जब दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 कें सिख विरोधी दंगो के दौरान पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में दंगे करने, घर जलाने और कफ्र्यू का उल्लंघन करने वाले 89 लोगों में से 70 को ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई पांच साल की सज़ा को बरकरार रखा तो दोषियों को उनके अपराध की सज़ा मिल गई।
1984 के सिख विरोधी दंगों में आरोपियों का अपराध सिद्ध होना लंबे संघर्ष के बाद न्याय को मिली दुर्लभ सफलता है। अदालत ने कहा कि सिख विरोधी दंगे स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक ‘काला अध्यायÓ है। पुलिस बल और नागरिक प्रशासन ने दंगो को रोकने के लिए समय पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की। अपराधिक कानून प्रक्रिया हिचकिचाहट और देर से शुरू हुई।
हालांकि यह सवाल अब भी उठता है कि इस सज़ा के बाद भी बड़े अपराधी स्वतंत्र घूम रहे हैं। निर्णय के तुरंत बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया ‘ 1984 के दंगों के दौरान त्रिलोकपुरी में सैकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार 88 अपराधियों को दोषी बरकरार रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। 34 साल बाद भी दंगा पीडि़तों को पूरा न्याय अभी नहीं मिला है। बड़े अपराधी अभी भी आज़ाद घूम रहे है।Ó
1984 के सिख विरोधी दंगो कें लिए दोषी 88 लोगों की सज़ा को बरकरार रखने के फैसले का स्वागत करते हुए केजरीवाल ने कहा कि” बड़े अपराधी अभी आज़ाद घूम रहे हैं और 34 साल बाद भी दंगा पीडितों को सही न्याय नही मिला।31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, अगले कुछ दिनों में राजधानी दिल्ली और अन्य जगहों पर सिख विरोधी दंगो और सिखों की हत्याओं को देखा गया।
त्रिलोकपुरी की घटना के संदर्भ में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार 95 लोग मारे गए थे और 100 से ज़्यादा घर जलाए गए थे। दोषियों ने 27 अगस्त 1996 को सैशन कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी , जिसने 27 नवंबर 1984 को गिरफ्तार 107 लोगों में से 88 को दंगो, घरों को जलाने और पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में कफ्र्यू उल्लघंन के लिए दोषी ठहराया था। न्यायाधीश आरके गआब ने सजा के खिलाफ दायर 22 साल पुरानी अपील को खारिज कर दिया और सभी दोषियों को जेल में सजा की अवधि से गुजरने के लिए तुरंत आत्मसमर्पण करने के लिए कहा।
पुलिस ने पहले कहा था कि 88 अभियुक्त जो कि उच्च न्यायालय चले गए थे उनमें से कई लोगों की अपील के दौरान मृत्यु हो गई है और उनके खिलाफ मामला खत्म हो गया है।
इससे पहले 20 नवंबर को दिल्ली की एक अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में दो लोगों की हत्या के लिए दोषी यशपाल सिंह को फांसी की सजा दी थी यह इस मामले में इस तरह की पहली सजा थी। इस मामले में दूसरे आरोपी नरेश शेरावत को उम्र कैद की सज़ा दी गई। यह विशेष जांच दल द्वारा खोले गए मामलों में पहली सज़ा थी।
पिछले महीने दिल्ली पटियाला हाउस ने यशपाल सिंह को 1984 के सिख दंगों में उसकी भूमिका के लिए फांसी कर सज़ा सुनाई और नरेश शेरावत को उम्र कैद की सजा सुनाई। सुरक्षा के कारण तिहाड जेल में फैसला सुनाया गया था। 15 नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान अभियुक्तों पर दिल्ली परिसर में हमला किया गया था।
दोनों पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली के महिपालपुर क्षेत्र में दो सिख युवकों की हत्या के लिए 15 नवंबर को दोषी पाए गए। इस मामले में विशेष यह है कि महिपालपुर में एक दुकानदार पर भीड़ के हमले से संबंधित यह मामला 1994 में अनचाहे रूप से बंद होने के बाद यह दोबारा खोला गया। घातक हथियारों के साथ किए गए हमले में दो सिख युवक मारे गए और तीन घायल हो गए थे। 1984 कें दंगों से जुड़े गंभीर मामलों को फिर से खोलने के लिए विशेष जांच दल बनाने के लिए केंद्र सरकार के 2015 में लिए निर्णय का यह परिणाम है। एक माल ट्रांसपोर्टर यशपाल सिंह को अब फासी की सज़ा सुनाई गई है और स्थानीय डाकिए नरेश शेरावात को उम्र कैद की। ट्रायल कोर्ट ने ताजा जांच के सबूत और तकनीकी आपत्तियों में मामूली विसंगतियों को अनदेखा कर दिया।
1984 के दंगों के मामले की जांच इस तथ्य से भी कई बाद बाधित हुई कि पुलिस का बड़ा वर्ग कंाग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों को शमिल करता था। इस मामले में लंबे समय से कांग्रेस कार्यकर्ता रहा जयपाल सिंह पकड़ा गया और 1986 मे एक मेजिस्ट्रेट की अदालत ने उसे बरी कर दिया था। हालांकि महीपाल पुर में 800 दंगाइयों के बीच नरेश और यशपाल की पहचान करने वाले गवाहों ने एक बार कहा था कि जयपाल सिंह हमले में एक प्रमुख भागीदार था। यह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे प्रभावशाली लोग कानून से बचने में कामयाब रहे। कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के निर्दोष घोषित करने को चुनौती देने वाली एक अपील दिल्ली हाईकोर्ट में है।
