कहते हैं कि कुछ लोग अपनी असफलता का सारा दोष दूसरों पर मढऩे में संकोच तक नहीं करते। ऐसा ही मामला आजकल सरकार का है। जब कोरोना वायरस रफ्तार को रोकने में सरकार असफल-सी रही है, तो उसने सारा दोष जनता पर मढ़ दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि कोरोना के बढऩे कारण जनता का गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया है। लोग अनलॉक प्रक्रिया को गलत समझकर ऐसा मान बेठे हैं कि सब कुछ ठीक हो गया है। जनता को कोरोना से बचाव के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। लेकिन ऐसा न होने के कारण कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है। वहीं दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि दिल्ली में जो कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं; उसकी वजह बाहरी लोग हैं। सरकार के ऐसे बयानों से देशवासियों के भीतर एक निराशा पनपी है। कोरोना को लेकर सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए जनता पर दोषारोपण का जो खेल खेल रही है, उससे सरकार को कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
दरअसल कोरोना-मरीज़ों के इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों का सरकारी अस्पतालों के साथ जो साठ-गाँठ का खेल चल रहा है, उस पर सरकार को ज़रूर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। क्योंकि सरकार भले ही तामाम दावे करे कि कोई प्राइवेट अस्पताल वाले अपने यहाँ कोरोना के मरीज़ों को भर्ती करने से मना नहीं कर सकते; पर ऐसा हो नहीं रहा है। दिल्ली के जो नामी-गिरामी चार-छ: अस्पताल हैं। वहाँ पर गरीब मरीज़ इलाज नहीं करा पाते हैं। दिल्ली के कुछ मध्यम व मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल हैं, वहाँ पर कोरोना के मरीज़ों के साथ भेदभाव वाला रवैया अपनाया जाता है। सबसे चौंकाने वाली यह सामने आ रही है कि इन अस्पतालों में यह डॉक्टर तो खुद डरे हुए हैं कि कहीं कोरोना के मरीज़ ज़्यादा भर्ती हो गये, तो अन्य रोग के मरीज़ इलाज कराने से बचेंगे और डरेंगे, जिससे अस्पताल की कमायी प्रभावित होगी।
ऐसे हालात में सरकारी अस्पतालों- लोकनायक और सफदरजंग में कुछ डॉक्टरों की आपसी साठ-गाँठ से उनको भर्ती कराया जा रहा है। ऐसे में कोरोना वायरस के रोगी अपने इलाज के लिए भटकते रहते हैं। तहलका संवाददाता को दिल्ली के उन पत्रकारों ने आप बीती बतायी, जो कोरोना वायरस की चपेट में आये हैं। पत्रकारों का कहना है कि वे पहले तो लोकनायक अस्पताल में भर्ती हुए थे, चार-पाँच दिनों तक कोई लाभ नहीं हुआ और आधा-अधूरा इलाज देख उनको डर लगा कि सरकारी व्यवस्था में उनकी जान ही न चली जाए। ऐसे में पत्रकारों को नामी-गिरामी प्राइवेट अस्पतालों में जाकर पैसा देकर इलाज कराने को मजबूर होना पड़ा है और अब भी इलाज चल रहा है।
कोरोना के बढ़ते मामले को लेकर जो स्वास्थ्य मंत्रियों ने गैर-ज़िम्मेदाराना बात की है, उस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि सरकार ज़रूर अपनी कमी छिपाने के लिए जनता को दोष दे रही है। लेकिन हकीकत तो यह है कि सरकार ने जनवरी से लेकर मार्च तक कोरोना की रोकथाम को लेकर कोई कारगर कदम ही नहीं उठाये हैं, जिसके कारण कोरोना का प्रसार हुआ है; क्योंकि जब कोरोना ने देश में दस्तक दी थी, तब ये आवाज़ें उठी थीं कि कोरोना को लेकर सरकार सख्ती बरते। तब सरकार ताली-थाली बजाने और दिया जलाने में मस्त थी। कोरोना से पहले और अब तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का न तो विस्तार किया गया और न ही प्रर्याप्त स्वास्थ्य संसाधनों का। अगर सरकार शहरों से लेकर गाँवों-कस्बों तक कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लैबों की संख्या बढ़ायी जाती, तो आज यह दिन देखने नहीं पड़ते। डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि बीमारी व कोरोना महामारी में सियासत अपने बचाव के लिए जो भी कहें, पर पूर्ववत् सरकारों ने, न वर्तमान सरकार ने कभी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार को लेकर कोई अमल किया है। अमेरिका स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का 17 फीसदी बजट खर्च करता है। वहीं भारत सरकार में इसके लिए जीडीपी का केवल एक फीसदी ही खर्च करती है, जबकि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि भारत जैसे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में जीडीपी का 10 फीसदी खर्च होना चाहिए।
