जब कोई घोटाला करके उस घोटाले की रोचक कहानी बनाकर हमारे तंत्र को गुमराह करता है, तब आम जनता के लिए रहस्य और शक दोनों गहरे हो जाते हैं। ऐसे रहस्य अनेक रहस्यों को जन्म देते हैं और परत-दर-परत खुलते हैं। जैसा कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व सीईओ व पूर्व एमडी चित्रा रामकृष्ण की सीबीआई द्वारा गिरफ़्तारी के बाद रहस्यों की परतें खुल रही हैं। चौंकाने वाली बात यह रही कि चित्रा रामकृष्ण एक गुमनाम योगी से एक्सचेंज की गोपनीय जानकारियाँ साझा करती रही हैं। लेकिन 11 फरवरी को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की रिपोर्ट में कहा गया कि एनएसई में पायी गयी वित्तीय अनियमितताओं की जाँच के बाद शेयर बाज़ार की पूर्व मुख्य अधिकारी चित्रा रामकृष्ण ही घोटाले में लिप्त पायी गयी थीं। उसके बाद से उनके बयानों में ही तमाम ख़ुलासे से हुए हैं। इन्हीं तमाम पहलुओं पर एनएसई से जुड़े जानकारों ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि बिना सियासी खेल के इतना बड़ा खेल नहीं हो सकता। गुमनामी बाबा (अदृश्य योगी) का नाम गुमराह करने के लिए है। अगर गहराई से जाँच हो, तो इसमें सियासी लोगों के नाम सामने आ सकते हैं।
एनएसई से जुड़े कुमार राजेश ने बताया कि जिस प्रकार सेबी को चित्रा रामकृष्ण ने बताया कि योगी हिमायल पर रहता है। न ही उसका आकार है। न ही शरीर है। न कभी वह बात करता है और न कभी शोर करता है। जब वह चाहे चित्रा के सामने आसानी से उपस्थित होने की क्षमता रखता है। और तो और, चित्रा ने योगी की सलाह पर ही सीओओ पद पर आनंद सुब्रमण्यम को नियुक्त किया था। इस तरह 15 लाख सलाना वेतन पाने वाला आनंद पाँच करोड़ पाने लगा। कुमार राजेश का कहना है कि एनएसई में इतना बड़ा खेल चलता रहा और किसी को कानोंकान ख़बर ही न लगी हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। क्योंकि देश के कुल बजट से लगभग आठ गुना अधिक धनराशि वाले एनएसई में करोड़ों लोगों की पूँजी जुड़ी होती है।
बताते चलें कि बातों को तब तक गोपनीय रखा जाता है, जब तक घटना न घट जाए। घटना घट जाने पर फिर वही लीपा-पोती होती है। क्योंकि घटनाओं के माध्यम से घपलों को अंजाम दिया जाता है। ऐसा ही चित्रा ने किया है। 6 मार्च को चित्रा को गिरफ़्तार करने के बाद सीबीआई उनसे पूछताछ कर रही है। लेकिन सीबीआई को भी चित्रा लगातार गुमराह कर रही है। इसके पहले सीबीआई ने इसी मामले में 24 फरवरी को एनएसई के पूर्व ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर आनंद सुब्रमण्यम को गिरफ़्तार किया था। चित्रा ने आनंद को कथित योगी के कहने पर नियुक्ति की थी। इस सारे खेल के पीछे जो भी बड़े-बड़े मगरमच्छ हैं, फ़िलहाल उनका नाम जब तक सामने नहीं आ जाता, तब तक एनएसई की साख संदिग्ध बनी रहेगी। केवल चित्रा की गिरफ़्तारी के कोई मायने नहीं निकलते। क्योंकि यह घोटाला सालोंसाल से चलता आ रहा था। शेयर बाज़ार से जुड़े और आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. संदीप कुमार ने बताया कि मई, 2018 से दर्ज इस मामले की सीबीआई जाँच कर रही है। मगर उसने सक्रियता तब दिखायी, जब सेबी ने चित्रा रामकृष्ण सहित इस मामले में जुड़े अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की।
