‘वहां से अपना देश कैसा दिख रहा है?’ प्रधानमंत्री ने पूछा. ‘ठीक-ठाक ही दिख रहा है.’ अंतरिक्ष यात्री ने ठंडी प्रतिक्रिया दी. प्रधानमंत्री निराश होकर बोले, ‘मैं जानना चाहता हूं कि अंतरिक्ष से हमारा देश कैसा लगता है.’ अंतरिक्ष यात्री बोला, ‘सर, यह भी कोई बताने की बात है.’ अंतरिक्ष यात्री का जवाब सुन प्रधानमंत्री कुछ सोच में पड़ गए. कुछ सोचकर बोले, ‘ यह बताएं कि वहां से अपना देश कैसा लगता है.’ ‘सर, ऊपर से देखने में अपना देश अच्छा दिखता है.’ वहां खडे़ उनके सहयोगियों और वैज्ञानिकों ने अपना सिर हिलाया. यह देखकर प्रधानमंत्री उत्साह के अतिरेक में वह पूछ बैठे जो उन्हें नहीं पूछना चाहिए था. ‘खुल कर बताइए वहां से क्या-क्या दिख रहा है.’ ‘सर कई लोग बैठ हुए दिख रहे हैं.’ ‘नाइस! कहां पर बैठे हुए हैं ?’ ‘सर वे रेलवे पटरी के किनारे बैठे हुए हैं.’ ‘क्या कोई धरना-प्रदर्शन हो रहा है?’ ‘नहीं सर’. प्रधानमंत्री और उनकी टोली ने राहत की सांस ली. ‘सर, वे लोग रेल पटरी के किनारे नित्त्यकर्म से निवृत्त हो रहे हैं.’ ‘हाऊ डिसगस्टिंग! हाऊ शेमफुल.’ प्रधानमंत्री का मूड कुछ उखड़-सा गया. तभी टोली में से एक सदस्य जो भारतीय प्रशासनिक अधिकारी था, ने
प्रधानमंत्री के कान में कुछ कहा. प्रधानमंत्री अंतरिक्ष यात्री से बोले, ‘तुम जहां देख रहे हो, वहां मत देखो! देखने का अपना कोण बदल लो.’ ‘जी सर, बदल दिया.’ ‘अब क्या दिख रहा?’ प्रधानमंत्री बोले. ‘सर, एक बहुत रोमांचकारी दृश्य दिख रहा है. यह सुन कर प्रधानमंत्री का मन खिल-सा गया. ‘सर एक नवविवाहिता ससुराल जाने से मना कर रही है.’ प्रधानमंत्री कुछ सोचने के बाद बोले, ‘डाउरी का प्रोटेस्ट कर रही है। ब्रेव गर्ल.’ ‘नहीं सर, वह कह रही है कि उसके ससुराल में शौचालय नहीं है, इसलिए वह वहां नहीं जाएगी.’ प्रधानमंत्री ने टोली की तरफ देखा और टोली ने उनकी तरफ. ‘सर, लड़कियों का एक स्कूल दिख रहा है…’ प्रधानमंत्री को न जाने क्या सूझी और बोल बैठे, ‘स्कूल वाली हमारी योजना दिख रही है कि नहीं!’ ‘माफ कीजिएगा सर, स्पष्ट नहीं देख पा रहा हूं. सर, एक गजब की बात देख रहा हूं.’ प्रधानमंत्री को कुछ रोमांच का अनुभव हुआ. ‘क्या!’ ‘कमाल है सर, लड़कियों के स्कूल में कोई शौचालय ही नहीं है!’ प्रधानमंत्री का मन अब बात करने का बिल्कुल न था. वे अनमने मन से बोले, ‘चांद कैसा दिख रहा है?’ ‘चांद से लाख गुना खूबसूरत अपनी पृथ्वी है, सर.’ ‘मगर यहां से तो चांद खूबसूरत दिखता है.’ ‘सब दूरियों का कमाल है, सर.’ ‘तब तो अपना देश भी खूबसूरत दिख रहा होगा!’ ‘हां सर, जैसा पहले आपसे कहा कि ऊपर से सब अच्छा दिखता है.’ ‘तो क्या देख रहे हो तुम?’ ‘सर मुझे लाखों लोग मैला उठाते हुए जाते दिख रहे हैं.’ प्रधानमंत्री बोले, ‘कहां जा रहे हैं सब?’ ‘सर, सब के सब मैला फेंकने जा रहे हैं.’ अब प्रधानमंत्री के लिए असहनीय था. वे कडे़ स्वर में बोले, ‘तुम अंतरिक्ष यात्री हो या कोई व्यंग्यकार !’ तभी वार्ता का क्रम टूट गया. जहां वार्ता का क्रम टूटा, वहीं प्रधानमंत्री और अंतरिक्ष यात्री के वार्तालाप को ‘संपूर्ण’ घोषित किया गया.
वार्ता के अगले दिन प्रधानमंत्री ने आनन-फानन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. वे ऐसा कदापि न करते यदि उनकी और अंतरिक्षयात्री के बीच हुई वार्तालाप को पूरे देश ने लाइव न देखा होता. कांफ्रेस में प्रधानमंत्री ने अंतरिक्ष यात्री द्वारा जो कुछ बताया गया था, उसे और अंतरिक्ष यात्री का झूठा सिद्ध कर दिया. उन्होंने कहा, ‘जब हमें यहां रहकर भी यह सब नहीं दिखता, तो लाखों-करोड़ों मील दूर से वह अंतरिक्ष यात्री यह सब भला कैसे देख सकता है.’
-अनूप मणि त्रिपाठी