एनकाउंटर कितने सच्चे, कितने फर्ज़ी

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक डॉक्टर से दुष्कर्म और बेरहमी से उसकी हत्या के चार आरोपियों के एनकाउंटर (मुठभेड़) में मारे जाने के बाद एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि देश में पुलिस की तरफ से किये जाने वाले एनकाउंटर कितने सच्चे होते हैं और कितने फर्ज़ी? पूर्व में भी इस तरह के कई एनकाउंटर सवालों के घेरे में रहे हैं। यहाँ इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह है कि क्यों इस तरह के एनकाउंटर हमारे देश में एक उत्सव के रूप में सामने आने लगे हैं? क्या न्याय में देरी ने हमें इतना अधीर कर दिया है कि न्याय की जगह बदले की माँग होने लगी है?

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे का हैदराबाद एनकाउंटर के बाद यह बयान बहुत अहमियत रखता है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक मामलों को निपटाने में लगने वाले समय को लेकर आपराधिक न्याय प्रणाली को अपनी स्थिति और दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि न्याय तुरन्त हो सकता है या होना चाहिए। न्याय कभी भी बदले की जगह नहीं ले सकता।

दुर्भाग्यवश हैदराबाद एनकाउंटर को कुछ इस तरह पेश किया गया मानो अपराध का बदला लिया गया हो। टीवी चैनलों की फ्लैश हेडलाइन तक कुछ ऐसी रहीं, मानो आरोपियों की अमानुषिकता का शिकार डॉक्टर को न्याय मिल गया हो। इस घटना और पूर्व की घटनाओं में न्याय की देरी से गुस्सा उठना स्वभाविक है; लेकिन न्याय की देहरी पर पहुँचने से पहले ही आरोपियों को गोलियों से उड़ा देने के बाद पुलिस पर फूलों की बारिश कर, उन्हें राखी बाँधकर इस घटना को एक उत्सव का रूप देने का समर्थन करके क्या हम न्याय को कमज़ोर करने की कोशिश नहीं कर रहे?

हद तो यह हुई कि देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सांसदों तक ने बिना कुछ सोचे समझे एनकाउंटर का समर्थन कर दिया। यह भी नहीं देखा कि जिस पुलिस को एनकाउंटर करने के लिए महिमामंडित किया जा रहा है, उसकी लापरवाही भी डॉक्टर से रेप और उसकी निर्मम हत्या की •िाम्मेदार है। चार आरोपियों को नहीं सँभाल पाने और अपने हथियार छीनने देने का अवसर देने की भी •िाम्मेदार पुलिस है।

हैदराबाद की एनकाउंटर घटना के बाद देश के आम लोगों के बीच से समर्थन की जो प्रतिक्रिया आयी, वह स्वभाविक थी। निर्भया और उसके बाद असंख्य ऐसे मामले जिस तरह न्याय-अन्याय के झूले में झूलते रहे हैं, उससे ऐसा जन आक्रोश होना स्वभाविक है। लेकिन देश के •िाम्मेदार लोगों की तरफ से जैसी प्रतिक्रिया आयी, उसकी उम्मीद नहीं थी। बहुत ही खराब कारण देते हुए इस एनकाउंटर का औचित्य साबित करने की जैसी कोशिश हुई, उसे किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता। न्याय के रास्ते को अस्वीकार कर झटपट न्याय हासिल करने के इस शॉर्टकट में बहुत खतरे छिपे हैं, जिन्हें समझना ज़रूरी है। देश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं के भी ऐसे ही खतरे हैं। ऐसे ही खतरे जाति-धर्म के नाम पर प्रेमियों को पीटने और जान से मार देने में भी हैं। यह हमें अव्यवस्थित समाज की तरफ धकेल रहे हैं, इसे बहुत चिंताजनक कहा जाएगा।

हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर बहुत से सवाल उठे हैं। यह भी कहा गया है कि इसके पीछे राजनीतिक कारण रहे हैं। घटनाएँ भी इस एनकाउंटर की ईमानदारी को लेकर सवाल उठाती हैं। कुछ गलियारों में तो यह भी कहा गया कि कहीं असली अपराधी कोई और तो नहीं, और जिन्हें एनकाउंटर बताकर मार दिया गया, वे निर्दोष थे?

मानवाधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने तो हैदराबाद एनकाउंटर को सुनियोजित हत्या का दर्जा दे दिया। संगठन ने सवाल किया कि सीन रीक्रिएट करने के लिए तडक़े 3:00 बजे का समय क्यों चुना गया?

