पूर्व विधायकों को मिलेगी एक ही कार्यकाल की पेंशन, भले ही कितनी भी बार रहे हों विधायक
मासिक पेंशन मिलेगी 60,000 रुपये और राज्य के पेंशनर्स की तर्ज पर ही मिलेगा महँगाई भत्ता
पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने एक विधायक, एक पेंशन क़ानून लागू कर दिया है। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने लगभग 42 दिन बाद इस सम्बन्ध में राज्य सरकार के गत विधानसभा सत्र में पारित ‘पंजाब राज्य विधानमंडल सदस्य (पेंशन और चिकित्सा सुविधाएँ नियमन) संशोधन विधेयक-2022 को मंज़ूरी प्रदान कर दी है। इस सम्बन्ध में बीती 11 अगस्त को गजट अधिसूचना जारी होने के साथ ही पेंशन संशोधन राज्य में अधिनियम के रूप में तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।
अधिनियम में नयी पेंशन की गणना के तहत राज्य में अब किसी भी पूर्व विधायक को एक ही कार्यकाल की पेंशन मिलेगी, भले ही वह कितनी ही बार निर्वाचित हुआ है। यह पेंशन 60,000 रुपये मासिक होगी और इस पर राज्य सरकार के पेंशनर्स को देय महँगाई भत्ते की दर भी लागू होगी। अधिनियम में पेंशन वृद्धि का भी प्रावधान किया गया है। किसी भी पूर्व विधायक की 65, 75 और 80 वर्ष उम्र होने पर उसकी मासिक पेंशन में क्रमश: पाँच, 10 और 15 फ़ीसदी की वृद्धि होगी।
विदित हो कि पहले प्रत्येक पूर्व विधायक को उसके हर कार्यकाल के लिए पेंशन मिलती थी। उसमें हर वर्ष वृद्धि भी होती रहती थी। ऐसे में कुछ विधायकों की पेंशन पाँच से छ: लाख रुपये तक पहुँच चुकी थी। सरकार ने पेंशन में बदलाव को लेकर विधानसभा में विधेयक लाने से पहले गत 2 मई की मंत्रिमंडल की बैठक में पंजाब राज्य विधानसभा सदस्य पेंशन और चिकित्सा सुविधाएँ विनियमन) अधिनियम-1977 में संशोधन के प्रस्ताव को मंज़ूरी देकर इसे अध्यादेश के माध्यम से लागू करने का प्रयास किया था। यह प्रस्ताव मंज़ूरी के लिए राज्यपाल को भेजा गया; लेकिन वहाँ से इसे जल्द प्रस्तावित विधानसभा सत्र में संशोधन विधेयक के रूप में लाने का सुझाव दिया गया। इस पर सरकार ने गत विधानसभा सत्र में पेंशन संशोधन विधेयक पेश किया और इसे उसी दिन पारित कर मंज़ूरी के लिए राज्यपाल को भेज दिया था।
राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार के एक विधायक-एक पेंशन को एक बड़ा राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। देश में यह अपनी तरह का एक बड़ा और ऐतिहासिक फ़ैसला है, जिससे सरकारी और जनता के पैसे की राजनेताओं की मौज़ पर लगाम लगी है। यह फ़ैसला न केवल सराहनीय है, बल्कि जनता को भी रास आ रहा है। आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों से पूर्व ही जनता किये गये वादों में यह ऐलान किया था कि अगर वह सत्ता में आती है, तो वह ‘एक विधायक, एक पेंशन’ योजना लेकर आएगी।
राज्य सरकार का यह फ़ैसला जनभावनाओं के इसलिए भी अनुरूप है; क्योंकि उसमें राजनेताओं को सरकारी ख़ज़ाने से मिल रही अनाप-शनाप सहूलियतों, राज्य सरकारों द्वारा जनता की गाढ़ी कमायी के पैसे के दुरुपयोग और मूलभूत जनसुविधाओं की उपेक्षा के प्रति विरोध और रोष झलकता है।
पेंशन में बदलाव के फ़ैसले को राज्य की ख़स्ता हालत सुधारने तथा वित्तीय प्रबंधन, नियोजन और नियंत्रण बेहतर बनाने के एक ठोस क़दम के रूप में देखा जा रहा है। राज्य सरकार अपने इस फ़ैसले के माध्यम से अपनी कार्यप्रणाली को लेकर एक अहम संदेश जनमानस में देने में भी काफ़ी हद तक सफल रही है।
आम आदमी पार्टी ने पंजाब में उसकी सरकार के इस क़दम से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत उन सभी राजनीतिक दलों के लिए एक नज़ीर और नसीहत पेश करते हुए इनसे उनके शासित राज्यों में इस फ़ैसले को अपने यहाँ लागू करने की बड़ी चुनौती दे डाली है। सोशल मीडिया समेत अन्य संचार माध्यमों पर भी इन दलों पर इसी तरह का फ़ैसला लेने की माँग उठ रही है। देश के तीन राज्यों गुज़रात, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष के अन्त तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी ने ‘एक विधायक, एक पेंशन’ को राजनीतिक मुद्दे में तब्दील करके अपनी चुनावी रणनीति को अन्तिम रूप देने के साथ-साथ विरोधी दलों को कड़ी टक्कर देने के संकेत दिये हैं।
