दुनिया बुरे लोगों की बदौलत नहीं, बल्कि अच्छे लोगों की बदौलत चल रही है। क्योंकि अगर बुरे लोगों की वजह से दुनिया चल रही होती, तो यहाँ हर तरफ हाहाकार मची होती। वैसे आजकल बहुत-से बुरे लोग भी दुनिया के अनेक देशों, राज्यों और क्षेत्रों पर हुकूमत कर रहे हैं। यही वजह है कि अब बुरे लोग सरेआम वीभत्सता, दरिंदगी, हैवानियत, शैतानियत, वहशत, पशुता और पागलपन की सारी हदें पार कर देते हैं। लेकिन मैं फिर भी कहूँगा कि यह दुनिया अच्छे लोगों की वजह से ही चल रही है; और चलती रहेगी। हाँ, यह अलग बात है कि कुछ बुरे लोगों की वजह से हर काल, हर शतक, हर दशक, यहाँ तक कि हर रोज़, हर पल, कहीं-न-कहीं खून-खराबा होता रहा है, होता रहेगा; झगड़े होते रहे हैं, होते रहेंगे; सत्ता-सुख, शारीरिक सुख, ऐश-ओ-आराम के लिए छीना-छपटी, मार-काट, लूटपाट, अत्याचार होते रहे हैं, होते रहेंगे। यह सदियों से होता रहा है। इसे रोकना इतना आसान नहीं, या कहें कि इसे रोकना शायद ईश्वर के भी हाथ में नहीं; और अगर है, तो वह समय से पहले इसमें दखल नहीं देना चाहता। लेकिन हम अगर चाहें, तो इसे रोक भी सकते हैं।
क्योंकि इंसानियत को ज़िन्दा रखने के लिए दुनिया में धर्म, सत्य और अच्छाई का रास्ता बनाया गया है; ईश्वर की महानता, उसकी व्यापकता, उसकी ताकत, उससे जीव के, खासकर हमारे जन्म-जन्मांतर के रिश्ते को हमें बचपन से समझाया गया है। भले ही हममें से ही कुछ लोगों ने इस दुनिया को नरक बनाकर रखा है, लेकिन हम अगर संकल्प लें, तो इसे रोक सकते हैं।
न जाने कैसे-कैसे लोग हैं? जो दूसरों की रोटी छीनकर खुश होते हैं; दूसरों की लाशों पर जश्न मनाते हैं; दूसरों की हार को अपनी जीत समझते हैं और दूसरों के रोने पर हँसते हैं। ऐसे लोगों के चलते हम बार-बार शर्मसार होते रहते हैं। ऐसे लोग कुछ भी हों, ओहदे और पैसे में कितने भी बड़े और ताकतवर हों; मेरी नज़र में महापापी, परजीवी और नीच ही हैं। मुझे सन् 1990-91 की एक घटना याद आती है। उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक युवक की दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी। हत्या का आरोप एक मुस्लिम युवक पर आया। उसे जेल भी हुई। दरअसल गाँव में मज़हबी टकराव हो चुका था और बात इतनी बढ़ गयी थी कि हिन्दुओं और मुसलामनों में लाठियाँ तक चलीं। इनमें मुस्लिम समुदाय का एक लडक़ा पहलवानी करता था और एक साथ कई लठैतों को मार-गिराने की हिम्मत रखता था। वह यूँ तो फिज़ूल किसी से झगड़ा नहीं करता था, लेकिन एक दिन खेतों में उसका दो हिन्दू युवकों से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया और उसने दोनों को पीट डाला। बस उसके अगले ही दिन, उनमें से एक की लाश जंगल में पड़ी पायी गयी। ज़ाहिराना तौर पर आरोप मुस्लिम युवक पर आना था, सो आया। करीब चार साल बाद वह जमानत पर बाहर आया। उसके आते ही गाँव में फिर वही लड़ाई-झगड़े का माहौल पनप