पीयूसीएल ने यह भी सवाल किया कि सीन रीक्रिएट करने के दौरान क्या इनमें से किसी आरोपी ने पुलिस के लोगों पर फायरिंग की? कहा कि आिखर आरोपियों की तरफ से ऐसा क्या हुआ कि पुलिस को गोली चलानी पड़ी।

संगठन का कहना है कि सभी आरोपी सात दिन से पुलिस की हिरासत में थे। उनके पास हथियार नहीं होंगे। जैसा कि तरीका है आरोपियों के हाथ बाँधकर, चेहरा ढककर वहाँ लाया गया होगा। ऐसे में वे कैसे भाग सकते हैं? पुलिस को गोली चलानी पड़ी, तो गोली घुटनों के नीचे क्यों नहीं मारी गयी। उनको ऊपर गोली क्यों मारी गयी? पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि यह प्लान्ड मर्डर है और पुलिस के िखलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।

मानवाधिकार संगठन ही नहीं, बहुत-से राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने एनकाउंटर के औचित्य पर सवाल खड़े किये हैं। इनमें •यादातर का कहना था कि कानून के रास्ते से इन सभी को देर-सवेर फाँसी की सज़ा मिल ही जाती। मानवाधिकार के मामले में हमेशा आगे रहीं भाजपा सांसद मेनका गाँधी ने तो साफ कहा कि जो हुआ, बहुत भयानक हुआ है इस देश के लिए। मेनका ने मीडिया से बातचीत में कहा कि आप सिर्फ किसी को इसलिए नहीं मार सकते, क्योंकि आप ऐसा करना चाहते हैं। आप खुद ऐसे कानून हाथ में नहीं ले सकते। उन्हें आज या कल कोर्ट से मौत की सज़ा मिल ही जाती। अगर आप उनको पहले ही बंदूक से मार दोगे, तो फिर फायदा क्या है- अदालत का, पुलिस का, कानून का? फिर आप बंदूक उठाओ और जिसको भी मारना है मारो।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि एनकाउंटर हमेशा ठीक नहीं होते हैं। इस मामले में पुलिस के दावे के मुताबिक, आरोपी बंदूक छीनकर भाग रहे थे। ऐसे में शायद उनका फैसला ठीक है। हमारी माँग थी कि आरोपियों को फाँसी की सज़ा मिले, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के तहत। हम चाहते थे कि स्पीडी ट्रायल हो। पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई होनी चाहिए। आज लोग एनकाउंटर से खुश हैं, लेकिन हमारा संविधान है, कानूनी प्रक्रिया है।

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया- ‘मैं सिद्धांतों में विश्वास करता हूँ। हमें अभी और •यादा जानने की ज़रूरत है। मान लें अगर अपराधी हथियारबंद थे, तो पुलिस गोली चलाने की वजह जस्टिफाई कर सकती है। जब तक पूरी जानकारी नहीं आ जाती है, तब तक हमें आलोचना नहीं करना चाहिए। लेकिन इसके बिना एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग नियमों से बँधे समाज में स्वीकार्य नहीं है।’

राजनीति में सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि इसमें तथ्य से •यादा वोट की चिन्ता रहती है। इस बार भी ऐसा हुआ। बहुत से नेताओं ने जनता के मूड के हिसाब से बात की, न कि यह कि संविधान को ध्यान में रखकर। कुछ दलों ने तो संतुलन साधने की भी कोशिश की। यानी पक्ष विपक्ष वाले दोनों ही स्वार्थ साध लिये।

ऐसे में राजनीतिक दलों की सोच पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। राजनीतिक दल ही सत्ता चलाते हैं। प्रशासन और पुलिस उनकी ही सरकारों के अधीन होती है। इसी पुलिस पर जब एनकाउंटर के नाम पर न्याय देने की कोशिशों पर सवाल उठेंगे, तो यह दल और सरकारें कैसे इन मामलों में नैतिकता दिखा पाएंगे? सत्ताधीश और विरोधी-दल ही मिलकर न्याय की बखिया उधेडऩे वाली घटना के लिए एकजुट हो जाएँ, तो उसमें उनसे •यादा क्या उम्मीद की जा सकती है?

एनकाउंटर में होने वाली हत्याओं को एकस्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग की संज्ञा दी गयी है। सर्वोच्च न्यायलय ने साफतौर पर कहा है कि इसके लिए पुलिस से तय नियमों का पालन करना ज़रूरी हैे। एक मामले की सुनवाई के दौरान 23 सितंबर, 2014 को भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आर.एम. लोढा और जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन की बेंच ने एक फैसले के दौरान एनकाउंटर का •िाक्र करते हुए अपने फैसले में लिखा था कि पुलिस एनकाउंटर के दौरान हुई मौत की निष्पक्ष, प्रभावी और स्वतंत्र जाँच के लिए नियमों का पालन किया जाना चाहिए।

कोर्ट का साफ निर्देश है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत किसी भी तरह के एनकाउंटर में इन तमाम नियमों का पालन होना ज़रूरी है। अनुच्छेद 141 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को कोई नियम या कानून बनाने की ताकत देता है।

यह तो इस एनकाउंटर के मामले की जाँच में सामने आ पाएगा कि इसमें उन नियमों का पालन हुआ या नहीं; लेकिन एनकाउंटर की घटनाओं को लेकर जिस तरह से सवाल उठे हैं, उससे यह आशंका जतायी जाती रही है कि लीपापोती की कोशिश हो सकती है।

