शांति भी बनी रही, इसका बहुत श्रेय फैसले के संतुलित को ही जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की संविधान पीठ ने 9 नवंबर को अयोध्या केस पर फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने फैसले में केंद्र से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए वह ट्रस्ट बनाये और इसकी योजना तीन महीने में तैयार करे। विवादित मानी गयी 2.77 एकड़ की ज़मीन केंद्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगी। अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली ज़मीन पर नहीं बनी थी। हिन्दुओं की आस्था है अयोध्या में राम का जन्म हुआ था आस्था और विश्वास पर कोई सवाल नहीं। पीठ ने कहा कि हिन्दू अयोध्या को राम का जन्म स्थान मानते हैं। किसी ने अयोध्या में राम-जन्म के दावे का विरोध नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं थी, लेकिन भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि मस्जिद के निर्माण के लिए मंदिर गिराया गया था। न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवादित भूमि को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं। हिन्दुओं की यह आस्था अविवादित है कि भगवान राम का जन्म स्थल ध्वस्त संरचना है।
पीठ ने कहा कि सीता-रसोई, राम-चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक होने के तथ्यों की गवाही देती है। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि मालिकाना हक का निर्णय सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर नहीं किया जा सकता और यह विवाद के बारे में फैसला लेने के संकेतक हैं।
अदालत ने कहा कि सबूत है कि बाहरी स्थान पर हिन्दुओं का कब्जा था, इस पर मुस्लिम का कब्जा नहीं था। लेकिन मुस्लिम अंदरूनी भाग में नमाज़ भी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यात्रियों के विवरण को सावधानी से देखने की ज़रूरत है, वहीं गजट ने इसके सबूतों की पुष्टि की है। हालाँकि मालिकाना हक आस्था के आधार पर नहीं तय किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार विवादित भूमि सरकारी है। राम-जन्म स्थान पर एएसआई की रिपोर्ट मान्य है। स्थल पर ईदगाह का मामला उठाना आफ्टर थॉट है, जो मुस्लिम पक्ष द्वारा एएसआई की रिपोर्ट के बाद उठाया गया। 12वीं से 16वीं सदी के बीच यहाँ मस्जिद थी, इसके सबूत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम का केंद्रीय गुंबद के बीच में हुआ यह मान्यता है।
फैसले में अदालत ने कहा कि एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में विवादित ज़मीन पर मंदिर की बात कही है। एएसआई की रिपोर्ट में मस्जिद ईदगाह का जिक्र नहीं है। एएसआई रिपोर्ट में 12वीं सदी के मंदिर होने का जिक्र है। एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक, वहाँ इस्लामिक ढाँचा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि खुदाई में मिले सबूतों को अनदेखा नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली ज़मीन पर नहीं बनी थी। हिन्दुओं की आस्था है कि अयोध्या में राम का जन्म हुआ था। आस्था और विश्वास पर कोई सवाल नहीं किया जा सकता। हिन्दू अयोध्या को राम का जन्म स्थान मानते हैं। किसी ने अयोध्या में राम-जन्म के दावे का विरोध नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में मंदिर की बात है। एएसआई की रिपोर्ट में मस्जिद ईदगाह का जिक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 12वीं सदी के मंदिर होने का रिपोर्ट के मुताबिक, वास्ता नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने नयी मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिमों को वैकल्पिक ज़मीन आवंटित करने के निर्देश दिये हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए किसी प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ की उपयुक्त ज़मीन दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में पूरी विवादित ज़मीन का नियंत्रण हासिल करने की निर्मोही अखाड़े की याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने शनिवार को अयोध्या केस पर फैसला सुनाया। पीठ के अध्यक्ष सीजेआई ने 45 मिनट तक फैसला पढ़ा और कहा कि मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया जाए और इसकी योजना तीन महीने में तैयार की जाए। कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन रामलला विराजमान को देने का आदेश दिया और कहा कि मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए पाँच पाँच एकड़ वैकल्पिक ज़मीन आवंटित की जाए। सीजेआई गोगोई ने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम विवादित स्थान को जन्मस्थान मानते हैं, लेकिन आस्था से मालिकाना हक तय नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि ढहाया गया ढाँचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिन्दुओं की यह आस्था निर्विवादित है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सर्वसम्मति से फैसला सुना रहे हैं। इस अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए।
फैसले के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत किया हालाँकि जफरयाब जिलानी ने कहा है कि फैसले को चुनौती दी जाए या नहीं, इसका फैसला बाद में किया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया। फैसले में विवादित ज़मीन रामजन्मभूमि न्यास को देने का फैसला किया है, जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा गया है। अर्थात् सुन्नी वफ्फ बोर्ड को अलग ज़मीन देने का आदेश कोर्ट ने दिया है।
मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक ज़मीन कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक ज़मीन दी जाए। ज़मीन पर दावा साबित करने में मुस्लिम पक्ष नाकाम रहा। कोर्ट ने फैसले में कहा कि मुस्लिम पक्ष ज़मीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आस्था के आधार पर मालिकाना नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि आस्था के आधार पर ज़मीन का मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने साफ कहा कि फैसला कानून के आधार पर ही दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि मंदिर तोडक़र मस्जिद बनाने की पुख्ता जानकारी नहीं है। कोर्ट ने एएसआई रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में कहा कि मंदिर तोडक़र मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है।
निर्मोही अखाड़े का दावा सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अखाड़े का दावा लिमिटेशन से बाहर है। इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि 1949 में मूर्तियाँ रखी गयीं।
फैसले की मुख्य बातें
रामलला की ज़मीन रामजन्मभूमि न्यास को दे दी गयी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है कि वह तीन महीने में राम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट और बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाए।
विवादित स्थल का आउटर कोर्टयार्ड हिन्दुओं को मंदिर बनाने के लिए दिया जाए।
इस ट्रस्ट को केंद्र सरकार ही सँभालेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया।
सर्वोच्च अदालत के फैसले के मुताबिक अयोध्या में केंद्र या राज्य सरकार 5 एकड़ वैकल्पिक ज़मीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाएगी। यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित ज़मीन से अलग अयोध्या शहर में किसी और जगह ज़मीन मिलेगी।
मुस्लिम पक्ष विवादित ज़मीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अखाड़े का दावा लिमिटेशन से बाहर है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड का दावा नहीं बनता। इसे खारिज किया जाता है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही वैकल्पिक ज़मीन देने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने में योजना बनाने कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के नियमों पर योजना बनाने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र में मस्जिद निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है।
पक्षकार गोपाल विशारद को पूजा का अधिकार दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय की बेंच के पाँच जज जिन्होंने राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला दिया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई
बहुत यादा लोगों को पता नहीं होगा कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के पुत्र हैं। गोगोई का जन्म 18 नवंबर, 1954 को हुआ। उन्होंने डिब्रूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा हासिल की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास की पढ़ाई की। गोगोई ने 1978 में वकालत के लिए पंजीकरण कराया। उन्होंने संवैधानिक, कराधान और कंपनी मामलों में गुवाहाटी हाई कोर्ट में वकालत की। उन्हें 28 फरवरी, 2001 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उनका 9 सितंबर, 2010 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में तबादला किया गया जबकि 12 फरवरी, 2011 को वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्हें 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
जस्टिस शरद अरविंद बोबडे
जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का जन्म 24 अप्रैल, 1956 को नागपुर में हुआ। उनके पिता का नाम अरविंद श्रीनिवास बोबडे हैं। बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की है। मौज़ूदा समय में वे सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज हैं और अगले प्रधान न्यायाधीश भी। शरद अरविंद बोबडे अपर न्यायाधीश के रूप में 29 मार्च, 2000 को बॉम्बे हाई कोर्ट की खंडपीठ का हिस्सा बने। 16 अक्टूबर, 2012 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। 12 अप्रैल, 2013 को भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उनका कार्यकाल 23 अप्रैल, 2021 में सम्पूर्ण होगा।
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सेंट स्टीफन कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ बीए दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी किया है। इसके साथ ही उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल, यूएसए से एलएलएम की डिग्री और ज्यूरिडिकल साइंसेज (एसजेडी) में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। डीवाई चंद्रचूड़ को 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया। चंद्रचूड़ 2013 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और बॉम्बे हाई कोर्ट के जज भी रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ 1998 तक भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी अपनी सेवाएँ दे चुके हैं।
जस्टिस अशोक भूषण
जस्टिस अशोक भूषण का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 5 जुलाई, 1956 को हुआ। उनके पिता का नाम चंद्रमा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम कलावती श्रीवास्तव था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक अशोक भूषण ने साल 1979 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही फस्र्ट डिवीजन में एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 9 अप्रैल 1979 को वे उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में रजिस्टर्ड हुए और इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। साल 2001 तक वो वहाँ रहे। 24 अप्रैल 2001 को वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज नियुक्त किये गये। 2014 में वे केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 13 मई, 2016 को अशोक भूषण को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्तकिया गया।
