केंद्र सरकार ने सोमवार को असम के उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) से समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये, जिससे वहां एक अलग बोडो राज्य की मांग अब ठंडी पड़ने की संभावना है। लंबे समय से असम में अलग बोडोलैंड की मांग करने वाले चार गुटों ने इस समझौते में हिंसा का रास्ता त्यागने का फैसला किया है।
दिल्ली में सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में असम सरकार के साथ एनडीएफबी ने समझौते पर हस्ताक्षर किये। समझौते के दौरान एनडीएफबी के रंजन दैमिरी, गोविंदा बासुमैत्री, धीरेन बोरे और बी सारोगैरा समेत अन्य प्रतिनिधि मौजूद रहे। समझौते में कहा गया है कि यह उग्रवादी संगठन अब असम में अलग बोडोलैंड राज्य की मांग नहीं करेंगे।
गौरतलब है कि नेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ बोडोलैंड के नेतृत्व में अलग बोडोलैंड राज्य की मांग लम्बे समय से उठाई जा रही थी। इसके लिए कई मौकों पर हिंसा का रास्ता भी अपनाया जाता रहा है। यह समझौता होने के एक दिन पहले ही असम में पांच बम धमाकों ने दहशत पैदा कर दी थी। गणतंत्र दिवस पर असम के डिब्रूगढ़, चराईदेव और तिनसुकिया में यह पांच धमाके हुए थे।
वैसे इन धमाकों में किसी तरह के बड़े नुकसान की खबर नहीं आई है। धमाकों की जिम्मेदारी उल्फा (आई) ने ली थी, जिसके कुछ सदस्यों ने बीते दिनों आत्मसमर्पण किया था। अभी यह मालूम नहीं है कि क्या बोडोलैंड की मांग करने वाले सभी गुट इस समझौते से सहमत हैं।
समझौते के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा – ”आज भारत सरकार, असम सरकार और बोडो संगठन के चार समूहों के बीच समझौता हुआ है। ये समझौता सुनहरे भविष्य का दस्तावेज है। साल १९८७ से ये आंदोलन हिंसक बना, इसमें २८२३ नागरिक संघर्ष में मारे गए जबकि ९४९ बोडो काडर के लोग और २३९ सुरक्षाबल मारे गए।”
समझौते के बाद केंद्र सरकार की ओर से बोडो गुटों की मांग को मानते हुए एक अलग यूनिवर्सिटी, कुछ राजनीतिक आधार, बोडो भाषा के विस्तार पर विस्तार किया जा सकता है। पिछले हफ्ते ही असम के आठ प्रतिबंधित संगठनों से ताल्लुक रखने वाले ६४४ उग्रवादियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री सबार्नंद सोनोवाल के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।