उस फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि फर्ज़ी एनकाउंटर के आरोपी पुलिस वालों को न तो बहादुरी से जुड़े पुरस्‍कार दिये जाएँ और न ही उन्‍हें तरक्की दी जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने एनकाउंटर के सन्दर्भ में पुलिस के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किये हैं, उनमें मानवाधिकार संगठनों और आम लोगों के पुलिस पर फर्ज़ी मुठभेड़ के आरोपों के मद्देनजर रखकर किये गये हैं। वैसे सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि राष्‍ट्रीय मानव‍ाधिकार आयोग को पुलिस एनकाउंटर से जुड़े हर केस में दखल नहीं देना चाहिए। अदालत के मुताबिक, आयोग तभी कोई कदम उठाये, जब एनकाउंटर के फर्ज़ी होने को लेकर पुख्‍ता आरोप हों।

एनकाउंटर पर सवाल हमेशा उठते रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच रिपोर्ट में भोपाल की सेंट्रल जेल में कथित रूप से सिमी से जुड़े विचाराधीन कैदियों से साथ उत्पीडऩ की शिकायतों को काफी हद तक सही पाया और इसके लिए जेल स्टाफ के िखलाफ कानूनी कार्रवाई की अनुशंसा की। साल 2017 में भोपाल सेंट्रल जेल में सिमी से सम्बन्धित मामलों में आरोपी 21 विचारधीन कैदियों के परिवार वालों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी कि जेल स्टाफ ने कैदियों का शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीडऩ किया। यह मामला 31 अक्टूबर, 2016 की रात भोपाल सेंट्रल जेल में बंद सिमी के आठ संदिग्धों के कथित रूप से जेल से भागने और फिर उनके एनकाउंटर से जुड़ा हुआ है। यह एनकाउंटर भी अपने पीछे कई गम्भीर सवाल छोड़ गया था।

हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर सवाल इसलिए भी हैं, क्योंकि जिन चार लोगों को इसमें मारा गया वे आरोपी थे; दोषी नहीं। बहुत से लोगों का यह मानना है कि हो सकता है कि इनमें से कोई एक या •यादा दुष्कर्म या हत्या से जुड़ा ही न हो। ऐसे में उनका दोषी साबित हो जाने से पहले मारा जाना, न्याय को बाधित करता है।

हैदराबाद एनकाउंटर पर जितने भी सवाल उठे हैं, उन्हें पुलिस गलत बताती रही है। उसका कहना है कि पुलिस ने आरोपियों पर गोली तब चलायी, जब उन्होंने पुलिस से हथियार छीनकर उस पर हमला कर भागने की कोशिश की। पुलिस का कहना था कि डॉक्टर से रेप और उसकी निर्मम हत्या के बाद माहौल जैसा था, उसमें यदि आरोपी भाग जाते तो बवंडर खड़ा हो जाता। हो सकता है कि पुलिस की बात सच हो। और ऐसी परस्थितियां बनी हों। हमेशा पुलिस पर शक नहीं किया जा सकता। लेकिन हैदराबाद एनकाउंटर मामले में टाइमिंग और घटनाएं बहुत से संशय तो पैदा करती ही हैं, जिनका निराकरण ज़रूरी है। पूर्व में ऐसी घटनाएँ होती रही हैं, जिन पर सवाल उठे हैं।

लेकिन हैदराबाद एनकाउंटर का एक बड़ा सामजिक पहलू भी है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यह है त्वरित न्याय के लिए तमाम कानूनों को बाईपास करके थाली में रखा न्याय हासिल करना। इसे किसी भी रूप में स्वीकृति नहीं दी जा सकती। हाँ, यह ज़रूरी है कि न्याय-व्यवस्था में परिवर्तन किया जाए, जिससे न्याय समय पर उपलब्ध हो सके।

निर्भया मामला उदाहरण है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट से छ: महीने में फैसला आ जाने के बाद सात साल बाद भी निर्भया और उनके परिवार को न्याय क्यों नहीं मिल पाया? क्यों उनके परिजन आज भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। निर्भया जैसे अनेक मामले देश में हैं, जो न्याय के इंतज़ार में थक-हार चुके हैं।

मानवाधिकार को लेकर वैसे भी भारत में कई सवाल उठते रहे हैं। पिछले साल में भारत का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब होता रहा है। नार्थ-ईस्ट से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में कई घटनाओं पर गम्भीर सवाल उठे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अपनाये मानवाधिकार सम्बन्धी घोषणा-पत्र में कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि से इतर होते हैं। रही बात मौलिक अधिकारों की, तो यह देश के संविधान में उल्लिखित अधिकार हैं। लेकिन कई घटनाएँ गबाह हैं कि इनका हनन होता रहा है।

हैदराबाद एनकाउंटर ने देश में नयी बहस को जन्म दे दिया है। त्वरित न्याय की यह मान क्यों आमजन में घर कर रही है। यह भी कि सत्ता-शासन इतने पंगु क्यों हो गये हैं कि लोग कानून को बेहिचक और बिना डर अपने हाथ में लेने लगे हैं। जिस गति से यह सब हो रहा है, उससे तो न्याय प्रणाली ही अप्रासांगिक हो जाएगी। फिर कोर्ट-कचहरी का क्या काम रह रह जाएगा। फिर तो खुद ही हाथ में हथियार लो और न्याय हासिल कर लो। ऐसे में इस सोच को खत्म करना ज़रूरी है कि हमें हाथों-हाथ न्याय मिल जाये छ: इसके लिए कानून को बलिबेदी पर चढ़ा दिया जाए। यह सोच देश में खतरनाक अव्यवस्था पैदा कर देगी, जिसके नतीजे बहुत ही भयावह होंगे।

