एलबमः बेवकूफियां
गीतकार » अंविता दत्त, हबीब फैजल
संगीतकार » रघु दीक्षित
रघु दीक्षित बढ़िया गाते हैं. बढ़िया लिखते हैं, बढ़िया ही संगीत देते हैं. उनके ‘मस्ती की बस्ती’, ‘हे भगवान’, ‘मैसूर से आई’ और ‘अंबर’ आज भी ताजे हैं. लेकिन ऐसा तभी होता है जब वे ‘इंडी’ नाम के गोवर्धन के नीचे अपने संगीत संग रहें. यशराज की छांव में उनका संगीत अपना रंग छोड़ श्वेत-श्याम हो जाता है. और ऐसा होना नहीं चाहिए था.
‘बेवकूफियां’ में रघु दीक्षित विशाल-शेखर ज्यादा हैं हालांकि एलबम के दो अच्छे गीतों में से एक विशाल ही गाते हैं. ‘हे जिगड़ा’ विशाल की खराश आवाज में बेहद अच्छा लगता है जिसका संगीत भी रघु दीक्षित के घर का है. इसके बाद के दो गाने वे विशाल-शेखर के घर जाकर बनाते हैं. गुलछर्रे और रूमानी सा. आप जो गुलछर्रे उड़ाते है उन्हें जेबों में भरने वाला गीत ‘गुलछर्रे’ लिखते हुए अन्विता दत्त को मजा आया होगा, पता चलता है. सुनते हुए हमें भी आना था. नहीं आया. वहीं ‘रूमानी सा’ लिखा अच्छा है, गाया साधारण हैं और संगीत पुराना है. यानी पूरेपन में बेकार गीत. इसके बाद वाला ‘खामखां’ मकानमालिक-किरायेदार की प्रेम भरी तकरार ज्यादा बन गया है, प्रेमियों की कम. ठीक से मुखड़े पर हबीब फैजल के कुछ अंतरे हास्यास्पद हैं, और भला हो नीति मोहन और बांसुरी का, कि हम फिर भी सुनते हैं. एलबम का दूसरा अच्छा गीत अतिसामान्य लिखा ‘बेवकूफियां’ है जिसे रघु दीक्षित अपनी अंबर जैसी विशाल आवाज में शानदार गाते हैं और इसे हम ज्यादा दिनों तक नहीं सुनेंगे, पता है, फिर भी बेवकूफियां शब्द का उच्चारण ‘पैसा वसूल’ जैसी भावना के समकक्ष गाने को ले आता है. आखिरी गीत ‘ओ हीरिए’ आयुष्मान खुराना का है और बेकार है.
‘बेवकूफियां’ के बहाने रघु दीक्षित का पहला एलबम सुनना बेहतर है. और कुछ वक्त पहले आया ‘जग चंगा’ भी.