गया। जिस पक्ष के युवक की हत्या हुई थी, उसके दो भाई उसे जान से मारने की फिराक में लग गये। इसी गाँव में उन दिनों एक छोटा-सा मन्दिर भी था। इस मन्दिर में एक बाबा बड़ी शान्ति और सादगी से रहते थे। लेकिन गाँव के कुछ सुलपा (चिलम) पीने वाले लोग बाबा के पास आया-जाया करते थे या फिर पूजा करने आने वाली महिलाएँ, लड़कियाँ बाबा को खुराक आदि दे जाया करती थीं। बाबा को हत्या की सारी कहानी मालूम थी। दरअसल सुलपा पीने वालों के ज़रिये उन्हें गाँव की कई भेदिया बातें बैठे-बिठाये पता लगती रहती थीं। हिन्दू युवक की हत्या की सही जानकारी भी उन्हें इसी तरह मिली। हुआ यूँ- जिस युवक की हत्या हुई, वह पढऩे में काफी तेज़ था; लेकिन पिछड़े समाज से था। वहीं गाँव में उच्च वर्ग के एक अध्यापक थे, जो अपने ही गाँव के जूनियर हाई स्कूल में पढ़ाते थे। अध्यापक को गाँव के लोग और बच्चे माससाब कहकर पुकारा करते थे। यह माससाब देखने में बड़े मीठे और सीधे थे; लेकिन गाँव के दूसरे बच्चों को पढ़ते-बढ़ते देखना इन्हें बिल्कुल रास नहीं आता था। उनका सोचना था कि अगर पिछड़े तबके के बच्चे पढ़-लिख गये, तो उनके इकलौते लडक़े की हैसियत और इज़्ज़त कम होने लगेगी। दूसरा जिस युवक की हत्या हुई, वह माससाब के लडक़े से काफी योग्य था। यह बात माससाब को और भी अखरती थी। सो उन्होंने मौका देख जंगल में अकेले गये पिछड़े वर्ग के उस निर्दोष युवक की हत्या करा दी।
एक दिन देर शाम के समय मृतक के दोनों भाई बाबा के पास आये। उन्हें सुलपा पीना था। पहली बार नशा करने की कोशिश में मन्दिर आये थे; क्योंकि उन्हें मुस्लिम युवक से बदला लेना था। बाबा ने आश्चर्य से उन्हें देखा और नशा न करने की नसीहत दी। लेकिन गर्म खून कहाँ मानने वाला था, सो कह दिया बाबा आज चाहे जो कीमत ले लो, पर सुलपा की दम लगवा दो; आज भगवान शिव की कृपा से कोई बड़ा काम करना है; आप आशीर्वाद दीजिए।
बाबा बड़े मृदुभाषी और मन को पढ़ लेने वाले थे, सो उन्होंने भाँप लिया और प्यार से कहा- ‘होता है बेटा! भाई के जाने का गम बहुत बड़ा होता है। यह गम दुश्मन को मार देने पर भी नहीं जाता।’ बस फिर क्या था, दोनों के मन का गुबार निकल पड़ा। एक ने आँखें नम करते हुए कहा- ‘बाबा! उस कटुआ को नहीं छोड़ेंगे; उसने हमारे घर में मातम किया है।’ बाबा निष्पक्ष और शान्ति-प्रिय थे, सो उन्होंने किसी और अनहोनी की आशंका से दोनों को किसी की हत्या न करने की कसम देते हुए सब कुछ बता दिया। दोनों युवकों ने बाबा के पैर पकड़ लिए और पूछा- ‘बाबा! माससाब का क्या करें?’ बाबा ने कानून का सहारा लेने की सलाह दी। पीडि़तों के कहने पर पुलिस ने दोबारा हत्या की फाइल खोल दी; जाँच हुई। बाबा की बात सही पायी गयी। माससाब को जेल हुई। गाँव में पंचायत हुई। बाबा ने दोनों मज़हबों के लोगों को समझाया कि एकता से रहो, इसी में सबका भला है। उसके बाद गाँव में कभी कोई मज़हबी झगड़ा नहीं हुआ।