हैदराबाद एनकाउंटर

सुप्रीम कोर्ट ने जाँच के लिए आयोग बनाया 

सर्वोच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर को हैदराबाद एनकाउंटर के लिए एक आयोग का गठन किया है जो छ: महीने के भीतर सर्वोच्च अदालत को अपनी रिपोर्ट देगा। हैदराबाद एनकाउंटर के मामले में गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। इसमें अदालत ने इस आयोग के गठन का फैसला सुनाया। इस आयोग में तीन सदस्य होंगे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएस सिरपुरकर इस आयोग के अध्यक्ष होंगे, जबकि इसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व जज रेखा बेलदोटा और सीबीआई के पूर्व निदेशक कार्तिकेयन भी होंगे। याद रहे हैदराबाद में एक डॉक्टर से रेप और उसकी निर्मम हत्या के चार आरोपियों को पुलिस जब घटनास्थल पर सीन री-क्रिएट करने ली गयी ही, तब पुलिस के अनुसार इन आरोपियों ने पुलिस के हथियार छीन लिए और हमला कर दिया। पुलिस के मुताबिक, सके बाद उनसे मुठभेड़ हुई, जिसमें यह चारों मारे गये। सर्वोच्च अदालत में 12 दिसंबर को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ, जिसमें जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना भी हैं; ने यह फैसला दिया। इससे पहले पीठ ने कहा था कि हम इससे अवगत हैं कि इस मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट देख रही है। लिहाज़ा हम सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज को मामले की जाँच के लिए नियुक्त कर सकते हैं। पीठ ने तीन जजों का आयोग गठित करने और छ: महीने में इसकी रिपोर्ट देने को कहा है।

 क्या कहती है तेलंगाना पुलिस

साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार ने कहा कि 27-28 नवंबर की रात युवती के साथ दुष्कर्म हुआ और बाद में •िान्दा जला दिया गया। पहले आरोपियों ने युवती के साथ गैंगरेप किया, उसके बाद पेट्रोल डालकर जलाया। हमने इस मामले में चारों आरोपियों के िखलाफ ठोस सबूत इकट्ठे किये और बाद में उन्हें गिरफ्तार किया। हमें 10 दिन के लिए पुलिस कस्टडी मिली थी। इसके बाद 4 और 5 दिसंबर को हमने आरोपियों को पुलिस कस्टडी में लेने के बाद पूछताछ की। हमने आरोपियों का डीएनए टेस्ट भी किया है, ये सभी लोग कर्नाटक-तेलंगाना में कई मामलों में आरोपी थे। रिमांड के चौथे दिन हम उन्हें बाहर लेकर आये, उन्होंने हमें सबूत दिये। आज हम उन्हें आगे के सबूत इकट्ठा करने के लिए घटना स्थल लेकर आये थे। जब हम क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए घटना स्थल पर पहुँचे थे। यह एनकाउंटर सुबह 5.30 से 6.15 बजे के बीच हुआ है। चार में से एक आरोपी ने पुलिस से पिस्तौल छीनी और फायरिंग शुरू कर दी, जबकि बाकी तीन रॉड-पत्थर लेकर खड़े हो गये। इसमें दो लोग घायल हुए थे। इसके बाद 15 पुलिसकॢमयों ने आरोपियों पर फायरिंग शुरू कर दी थी। चारों आरोपियों की मौत गोली लगने के कारण से ही हुई है। यह आरोपियों के साथ हमारी मुठभेड़ थी।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

तेलंगाना में पशु-चिकित्सक से दुष्कर्म और हत्या के 4 आरोपियों के एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट में 7 दिसंबर को याचिका दायर की गयी। इसमें एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के िखलाफ एफआईआर, जाँच और कार्रवाई की माँग की गयी। याचिकाकर्ता एडवोकेट जीएस मणि और प्रदीप कुमार यादव ने कहा है कि इस मामले में पुलिस ने 2014 की सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं किया।

उधर तेलंगाना हाईकोर्ट में 9 दिसंबर को हैदराबाद एनकाउंटर मामले की सुनवाई शुरू हुई है। कोर्ट के निर्देश के अनुसार, सामूहिक दुष्‍कर्म के सभी आरोपियों के शवों को संरक्षित करके रखा गया है। साइबराबाद पुलिस के िखलाफ एक शिकायत भी दर्ज करायी गयी कि 6 दिसंबर को 4 आरोपियों के िखलाफ पुलिस ने जो एनकाउंटर किया था, वो फर्ज़ी था। इधर तेलंगाना सरकार ने भी एनकाउंटर पर उठ सवालों के बाद मामले में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन कमेटी (एसआईटी) का गठन कर दिया है।