संदीप का कहना है कि जब 1990 के दशक में हर्षत मेहता ने शेयर बाज़ार में बड़ा घोटाला किया था, तब देश में घोटाला को लेकर बड़ा हो-हल्ला मचा था। शेयर बाज़ार, जिसमें जनता का पैसा लगा हो, उसमें किसी प्रकार के कोई घोटाले न हो सके इसी के लिए एनएसई जैसी संस्था की स्थापना की गयी थी। इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि पूँजी बाज़ार से जुड़े लोगों के हित सुरक्षित रहें और लोगों का भरोसा बना रहे। लेकिन 32 साल भी उसी तरह के घोटाले सामने आ रहे हैं। संदीप ने बताया कि एनएसई द्वारा प्रदान की जाने वाली को-लोकेशन सुविधा में ब्रोकर अपने सर्वर को स्टॉक एक्सचेंज परिसर के भीतर रख सकते हैं, जिससे उनकी बाज़ारों तक तेज़ी से पहुँच हो सके। इसी तरह की सुविधा का फ़ायदा उठाकर चित्रा रामकृष्ण के परिचितों ने जमकर लाभ कमाया है। इसी तरह के कथित आरोप चित्रा रामकृष्ण पर लग भी रहे हैं। 2014-15 के दौरान सेबी को एक शिकायत पर पता चला कि एनएसई के कुछ अधिकारियों की आपसी साँठ-गाँठ से शेयर बाज़ार के दलाल जमकर नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर अनुचित लाभ उठा रहे हैं। इसके बाद ही जाँच हुई और दिसंबर, 2016 में चित्रा रामकृष्ण को एनएसई से हटना पड़ा। जाँच के बाद सेबी ने एनएसई पर 687 करोड़ का ज़ुर्माना भी लगाया था।
आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. हरीश खन्ना का कहना है कि देश में घोटाले आये दिन सामने आते रहते हैं। कार्रवाई के नाम पर गिरफ़्तारी और पूछताछ होती है। कुछ दिनों तक मामला मीडिया में सुर्खियों में रहता है, फिर अचानक दब जाता है। इसी तरह घोटालेबाज़ अपने काम को अंजाम देते रहते हैं। जब तक इस तरह के घोटालों में संलिप्त लोगों से बड़ी वसूली नहीं की जाएगी, तब तक इस तरह के घोटाले होते रहेंगे। बड़े-बड़े घोटालेबाज़ सरकारी पैसा लूटकर रातों-रात देश छोडक़र भाग गये। जिस तरह सीबीआई की पूछताछ की जानकारी तो यह भी कहती है कि चित्रा रामकृष्ण और आनंद सुब्रमण्यम दोनों एक-दूसरे से पहचानने से इन्कार कर रहे हैं। जबकि दोनों ने कभी एक-दूसरे को 2,500 से अधिक ई-मेल किये हैं। चित्रा ने ही आनंद की तरक़्क़ी की। अब चित्रा सीबीआई से कह रही हैं कि उन्होंने तो घोटाले रुकवाने के प्रयास किये। असल में मुख्य आरोपी अभी सामने नहीं है।
एनएसई से जुड़े दस्तावेज़ और सॉफ्टवेयर से साफ होता है कि कोई तीसरा आदमी पर्दे के पीछे सारा खेल खेलता रहा। जब तक अदृश्य बाबा का पता नहीं लगता, तब तक असली खेल का पता नहीं चल सकता। लेकिन हमारा तंत्र ही ऐसा है कि सब कुछ इशारों पर होता है। सर्वविदित है कि एनएसई में करोड़ों लोगों की क़िस्मत सँवरती और बिगड़ती है। फिर भी करोड़ों लोगों से जुड़ी संस्था एनएसई में घोटाले होते रहे हैं। हैरानी है कि सरकार इससे अनजान रही है। क्या ऐसा सम्भव है?
मौज़ूदा दौर में देश की सियासतदानों का और आर्थिक मामलों से जुड़ी गतिविधियों का ऐसा गठजोड़ है कि कुछ भी हो जाता है। सियासतदान तो आसानी से अदृश्य बाबा के रूप में ग़ायब हो जाते हैं। फँस वे जाते हैं, जो सरकारी तंत्र के हिस्से के रूप में उनकी साज़िश का मोहरा होते हैं। क्योंकि हर काम में उनके हस्ताक्षर होते हैं। ऐसे में जाँच एजेंसियाँ ही ईमानदारी से जाँच करके असली दोषियों को पकडऩे के लिए दिन-रात एक करती हैं।
एनएसई की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण के कार्यकाल में जिस तरह की वित्तीय हेरा-फेरी हुई है, उसमें गिरफ़्तारी और ज़ूर्माना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि असली आरोपी को बेनक़ाब करके उसके ख़िलाफ़ भी कार्रवाई करने की ज़रूरत है।