दिल्ली पुलिस ने 1994 में यह मामला सबूतों के अभाव में बंद कर दिया था। बाद में दंगों से जुड़े मामलों की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने यह मामला दोबारा खोला। दिल्ली में सिख विरोधी दंगो के 650 केस दर्ज किए गए थे। इनमें से 267 मामलों को ‘अनट्रेसड Ó कह कर दिल्ली पुलिस ने बंद कर दिया था। इन 267 मामलों में से ने पांच मामले सीबीआई के पास चले गए थे। इसके अलावा सीबीआई ने 18 रद्द किए गए मामलों का रिकार्ड भी खंगाला।
विशेष जांच दल को लगा कि 60 मामले ऐसे हैं जिनमें और जांच की जा सकती है। उसने पिछले डेढ साल में इन में से 52 मामलों में ‘अनट्रेसडÓ की रिपार्ट भेज दी। आठ मामलों में जिनकी जांच चल रही है उनमें से पांच में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं। बाकी तीन जिनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार भी एक आरोपी हैं, की जांच अभी चल रही है।
अपने 79 पन्नों के फैसले में अदालत ने कहा कि पुलिस ने एक दम से अपराध को दर्ज नहीं किया और साक्ष्य भी इक_े नहीं किए। इसके अलावा बाकी एजेसियां और ‘ट्रायल कोर्टÓ ने भी अपना काम करने में असफल रहे। न्यायामूर्ति गआबा ने कहा कि दंगों के बाद 95 शव बरामद हुए। इसमें से 22 की पहचान नहीं हो सकी। लगता है इन मौतों के बारे में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नही की गई। न्यायाधीश ने कहा कि यह अदालत दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देती है कि वह इससे जुड़े साक्ष्यों का फिर से अध्ययन कर उसे अगली कार्रवाई के लिए तैयार करें। फैसले में लिखा कि बड़ी मात्रा में दंगे हुए, भीड़ हिंसा हुई आगजनी, लूट और नरसंहार हुआ, और यह बात पूरी तरह से साबित हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट के फैसले को लागू किया जाना चाहिए।
अभियुक्तों के ज़मानती बांड निरस्त करते हुए अदालत ने कहा कि उसने देखा है कि हर सांप्रदायिक हिंसा के बाद राजनैतिक दवाब के आरोप लगे हंै। इसलिए यह ज़रूरी है कि अभियोग पक्ष की प्रक्रिया और जांच में स्वभाविकता नजऱ आए। बाकी बचे 19 लोगों में से 16 की मौत अपील के दौरान हो गई। यह अपील 27 अगस्त 1996 को ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ की गई थी। तीन लोगों की अपील उनके भगौड़ा हो जाने के कारण खारिज कर दी गई। न्यायामूर्ति आरके गआबा ने सजाआफता लोगों से कहा कि वे आत्मसमर्पण करके अपनी बाकी की सजा जेल में काटें।
2015 में विशेष जांच दल बनाने और इटली से भी गवाहों को बुलाने और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में नोटिस छपवाने समेत इस जांच दल ने 293 में से 60 मामलों की अच्छी तरह जांच की और इसमें पहली सजा सुनाई गई। दिल्ली की अदालत ने दो लोगों की मौत के लिए दो लोगों को अपराधी माना।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने दक्षिएा दिल्ली के महिपालपुर क्षेत्र में हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या के लिए नरेश शेरावत और यशपाल सिंह को दोषी करार दिया। यह मामला हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने दजऱ् कराया था।
पहली नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह अपनी करियाने की दुकान पर थे जब उन्होंने उपद्रवियों की एक भीड़ को अपनी ओर आते देखा। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में लोहे की छड़ें, लाठियां, हाकी स्टिकस, पत्थर और मिट्टी के तेल के कनस्तर थे। अवतार सिंह और हरदेव सिंह वहां से भाग कर एक पड़ोसी के घर में जा छुपे, पर भीड़ ने उन्हें वहां से निकाल कर मार डाला।
जब विशेष जांच दल ने छानबीन शुरू की तो उसने 27 अगस्त 2016 को दिल्ली और पंजाब की अखबारों में विज्ञापन दे कर लोगों से कहा कि यदि कोई भी आदमी उन दंगों के बारे में कुछ जानता है या बताना चाहता है तो वह उनसे आ कर मिले। 79 पन्नों के फैसले में अदालत ने कहा कि उसने उस समय के भयवाह दृश्यों को अपने ज़हन में रखा है जिसमें 800 से 1000 लोगों की भीड़ लूटमार करते,लोगों को मारते और उन्हें जि़ंदा जलाते घूम रही थी।
सजा पाए दोनों – नरेश शेरावत और यशपाल सिंह कथित तौर पर उस समय एक कांगे्रस नेता के निर्देशों का पालन कर रहे थे। यह एक चश्मदीद गवाह था जिसने अपनी आंखों से सारा कुछ देखा और उसी की गवाही इस मामले में महत्वपूर्ण साबित हुई। गवाह ने बताया कि एक कांग्रेसी नेता और अभियुक्त नरेश शेरावत के नेतृत्व में भीड़ लोगों को मार रही थी।
बचाव पक्ष के वकील ओपी शर्मा ने कहा कि सरकारी पक्ष ने एक भी स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया और न ही वे हथियार पेश किए जिनसे हत्या हुई। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि 30 साल के बाद इस तरह की बरामदगी संभव नहीं। किसी स्वतंत्र गवाह के बारे में अदालत ने कहा कि किसी भी आम आदमी के लिए इस तरह के दृश्यों को देख पाना संभव नहीं। न्यायाघीश ने सभी अपराधियों से चार हफ्ते के अंदर समपर्ण करने को कहा है।