एनकाउंटर, जिनका आज भी होता है •िाक्र

एनकाउंटर शब्द की उत्पत्ति

पहले यह बता दें, एनकाउंटर शब्द की उत्पत्ति कब हुई। अस्सी और नब्बे के दशक के बीच के वर्षों में मुम्बई में गैंगवार की बढ़ती वारदात पर अंकुश के लिए पुलिस की एक यूनिट गठित की गयी, जिसे एनकाउंटर स्क्वॉड का नाम दिया गया। गठन के बाद दाऊद इब्राहिम की डी-कम्पनी, अरुण गावली गैंग और अमर नाईक जैसे खतरनाक गैंग से निपटने की योजनाएँ बनीं। देश की जनता 11 जनवरी, 1982 में पहली बार एनकाउंटर शब्द से रू-ब-रू हुई। मुम्बई पुलिस के दो अफसरों राजा तांबट और इशाक बागवान ने कुख्यात अपराधी मान्या सुर्वे को मुम्बई के वडाला के एक एनकाउंटर में मार गिराया। मान्या सुर्वे उर्फ मनोहर अर्जुन सुर्वे के बारे में कहा जाता है कि उसे जिस हत्या में सज़ा हुई, उसमें उसका हाथ नहीं था। इसके बाद वह गैंगस्टर बन गया। उसके गैंग ने कई हत्याएँ कीं। िफल्म शूटआउट एट वडाला इसी एनकाउंटर की घटना पर आधारित थी, जिसमें एक्टर जॉन अब्राहम ने मान्या सुर्वे की भूमिका निभायी थी।

कनॉट प्लेस एनकाउंटर

यह 31 मार्च, 1997 की बात है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने कनॉट प्लेस इलाके में एक एनकाउंटर किया। उसके निशाने पर उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर थे। उस समय एसीपी एसएस राठी के नेतृत्व में क्राइम टीम ने जिन लोगों को मारा वो कोई गैंगस्टर नहीं, अपितु हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह थे। उन्हें गोली मारकर ढेर कर दिया गया। हाल के दशकों की यह ऐसी बड़ी घटना थी, जिसने लोगों को फर्ज़ी एनकाउंटर शब्द से रू-ब-रू कराया। इस फर्ज़ी एनकाउंटर मामले की सुनवाई 16 वर्ष तक चली। फैसले में अदालत ने आरोपी पुलिस और अन्य अधिकारियों को दोषी मानते हुए उन पर कार्रवाई के निर्देश दिये थे।

इशरत जहाँ एनकाउंटर

देश-भर में जिस दूसरे एनकाउंटर ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा, वह 2004 का है। इस एनकाउंटर में गुजरात पुलिस ने इशरत जहाँ के अलावा उसके दोस्त प्रनेश पिल्लई उर्फ जावेद शेख और दो पाकिस्तानी नागरिकों अमजदाली राना और जीशान जोहर को पुलिस ने मार दिया। बताया गया कि ये लोग आतंक में लिप्त थे। इशरत मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा, पूर्व एसपी एनके अमीन, पूर्व डीएसपी तरुण बरोट समेत 7 लोगों को आरोपी बनाया गया। पूर्व डीजीपी पीपीपी पाण्डेय को बीते साल सीबीआई अदालत ने इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया था। अक्टूबर, 2019 में इशरत की माँ शमीमा कौसर ने सीबीआई कोर्ट में कहा कि वो न्याय के इंतज़ार में थक चुकी हैं और आगे केस नहीं लडऩा चाहतीं।

सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर

26 मार्च, 2003 को गुजरात के गृहमंत्री रहे हरेन पंड्या की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। हत्या और उसकी सा•िाश रचने का आरोप सोहराबुद्दीन शेख पर था। घटना के बाद से वह फरार था, जबकि उसका साथी शॉर्प शूटर तुलसी प्रजापति पकड़ा गया था। साल 2005 में अहमदाबाद में राजस्थान और गुजरात पुलिस ने ज्वाइंट ऑपरेशन में सोहराबुद्दीन शेख को मार गिराया। उधर, 2007 में अहमदाबाद पेशी पर ले जाते समय तुलसी को उसके साथी छुड़ाने आये। इस दौरान मुठभेड़ हुई, जिसमें प्रजापति मारा गया। इस मामले की आँच पुलिस के साथ भाजपा नेता अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, उद्यमी विमल पाटनी, गुजरात के राजकुमार पंडेर पर भी आयी थी।

दारासिंह एनकाउंटर

स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी, जयपुर) ने 23 अक्टूबर, 2006 को जयपुर में दारासिंह का एनकाउंटर किया था। दारा सिंह उर्फ दारिया राजस्थान के चुरू का रहने वाला था और उसके िखलाफ अपहरण, हत्या, लूट, शराब तस्करी और अवैध वसूली से जुड़े करीब 50 मामले दर्ज थे। दिलचस्प यह है कि उसके एनकाउंटर से एक हफ्ता पहले ही पुलिस ने उस पर 25 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया था। हालाँकि दारा सिंह की पत्नी सुशीला देवी ने एनकाउंटर को फर्ज़ी बताया और इसे हत्या करार दिया। सुशीला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जाँच सौंपी थी। सीबीआई ने 23 अप्रैल, 2010 को केस दर्ज कर जाँच शुरू की। इस मामले में उस समय मंत्री राजेन्द्र राठौड़, तत्कालीन एडीजी ए.के. जैन सहित 17 लोगों को आरोपी बनाया गया।

