काफी भव्य सुरक्षा व्यवस्था में अपना दरबार सजाए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खुद शिक्षिका के पति त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनके दरबार में जब एक दूसरी अध्यापिका ने तबादले की गुहार लगाई तो वे भड़क उठे। यह शिक्षक महिला थीं उत्तरा।
उनके पति की मौत हो चुकी है और वे बच्चों की देखभाल की भी पूरी जिम्मेदारी उनकी है। वे चाहती थी कि संवेदनशीलता के आधार पर उनका तबादला सुगम स्थल में कर दिया जाए। उत्तरकाशी के नौ गांव में जेष्टवाड़ी प्राथमिक स्कूल में दो जुलाई 2015 से वे समायोजित की गई थीं। पति के निधन के बाद बच्चों की देखरेख और घर-बार संभालने के चलते वे तीन अगस्त से दस मई 2017 तक स्कूल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें 16 जुलाई 2017 से आकस्मिक अवकाश लेना पड़ा और तब से अवैतनिक अवकाश पर रहीं।
अपनी गुहार उन्होंने गुरूवार को भव्य मुख्यमंत्री दरबार में लगाई। इस दरबार में गुहार लगाने वाले खड़े होकर याचना करते हैं और मुख्यमंत्री और उनके दूसरे मंत्री और नौकरशाह आसनों पर विराजमान रहते हैं। महिला शिक्षिका अपनी बात पूरी करती उसके पहले ही मुख्यमंत्री भड़क उठते हैं। तुरंत उनके सुरक्षाकर्मी सतर्क होते हैं और शिक्षक महिला को गलत तरीके से दरबार से बाहर निकालते हंैं। सोशल मीडिया पर वायरल यह वीडियो मुख्यमंत्री का स्वभाव और झुंझलाहट बताता है।
एक लंबे अर्से से तबादले की मांग कर रही बेवा और उम्रदराज उत्तरा जोशी का मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखती हैं। खासे असरदार तरीके से वे अपना निवेदन करती हैं। उस शिक्षिका के कुछ ही ओज भरे वाक्यों पर मुख्यमंत्री खीझ उठते हैं। वे उसे झिड़कते हैं। वहां मौजूद अधिकारियों और मीडिया के लोगों को भी मुख्यमंत्री के इस रवैए पर खासा आश्चर्य हुआ। आखिरकार वहां मौजूद सुरक्षा दस्ते उस शिक्षक महिला को दरबार से बाहर ले गए। यह व्यवहार था खुद एक शिक्षिका के पति का जो अब मुख्यमंत्री हैं। शिक्षक संगठनों ने भी इस पर विरोध जताया है।
उत्तराखंड में शिक्षा की जो दुव्र्यव्यवस्था है उसे दूर करने में मुख्यमंत्री या शिक्षा मंत्री और शिक्षा अधिकारियों की कोई दिलचस्पी नहीं है। इस कारण गांव-गांव, जि़ले-जि़ले में पब्लिक अंग्रेजी निजी स्कूल खूब पनपे हैं, जिनमें समाज के मध्यम वर्ग और विभाग के बच्चे भी इममें पढ़ते हैं।
उत्तराखंड के शिक्षा सचिव और शिक्षा अधिकारी अब प्रदेश में शिक्षा का स्तर ऊंचा करने के लिहाज से दशकों से कतई नहीं सोच रहे हैं। इसी कारण हरिद्वार, विकास नगर और देहरादून के कुछ नामी बड़े पब्लिक स्कूलों और कोचिंग संस्थानों की ही पूछ है।
तहलका ब्यूरो
वे भी भाजपा में कर्मी थे।
एक ज़माना था जब भाजपा के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और परस्पर सहयोग समाज में बेहतर तरीके से पहुंचाने के लिए याद किया जाता था। दौर था 1977 का। मध्यप्रदेश की जनता पार्टी सरकार में ओमप्रकाश रावल शिक्षा मंत्री थे। वे चाहते तो बडवानी में पढ़ाई की अपनी शिक्षक पत्नी का तबादला किसी अच्छे शहर भोपाल या इंदौर में करा सकते थे। लेकिन रावल ने ऐसा नहीं किया।
लेकिन जून महीने में जनता दरबार में पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लिखा हुआ आवेदन हाथ में लेकर पूछते हैं कि इसमें लिखा क्या है। शिक्षिका उससे कहती है कि यह तबादले का अनुरोध किया है वनवास का नहीं तो इतने पर मुख्यमंत्री तिलमिला उठते हैं। उनकी तिलमिलाहट देखकर उनके अधिकारी सतर्क हो जाते हैं। याचिक शिक्षिका के हाथ से फौरन छीन लिया जाता है। मुख्यमंत्री गुस्से में कहते हैं इसे बाहर निकालो। जेल भेजो।
‘कस्टडी में लोÓ इसे गरजे मुख्यमंत्री
‘मुगले आजमÓ फिल्म में बादशाह -ए-हिंदुस्तान जिल्ले सुबहानी जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर बने पृथ्वीराज कपूर ने भरे दरबार में जिस तरह अनारकली नाम की कनीज को दीवार में जिंदा चुनवा देने का हुक्म फरमाया था। लगभग उसी अंदाज में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक सरकारी अध्यापिका के लिए भरे दरबार में एलान किया- सस्पेंड करो इसे, कस्टडी में लो इसको।
दरबार