बहरहाल पंजाब सरकार के इस फ़ैसले से अनेक पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों की जेब ख़ासी हल्की होने जा रही है, जो एक से अधिक यानी छ: पेंशन्स तक ले रहे थे। इनमें तीन पूर्व विधायक छ:-छ:, दो पूर्व विधायक पाँच-पाँच, 12 पूर्व विधायक चार-चार, 39 पूर्व विधायक तीन-तीन, 56 पूर्व विधायक दो-दो तथा 127 पूर्व विधायक एक कार्यकाल की पेंशन ले रहे थे। यानी 112 पूर्व विधायक ऐसे हैं, जो एक से अधिक पेंशन ले रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, रजिंदर कौर भट्ठल और कैप्टन अमरिंदर सिंह सबसे ज़्यादा कार्यकाल की पेंशन्स लेने वालों में शामिल हैं। बताया जाता है कि इनकी मासिक पेंशन पाँच लाख रुपये से ऊपर है।
बलविंदर सिंह भुंदड़, सरवन सिंह फिल्लौर, आदेश प्रताप सिंह कैरों, गोविंदर सिंह लौंगोवाल, गुलजार सिंह राणिके, मदन मोहन मित्तल, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला, सुखदेव सिंह ढींडसा, अजीत इंदर सिंह मोफर, सुनील जाखड़, अश्विनी सेखड़ी, तीक्ष्ण सूद, सुरजीत सिंह ज्याणी, चुन्नीलाल भगत, जनमेजा सिंह सेखों, लक्ष्मीकांता चावला, मोहिंदर कौर जोश, बीबी जागीर कौर, मनोरंजन कालिया और मनतार सिंह बराड़ एक से अधिक पेंशन्स लेने वाले पूर्व विधायकों में शामिल रहे हैं। राज्य में ऐसे भी अनेक नेता हैं, जिन्हें विधायक के अलावा लोकसभा और राज्यसभा सदस्यता की भी पेंशन मिल रही थी।
प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान का एक विधायक, एक पेंशन विधेयक को मंज़ूरी मिलने पर कहना है कि इससे जनता की गाढ़ी कमायी और करदाताओं के पैसे की बचत होगी। उन्होंने ट्वीट किया कि सरकार के राज्य की अर्थ-व्यवस्था में सुधार की दिशा में इस अहम फ़ैसले से बहु-पेंशन के रूप में जा रहा बड़ा पैसा बचेगा, जिसे जनता के कल्याण पर ख़र्च किया जाएगा। एक बयान में उन्होंने विधायकों को एक तरह से नसीहत देते हुए कहा कि वे अपनी इच्छानुसार राजनीति में आये हैं। ऐसे में उनका पेंशन पर हक़ कैसे बनता है? उनके अनुसार, स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रीय नायकों ने ऐसे लोकतंत्र की परिकल्पना की थी, जहाँ निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के कल्याणार्थ लोक सेवक के रूप में काम करेंगे। अफ़सोस है कि गत लगभग 75 वर्षों में इन नेताओं ने सरकारी ख़ज़ाने से मोटा वेतन और पेंशन ली; जिसके लिए आम जनता और करदाताओं को निचोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि यह पैसा जनता की भलाई और विकास पर ख़र्च होना चाहिए था।
वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के अनुसार, राज्य में 100 से अधिक पूर्व विधायक हैं, जो एक से अधिक पेंशन्स ले रहे हैं, जिससे राज्य के ख़ज़ाने पर बड़ा बोझ पड़ रहा है। सरकार इस बोझ को कम करने का प्रयास कर रही है। राज्य में वर्तमान विधायक को 25,000 रुपये और मंत्री को 50,000 रुपये वेतन मिलता है। लेकिन बैठक, यातायात समेत सभी भत्ते जोड़ दिये जाएँ, तो एक विधायक और मंत्री लगभग एक लाख रुपये महीना तक लेता है। उनका कहना है कि राजनेता अगर सेवा भाव से राजनीति में आते हैं, तो एक पेशन से भी उनका गुज़ारा चल सकता है। सरकार के इस फ़ैसले से ख़ज़ाने के हर वर्ष लगभग 20 करोड़ रुपये और पाँच साल में 100 करोड़ रुपये बचेंगे।
अब आम आदमी पार्टी का फ़ैसला वास्तव में क्या मास्टरस्ट्रोक साबित होता है? और आने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक फ़ायदे की कसौटी पर यह कितना खरा उतरेगा? यह तो वक़्त ही बताएगा। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकारों के कामकाज को स्वीकारने अथवा नकारने को लेकर मत (वोट) के माध्यम से अपनी मुहर लगाने का अधिकार केवल और केवल जनता को ही हासिल है।