बटला हाउस एनकाउंटर

दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में 13 सितंबर, 2008 को सीरियल बम ब्लास्ट हुए। इनमें 26 लोग मारे गये और 133 घायल हो गये। दिल्ली पुलिस की जाँच में सामने आया कि ब्लास्ट के पीछे आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) का हाथ था। धमाकों के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस को जानकारी मिली कि आईएम के पाँच आतंकी बटला हाउस इलाके के एक मकान में छिपे हैं। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के नेतृत्व में टीम बटला हाउस भेजी। इसके बाद दोनों ओर से फायङ्क्षरग हुई। इंस्पेक्टर मोहन को दो गोलियाँ लगीं और बाद में अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गयी। हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी। इस एनकाउंटर में आतिफ अमीन और सा•िाद की मौत हुई और दो को पकड़ लिया गया, जबकि आरिज़ और शहजाद भाग निकले।

वारंगल एनकाउंटर

हैदराबाद रेप-मर्डर मामले के आरोपियों को एनकाउंटर में मारने वाले पुलिस कमिश्नर वीजे सज्जनार 2008 में चर्चा में आये थे, जब वे वारंगल के एसपी थे। दिसंबर 2008 में एक महिला पर एसिड अटैक हुआ। पुलिस के मुताबिक, जब वह आरोपियों को गिरफ्तार कर जब घटनास्थल पर ले जा रही थी, तो उन्होंने भागने की कोशिश की। इसके बाद हुए एनकाउंटर में वे मार दिये गये।

सिमी सदस्यों का एनकाउंटर

भोपाल की सेंट्रल जेल से 30-31 अक्टूबर, 2016 की आधी रात भागे 8 स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) आतंकियों को एक पहाड़ी पर घेरकर पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया। पुलिस का दावा था कि जेल से भागते हुए इन आतंकियों ने एक सुरक्षा गार्ड की गला रेतकर हत्या कर दी थी। यह लोग चादर की रस्सी बनाकर भागे थे। इन आंतकियों को पुलिस ने ईंटखेड़ी के पास घेर लिया। पुलिस के मुताबिक, दोनों तरफ से गोलीबारी में सभी फरार कैदियों को मार गिराया गया।

आनंद पाल एनकाउंटर

2017 में राजस्थान के सालासर में गैंगस्टर आनंद पाल का एनकाउंटर किया गया। मुठभेड़ के दौरान आनंदपाल और उसके दो साथियों ने एके-47 समेत अन्य हथियारों से पुलिस पर करीब 100 राउंड फायर किये। आनंदपाल को 6 गोलियाँ लगीं। इस मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मी भी घायल हुए। आनंदपाल सिंह इससे पहले पुलिस की सुरक्षा को चकमा देकर भाग निकला था।

चर्चित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट

देश में सबसे •यादा एनकाउंटर करने का रिकार्ड महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारी प्रदीप शर्मा के नाम है। नब्बे के दशक में जब मुम्बई में आये-दिन गैंगवार होते थे, तब प्रदीप शर्मा ने 104 एनकाउंटर किये। साल 2010 में उन्हें निलंबित कर दिया गया और दोबारा सेवा ज्वॉइन करने के कई पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनाया। अब वे पुलिस सेवा छोडक़र शिवसेना में शामिल हो गये हैं। साल 1995 में मुंबई पुलिस ज्वॉइन करने वाले दया नायक भी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माने जाते हैं। वे अब तक 80 एनकाउंटर कर चुके हैं। विजय सालस्कर भी महाराष्ट्र पुलिस से थे, जो 26 नवंबर को मुंबई आतंकी हमले में शहीद हो गये। अपने सेवाकाल में उन्होंने 83 एनकाउंटर किये। छोटा शकील एनकाउंटर से चर्चा में आये प्रफुल भोसले भी मुम्बई पुलिस से हैं। उनके नाम 84 एनकाउंटर हैं। सचिन हिंदुराव वाजे महाराष्ट्र पुलिस से हैं और 63 एनकाउंटर कर चुके हैं। कानपुर के एसएसपी अनंद देव 2006 में आईपीएस अधिकारी बने। चंबल में एनकाउंटर के लिए मशहूर रहे देव के खाते में आधिकारिक तौर पर 60 एनकाउंटर दर्ज हैं। इनके अलावा राजेश कुमार पांडेय, दीपक कुमार, राजबीर सिंह भी एनकाउंटर्स के लिए जाने जाने वाले पुलिस अधिकारी हैं।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