जस्टिस एस. अब्दुल नाीर
जस्टिस नाीर का जन्म 5 जनवरी 1958 को कर्नाटक के कनारा में हुआ। नाीर ने 18 फरवरी, 1983 में बेंगलुरु में कर्नाटक हाई कोर्ट में एक वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की। 12 मई, 2003 में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया। 24 सितंबर, 2004 को कर्नाटक हाई कोर्ट में उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। फरवरी, 2017 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय में प्रोन्नत किये गये। अब्दुल नाीर ने 2017 में ट्रिपल तलाक मामले की सुनवाई भी की थी।
अयोध्या विवाद : साल-दर-साल घटनाएँ
अयोध्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े मामले में आखिर 9 जुलाई को फैसला आ गया। लंबे समय से पूरे देश को इसका इंतजार था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गागोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस ऐतिहासिक मामले में फैसला 16 सितंबर को सुरक्षित रख लिया था।
‘तहलका’ के पाठकों के लिए यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं विवाद की पूरी कहानी। इतिहास के मुताबिक अयोध्या में विवाद की नींव कोइ 491 साल पहले पड़ी जब वहां मस्जिद का निर्माण हुआ। आइए जानते हैं साल-दर-साल पूरी तस्वीर-
साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने उस जगह मस्जिद का निर्माण कराया, जिसे अब विवादित कहा जाता है। हिन्दु पक्ष का दावा है कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहाँ पहले एक मंदिर था।
साल 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार साम्प्रदायिक सौहार्द को चोट लगी जब दो समुदायों में दंगे देखने को मिले।
साल 1859 में तनाव देखते हुए अंग्रेजी शासन ने उस जगह बाड़ लगा दी, जिसे लेकर विवाद था। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।
साल 1949 में जमीन को लेकर बड़ा विवाद शुरू हुआ जब 23 दिसंबर, 1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में मिलीं। यह मूर्तियाँ मिलने के बाद हिंदु पक्ष ने दावा किया कि वहाँ भगवान राम प्रकट हुए हैं। हालाँकि, मुस्लिम पक्ष का आरोप था कि किसी ने चुपचाप मूर्तियां वहाँ रखीं। उस समय की यूपी सरकार ने यह मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भडक़ने के भय से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। यूपी सरकार ने इस स्थल को विवादित ढाँचा मानकर वहाँ ताला लगवा दिया।
साल 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जियाँ दायर की गयीं। इसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत माँगी गयी। नौ साल बाद साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दायर की।
साल 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पोजेशन की और मूर्तियाँ हटाने की माँग उठायी।
साल 1984 में विवादित ढाँचे की जगह मंदिर बनाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने एक समिति का गठन किया।
साल 1986 में याचिकाकर्ता यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने पहली फरवरी, 1986 को हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढाँचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया।
6 दिसंबर, 1992 को भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद् और शिवसेना समेत दूसरे हिन्दू संगठनों के लाखों कार्यकर्ता विवादित ढांचे पर पहुंचे और उसे ढहा दिया। इस घटना से देश भरमें साम्प्रदायिक तनाव पैदा हुआ और दो समुदायों के बीच दंगे भडक़े गए। एक अनुमान के मुताबिक इस भयावह स्थिति में करीब 2000 लोगों की जान चली गयी।
साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया।
साल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। भाजपा के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप दोबारा बहाल किये।
8 मार्च, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को आठ हफ्ते के भीतर कार्यवाही पूरी करने को कहा।
पहली अगस्त, 2019 को मध्यस्थता पैनल ने अपनी रिपोर्ट पेश की।
2 अगस्त, 2019 को सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा।
6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की जो लगातार 40 दिन चली।
16 अक्टूबर, 2019 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवंबर, 2019 को फैसला आया।
कितनी सुनवाइयाँ कितने घंटे
यह जानना भी बहुत दिलचस्प है कि आखिर सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में कितनी सुनवाइयाँ हुईं, कितने घंटे दलीलें सूनी गयीं और क्या-क्या हुआ। ‘तहलका’ पाठकों की दिलचस्पी के लिए पेश है इसका पूरा ब्योरा –
अयोध्या में ज़मीन के इस विवाद की मैराथन सुनवाई हुई। रिकॉर्ड के मुताबिक इस मामले में कुल 39 सुनवाइयों हुईं। करीब 165 घंटे दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गईं। हिंदू पक्षकार ने पहले 16 दिन में 67.35 घंटे तक मुख्य दलीलें रखीं। मुस्लिम पक्ष ने अपना पक्ष रखने के लिए 18 दिन में 71.35 घंटे का वक्त लिया। यह जानना भी दिलचस्प है कि इतने दिन तक चलने के बावजूद यह देश का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला सबसे बड़ा फैसला नहीं। केशवानंद भारती का मामला सबसे लम्बा मुकदमा है, जो 68 दिन तक चला। इस लिहाज से अयोध्या ज़मीन विवाद दूसरा सबसे लंबा मुकदमा है।
इस मामले में कुल 20 याचिकाएं दायर की गयीं, जिनके प्रमुख याचिकाकर्ता पक्षकार रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड हैं। हालाँकि, शिया सेंट्रल बोर्ड भी बाद में एक पक्षकार बना। शिया बोर्ड विवादित जगह पर राम मंदिर ही बनाये जाने का समर्थक रहा।