इस समय कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर गाँवों और कस्बों में ही नहीं, देश की राजधानी दिल्ली में भी झोलाछाप डॉक्टर जमकर मरीज़ों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। दिल्ली में मौज़ूदा समय में कम-से-कम 50,000 से ज़्यादा झोलाछाप डॉक्टर हैंै। इसी तरह बिना प्रमाणित कई लैब भी चल रही हैं, जो किसी भी तरह से लैब के मानक नियमों पर खरी नहीं उतरती हैं। लेकिन सरकार इन लोगों पर कार्रवाई करने से बचती है। इसकी क्या वज़ह है? कह नहीं सकते। कोरोना वायरस के फैलने के बाद इसके बढऩे के मामले में इन झोलाछाप डॉक्टरों और गैर-प्रमाणित लैब वालों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में केंद्रीय और दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री अक्सर दौरा करने जाते हैं। इन अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि अगर देश में कोई अन्य बीमारी कोरोना जैसी ही आ गयी, तो क्या होगा? क्योंकि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स व पैरामेडिकल स्टाफ तो खुद कोरोना की चपेट में आ रहे हैं; कई की महामारी से जान भी जा चुकी है। ऐसे में सरकारी अस्पताल में जाते समय कोरोना के मरीज़ के मन में आशंका होती है कि कहीं वह सही न हुआ, तो?
कोरोना वायरस के बहुत ज़्यादा बढऩे के सवाल पर पूर्व प्रशासनिक अधिकारी मोती लाल का कहना है कि अजीब विडम्बना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में आपसी तालमेल न होने के कारण कोरोना के मरीज़ों को न तो केंद्रीय अस्पतालों में सही इलाज मिल पा रहा है और न ही राज्य सरकारों के अस्पतालों मेंं। कोई राज्य अपने नियम बनाकर कोरोना को लेकर सख्ती करता है, तो कोई नहीं करता है। ऐसे हालात में कोरोना की रोकथाम को लेकर मज़ाक-सा किया जा रहा है। लोग बिना मौत के मर रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं है। हर रोज़ मरीज़ों की संख्या 90,000 से ज़्यादा आ रही है। 1,000 से ज़्यादा लोग हर रोज़ मर रहे हैं। कोरोना के मरीज़ों की संख्या 60 लाख के पार है, तो मरने वालों का आँकड़ा एक लाख के करीब है।
एम्स के सीनियर डॉक्टरों का कहना है कि कई अस्पतालों तक में कई डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ तक मुँह पर मास्क नहीं लगाते हैं। यहाँ पर आने वाले मरीज़ से क्या उम्मीद की जाए? डॉक्टरों का कहना है कि जब कोरोना को लेकर 25 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब ज़रूर लोगों में कोरोना को लेकर डर था। तभी लोगों ने मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग किया था; लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है, जो कोरोना के बढऩे का एक कारण हो सकता है। मैक्स अस्पताल के हार्ट सर्जन डॉ. रजनीश मल्हौत्रा का कहना है कि कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं, जो चिन्ताजनक है। अगर समय कोरोना के बढऩे का सिलसिला यूँ ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।
कैथ लैब के डायरेक्टर डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना शरीर के हर अंग को डैमेज करता है। कोरोना की रोकथाम में सही मायने में सोशल डिस्टेंसिंग ही एक इलाज है। कोरोना को लेकर अफवाहें भी खूब फैली है कि कोरोना सर्दी में बढ़ेगा या घटेगा। पर इतना ज़रूर है कि अगर हम सावधानी बरतेंगे तो कोरोना हर रोज़ घटेगा।
कोरोना के प्रकोप को देखकर तो यह स्पष्ट हो गया है कि चिकित्सा के क्षेत्र में भले ही दुनिया कितनी ही तरक्की के दावे कर ले, पर हकीकत में तो यह है कि ज़रा-सी हट के कोई नयी बीमारी आ जाती है, तो हम वैसे ही वहीं खड़े पाते हैं, जहाँ सदियों पहले खड़े होते थे। क्योंकि सात महीने से ज़्यादा का समय बीत गया है, कोरोना वायरस फैले हुए। पूरी दुनिया के चिकित्सक मिलकर अभी तक कोई कारगर उपाय ही नहीं निकाल पाये हैं, जिससे लोग आतंकित और आशंकित है कि कब कोरोना रुकेगा? क्योंकि कोरोना के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थ, व्यापार और परिवहन सब चौपट है।