खुफिया गतिविधियों की सूचना लिखित या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से आंशिक रूप में ही सही पर रिकॉर्ड अवश्य की जानी चाहिए। यदि सूचना के आधार पर पुलिस एनकाउंटर के दौरान हथियारों (असलहे) का इस्तेमाल करती है और संदिग्ध की मौत हो जाती है, तो आपराधिक जाँच के लिए एफआईआर अवश्य दर्ज हो। एनकाउंटर के तुरन्त बाद पुलिसकर्मियों को अपने असलहे जमा करवाने होंगे। ऐसी मौतों की जाँच एक स्वतंत्र सीआईडी टीम करे, जो आठ पहलुओं पर जाँच करे। एनकाउंटर के बाद सीआरपीसी के सेक्‍शन 176 के तहत तुरन्त मजिस्‍ट्रेट स्‍तर की जाँच शुरू हो। एनकाउंटर में हुई मौत के सम्बन्ध में तत्काल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य आयोग को सूचित किया जाए। पीडि़त घायल या अपराधी को मेडिकल सुविधा मिले और मजिस्ट्रेट उसके बयान दर्ज करे। एफआईआर और पुलिस रोजनामचे को बिना देरी कोर्ट में पेश करे। ट्रायल उचित हो और शीघ्रता से हो। अपराधी की मौत पर रिश्तेदारों को सूचित करें। एनकाउंटरों में हुई मौत का द्वि-वार्षिक विवरण सही तिथि और फॉर्मेट में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य आयोग को भेजा जाए। अनुचित एनकाउंटर में दोषी पाये गये पुलिसकर्मी का निलंबन हो उन पर कार्रवाई हो। एनकाउंटर में मृतक के सम्बन्धियों के लिए सीआरपीसी के अंतर्गत दी गयी मुआवज़ा योजना अपनायी जाए। पुलिस अधिकारी को जाँच के लिए अपने हथियार सौंपने होंगे। दोषी पुलिस अधिकारी के परिवार को सूचना दें और वकील और काउंसलर मुहैया कराएँ। एनकाउंटर में हुई मौत में शामिल पुलिस अधिकारियों को वीरता पुरस्कार नहीं दिये जाएँ। इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं हो रहा हो, तो पीडि़त सत्र न्यायाधीश से इसकी शिकायत कर सकता है।

उत्तर प्रदेश : तीन साल, 3600 एनकाउंटर

इस साल जून में आधिकारिक रूप से यह आँकड़ा सामने आया था कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद ढाई साल में 3,599 एनकाउंटर हुए और इनमें 73 अपराधी/आरोपी ढेर किये गये। इस दौरान चार पुलिसकर्मियों की भी जान गयी। इस दौरान पुलिस ने 8,251 अपराधी गिरफ्तार किये गये, जबकि 1059 अपराधी/आरोपी एनकाउंटर में घायल हुए। अब सरकार को बने तीन साल के करीब हो गये हैं, तो यह आँकड़ा निश्चित ही और भी •यादा हुआ होगा। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, पुलिस के ‘ऑपरेशन क्लीन’ से पैदा हुई दहशत के चलते 13,866 अपराधी/आरोपी जमानत रद्द करवाकर जेल चले गये। करीब 13,602 आरोपियों के िकलाफ गैंगस्टर एक्‍ट के तहत कार्रवाई हुई। हो सकता है कि यह आँकड़े देखने में जनहित में दिखें कि शायद इनसे जनता को राहत मिली होगी। लेकिन किसी ने यह ध्यान नहीं दिया कि इतने गैंग और अपराधी कैसे पैदा हो गये? इसमें पुलिस की कितनी बड़ी नाकामी छिपी है। अपराधियों को राजनीतिक/पुलिस संरक्षण के सैकड़ों आरोप लगते रहे हैं।

वर्तमान शिवसेना नेता और मुम्बई के पूर्व पुलिस अफसर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा से एनकाउंटर मामले पर तहलका संवाददाता ने बातचीत की। प्रदीप शर्मा ने पुलिस की एनकाउंटर की मजबूरियों, आवश्यकताओं और हालात के बारे में बताने के साथ-साथ ट्रिपल एस यानी सेल्फ डिफेंस, सेक्स एजुकेशन, सुपर जजमेंट सिस्टम से भी क्राइम करने के बारे में बताया।

क्या सेल्फ डिफेंस से लड़कियाँ सुरक्षित रहेंगी? न्याय में तत्परता भी तो ज़रूरी है?

सेल्फ डिफेंस लड़कियाँ विपरीत परिस्थिति में खुद को बचाने में कामयाब होंगी। सेक्स एजुकेशन से छोटी बच्चियों को भी समझ में आ जाएगा कि उनको छूने वाले की मंशा क्या है? और सुपर जजमेंट सिस्टम के तहत रैपस्टो को फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए कठोर सज़ा मिलेगी। फाँसी जैसी सज़ा से अपराधियों में खौफ पैदा होगा ।

एनकाउंटर का कानून में भी कोई प्रावधान है?

