भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में बुधवार को सुनवाई की है कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर चिंता व्यक्त कर कहा कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ऐसे क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जहां उनकी कार्रवाई से विशेष परिणाम निकले। और महाराष्ट्र के राज्यपाल की उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था। उन्हें खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है? सीजेआई ने राज्यपाल से पूछा कि क्या फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पर्याप्त आधार था? आप जानते हैं कि एनसीपी और कांग्रेस ठोस ब्लॉक है।
बेंच ने कहा कि, “सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते है क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते। लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है। सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता। ”
आपको बता दें, महाराष्ट्र में पिछले साल एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर उद्धव ठाकरे की सरकार गिराई थी और शिवसेना के बागी विधायकों के साथ भाजपा के समर्थन में शिंदे गुट ने सरकार बनाई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर 5 याचिकाएं दाखिल की गई थी।
इस सभी याचिकाओं में डिप्टी स्पीकर द्वारा शिंदे गुट के 14 विधायकों के बर्खास्तगी नोटिस, राज्यपाल द्वारा उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने व एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनने के लिए आमंत्रण देने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी गई और इन सब याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।