सिनेमा और रंगमंच के महान कलाकार , लेखक और निर्देशक गिरीश कर्नाड अब नहीं रहे। 10 जून को उनके निवास पर उनका निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कर्नाड ने ‘नागमंडल, ‘तुगलक, और ‘ययाति जैसे नाटकों की संरचना की। वे केवल एक मंजे हुए कलाकर, लेखक या निर्देशक ही नहीं अपितु एक निडर इंसान भी थे। उन्होंने अपने विचारों को हमेशा बेबाकी से व्यक्त किया। जैसे वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाजपा का एकमात्र चेहरा होने की काफी आलोचना करते थे। अपने विचारों को खुल कर रखने के कारण वे कई बार विवादों में भी घिरे। गिरीश कर्नाड भाजपा और उनके सहयोगियों के आलोचक भी थे। जिन 600 कलाकारों ने चुनाव में भाजपा को हराने की अपील करते हुए एक पत्र जारी किया था उनमें कर्नाड भी शामिल थे।
गिरीश कर्नाड के परिवार में उनकी पत्नी सरस्वती, बेटा रधु कर्नाड और बेटी राधा है। रधु कर्नाड एक पत्रकार व लेखक हैं। परिवार के लोगों के अनुसार उन्होंने सुबह आठ बजे अंतिम सांस ली। गिरीश कर्नाड काफी लंबें समय से बीमार चल रहे थे। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके मरने पर कोई रीतिरिवाज न किया जाए, इसी कारण परिवार ने सभी से अपील की कि वे सीधे श्मशान घाट पर ही पहुंचें और वहीं उन्हें अंतिम विदाई दें। राज्य सरकार ने उनके सम्मान में एक दिन की छुट्टी और तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। यह विडंबना ही है कि उनके अंतिम संस्कार के समय न कोई बड़ी फिल्मी हस्ती और न ही कोई राजनेता वहां मौजूद था।
विविध प्रतिभाओं के धनी गिरीश कर्नाड का जन्म 1938 में डाक्टर रधुनाथ कर्नाड के घर हुआ। उनकी माता का नाम कृष्णाबाई था। गिरीश कर्नाड ने कई फिल्मों और नाटकों में सशक्त भूमिका निभाई जिनकी बहुत तारीफ हुई। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित गिरीश कर्नाड को 1974 में पद्मश्री और 1992 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। वे 1960 के दशक में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रोहड्स स्कॉलर भी रहे। उन्होंने वहां से दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ‘मास्टर ऑफ ऑट्र्स की डिग्री हासिल की।
उनके कन्नड़ भाषा में लिखे नाटकों का अंग्रेज़ी और भारत की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। वे ‘नव्या साहित्य अभियान का हिस्सा भी रहे। उनके नाटक ‘नागमंडल, ‘ययाति और ‘तुगलक बहुत लोकप्रिय हुए। कर्नाड ने ‘टाइगर जिंदा है और शिवाय जैसी फिल्मों में भी काम किया
कर्नाड के निधन पर सिनेमा, राजनीति और नाटक से जुड़े लोगों ने शोक जताया है। उनके निधन पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया,’लेखक, अभिनेता, और रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर गिरीश कर्नाड के देहांत के बारे में जानकार दुख हुआ है। उनके जाने से हमारे सांस्कृतिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा,’ वे उन मुद्दों पर भावुकता से बोलते थे जो उन्हें प्यारे लगते थे। आने वाले सालों में उनके काम की लोकप्रियता बनी रहेगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा,’उनके परिजन और दुनिया भर में मौजूद उनके मुरीदों के प्रति संवेदनाएं। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने कहा,’ प्रख्यात लेखक, रंगकर्मी, अभिनेता और निर्देशक गिरीश कर्नाड का निधन अति दुखद है। उनके परिवार और मित्रों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं।
गिरीश कर्नाड के निधन पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी ने ट्वीट किया-‘ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार, प्रतिष्ठित अभिनेता और फिल्म निर्माता गिरीश कर्नाड के निधन की खबर सुनकर मैं दुखी हूं। साहित्य, थिएटर और फिल्में में उनके बहुमूल्य योगदान को सदा याद रखा जाएगा। उनके निधन से हमने एक सांस्कृतिक दूत खो दिया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भी कर्नाड के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि कन्नड़ भाषा को उन्होंने ही सातवां ज्ञानपीठ दिलाया था। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बीएस येदुरप्पा ने अपने एक ट्वीट में कहा है – ‘जाने-माने अभिनेता, नाटककार व ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गए गिरीश कर्नाड के निधन की खबर से मैं दुखी हूं। उनके परिवार के साथ मेरी संवेदनाएं हैं। मख्यमंत्री कार्यालय ने कहा कि कर्नाड को राजकीय सम्मान दिया जाएगा जो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोगों को दिया जाता है।
फिल्मकार और अभिनेता कमल हसन ने ट्वीट किया-‘ गिरीश कर्नाड उनकी पटकथाएं मुझे हैरान और प्रेरित करती हैं। वे अपने पीछे कई प्रेरित प्रशंसक छोड़ गए हैं, जो लेखक हैं। इनके कार्य शायद उनके नुकसान को कुछ हद तक सहनीय बनाएं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि उन्होंने कर्नाड के रूप में एक करीबी मित्र खो दिया।
50 साल के अपने करियर में उन्हें चार बार फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले। उन्होंने अपना पहला नाटक ‘ययाति 23 साल की उम्र में लिखा। 1961 में लिखा गया यह नाटक कन्नड़ में था। गिरीश की शुरूआती पढ़ाई मराठी में हुई। जब वे 14 साल के थे तो उनका परिवार कर्नाटक के धारवाड़ में शिफ्ट हो गया। वहां उन्होंने कन्नड़ भाषा सीखी। उन्होंने 1958 में कर्नाटक आर्ट कालेज से बीए पास की। 1960 में वे पढ़ाई पूरी करने इंग्लैंड गए। वे यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में प्रोफेसर भी रहे। पर वहां उनका मन नहीं लगा तो नौकरी छोड़ कर भारत लौट आए। इसके बाद वे पूरी तरह फिल्मों के साथ जुड़ गए। उन्हें 1978 में बनी फिल्म ”भूमिका के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
अपनी विचारधारा के प्रति पूरी तरह समर्पित कर्नाड एक कार्यक्रम में एक तख्ती लटका कर पहुंचे जिस पर लिखा था- ‘मैं भी अर्बन नक्सल हूं। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था-‘मैं तब 17 साल का था जब मैंने आइरिश लेखक सीन ओकेसी का स्कैच बना उन्हें भेजा था। बदले में उन्होंने मुझे एक चि_ी भेजी इसमें लिखा था- मैं यह सब करके समय बरबाद न करूं बल्कि ऐसा करूं जिससे लोग मेरा ‘आटोग्राफ मांगे। पत्र पढऩे के बाद मैंने ऐसा करना बंद कर दिया। इससे मेरे जीवन में कई बदलाव आए।
इन्हीं बदलावों के नतीजे वे उस मुकाम तक पहुंचे जहां वे अपने अंतिम समय तक रहे। इतिहास उन्हें कभी भुला नहीं पाएगा।