कानून में कोई प्रावधान नहीं है कि एनकाउंटर करो। यह तो एक एक्सीडेंट है, जो अचानक होता है। यदि 100 सीपीआरसी का प्रोटेक्शन है पुलिस को और ऐसे में उन पर कोई अटैक करता है, तो पुलिस सेल्फ डिफेंस में फायर करती है। कोई भी इसका अनुमोदन नहीं करेगा। लेकिन जो कुछ हम लोगों ने टीवी पर देखा, उससे तो यही लगा कि जवाबी फायर में वे लोग मारे गये। एक कॉन्स्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर भी घायल हुए हैं। वैसे भी हर एनकाउंटर की एक जुडिशल इंक्वायरी होती है। जो कुछ हुआ हम उसका सपोर्ट नहीं कर सकते; लेकिन जो भी पुलिस ने किया वह कानून के दायरे में रहकर किया। लेकिन यह भी सच है। क्योंकि हम घटनास्थल पर नहीं गये हैं; न हमने कोई इंक्वायरी की है, तो हम किसी डिसीजन पर नहीं पहुँच सकते कि वह एनकाउंटर फेक था या कुछ और बात थी। दूसरी बात यह है कि यदि अपने प्रोटेक्शन में पुलिस फायर नहीं करती, तो पुलिस ऑफिसर एनकाउंटर में शहीद हो जाते और आरोपी भाग जाते। वह कंडीशन खराब हो जाती। लोग कहते हैं कि देखो पुलिस के हाथ से अपराधी भाग गये। इससे पुलिस की क्षमता पर संदेह होता किया जाता।

एनकाउंटर के अलावा कोई दूसरा रास्ता है अपराध रोकने का?

महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी पोस्को के तहत कनविक्ट अपराधियों को मर्सी पिटिशन न देने की बात कही है। वहीं उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी त्वरित न्याय की बात कही है। इधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात कही है। उम्मीद है कि न्याय प्रक्रिया में तेज़ी आयेगी।

पुलिस अधिकारियों को दी गयी उनकी सलाह काबिल-ए-गौर है। उन्होंने कहा कि पुलिस को शक्ति का उपयोग केवल तब करना चाहिए, जब बहुत आवश्यक हो। कभी-कभी आम नागरिक भी उचित माँग करने के लिए अहिंसक तरीके से सडक़ों पर उतरते हैं। उस समय सामने आये गम्भीर अपराधों को छोडक़र पुलिस को संयम बरतना चाहिए।

एनकाउंटर हमेशा ठीक नहीं होते हैं। इस मामले में पुलिस के दावे के मुताबिक आरोपी बंदूक छीनकर भाग रहे थे। ऐसे में शायद उनका फैसला ठीक है। हमारी माँग थी कि आरोपियों को फाँसी की सज़ा मिले, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के तहत। हम चाहते थे कि स्पीडी जस्टिस हो। पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई होनी चाहिए। आज लोग एनकाउंटर से खुश हैं। लेकिन हमारा संविधान है, कानूनी प्रक्रिया है।

रेखा शर्मा

अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

वहाँ जो भी हुआ है, वह बहुत भयानक हुआ इस देश के लिए। क्योंकि आप कानून को हाथ में नहीं ले सकते हैं। वैसे भी उनको फाँसी मिलती। अगर आप उनको पहले ही बंदूक से मार दोगे, तो फिर फायदा क्या है, अदालत का, पुलिस का, कानून का। फिर तो आप बंदूक उठाओ और जिसको भी मारना है, मारो!

मेनका गाँधी

भाजपा सांसद

हैदराबाद की घटना से लोगों में संतोष और खुशी है। यह चिन्ता का विषय है कि देश की कानून-व्यवस्था से लोगों का विश्वास टूट चुका है। हम सबको मिलकर हमारी कानून-व्यवस्था और जाँच प्रणाली को मज़बूत करना होगा, ताकि लोग दोबारा इस व्यवस्था पर विश्वास करने लगें और हर पीडि़त को जल्द न्याय मिलेे।

अरविन्द केजरीवाल

मुख्यमंत्री, दिल्ली

मेरी पार्टी के लोगों को भी हमने जेल भेजा था, जिन पर किसी तरह के आरोप लगे थे। मेरा उत्तर प्रदेश की सरकार से कहना है कि हैदराबाद की पुलिस से यूपी पुलिस को सीख लेनी चाहिए और अपराधियों के िखलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

मायावती

बसपा प्रमुख

देर आए दुरुस्त आए।

जया बच्चन

सपा सांसद

मैं सिद्धांतों में विश्वास करता हूँ। हमें अभी और •यादा जानने की ज़रूरत है। अगर मान लें कि अपराधी हथियारबंद थे, तो पुलिस गोली चलाने की वजह जस्टिफाई कर सकती थी। जब तक पूरी जानकारी नहीं आ जाती है, तब तक हमें आलोचना नहीं करना चाहिए। लेकिन इसके बिना एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग नियमों से बँधे समाज में स्वीकार्य नहीं है।

शशि थरूर

कांग्रेस सांसद

हैदराबाद में दङ्क्षरदों को अपने पाप की सज़ा मिली। सभ्य समाज मे ऐसे पापियों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। मातृशक्ति की सुरक्षा सर्वोपरि है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया

कांग्रेस नेता एवं सांसद