इस जनता दरबार में हुक्मरान और फरियादी रियाया के बीच का फासला किसी सामंत के दरबार जैसा ही था। दुनिया भर के खुले और लोकतांत्रिक समाज में जनता और उसके जन प्रतिनिधियों के बीच की नजदीकी और खुलापन वहां नहीं था। वहां काफी दूरी पर एक ओर फरियादी खडे थे, साथ ही खडा था मीडिया। सामने विराजमान थे राज्य के भाग्य विधाता, अपने मनसबदारों को साथ । यहीं फरियादियों में अपनी कहानी बताने आई थी उत्तरापंत बहुगुणा।
क्या थी फरियाद
पिछले 25 बरस से उत्तराखंड के एक जिले उत्तरकाशी के दुर्गम क्षेत्र के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हंै उत्तरापंत बहुगुणा। उनका तबादला कहीं और कभी नहीं हुआ। जब तक पति जीवित थे उन्होंने मांग भी नहीं की क्योंकि जब तक पति थे बच्चों की देखभाल अच्छी तरह हो जाती थी। उन्होंने अपना आवेदन पहले ही दे रखा था। जब विपदा सुनाने की आवाज लगी तो अपनी फरियाद सुनानी उन्होंने शुरू की।
पिछले साल उत्तरापंत के पति की मौत हो गई। शिक्षिका पर बच्चों की परवरिश और पढ़ाई लिखाई की चुनौती आ गई। उन्हें उम्मीद थी कि शिक्षा विभाग उनका तबादला देहरादून कर देगा। जिससे वे बच्चों की ठीक ठाक परवरिश कर सके। पर कौन सुनता है। लगभग साल भर से वे काम पर भी नहीं गई। मुख्यमंत्री के कान भर दिए गए।
कुछ यूं हुआ विवाद
वे पूरी बात कह पाती तभी दरबारी अफसरों से घिरे मुख्यमंत्री की आवाज़ गूंजी , ‘बोलिए मत सस्पेंड कर दूंगा। अभी यहीं पर, सस्पेंड कर दूंगा। अभी बता दिया मंैने तुम्हें, सुरक्षा कर्मी शिक्षिका को बाहर ले जाने के लिए आगे बढ़ते हैं। उसके हाथ से माइक छीन लिया जाता है। उसे घेरे में लेकर बाहर ले जाते हैं। फिर मुख्यमंत्री की तेज आवाज़ सुनाई देती है- ‘इसकों सस्पेंड कर दीजिए। इसको सस्पेंड करो आज ही। इसे ले जाओ बाहर। बंद करो इसको। कस्टडी में लो इसको।
इतना बड़ा क्या अपराध कर दिया था उस शिक्षिका ने। जिसके कारण मुख्यमंत्री ने उसकी बात भी नहीं सुनी और उसकी गिरफ्तारी का आदेश दे दिया। और तब बिना किसी दबाव के शिक्षिका ने तब मुख्यमंत्री को जवाब दिया,’तुम क्या सस्पेंड करोगे। मैं खुद को सस्पेंड कर रही हॅंू। सुरक्षा घेरा उसे बाहर ले जाता है। वह कहती है,’ चोर, उचक्के कहीं केÓ।
‘असंवेदनशील’ व्यवस्था
‘पूरी व्यवस्था इतनी असंवेदनशील हो गई है कि एक शिक्षिका 25 साल से दुर्गम इलाके में नौकरी कर रही है। आज उसे ज़रूरत है तो उसकी फरियाद पर कोई कान ही नहीं देता।Ó
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
राजेश जोशी
फिर किसके लिए लगा ही था यह अनोखा दरबार
पर्दा है तो खुला नहीं हो सकता और खुला है तो पर्दा नहीं हो सकता। हरियाणा के अति प्रतिभाशील मुख्यमंत्री ने जून के अंतिम सप्ताह में ऐसा ‘खुला दरबारÓ लगाया कि प्रदेश की जनता अब माथापच्ची कर रही है कि इसे खुला दरबार कहें या पर्दा नशीं दरबार।
इस अनोखे दरबार में मीडिया के चंद चेहरे और मुख्यमंत्री साहब की चिलम भरने वाले नेता, इतिहास रचने जा रहे अपने ‘माननीय मुख्यमंत्रीÓ के सामने बैठे थे।
उसके बाद विशाल पर्दा लगा दिया गया। उस पर्दे के पीछे ‘वोटोंÓ से कुछ घंटों के लिए इंसानों में तब्दील शख्सियत के लिए कुर्सियां लगा दी गई। किसी को यह समझ नहीं आ रहा था कि खुला दरबार, दरबारी नेताओं और पत्रकारों के लिए है या फिर जनता के लिए।
मुख्यमंत्री के पीछे ‘खुले दरबारÓ का एक बड़ा बैनर लगा था इसलिए इसे ‘खुला दरबारÓ की संज्ञा दे सकते हैं। वरना किसी भी रूप में यह दरबार खुला तो नही थां। मुगलिया शैली में लगे इस दरबार से दो बातें ज़रूर साबित हुई कि – मुख्यमंत्री जनता से रूबरू नहीं होना चाहते। शायद वजह यह हो कि पौने चार साल के कार्यकाल में अपने वायदे तक पूरे नहीं किए।
असलियत क्या है यह मुख्यमंत्री और उनके दरबारी ही बता सकते हैं। लेकिन यह ज़रूर है कि न पहले कभी ऐसा दरबार लगा और न भविष्य में इसके लगने के ही आसार हैं। मुख्यमंत्री ने वाकई एक इतिहास तो रच ही दिया। इस खुले दरबार को देख वैसा ही हास्य बार-बार उभर रहा था जैसा फिल्म ‘शोलेÓ में दिखा था। इसमें हीरोइन से हीरो पूछता है – तुम्हारा नाम क्या है बसंती।
इस अनोखे दरबार की खबर आपके लिए है। आप भी ठीक वैसा ही आनंद लीजिए।
उमेश जोशी, शशि जोशी